*बनके मैं याचक पुकारूं*
दिल के झुरमुट में बैठे,
निहारूं पिया को!
बनके मैं याचक,
पुकारूं पिया को!
मेरे मन भवन में,
वो रुनझुन सा बजता,
पुष्पों की गलियों में,
कर गुनगुन वो सजता!!
ध्वनियां भी सारी,
बनाता वही है!
सरगम भी वो,
गुनगुनाता वही है!
धमनियों में उसका ही,
वरदान बहता,,
देता वो सबकुछ है,
कुछ भी न कहता!
सजा दी ये काया,
बनाकरके चेतन,
भुलाकर हम उसको,
बने हैं अचेतन!
श्रृंगार मन का भी,
बाकी बहुत है,,,
मन के इस दर्पण में,
माटी बहुत है!!!
छुड़ा कर मैं माटी,
बनाऊं घरौंदा,
बो दूं उसीमें
पिया नाम का पौधा!
सींचू मैं नित नित, भर,
प्रेम रस की गगरी,
ले जाए जिस ओर, मैं,
चलूं उसी डगरी!
पिया सर्वव्यापी,
मुझे यूं रिझाए,
चांद, तारे बनकर,
गगन झिलमिलाए!
ऊषा की बेला,
गोधूल रानी!!
प्यारी बहुत हैं,
पिया की निशानी!!!
तपती दुपहरी और,
तरुवर की छाया!!!
पिया जी ने अद्भुत,
ये घर है बनाया!!
न अंबर की टोह,
न समंदर की थाह है!
पिया तक पहुंचने की,
सीधी सी राह है!!!!
समंदर और अंबर से,
वापस मैं आई,
पिया जी को झुरमुट में,
फिर से ले आई!
डुंबू पिया में,
मैं तारूं जिया को!!!!
बनके मैं याचक,
पुकारूं पिया को!!!
दिल के झुरमुट में बैठे,
निहारूं पिया को!!!
बनके मैं याचक,
पुकारूं पिया को!!!! ✍🏻
*बुधवार*
*भाद्रपद/शुक्ल द्वादशी/वि.२०७९*
*07/09/22*
*आर्या शिवकांति*
(तनु जी)
No comments:
Post a Comment