Monday, August 27, 2018

स्त्री जाति पर सामाजिक विचारधारा और मेरे विचार

सभी प्रियजनों श्रेष्ठजनों को मेरी नमस्ते

प्रस्तुत हैं हमारे कुछ विचार स्त्री जाति को लेकर हमारे समाज में जो विचारधारा है।
हमारी माताओं बहनों को हमेशा ही मर्यादा में रहना सिखाया जाता है यह अच्छी बात भी है।
स्त्रियों को मर्यादा में रहना भी चाहिए लेकिन सवाल यह है कि किस हद तक? क्या वहां भी हमारी बहन, बेटियों की गलती होती है जहां पर वो किसी बात में शामिल नही होती उनका कोई दोष नही होता फिर भी उन्हें दोषी करार दिया जाता है क्यों।

उसने तेरी तरफ क्यों देखा, तू रास्ते में इतना सर झुकाकर चल की अपने पैरों के अलावा कुछ दिखाई न दे। क्यों?
लड़कों की तो फितरत ही होती है इधर-उधर डोलने की।क्यों?

इस रास्ते पर कोई परेशान करता है तो वो रास्ता बदल दो और दूसरे पर भी परेशान करेगा तब क्या करना चाहिए?

वो लड़का ये पुरुष तेरे पीछे आया जरूर तेरी रजामंदी होगी।
एक लड़की अपनी तकलीफ डर के मारे घरवालों को नहीं बताती क्यों की घरवाले घर से बहार निकलना बंध करा देंगे या फिर पढ़ायी बंद करके शादी कर देंगे। कभी कभी तो अपने आपको दोषी मानकर लडकिया आत्महत्या भी कर लेती हैं।
या फिर ससुराल में दबी सहमी सी कभी आग लगाकर मर जाती है कभी फांसी लगाकर क्यों की आपने उसे सिखाया पोलिस स्टेसन तो इज्जतदार औरतें जाती नही और पति के घर से जिन्दा वापस आती नही।

सब कुछ तय कर लिया आपने। लेकिन यह सीखना जरुरी नही समझ कि जो बुरी नजर डाले उसकी आँख निकाल लो। जो स्त्री को माँ, बहन, बेटी कहकर न संबोधित करे जुबान काट दो। स्त्री की इच्छा के बिना जो पति उस पर अपनी मर्दानगी दिखायी सबके सामने नंगा कर दो।
हर स्त्री को अपने स्वाभिमान का ख्याल होना चाहिए।
हम क्यों उस गुनाह की सजा भोगें जो हमने किया ही नहीं।

नोट- यह लेख उन स्त्रियों के लिए बिलकुल नही है जो रोड पर आधी या पूरी नग्न अवस्था में नजर आती हैं।

मेरे विचार
मेरी कलम से

23/08/2018
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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