सभी श्रेष्ठजनों को सादर नमन
मेरी कलम से कुछ विचारों को आप सबके साथ रखने की एक कोशिस........
अकेलापन क्या है?
किसी सज्जन ने एक दिन प्रश्न किया था कि अकेलापन क्या है?
अभिशाप या वरदान!
मेरी नजरों में अकेलापन दोंनो है|
अकेलापन आत्मा से परमात्मा तक का सफर है और इस आत्मा से परमात्मा तक के बीच का जो रास्ता होता है बेशक बहुत ही पीड़ादायक मंजर होता है|
एकांत वो जिसके द्वारा हम परमात्मा तक पहुंचने का प्रयास करते हैं| योग ध्यान करते हैं| साधना करते हैं| कई सारी ऐसी क्रियायें करके परमात्मज्ञान तक पहुंचने के लिये प्रयासरत रहते हैं और निरंतर प्रयास के बाद शायद पहुंच भी जाते हैं|
परन्तु अकेलापन वो है जिसमें कोई योग, साधना जैसी क्रिया किया बिना ही परमात्मा की अनुभूति होने लगती है हर पल हर क्षण|
लेकिन यह अकेलापन भी दो तरह के लोगों के साथ होता है एक तो वे लोग जो किसी को कभी अपना नहीं मानते सिर्फ अपने फायदे के लिये रिस्तों का इस्तेमाल करते हैं| इन लोगों के जीवन का उद्देश्य ही यही है अपनी जीत होनी चाहिये छल से या बल से|
ऐसे लोगों का परमेश्वर के हिसाब किताब से कोई लेना देना नहीं होता परन्तु ऐसे लोगों के चेहरे पर कभी सुकून भी नजर नहीं आता ए हमेशा छटपटाते घूमते रहते हैं न चैन से जीते हैं न किसी को जीने देते हैं, इन्हें स्वयं पता नहीं होता कि इन्हें जीवन में चाहिये क्या?
यूं तो कहीं न कहीं हर कोई अपने आपको अकेला महसूश करता है परन्तु उन अकेलों में भी कोई अकेला होता है एक शांत शालीन प्रवृति के साथ जो न किसी से शिकायत करता है न किसी को बुरा भला कहता है|
वो आपको दुखी देखकर दुखी हो जायेगा| खुश देखकर खुश हो जायेगा परन्तु आपसे घुलने मिलने से कतरायेगा क्यूं कि उसे सुकूं मिलता है सिर्फ परमात्मा की शरण में|
ऐसे अकेले व्यक्ति को गलत समझने की भूल न करें क्यूं यहां तक पहुंचने के लिये उसे अपने कतरे कतरे की कुर्बानी देनी पड़ी होगी न जाने कितने रिस्तों को उसने शिद्धत से निभाया होगा| उसे भी चाहत होगी अपनेपन की भरोसे की परन्तु वो हर बार छला गया|
फिर भी उसने लोगों से छल करना नहीं सीखा, धोखा देना नहीं सीखा,
रिस्तों का तमाशा बनाना नहीं सीखा|
उसने सिर्फ एक ही बात सीखी कि परमात्मा ही परम सत्य है और वह परमात्मा को सिर्फ इसलिये महसूश कर पाया क्यूं वह छल से परे था|
कौन चाहता है कि अकेलेपन में रहे परन्तु जीवन में महफिलें भी तो बदलने लगती हैं|
जीवन का एक कडुवा सच है सबसे ज्यादा बुरे वक्त में आपको वही धोखा देखा जिसके स्पर्श से आप जिंदा रहना चाहते हो|
इसलिये कभी किसी के भरोसे जिंदगी के जंग वाले मैदान में मत उतरना, जिन्दगी आपकी है सफर भी आपको ही करना है|
माँ बाप ने हमें संघर्ष करना सिखा दिया|
अब संघर्ष हमें करना है|
"जब जब हमने हँसना चाहा सारी दुनिया हँसी नजर आयी|
और जब हमारी आँखें नम हुयीं यह दुनिया खाली खाली नजर आयी""
हमने जिसे प्रेम किया वो मेरे सामने मेरा घर के बाहर किसी और का था!!!
उस वक्त हमेशा अकेले थे जब जब उसने परछायीं बनकर साथ देने का वादा किया|
हमने जिसे जन्म दिया उसके शरीर में रक्त हमारा है लेकिन कल वो भी यह बाद भूलकर कहीं गुम हो जायेगा|
जब जब हमें जरूरत थी किसी अपने की तब हम अकेले थे|
और हमें दिख रही थी जिंदगी की हकीकत कि यहां प्रेम, रिस्ता, भरोसा सब जरूरत के अनुसार मोड़ ले लेते हैं|
हम खड़े थे गुमसुम से और हमारा दिल हमारी आँखों के सामने कतरा कतरा बिखर रहा था बार बार|
जब एक हाथ झुलसा और दूसरा सलामत था तब न जाने कितने हाथ मरहम लगाने को उठ पड़े|
और जब हम पूरे झुलसे तो लोग राख समझकर पैरों से मसलते चले गये|
हमने देखा सारा मंजर अपनी आँखों से तो अपने अकेलेपन को मुट्ठी में भींचकर परमात्मा के आलिंगन में जाकर छुप गये और वहां से गुजरने वाले हर राही को बस मुस्कुराकर देख लिया करते हैं|
क्यूं कि मुझे यकीं है मेरे लड़खड़ाते कदमों को सम्भालने वो कभी नहीं आयेगा जिसपर हमने भरोसा किया परन्तु वो जरूर आयेगा जिस समय आने के लिये परमात्मा ने जिसको चुना होगा|
अब हमें परमात्मा तक पहुंचने के लिये किसी ध्यान साधना की जरूरत नहीं पड़ती जिस पल मेरे वजूद में प्रभु का वास न होगा वह पल हमारे जीवन का आखिरी पल होगा|
अकेलापन हमारे लिये अभिशाप तब तक था जब तक हम इंसानों खातिर तड़प रहे थे और वरदान तब बन गया जब इंसानों के दिये दर्द ने परमेश्वर से मिला दिया|……………………
ओ३म् परमात्मने नम:
मेरे विचार मेरे अनुभव मेरी कलम से……
३१/०१/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )
मेरी कलम से कुछ विचारों को आप सबके साथ रखने की एक कोशिस........
अकेलापन क्या है?
किसी सज्जन ने एक दिन प्रश्न किया था कि अकेलापन क्या है?
अभिशाप या वरदान!
मेरी नजरों में अकेलापन दोंनो है|
अकेलापन आत्मा से परमात्मा तक का सफर है और इस आत्मा से परमात्मा तक के बीच का जो रास्ता होता है बेशक बहुत ही पीड़ादायक मंजर होता है|
एकांत वो जिसके द्वारा हम परमात्मा तक पहुंचने का प्रयास करते हैं| योग ध्यान करते हैं| साधना करते हैं| कई सारी ऐसी क्रियायें करके परमात्मज्ञान तक पहुंचने के लिये प्रयासरत रहते हैं और निरंतर प्रयास के बाद शायद पहुंच भी जाते हैं|
परन्तु अकेलापन वो है जिसमें कोई योग, साधना जैसी क्रिया किया बिना ही परमात्मा की अनुभूति होने लगती है हर पल हर क्षण|
लेकिन यह अकेलापन भी दो तरह के लोगों के साथ होता है एक तो वे लोग जो किसी को कभी अपना नहीं मानते सिर्फ अपने फायदे के लिये रिस्तों का इस्तेमाल करते हैं| इन लोगों के जीवन का उद्देश्य ही यही है अपनी जीत होनी चाहिये छल से या बल से|
ऐसे लोगों का परमेश्वर के हिसाब किताब से कोई लेना देना नहीं होता परन्तु ऐसे लोगों के चेहरे पर कभी सुकून भी नजर नहीं आता ए हमेशा छटपटाते घूमते रहते हैं न चैन से जीते हैं न किसी को जीने देते हैं, इन्हें स्वयं पता नहीं होता कि इन्हें जीवन में चाहिये क्या?
यूं तो कहीं न कहीं हर कोई अपने आपको अकेला महसूश करता है परन्तु उन अकेलों में भी कोई अकेला होता है एक शांत शालीन प्रवृति के साथ जो न किसी से शिकायत करता है न किसी को बुरा भला कहता है|
वो आपको दुखी देखकर दुखी हो जायेगा| खुश देखकर खुश हो जायेगा परन्तु आपसे घुलने मिलने से कतरायेगा क्यूं कि उसे सुकूं मिलता है सिर्फ परमात्मा की शरण में|
ऐसे अकेले व्यक्ति को गलत समझने की भूल न करें क्यूं यहां तक पहुंचने के लिये उसे अपने कतरे कतरे की कुर्बानी देनी पड़ी होगी न जाने कितने रिस्तों को उसने शिद्धत से निभाया होगा| उसे भी चाहत होगी अपनेपन की भरोसे की परन्तु वो हर बार छला गया|
फिर भी उसने लोगों से छल करना नहीं सीखा, धोखा देना नहीं सीखा,
रिस्तों का तमाशा बनाना नहीं सीखा|
उसने सिर्फ एक ही बात सीखी कि परमात्मा ही परम सत्य है और वह परमात्मा को सिर्फ इसलिये महसूश कर पाया क्यूं वह छल से परे था|
कौन चाहता है कि अकेलेपन में रहे परन्तु जीवन में महफिलें भी तो बदलने लगती हैं|
जीवन का एक कडुवा सच है सबसे ज्यादा बुरे वक्त में आपको वही धोखा देखा जिसके स्पर्श से आप जिंदा रहना चाहते हो|
इसलिये कभी किसी के भरोसे जिंदगी के जंग वाले मैदान में मत उतरना, जिन्दगी आपकी है सफर भी आपको ही करना है|
माँ बाप ने हमें संघर्ष करना सिखा दिया|
अब संघर्ष हमें करना है|
"जब जब हमने हँसना चाहा सारी दुनिया हँसी नजर आयी|
और जब हमारी आँखें नम हुयीं यह दुनिया खाली खाली नजर आयी""
हमने जिसे प्रेम किया वो मेरे सामने मेरा घर के बाहर किसी और का था!!!
उस वक्त हमेशा अकेले थे जब जब उसने परछायीं बनकर साथ देने का वादा किया|
हमने जिसे जन्म दिया उसके शरीर में रक्त हमारा है लेकिन कल वो भी यह बाद भूलकर कहीं गुम हो जायेगा|
जब जब हमें जरूरत थी किसी अपने की तब हम अकेले थे|
और हमें दिख रही थी जिंदगी की हकीकत कि यहां प्रेम, रिस्ता, भरोसा सब जरूरत के अनुसार मोड़ ले लेते हैं|
हम खड़े थे गुमसुम से और हमारा दिल हमारी आँखों के सामने कतरा कतरा बिखर रहा था बार बार|
जब एक हाथ झुलसा और दूसरा सलामत था तब न जाने कितने हाथ मरहम लगाने को उठ पड़े|
और जब हम पूरे झुलसे तो लोग राख समझकर पैरों से मसलते चले गये|
हमने देखा सारा मंजर अपनी आँखों से तो अपने अकेलेपन को मुट्ठी में भींचकर परमात्मा के आलिंगन में जाकर छुप गये और वहां से गुजरने वाले हर राही को बस मुस्कुराकर देख लिया करते हैं|
क्यूं कि मुझे यकीं है मेरे लड़खड़ाते कदमों को सम्भालने वो कभी नहीं आयेगा जिसपर हमने भरोसा किया परन्तु वो जरूर आयेगा जिस समय आने के लिये परमात्मा ने जिसको चुना होगा|
अब हमें परमात्मा तक पहुंचने के लिये किसी ध्यान साधना की जरूरत नहीं पड़ती जिस पल मेरे वजूद में प्रभु का वास न होगा वह पल हमारे जीवन का आखिरी पल होगा|
अकेलापन हमारे लिये अभिशाप तब तक था जब तक हम इंसानों खातिर तड़प रहे थे और वरदान तब बन गया जब इंसानों के दिये दर्द ने परमेश्वर से मिला दिया|……………………
ओ३म् परमात्मने नम:
मेरे विचार मेरे अनुभव मेरी कलम से……
३१/०१/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )
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