कोई जख्म देता है तो कोई मरहम लगाता है!
ये जिंदगी का तजुर्बा है साहब,
बस यूं ही बढ़ता जाता है!
कहीं खत्म हो जाते हैं जख्म मरहम लगाने से,
तो कहीं एक गलत मरहम भी आह दे जाता है!
ये जिंदगी का तजुर्बा है साहब,
बस यूं ही बढ़ता जाता है -------- ✍🏻!
शनिवार
भाद्रपद/कृष्ण नवमी/वि.२०७९
20/08/22
*आर्या शिवकांति*
(तनु जी)
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