*चिंतन*
जब गुरु अविद्वान होता है तब छल, कपट, अधर्म बढ़ता है क्यूं कि एक अयोग्य गुरु स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए हरपल अपनी अयोग्यता को छल, प्रपंच, अधर्म के द्वारा ढकने का प्रयास करता है। जीविका मात्र हेतु किया गया शास्त्रों का अध्ययन अधर्म को बढ़ावा देता है। वर्तमान समय में गुरुओं की अविद्वता के कारण साधारण मनुष्य धर्म और कर्म का अर्थ समझने और उसे आचरण में उतारने से वंचित हैं। आज चारों तरफ धर्म का ज्ञान देने वालों की भरमार है और इस ज्ञान को ग्रहण करने वाले अनपढ़ नहीं बल्कि स्वयं को पढ़े - लिखे कहने वाले लोग ज्यादा हैं। वो अनपढ़ व्यक्ति ऐसे पढ़े लिखों से कहीं बेहतर है जो रोज मजूरी करके शाम को थकने के बाद नमक रोटी या दाल रोटी खाकर चुपचाप सो जाता है क्यूं कि उसे फुर्सत ही नहीं है प्रतिदिन धर्म की अलग अलग तरह की रंगोली को निहारने के लिए।
पढ़े लिखों का हाल ऐसा है कि वो मेहनत नहीं करना चाहते इस विषय को समझने के लिए कौन फालतू में दिमाग खर्च करे उससे तो अच्छा है किसी को भी गुरु बना लो वो जैसा बताए करते जाओ। सत्य को समझने और जानने के लिए सत्यरूपी कुएं में उतरना पड़ेगा। एक योग्य गुरु तलाशने के लिए न जाने कितना भटकना पड़ेगा। यदि अपने अंतर्मन को गुरु माने तो वर्षों वहां तक की यात्रा तह करनी पड़ेगी, यदि ईश्वर को गुरु माने तो उसकी बनाई इस श्रृष्टि को समझने के लिए वर्षों तप करना पड़ेगा। यदि किसी योग्य गुरु को तलाशे तो पहले एक गुरु तलाशने के योग्य स्वयं को बनाना पड़ेगा छल, कपट, प्रपंच से रहित होकर सदमार्गी बनना पड़ेगा।
कौन पड़े इन सब झंझटों में इसलिए ज्यादातर लोगों ने सुगम रास्ते चुन लिए फिर उन ज्यादातर लोगों को ढाल बनाकर अयोग्य गुरुओं ने अपनी कही मिथ्या बातों और मिथ्या धारणाओं को ही सत्य बनाकर परोस दिया सबके सामने। इससे संस्कृति का पतन हो, धर्म का पतन हो, पुरुषार्थ अकर्मण्यता में बदल जाए, आने वाले पीढ़ियों का पतन हो, राष्ट्र की हानि हो उन्हें क्या फर्क पड़ता है उन्हें तो बस राग, द्वेष, ईर्ष्या, अधर्म की जड़ें मजबूत करनी हैं ---- ✍🏻
दिवस - शनिवार
दिनांक २५/०९/२१
*आर्या शिवकांति*
*(तनु जी)*