मेरी त्वरित रचना
बिना किसी संसोधन 🙏🏻
*तड़प*
हम तड़पते हैं,
कभी अपनों के लिए------
कभी अपने सपनों के लिए-----
कभी तड़प उठते हैं अहंकार में----
कभी बिछड़ते हुए प्यार में-----
हम गरीबी में तड़पते हैं रोटी के लिए,,,,,
कभी तन पर फटी,
धोती के लिए-----
कभी तड़प उठते हैं,,,
धोखे खाकर----
कभी खो देते हैं बहुत कुछ,
भरोसे में आकर-------
कभी मौत खड़ी है सामने,
और तड़पते हैं जिंदगी के लिए----
जब जिंदगी गले पड़ी थी,
तो हम तड़पे थे,
खुदकुशी के लिए-----
कोई हमें तड़पा जाता है,
जख्मों को कुरेद कर----
कोई हमें राह दिखा जाता है,,
मौत को भी खदेड़ कर----
हम यह सोंचकर तड़पते रह गए,
कि कल क्या होगा---?
ये समझने में देर कर दी,,,,
कि सच में कल!!!!
होगा क्या?????
तड़प में भूल गए हम,
उद्देश्य अपना,,,,
हम खप तो रहे थे हरपल,
लेकिन निरर्थक था वो खपना------
क्यों न जी लें,,,
इस तड़प को दरकिनार करके----
हमारी जिंदगी का आज ही तो है,,,
आखिरी दिन,,,
यह याद करके-----
मौत आनी है,
वो तो आएगी ही,,,
और हम फिर आएंगे मौत के बाद---
आना-जाना तो लगा ही रहेगा----
लेकिन अभी का क्या,,,,,
जो सीखा है अभी तक,,,
उसी सीख से जी लें जरा-----
मौत से पहले कुछ करके जाना है,,,
जिंदगी के इस दरिया को,
तर के जाना है-----
इस तड़प ने हमें है तड़पाया बहुत,,,
अब तड़प में न खुद को,
डुबाना है-----
ऐ तड़प अब तेरी कब्र,,,,
मुझमें बनाना है-----
ऐ तड़प अब तेरी कब्र,
मुझमें बनाना है---
ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩
दिनाँक १०/०२/१९
दिन-रविवार
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
बिना किसी संसोधन 🙏🏻
*तड़प*
हम तड़पते हैं,
कभी अपनों के लिए------
कभी अपने सपनों के लिए-----
कभी तड़प उठते हैं अहंकार में----
कभी बिछड़ते हुए प्यार में-----
हम गरीबी में तड़पते हैं रोटी के लिए,,,,,
कभी तन पर फटी,
धोती के लिए-----
कभी तड़प उठते हैं,,,
धोखे खाकर----
कभी खो देते हैं बहुत कुछ,
भरोसे में आकर-------
कभी मौत खड़ी है सामने,
और तड़पते हैं जिंदगी के लिए----
जब जिंदगी गले पड़ी थी,
तो हम तड़पे थे,
खुदकुशी के लिए-----
कोई हमें तड़पा जाता है,
जख्मों को कुरेद कर----
कोई हमें राह दिखा जाता है,,
मौत को भी खदेड़ कर----
हम यह सोंचकर तड़पते रह गए,
कि कल क्या होगा---?
ये समझने में देर कर दी,,,,
कि सच में कल!!!!
होगा क्या?????
तड़प में भूल गए हम,
उद्देश्य अपना,,,,
हम खप तो रहे थे हरपल,
लेकिन निरर्थक था वो खपना------
क्यों न जी लें,,,
इस तड़प को दरकिनार करके----
हमारी जिंदगी का आज ही तो है,,,
आखिरी दिन,,,
यह याद करके-----
मौत आनी है,
वो तो आएगी ही,,,
और हम फिर आएंगे मौत के बाद---
आना-जाना तो लगा ही रहेगा----
लेकिन अभी का क्या,,,,,
जो सीखा है अभी तक,,,
उसी सीख से जी लें जरा-----
मौत से पहले कुछ करके जाना है,,,
जिंदगी के इस दरिया को,
तर के जाना है-----
इस तड़प ने हमें है तड़पाया बहुत,,,
अब तड़प में न खुद को,
डुबाना है-----
ऐ तड़प अब तेरी कब्र,,,,
मुझमें बनाना है-----
ऐ तड़प अब तेरी कब्र,
मुझमें बनाना है---
ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩
दिनाँक १०/०२/१९
दिन-रविवार
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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