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अश्क मेरा भी अब,,,,,,
अलविदा कह गया........
गैर उसका शहर,,,,,
हर दफा रह गया.......
लेकर आरमां बहुत.......
हम थे आये यहां.....
फिर भी पल पल तड़पकर,,,,
बिताये यहां.......
जिसकी सांसों से,,,,,,
सजती थी धड़कन मेरी......
मुझको वही बेवफा,,,,,,,
कह गया.......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया........
थी हंसने, हंसाने की,,,,,
आदत मेरी......
मुसकुराहटें थीं उनकी,,,,,,
इबादत मेरी.......
***उनके रूह तक उतरने की
चाहत लिये........
दिल्लगी मेरी बस धरी रह गयी****
पास आया भी तो,,,,
दिल में खंजर लिये......
वो तो नफरत पर ही,,,,,
आमदा रह गया.......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया.....
हमको जीने की आदत है,,,,,,
जी लेंगे हम.....
मुसकुराते हुये,,,,,
जखम सी लेंगें हम.....
सारे कर्जे अब उसके,,,
अदा कर दिये......
देखो हम भी उसे,,,,,,
अलविदा कर दिये......
होकर उसका, बस उसका,,,,
दगा रह गया......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया.......
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*स्वरचित_ २१/०३/२०१७*
शिवकान्ति आर कमल *(तनु जी)*
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