Thursday, August 30, 2018

"वो चंचल बातें, वो अल्हड़पन"


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वो चंचल बातें......
वो अल्हड़पन,,,,,,,,,
रिस्तों में फैली.....
सुबह की सबनम,,,,,,,,,

थी नासमझी......
हर बात में मस्ती......
शाहिल पर थी.......
मेरी कश्ती.......

जीवन का कुछ,,,,,,,
पता नहीं था......
कोई भी तब,,,,,,
खफा नहीं था......

हर सुबह सुहानी होती थी.....
गयी रात पुरानी होती थी....

सपने नैंनों का,,,,,,,
गहना थे......
हर रोज नये,,,,,,,
पहनाते थे......

इतराना गांव की,,,,,,,
गलियों में.......
खो जाना बाग की......
कलियों में,,,,,,,,,,

वो भोर की आँखे,
चमकीली,,,,,
थी दिल की धड़कन,
सपनीली.....

देखो हम जबसे,,,,,,,
बड़े हो गये.....
निज पैरों पर,,,,,,,,
खड़े हो गये........

खूब तलाशा,,,,,
हर पल खोजा......उन सारी,,,
बीती बातों को......
न मिली हमें वो,,,,,,
सुबह सुहानी......
न खोज पाये,,,,,,
उन रातों को.......

पता लगाने,,,,,,
उन गलियों का......
बार बार हम,,,,,,,
उड़े गगन.......
नहीं मिला वो,,,,,,
छुपा खजाना......
न ही वापस आया,,,,,,,
बचपन......

वो चंचल बातें,,,,,,
वो अल्हड़पन,,,,,,,
रिस्तो में फैली......
सुबह की सबनम......

*स्वरचित_३०/०४/२०१७*

*दिन_रविवार*


शिवकान्ति आर कमल
*(तनु जी)*

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