Tuesday, January 30, 2018

अकेलापन और एकांत

सभी श्रेष्ठजनों को सादर नमन
मेरी कलम से कुछ विचारों को आप सबके साथ रखने की एक कोशिस........

अकेलापन क्या है?





किसी सज्जन ने एक दिन प्रश्न किया था कि अकेलापन क्या है?
अभिशाप या वरदान!
मेरी नजरों में अकेलापन दोंनो है|
अकेलापन आत्मा से परमात्मा तक का सफर है और इस आत्मा से परमात्मा तक के बीच का जो रास्ता होता है बेशक बहुत ही पीड़ादायक मंजर होता है|

एकांत वो जिसके द्वारा हम परमात्मा तक पहुंचने का प्रयास करते हैं| योग ध्यान करते हैं| साधना करते हैं| कई सारी ऐसी क्रियायें करके परमात्मज्ञान तक पहुंचने के लिये प्रयासरत रहते हैं और निरंतर प्रयास के बाद शायद पहुंच भी जाते हैं|

परन्तु अकेलापन वो है जिसमें कोई योग, साधना जैसी क्रिया किया बिना ही परमात्मा की अनुभूति होने लगती है हर पल हर क्षण|
लेकिन यह अकेलापन भी दो तरह के लोगों के साथ होता है एक तो वे लोग जो किसी को कभी अपना नहीं मानते सिर्फ अपने फायदे के लिये रिस्तों का इस्तेमाल करते हैं| इन लोगों के जीवन का उद्देश्य ही यही है अपनी जीत होनी चाहिये छल से या बल से|
ऐसे लोगों का परमेश्वर के हिसाब किताब से कोई लेना देना नहीं होता परन्तु ऐसे लोगों के चेहरे पर कभी सुकून भी नजर नहीं आता ए हमेशा छटपटाते घूमते रहते हैं न चैन से जीते हैं न किसी को जीने देते हैं, इन्हें स्वयं पता नहीं होता कि इन्हें जीवन में चाहिये क्या?

यूं तो कहीं न कहीं हर कोई अपने आपको अकेला महसूश करता है परन्तु उन अकेलों में भी कोई अकेला होता है एक शांत शालीन प्रवृति के साथ जो न किसी से शिकायत करता है न किसी को बुरा भला कहता है|
वो आपको दुखी देखकर दुखी हो जायेगा| खुश देखकर खुश हो जायेगा परन्तु आपसे घुलने मिलने से कतरायेगा क्यूं कि उसे सुकूं मिलता है सिर्फ परमात्मा की शरण में|

ऐसे अकेले व्यक्ति को गलत समझने की भूल न करें क्यूं यहां तक पहुंचने के लिये उसे अपने कतरे कतरे की कुर्बानी देनी पड़ी होगी न जाने कितने रिस्तों को उसने शिद्धत से निभाया होगा| उसे भी चाहत होगी अपनेपन की भरोसे की परन्तु वो हर बार छला गया|
फिर भी उसने लोगों से छल करना नहीं सीखा, धोखा देना नहीं सीखा,
रिस्तों का तमाशा बनाना नहीं सीखा|
उसने सिर्फ एक ही बात सीखी कि परमात्मा ही परम सत्य है और वह परमात्मा को सिर्फ इसलिये महसूश कर पाया क्यूं वह छल से परे था|

कौन चाहता है कि अकेलेपन में रहे परन्तु जीवन में महफिलें भी तो बदलने लगती हैं|

जीवन का एक कडुवा सच है सबसे ज्यादा बुरे वक्त में आपको वही धोखा देखा जिसके स्पर्श से आप जिंदा रहना चाहते हो|
इसलिये कभी किसी के भरोसे जिंदगी के जंग वाले मैदान में मत उतरना, जिन्दगी आपकी है सफर भी आपको ही करना है|

माँ बाप ने हमें संघर्ष करना सिखा दिया|
अब संघर्ष हमें करना है|

"जब जब हमने हँसना चाहा सारी दुनिया हँसी नजर आयी|
और जब हमारी आँखें नम हुयीं यह दुनिया खाली खाली नजर आयी""

हमने जिसे प्रेम किया वो मेरे सामने मेरा घर के बाहर किसी और का था!!!
उस वक्त हमेशा अकेले थे जब जब उसने परछायीं बनकर साथ देने का वादा किया|

हमने जिसे जन्म दिया उसके शरीर में रक्त हमारा है लेकिन कल वो भी यह बाद भूलकर कहीं गुम हो जायेगा|

जब जब हमें जरूरत थी किसी अपने की तब हम अकेले थे|

और हमें दिख रही थी जिंदगी की हकीकत कि यहां प्रेम, रिस्ता, भरोसा सब जरूरत के अनुसार मोड़ ले लेते हैं|

हम खड़े थे गुमसुम से और हमारा दिल हमारी आँखों के सामने कतरा कतरा बिखर रहा था बार बार|

जब एक हाथ झुलसा और दूसरा सलामत था तब न जाने कितने हाथ मरहम लगाने को उठ पड़े|
और जब हम पूरे झुलसे तो लोग राख समझकर पैरों से मसलते चले गये|

हमने देखा सारा मंजर अपनी आँखों से तो अपने अकेलेपन को मुट्ठी में भींचकर परमात्मा के आलिंगन में जाकर छुप गये और वहां से गुजरने वाले हर राही को बस मुस्कुराकर देख लिया करते हैं|
क्यूं कि मुझे यकीं है मेरे लड़खड़ाते कदमों को सम्भालने वो कभी नहीं आयेगा जिसपर हमने भरोसा किया परन्तु वो जरूर आयेगा जिस समय आने के लिये परमात्मा ने जिसको चुना होगा|

अब हमें परमात्मा तक पहुंचने के लिये किसी ध्यान साधना की जरूरत नहीं पड़ती जिस पल मेरे वजूद में प्रभु का वास न होगा वह पल हमारे जीवन का आखिरी पल होगा|

अकेलापन हमारे लिये अभिशाप तब तक था जब तक हम इंसानों खातिर तड़प रहे थे और वरदान तब बन गया जब इंसानों के दिये दर्द ने परमेश्वर से मिला दिया|……………………

ओ३म् परमात्मने नम:

मेरे विचार मेरे अनुभव मेरी कलम से……
३१/०१/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Friday, January 26, 2018

बेहिसाब तू है....


इस धड़कन और स्पंदन में,
मेरे चूड़ी, कंगन में,
तेरी गणित लगाती हूं जब,
बेहिसाब तू है........


 

रात रात भर जाग जागकर,
जो लिखे थे हमने,.
कोरे कागज,
पहुंची नहीं जो,
अब तक तुझमें........
अनकही किताब वो,
तू है!!!!!!

तू अगर चले परछायीं बन,
हर कहीं धूप और छांप में,,,,
खो कर तेरी आँखों में,
सिर रख दूं, तेरे पाँव में!!!!!!
चाँद की शीतल छाया में,
तुम मुझे निहारा करते थे!!!!!
टिम टिम करते तारों में,
हर ख्वाब सितारा करते थे!!!!


छोटी बदली के चिलमन से,
जो झांक रही थी रात चाँदनी...
तू ही तो था, नैंनों का चिलमन,

मेरा नकाब वो तू है!!!!!
आँख बंदकर देखा जब,
तुम हाथ दबाकर,
फिर बोले!!!!!
चलो चलें फिर दूर कहीं,,,,
तुम मेरे हम तेरे,
हो लें!!!""


कुछ पल सांसें बसंती हो गयीं,,,,,
कुछ दरिया,
 कुछ पंक्षी हो गयीं!!!!
कुछ पीली थीं,
सरसों जैसी,
पवन में कुछ,
नारंगी गयी हो गयीं!!!!

जिन फूलों का तू है मालिक,
मैं हूं उसकी फुलवारी,,,,,
मुझमें फूल तू खोज रहा,
मेरा गुलाब तू है!!!!!

मैं तो बस इतना ही समझी,
मुझमें बेहिसाब तू है....बेहिसाब तू है!!"!!!


स्वरचित- २६/०१/२०१८
नोट- कॉपी पेस्ट एडटिंग वर्जित
शिवकान्ति आर कमल

( तनु जी)


Sunday, January 21, 2018

रेत बनकर

रेत बनकर मुट्ठी से फिसल  न जाये कहीं कोई अपना,,,,

बस इसी लिये कभी कभी,

अश्कों से रेत को नम कर लिया करते हैं...


२०/०१/२०१८

कवियत्री, लेखिका और विचारक के रूप में.....

शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Saturday, January 13, 2018

रास्ते और भी हैं

कुछ दिन पहले हमारे रास्ते को नाले में परिवर्तित कर दिया गया! 


जबतक नाला खोदा जा रहा था हम बचाव करके निकलते गये|
खुदने के बाद हम ईंट पत्थर का सहारा लेकर निकले लगे| लेकिन फिर ईंट पत्थर भी हटा दिये गये तो हम दीवार के सहारे नाले के किनारे चलन लगे परन्तु कुछ दिन बाद नाले में पानी भर दिया गया तब हमें  याद आया अब दूसरा रास्ता खोजना चाहिये| जल्द ही हमने दूसरा रास्ता खोजा अभी दो ही दिन हुये थे उस रास्ते को भी खोद कर पानी भर दिया गया बड़ी विकट परिस्थिति हो गयी|

मैंने घर से बाहर निकल  कर नया रास्ता खोजने का विचार किया तो एक बेहद तंग रास्ता नजर आया जिसमें पत्थर और कांटे थे मैंने उसी रास्ते बाहर निकलने का सोंचा और चल पड़ी| 
कांटें और पत्थर अपना काम कर रहे थे... और मेरे कदम चलने का कार्य कर रहे थे ... निरंतर...निरंतर और निरंतर......आगे जाकर देखा वो तंग गली हमें एक बेहद चौड़े रास्ते पर ले गयी...

अब हर दिन मैं उसी रास्ते चलने लगी अपनी मंजिल तक पहुंचने खातिर......

एक ही जगह बार बार पत्थर और कांटे चुभने से मेरे पैर बेहद सख्त हो चुके थे| अब लोहे की कीले भी बर्दाश्त करने की क्षमता आ चुकी थी मेरे पैरों में........

और मैं हर दिन उस तंग गली से उस चौड़े रास्ते तक जाती थी यह सोंच कर कि....
 शायद इस रास्ते के उस पार,,,,
 कोई और तंग गली बुला रही........
और मुझे मेरी तक पहुंचने का रास्ता बता रही.....


अहसास मेरे थे,,,,,
सच्चाई न जाने कितनों की!!!!!!!
समेट लिये कांटे हमने,,,
कर दी विदाई सारे सपनों की..........✍🏻

ओ३म् परमात्मने नम:

१२/०१/२०१८

कवियत्री, लेखिका और विचारक के रूप में.....

शिवकान्ति आर कमल 
( तनु जी )

Sunday, January 7, 2018

कांटों की सेज पर



मुझसे किसी सज्जन ने कहा आप बहुत व्यस्त रहती हैं, 
उनकी इस बात पर मुंह से अचानक ही निकल गया "कांटों की सेज पर करवट बदलने का मौका नहीं मिलता"

क्या सच में?
शायद हां क्यूं कि जब हमारे जीवन में कोई दुष्ट प्रवृति का व्यक्ति नासूर बन जाता है तो इंसान का इंसानियत पर से भरोसा उठ जाता है|

दुष्ट प्रवृति के इंसान को बुद्धिजीवी समाज का कोढ़ कहकर भी सम्बोधित करते हैं|

समाज का कोढ़ हां जी सही और सटीक शब्द चुना यदि वह समाज का कोढ़ है तो अंत भी उसका टुकड़ो में होना निश्चित है और एक ऐसा अंत कि लोग उससे दूर भागेगें जब उसके अंग अंग का अंत कोढ़ रूप में होगा|

लेकिन ऐसा व्यक्ति कभी सुधरता नहीं|

एक व्यक्ति आचार्य चाणक्य की नीति का उपासक था???
आप लोग गलत समझे××××

आचार्य चाणक्य के गुणों का नहीं उनकी नीति का उपासक था.........
वह यह भूल गया कि आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियां देश को स्वर्णिम युग बनाने में की थीं.....

यह व्यक्ति उपासक आचार्य चाणक्य नीति का और दिमांग से प्यासा इंसानी खून का....××××

फिर से आप सब गलत समझे?

यह गलत इंसानों का भी खून नहीं पीता यह तो खून करता था अपने ही रिस्तों का अपनों का?
इसे अंग्रेजी भाषा में मेंटल डिसओर्डर, डेप्लोमैटिक कुछ भी कह सकते हैं हिंदी में खूंखार भेड़िया कह तो भी गलत होगा क्यूं कि भेड़िया भी अपनो को दुख नहीं देता|

अब देखिये जी इस चाणक्य ने अपने ही आस पास और घर पर औरंगजेबकालीन मुगलिया सल्तनत बना दिया???????

और इस सल्तनत का ऐसा असर हुआ कुछ रिस्ते जौहर कर गये और दुश्मनी में बदल गये!!!!!!!!!!


जिंदगी प्रभु की बड़ी खूबसूरत देन है प्रियजनों,
आप चाहे तो जीवन स्वर्ग सा लगे बस रिस्तों की कीमत समझें और अपनों से कभी छल न करें|

एक दुष्ट इंसान सबकुछ तबाह कर देता है ऐसे व्यक्ति को बार बार मौका न दें ऐसे रिस्ते का जितनी जल्दी हो सके श्रृाद्ध कर दें|


मेरे विचार और मेरे अनुभव मेरी कलम से...🏻

०८/०१/२०१८

शिवकान्ति आर कमल 
( तनु जी )

Thursday, January 4, 2018

प्रेम की ऐसी देखी हालत



प्रेम की ऐसी देखी हालत.....
प्रेम से प्रेम की पूजा करते,
फिर भी प्रेम न करता कोई!!!!!
देखी ऐसी प्रेम की हालत?
फिर से !!!!!तनु!!!!!
जी भर रोयी....

 

सामने प्रेम की बातें करके,
रंगीली अपनी रातें करके!!!

अगले पल किसी और का प्रेमी,,,
वो कहती यह, गैर का प्रेमी!!!!

मैं उसकी और वो है उसका,,,
नहीं पता यहाँ,
कौन है किसका!!!!
वो था खोया और किसी में,

मैं थी जिसमें पल पल खोयी???

प्रेम की ऐसी देखी हालत,
फिर से तनु जी भर रोयी!!!!!


प्रेम के काबिल जनने वाला,
वो भी कातिल बनने वाला!!!

इक पिता की बारी देखी मैंने,
दिल गद्दारी देखी मैंने!!!!
निज खून से भी थी,
वफा नहीं!!!!
कानून में कोई दफा नहीं,,,,

सच न दिखे उजाले में,
वो बैठी छुपी दुशाले में!!!!

तन से उजली दिखने वाली,,,,
आँखों में कालिख खूब संजोई!!!!

देखी ऐसी प्रेम की हालत,,,
फिर से तनु जी भर रोयी!!!!!

भरी जवानी विधवा होकर,
मिलती जिसको,
हर दिन ठोकर!!!
बन जाती वो पत्थर जैसी,
उसकी हालत कैसी कैसी,,,,,

सुनाके लोरी बच्चों को जो,
रात सिसकियां लेकर सोती!!!!!
देखो एक अजनबी खातिर,
वो भी अपनी बेटी
खोती!!!!!


हाथ छुड़ाकर छोड़ अकेले,
प्रेम में वो भी बेटी खोयी!!!

देखी ऐसी प्रेम की हालत,
तनु फिर जी भर रोयी!!!!


कड़ुवी बातें अक्सर सच्ची,
मीठी बातें कच्ची
पक्की,,,,

यहां भी मीठा वहां भी
मीठा,
दिल में प्रेम है सीठा, सीठा!!!!
ऐसी मीठी महबूबा को,
न यह मीठा न वह मीठा!!!


दिल चीर के रख दो जिसके आगे,
वो भी है, किसी और का होता !!!
तेरा दिल है जिसके खातिर,
उसका दिल किसी गैर का होता !!!!!


मेरे दिल की मत पूछो जी,
मैं तो गहरी नींद में सोयी!!!!

देखी ऐसी प्रेम की हालत,
फिर से तनु जी भर रोयी!!!!

प्रेम से बैठो, प्रेम से बोलो,
प्रेम कभी न छल से तौलो!!!!

भटक रहे हो प्रेम के खातिर,,,
तुम भी बड़े हो छलिया शातिर!!!!

भटक भटक थक जाओगे,,,
लेकिन समझ न पाओगे||||
छल ने है जकड़ा तुमको,,,
न छोड़ा न पकड़ा तुमको!!!!

आ जाओ तुम संग हमारे,
रूह से रूह का उद्धार करो||||
परमपिता है अन्दर बैठा,
प्यार करो बस प्यार करो!!!!!!

प्रभु को चाहूं,
प्रभु को पूजूं,
नहीं चाहिये और कोई!!!!

प्रेम की ऐसी देखी हालत,,,
फिर से तनु जी भर रोयी!!!!!

स्वरचित-०५/०१/२०१८

शिवकान्ति आर कमल 
( तनु जी )

Wednesday, January 3, 2018


यह कविता मेरी बेटियों के नाम

जब प्यार से वो मुसकाती है






जब प्यार से वो मुसकाती है.....
फिर माँ माँ कहके बुलाती है.....


तब जीवन स्वर्ग सा लगता है......
यह जां निशार हो जाती है......


आंगन में पायल की रून झुन .....
कान में बाली बाजे झुनझुन....


होली की पावन गीत है वो......
है मन मन्दिर की वो कुमकुम......


मुझे जो गुस्सा आ जाये......
वो आँख देख डर जाती है......


हौले से चूमके गाल मेरे......
फिर आँचल में इतराती है.....


कभी वो मेरी करे इबादत.....
कभी वो थोड़ी करे शरारत.....


मचले या फिर मान जाये वो....
है प्यारी उसकी हर एक आदत.....


मैं भी कूदूं, मैं भी उछलूं.....
संग मैं उसके खेलूं मचलूं.....


उछल कूद जब मैं, थक जाऊं.....
तब बचपन याद दिलाती है......


जब प्यार से वो मुसकाती है......
फिर माँ, माँ कहके बुलाती है......


तब जीवन स्वर्ग सा लगता है......
यह जां निशार हो जाती है.......



स्वरचित_०५/०२/१७
शिवकान्ति आर कमल (तनु जी)