Sunday, August 21, 2022

मिट्टी के रंग में

 वसुंधरा की सुगंधी और नंगे पैर चलना!!

बड़ा आनंद देता है मिट्टी के रंग में ढलना!!

धरती का आंचल और अंबर की चादर!!!

तरसती धरा पर बरसते जब बादल!!!

बीच आंचल और अंबर के!

मन का मचलना!

बड़ा आनंद देता है मिट्टी के रंग में ढलना!!!

पसीने के बूंदे जब छलकती हैं तन से,,,,

कुछ रज लिपटती जब गीले बदन से!!!

बीच मिट्टी और तन के इन

फासलों का भरना!!!

बड़ा आनंद देता है,

मिट्टी के रंग में ढलना!!!

देखो तो सारा जमाना यहां है!!!

इस जमाने से हमको जाना वहां है!!!

संग मिट्टी के हमको भी मिट्टी है बनना!!

बड़ा आनंद देता है मिट्टी के रंग में ढलना!!

न कर गुरुर तन का,,,

न दिखा अहम धन का!!!

तेरे तन के संग जल जाएगा,

एक कपड़ा भी कफन का!!!

गिर जाए न कूप में कहीं,

उससे पहले है तुझे संभलना!!!

बड़ा आनंद देता है मिट्टी के रंग में ढलना!!


सोमवार

तिथि- पंचमी

श्रावण/कृष्ण/वि.२०७९

*आर्या शिवकांति* 

(तनु जी)

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