इस धड़कन और स्पंदन में,
मेरे चूड़ी, कंगन में,
तेरी गणित लगाती हूं जब,
बेहिसाब तू है........
रात रात भर जाग जागकर,
जो लिखे थे हमने,.
कोरे कागज,
पहुंची नहीं जो,
अब तक तुझमें........
अनकही किताब वो,
तू है!!!!!!
तू अगर चले परछायीं बन,
हर कहीं धूप और छांप में,,,,
खो कर तेरी आँखों में,
सिर रख दूं, तेरे पाँव में!!!!!!
चाँद की शीतल छाया में,
तुम मुझे निहारा करते थे!!!!!
टिम टिम करते तारों में,
हर ख्वाब सितारा करते थे!!!!
छोटी बदली के चिलमन से,
जो झांक रही थी रात चाँदनी...
तू ही तो था, नैंनों का चिलमन,
मेरा नकाब वो तू है!!!!!
आँख बंदकर देखा जब,
तुम हाथ दबाकर,
फिर बोले!!!!!
चलो चलें फिर दूर कहीं,,,,
तुम मेरे हम तेरे,
हो लें!!!""
कुछ पल सांसें बसंती हो गयीं,,,,,
कुछ दरिया,
कुछ पंक्षी हो गयीं!!!!
कुछ पीली थीं,
सरसों जैसी,
पवन में कुछ,
नारंगी गयी हो गयीं!!!!
जिन फूलों का तू है मालिक,
मैं हूं उसकी फुलवारी,,,,,
मुझमें फूल तू खोज रहा,
मेरा गुलाब तू है!!!!!
मैं तो बस इतना ही समझी,
मुझमें बेहिसाब तू है....बेहिसाब तू है!!"!!!
स्वरचित- २६/०१/२०१८
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शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी)
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