Friday, December 15, 2017

हर फूल उससे बातें करता था, उसके संग संग हँसता था |
वो तितली न थी फिर भी इतराती थी तितली की तरह| उसका बाग उससे रौसन था|
चाँदनी रात में जब मोगरा खुशबू बिखेरता तो दौड़ जाती उस तक और कहती तुम यूं ही खिलते रहना नहीं तो हम मुरझा जायेंगेवो पौधा उसकी हर अदा पर मुस्कुरा देता|

वो पौधा उसकी हर अदा पर मुस्कुरा देता
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फिर खिड़की से सटाकर अपना बिस्तर वो कहती देखो रात भर खुशबू इस खिड़की के अंदर भेजती रहना मैं तुम्हें अपनी सांसों में अहसास करना चाहती हूँ|
यह क्या सुबह हो गयी थी| हर फूल जैसे उसका इंतजार करता होता वो आँखें मसलते हुये कुछ समय के लिये लेट जाती प्रकृति के आगोश में| फिर चूमती अपने बाग के हर फूल हर डाली को वो तितली न थी पर तितली जैसी थी|
उसके दिल के टुकड़े हो रहे थे हर फूल मुरझा रहा था|
कोई उसके फूल के पौधों की जड़े काट रहा था और एक दिन वो अपने दिल के टुकड़े उठाकर उस बाग से बहुत दूर चली गयी|
आज हर फूल रो रहा था लेकिन वो क्या कर सकती थी उसे वो बाग छोड़ना पड़ा अपनी कलियों के लिये एक नया बाग जो सृजन करना था एक ऐसा बाग जिसके पौधों की जड़ें कोई न काट सके|
मेरी कलम से...
शिवकान्ति आर कमल
(
तनु जी )

2 comments:

  1. बहुत ही सुंदर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार मनीष जी

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