Friday, October 26, 2018

मोहब्बत का दरिया निरंतर

सभी प्यारी आदरणीया माताओं, बहनों, भाभियों को मेरी तरफ से करवाचौथ पर यह कविता समर्पित----💐💐💐💐💐💐
*मोहब्बत का दरिया निरंतर*

हर तरफ चाँद है,
चांदनी भी है शीतल----
ओस की बूंदों से पलकें सजाकर,,,,

वो चाँद में देखती,
चाँद को आज अपने----

चाँद के जैसी दुल्हन,
यूँ अम्बर से कहती----
छुपाया क्यों है तूने,
आज चाँद अपना-----
मुद्दत है गुजरी बिना चाँद देखे,,,,
 जी भर निहारूँ,,,
चाँद सा अपना सजना------

चाहतों में भी,
कुछ खुमारी भरी है,,,,,
दिलों में अजब,
 बेकरारी बढ़ी है-----

दिल की बेचैनियां,
 न उनकी बढ़ा,,,,
चाँद जिसका है दूर,
सरहद पर खड़ा------

चाँद में अपना चंदा,
 निहारा करें,,,,
 दिलवर को दिल से,
पुकारा करें------

हवा का ये झोंका,
दिल में जो धँसता----
मोहब्बत का प्याला है,
पल-पल छलकता-----

दिल के समंदर का साहिल है अंदर-------
मोहब्बत का दरिया,
 निरन्तर- निरन्तर-----

वो चाँद में देखती,
चाँद को आज अपने------
ओस कि बूंदों से,
पलकें सजाकर------


रचित दिवस- शनिवार

दिनांक-27/10/2018

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, October 23, 2018

तेरी याद में

आशु रचना------


मैं तन्हा पथिक विचलित सी,
मेरे मन की उहा-पोह में,
गरजते हुये काले मेघों के बीच--
पथ को तलाशते हुए-------
निकल गयी फिर बड़ी दूर-----

हौले- हौले मेरे ही कदम चले जा रहे थे,
मेरे ही अंतर्मन के द्वार की ओर-----

हाँ प्रेम हो गया था मुझे उस पथ के हर धुल कण से----
जो जाते हैं मेरे प्रियतम के द्वार तक-------
न जाने कितनी बंदिशें रोकती रह गयी मुझे,
और मेरे हर स्पंदन को,
पहुंचना था अपने पतवार तक-------

न जाने कब टूट गयी,
उस मकान की दीवार,
जो बड़ी ही सख्त थी,,,,,
मैं चुटहिल पथिक------
न लता थी,
न दरख़्त थी-----

जितनी टूटी उतनी मजबूती से जुड़ती गयी-----
निज के अन्तर्मन से------
उसके प्रेम का सैलाब बेताब था,,,,
मुझे लेने को अपने आलिंगन में------

मैं अपलक निहारती रह गयी,,,,
बंद पलकों से------
अपने बागवां की गलियों को------
बन्द होंठ मेरे,,,,
उसका नाम पुकारते हुए न थकते,,,,

न जाने कब कर लिया गठबंधन,
हमारे रोम-रोम ने------
हमारे उस बादशाह से जिसने,,,,
न कोई शर्त रखी और न ही कहीं हस्ताक्षर लिए-----

मैं तन्हा सी पथिक,
तन्हा न थी------
उसने ले लिया मेरा हाथ अपने हाथों में-----
और मैं उसके नाम का श्रृंगार करती रह गयी-----
अनन्त आभूषणों का श्रृंगार-----

वो देखता रह गया मुझे मेरे ही दिल की नगरी में--------


...................✍🏻

२४/१०/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, October 16, 2018

फर्ज निभाओ इस तरह कि,
अपने वजूद का भी ख्याल न रहे----
ऐसा हो नहीं सकता कि,
तुमपर कोई सवाल न रहे-----

चाहा गर किसी को तो फिर,
चाहो इस तरह कि----
धोखे खाने का भी मलाल न रहे----

16/10/18
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

वो अडिग, अचल सी

*वो अडिग, अचल सी*

निज, नित के संघर्षों से,
सिंचता उसका यौवन था----
वो अडिग, अचल सी खड़ी रही----
जब तिल-तिल चुभता****
कंटक वन था-----

इसे पुकारा, उसे पुकारा----
न डूबी कस्ती, न मिला किनारा------
हौले-हौले पलकों पीछे,
कराह रहा था,
दिल बेचारा-----

भीतर से लेकर द्वार तलक,
फिर द्वार से लेकर भीतर तक---
हर कण-कण में वो खोज रही थी---
जीवित साँसों का मंजर""""

काया उसकी शून्य पड़ी थी,
पूछ रहा था मन उसका----
फूलों से तू घायल है,
या फिर लगा तुझे खंजर----

कूप निशाचर अँधियारों में,
बंद राह के गलियारों में----
तन्हा पथिक सी टकराती वो"""""
नित पत्थर की दीवारों से------

वो उपमा थी,
वो रूपक थी----
यमक नहीं थी,
पर श्लेष थी------
धधक रही थी अंदर से वो,
शायद इक चिंगारी,
शेष थी-----

सजती न तो क्या करती,,,,
खूब उफान पर यौवन था----
अलंकार था संघर्षों का----
न चूड़ी, न कंगन था------

वो अडिग, अचल सी खड़ी रही,
जब तिल-तिल चुभता,
कंटक वन था-----
निज, नित के संघर्षों से,
सिंचता उसका यौवन था-----✍🏻


कविता रचित दिनांक 👇🏻
२८/०९/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Monday, October 15, 2018

मेरी बेटी और मैं......

मैं अचेतन से चेतन में आने लगी,
वो माँ करकर मुझको,
बुलाने लगी,,,,
उसके चुम्बन ने ऐसा था जादू किया,,,,
आसाओं का मन में,
जला इक दिया....
मैं हौले से छूकरके बचपन मेरा,
गले से मैं उसको लगाने लगी******
उसकी आँखों में भी,
नमीं थी बहुत....
देखो मुझको ही चुप वो,
कराने लगी,,,,,,,

इक दूजे से गम को,
छुपाते हैं हम,,,,,,
जी भरके फिर मुसकुराते हैं हम.......

दिल भी मासूम है,
मन भी मासूम है.....
वो समझती है सब,
मुझको मालूम है******

देखकर मेरे नैनों की,
मायूसी को.....
पास आकर मुझे बरगलाने लगी""""""
वो माँ कह कह कर मुझको,
बुलाने लगी$$$$$$


शिवकांति आर कमल  ( तनु जी )

Saturday, October 13, 2018

कहानी समझकर पढ़ने की भूल न करो साहिब,,,,
*तनु* खुद की लिखी एक किताब है--------

चालाकियों का दरिया शून्य है-----
खुद्दारियों में बेहिसाब है------ 🙏🏻🙂

13/१०/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, October 7, 2018

दर्द भी कराह उठा साहेब-----
जब खंजर पर निशान उन अँगुलियों के  देखे---

जिनके स्पर्श से रूह को शुकून मिलता था----
०६/१०/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, October 4, 2018

*शब्दों से मारो या हथियारों से,,,,,*
*अब दर्द हमें कब होता है-----*

*मजबूरी का आलम ऐसा है-------*
*रूह शून्य हुयी,*
*दिल रोता है------*

०४/१०/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)