Friday, November 30, 2018

मैं शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

सभी श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए 🙏🏻 मेरी कलम के साथ प्रस्तुत हूँ.....✍🏻


मेरे मन में उठते हुए प्रश्नों के साथ------
हमारा भारत देश अनेकों भाषाओं का देश, अनेक वेश-भूषाओं का देश,--------।
अनेक धर्मो का देश---?

ये अनेक धर्म क्या हैं?
कुछ लोंगो का कहना है मैं अपने लेख के द्वारा राजनीति करती हूँ किन्तु मैं तो किसी भी विषय पर लिखती हूँ। हाँ बात जब हमारी संस्कृति की आती है तो लेखनी विराम कैसे ले हमारी संस्कृति कोई दो कागज के टुकड़े तो हैं नही जो एक आर्टिकल लिख दिया और बात ख़त्म।

हाँ तो बात अनेक धर्म की है।
हमारी पुरातन संस्कृति में दो तरह के लोंगो के बीच ही युद्ध होते थे। एक वो जो धर्म की राह पर होते थे और दुसरे अधर्म की राह पर-----और युद्ध का नाम होता था धर्म युद्ध।

उदहारण देख लो देवासुर संग्राम, रामायण काल में राम रावण का युद्ध, महाभारत युद्ध-------इनके अतिरिक्त और कौन से अनेक धर्म थे हमारे देश में-----?

अनेक धर्म बना दिए गए----चलो यहां तक भी बर्दाश्त करें-----अनेक धर्म बने तो उन धर्मों के लिए लोग भी हमारे ही चुने गए कोई टोकरी में अंडे भरकर तो लाया न था जो यहाँ आकर फ़ैलाने से वो इंसानों में बदल गए और उनका धर्म फूट पड़ा-------यहां तक भी बरदाश्त करें-----

लेकिन बचे- खुचे इंसानों को जातियों में बदल दिया और नाम उस धर्म का नाम सनातन से हिन्दू धर्म हो गया।
अभी भी चैन न मिला तो आपसी बैर का जहर शदियों घोला गया हमारे ही जयचंदों के कारण---- आज तो हिन्दू धर्म में देशभक्तों का टोटा है और जयचंदों की भरमार है।

अब तो हाल ऐसा है कि अपने धर्म और संस्कृति को समझने और पढ़ने की कोई फुर्सत ही नहीं अपना काम निकला चलते बनो।

हमने तो कसम खाई है आपस में तब तक लड़ना न छोड़ेंगे जब बचे-खुचे लोग भी दूसरे धर्म में परिवर्तित न हो जाएं।
हम लड़ेंगे आरक्षण के नाम पर, हम लड़ेंगे जातिवाद के नाम पर, हम लड़ेंगे शोषण के नाम पर-----और ये लड़ाई भी सिर्फ अपनों के बीच मिट जाने की हद तक।

हम शोषित हैं अपनों से ही और हमारी संस्कृति और इतिहास मिट रहे हमारी अज्ञानता के कारण। जब हम अपनी संस्कृति से ही दूर होते जायेंगे तो हमारा लहू पानी बनता जायेगा और कोई भी हमें कुचल कर चला जायेगा।

आज हम बटें हैं एस टी, एस सी, ओ बी सी, जनरल-----
एस टी, एस सी  बनकर आधा हिन्दू निकल गया अपने आपको शोषित बोलकर, ओ बी सी अपनी दुनिया में मस्त, वैश्य समाज किससे क्या कहे?
अब कुछ% रह गए जनरल जो अपनी ही अकड़ में फूले हैं उनमें से कुछ समझदार यदि इन्हें समझाना चाहें तो उनकी कोई सुनता नहीं।

क्या कर रहे हम हमें खुद नहीं पता। एक दूसरे पर लांछन लगाते हैं कि हमारी प्रतिभा कुचली जा रही---- और यह सच भी है कहीं न कहीं क्यों की यदि रात दिन मेहनत करके आया कोई व्यक्ति उस व्यक्ति के कारण अयोग्य बना दिया जाये जिसमें प्रतिभा ही नहीं---तो यह देश का दुर्भाग्य है हाँ ऐसा आरक्षण देश का दुर्भाग्य है परंतु इससे भी बड़ा दुर्भाग्य एक और है।
जब आज के समय में भी जाति-वाद के नाम पर प्रतिभा कुचली जाती है स्कूलों में माशूम बच्चों को जब कुछ स्वार्थी अध्यापक यह कहकर कुंठित करते हैं कि यह तो एस सी है, एस टी आरक्षण के नाम पर नौकरी मिल जायेगी, कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां आज भी जाति-पांति के नाम पर प्रतिभाशाली बच्चों को मानसिक तौर पर आघात दिआ जाता है।

प्रतिभा तो हमारी ही कुचली जा रही चाहे वो आरक्षण के नाम पर हो या जाति-पांति के नाम पर।
अरे कुछ कुचलना ही है तो अयोग्यता को कुचलो, बच्चों में स्वाभिमान पैदा करो।
देश के लिए स्वाभिमानी नागरिक तैयार करो।
एक शिक्षक बदलाव ला सकता भावी नागरिकों का निर्माण कर सकता है परंतु इसके लिए पहले एक शिक्षक का इस योग्य होना जरुरी है।
आज के परिवेश में जब ज्यादातर शिक्षक ही अयोग्य हैं तो योग्य पीड़ी कैसे तैयार होगी।

हम उलझे हैं अपना ही पतन करने में।क्या होगा हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य?
और क्या होंन्गे हम उनके लिए आदर्श या कायर?
हम आपस में इतने उलझ चुके हैं कि बाकी कुछ सोंच ही नही सकते। न अपने धर्म के बारे में, न समाज के बारे में, न अपनी संस्कृति के बारे में और न ही अपने राष्ट्र के बारे में।
हम उलझे हैं या फिर हम साजिश का शिकार हैं कभी थोड़ा समय निकाल कर सोंचों।

इन समस्याओं का हल खोजो, अपनी संस्कृति को बचाने का हल खोजो बाकी समस्याएं स्वतः छोटी हो जाएंगी।

हमारे राष्ट्र की शान है हमारा सनातन धर्म। संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकलते हुए वैदिक पथ अपनाओ।
आपसी बैर भाव दूर करने का और कोई रास्ता नहीं।
स्वाभिमान और शान से जीने का और कोई रास्ता नहीं।
वीर, स्वाभिमानी और प्रतिभाशाली बनने का यदि कोई मार्ग है तो वो सिर्फ वैदिक मार्ग है जिस मार्ग पर चलने का सन्देश श्री मर्यादापुर्षोत्तम राम और योगीराज श्री कृष्ण ने भी दिया है-----
कम से कम अपने भगवन और आराध्यों के दिखाये मार्ग पर तो चलो-----ओउम्

एक कोशिश------🖋

आओ लौट चलें वेदों की ओर-----

मेरे विचार मेरी कलम से ✍🏻
०१/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, November 27, 2018

*किसी को इतने भी खौफ से न गुजारो  साहिब की वो बेख़ौफ़ हो जाये----*

*क्यों कि फूल भी अगर पक कर फूटे तो हजारों फूल तैयार होते हैं----*
✍🏻🔥
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, November 25, 2018

और न बदनाम करो योगेश्वर को

सभी बुद्दिजीवियों, श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻

प्रस्तुत है मेरी लेखनी मेरे विचारों के साथ 🖋🙏🏻

सज्जनों आज मेरे विचारों की उथल-पुथल महाराज योगेश्वर यानि की श्री कृष्ण पर आधारित है।
हमारे समाज में भगवन श्री कृष्ण का जो चरित्र व्याप्त किया गया है क्या ये सही है।
एक माखन चोर, रात-रात भर स्त्रियों संग रासलीला करने वाले, स्त्रियों के कपड़े चुराकर भागने वाले, अनगिनत शादियां करके बेहिसाब बच्चे पैदा करने वाले?

आप सब इन बातों के बारे में कभी सोंचते की एक महापुरुष पर इस तरह के कलंक लगाना हमारी संस्कृति है?
या फिर इन बातों का अर्थ बिगाड़कर हमारे सामने प्रस्तुत किया गया।
हमने एक भागवता चार्य से सुना की श्री कृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ रानियां थी सबके 10-10 पुत्र थे।
हर पत्नी को श्री कृष्ण पति के रूप में पूरा सुख देते थे।

सोंचने वाली बात है माता रुक्मणि से पैदा हुई संतान प्रदुम्न के अलावा इतिहास में श्री कृष्ण के और किसी पुत्र का वर्णन मिलता है क्या?
सब कहाँ चले गए और वो सब पैदा कहाँ हुए थे मथुरा में, वृन्दवन में या द्वारिका में?
आप सब कहते हैं श्री कृष्ण स्वयं ईश्वर का अवतार हैं तो फिर तुम्हारा ईश्वर स्त्रियों के साथ सम्भोग करने के लिए अवतार लेता है।
मतलब तुम्हारा ईश्वर व्यभिचारी है।
और यदि भगवन श्री कृष्ण व्यभिचारी थे तो उन्हें महान ब्रह्मचारी योगेश्वर क्यों कहा गया।

फिर से मिल गया ना एक सबूत जो सोंचने पर मजबूर कर दे की हम जो पढ़ रहे हमें जो बताया जा रहा है हमें जो टी वी धारावाहिक के जरिये दिखाया जा रहा वो गलत है ठीक उसी तरह जैसे हमें महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई------- और न जाने कितनों के इतिहास से वंचित रखा गया ये सब तो अभी पैदा हुए थे।

 महाभारत काल को तो हजारों वर्ष बीत गए। हम वर्ण से जातियों में बंट गये। हिन्दू से मुसलमान बन गए, वेदों की जगह पुराण पढ़ने लगे, स्त्रियां देवी से सम्भोग की वस्तु समझी जाने लगीं, राज-काज सम्हालने वाली, उपनयन संस्कार में शामिल होने वाली, यज्ञ हवन करने वाली, वेदों का अध्ययन और शास्तार्थ करने वाली हमारी विदुषी माताएं बहनें घूँघट में रहने लगीं, हमारे देश के पुरुष जो बलात्कार जैसे शब्द न जानते थे वो बलात्कार करने लगे-------

जब इतना सब परिवर्तन हो गया तो फिर हमारे आदर्श राम-कृष्ण के आदर्श इतिहास को न बदला गया हो ऐसा कैसे हो सकता है?

एक मानसिक रोगी राक्षस के कैद से मुक्त कराने के बाद उन स्त्रियों ने कृष्ण को अपना क्या माना होगा?
आज अगर किसी स्त्री को कोई वैश्यालय में बेंच दे और कोई अपनी जान पर खेलकर उसकी आबरू और जिंदगी बचाये भले ही इंसानियत के नाते या किसी रिस्ते के नाते तो वो स्त्री उसे क्या मानेंगी? शायद ईश्वर या अपना भाग्यविधाता तो अगर उन कन्याओं ने श्री कृष्ण को अपना सबकुछ अपना ईश्वर मानकर उनकी आराधना करने भी लगीं तो इसमें व्यभिचार कहाँ से आ गया------- अगर श्री कृष्ण जी स्त्रियों के साथ लिप्त रहते थे तो फिर धर्म युद्ध के करता-धरता कैसे बने क्यों कि कोई व्यभिचारी तो धर्म युद्ध का मर्म ही नहीं जान सकता।

अब माखन चुराने की बात आती है। प्रजा को सताने वाला दुष्ट के राजय में वो अपने यहाँ का दूध, दही, माखन क्यों जाने देते इस बात को रोकने के लिए उन्हें चोर बना डाला।

इतने में भी जी न भरा तो कहते हैं श्री कृष्ण स्त्री के कपडे चुराकर भाग जाते और वो नग्नावस्था में कई-कई घण्टे उनसे मिन्नतें करतीं अब तो हद हो गयी कुछ तो शर्म करो यदि तुम्हारे पास-पड़ोस की स्त्रियाँ नंग-धड़ंग घूमेगी।
कपड़े उतार कर नदी में कूदकर स्नान करेंगी तो उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए उन्हें कुछ तो सबक सिखाओगे यदि तुम संस्कारी हो तो?

उन्होंने बिगड़ैल स्त्रियों को सुधारने के लिए यदि कोई कठोर दंड दिया तो उसे नाम दे दिया चीर हरण तो क्या तुम्हारा परमात्मा इतना गिरा हुआ है।

मंदिरों में, तश्वीरों में कैसी-कैसी आपत्तिजनक मूर्ति और तश्वीर रखते जा रहे हो। अपने पूर्वजों का स्वयं तमाशा बना रहे हो अपने ईश्वर को स्वयं गाली दे रहे हो।

विधर्मियों को स्वयं मौका दे रहे हो हमारी संस्कृति का मजाक बनाने के लिए।
ये क्यों भूलते वो महान ब्रम्हचारी, महान बलशाली भगवन योगेश्वर थे।
आज गांव-गांव में सिर्फ उनका तमाशा बना दिया गया है।
श्री कृष्ण को कलंकित करने वाले स्वयं उनके भक्त हैं।

हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति हमारा गर्व है उसे पहचानों और लोंगो को भी समझाओ।

कथा-भगवत के माध्यम से सही सन्देश पहुँचाओ सिर्फ पैसे कमाने खातिर मत कलंकित करो अपने ही ईश्वर को 🙏🏻

किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरा मकसद नहीं आप में से कुछ लोग भी इस विषय पर सोंचेंगे तो मेरा लिखना सफल हो जायेगा।

*आओ लौट चलें वेदों की ओर-----✍🏻*

२६/११/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Saturday, November 24, 2018

तन्हाई मुझमें काँप रही

*तन्हाई मुझमें कांप रही*

कुछ जहर पिया है शब्दों का,
कुछ तीर चुभे हैं सीने में------
तन्हाई मुझमें काँप रही,,,,,,
हम व्यस्त बहुत हैं जीने में-----

मिला गजब का अपनापन,,,,,,
न जाने किस संग क्या बंधन------
उस अपनेपन ने छल डाला,,,,,,,
था, जिसको कहता अपना मन---

छाले कब तक पड़ते पग में,,,,,,
डर भी कब तक बहता रग में-----
रुकने पर भी दर्द बहुत था,,,,,,,
खून अगर जम जाता नस में----

मौत- मौत हम करते रह गये,,,,
मौत भी एकदिन डर कर भागी--
कदम हमारे कदम से बोले,
जीत मिलेगी डर के आगे-------

मन के अंदर जब मैं झाँकू,,,,,,
अजब सा आलम दिखता है----
चौमासा तो जवां हो गया,
सूखा सावन दिखता है-------

ऐ ठोकर न तू,
हो शर्मिंदा,
हमें मोहब्बत तुझसे है,,,,,,
तू दुल्हन मेरे मन दर्पण की,,,,
मेरी इबादत तुझसे है------

बिन प्यास मिले जो पानी भी,,,,,
तो समझ न आता पीने में----
अब डर से दो-दो करने थे,,,,,,
जख्मों को धरो करीने में-------

कुछ जहर पिया है शब्दों का,
कुछ तीर चुभे हैं सीने में----
तन्हाई मुझमें कांप रही,
हम व्यस्त बहुत हैं जीने में------


समय- रात्रि ११:१० बजे
दिनांक- २४/११/१८
दिन-शनिवार

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, November 22, 2018

हमारे सन्यासियों पर आरोप क्यों

सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻

प्रस्तुत हैं मेरे विचार मेरी कलम से ------ 🖋

मेरे मन में अक्सर सवाल उठते हैं कि हिन्दू धर्म प्रचारक ही जेल क्यों जातें हैं और जाते भी हैं तो इस तरह की वापस ही न आएं।
माना कि कुछ पाखंडी हैं जादू, टोना, ज्योतिष आदि का सहारा लेकर पाखंड फैलाते हैं परंतु सोंचने की बात है जो गुरुकुल चलाते हैं, यज्ञ, हवन करते हैं। बालक- बालिकाओं को सनातन संस्कृति की ओर ले जाने का प्रयाश करते हैं, जिनका जादू, टोन, ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं उन पर भी संगीन आरोप लगाकर जेल भेज दिया जाता है।
और आरोप तो इतना बड़ा सीधे बलात्कार जो शब्द हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं।

हमारी संस्कृति वो है जिसे कुछ दिन समझकर बलात्कारी भी सन्यासी हो जाये परंतु यहाँ तो हमारे सन्यासी ही बलात्कारी हो रहे।

एक और बड़ा अचम्भा बाबा रामदेव को लेकर सबसे पहले तो हिन्दू अंग्रेज बोलतें हैं वो तो बिजनेस मैंन है जनता को उल्लू बनाये है।
अरे हैं बिजनेश मैंन तो तुम्हारे बाप का क्या जाता है। देश का पैसा देश में ही तो है। न जाने कितने बेरोजगारों को रोजगार दिया उस बाबा ने न जाने कितने भंडारे करवाते हैं रोज तो उसका खर्च तुम उठाते हो?
और ये जो दुनिया के प्रोडक्ट तैयार करने में उन पर रिसर्च करने में खर्च आता है वो फ्री होता है क्या? उसमें पैसा न लगता है?

विदेशी कंपनियों की सड़ी-गली चीजे ब्रांडेड समझ कर खरीदोगे परंतु बाबा के प्रोडक्ट में मिलावट है कौन सी मिलावट है भाई?

इनकम टैक्स वालों को तो उनके पीछे ऐसे लगा दिया जाता रहा जैसे वो सन्यासी न कोई लुटेरे हो गए। अमेरिका कह दे गोबर खा लो तो खा लोगे, अमेजन पर जाकर गोबर के उपले ऑर्डर कर दोगे चाहे वो गाय के हों या न हो लेकिन जब हमारे बड़े बुजर्ग और किसान वही बात समझाएँ तो छी---------सच में तुम मानसिक रूप से गुलाम हो चुके हो।

हमने कहीं पढ़ा था एक बार जापान की सरकार को दूसरे देश से संतरे अपने देश में बेचने के लिए व्यापार का समझौता करना पड़ा। तब वहां की सरकार ने संतरे खरीदने या न खरीदने का फैसला वहां की जनता पर छोड़ दिया और परिणाम स्वरूप वहां की जनता ने विदेश से आये एक भी संतरे को हाथ न लगाया यह कहते हुए की हम अपने देश कडुआ संतरा ही खाएंगे लेकिन अपनी पूँजी विदेश न जाने देंगे।

आज हर पढ़ा लिखा आदमी जापान की तरक्की के बारे में बड़े चटकारे से बताता है लेकिन उनकी देशभक्ति के बारे में न बताएँगे।

अरे कुछ तो दिल की आवाज सुनो ये साधू, सन्यासी, स्वदेशी का प्राचार्य करने वाले, वेदों का प्रचार प्रसार करने वाले हमारी मरी हुई संस्कृति के लिए एक आशा की किरण हैं।

इन्हें सम्मान दो, किसी के भी कहने पर तुम भी आरोप लगाने मत लग जाओ, थोड़ा तो सोंचों।
 कुछ ऐसे रत्न आज भी हैं हमारे देश में जो हमारे लिए जी रहे, उनका अपना परिवार नही, घर संसार नहीं रात दिन देश के लिए लड़ रहे फिर भी उन पर आरोप क्यों?

मेरे विचार मेरी कलम से--- 🙏🏻
पसंद आये तो प्रतिक्रिया दें
न पसंद आये तो कुतर्क न करें----

ओउम्
आओ लौट चलें वेदों की ओर----

२३/११/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, November 20, 2018

एक लेख राज माता कैकेयी पर

सभी श्रेष्ठ जनों को नमन 🙏🏻

 रामायण काल की बातें पढ़कर मेरे मन में अक्सर कुछ प्रश्न उठते हैं।इस उथल पुथल को लेकर मेरे कुछ विचार आप सबके समक्ष 🙏🏻


आज मैंने एक पात्र चुना वो है कैकेयी-------

मैंने बचपन से पढ़ा कैकेयी को कुमाता के रूप में यहाँ तक की विधर्मियों को हमारे धार्मिक ग्रंथों में ऐसे पात्रों के बारे में पढ़कर हमारे सनातन धर्म पर ऊँगली उठाने का मौका मिलता है क्यों की हमारे समाज में तर्क और प्रमाणिकता का अभाव हो गया है। हम अपनी संतानों को भी तर्क और प्रमाणिकता के आधार पर शिक्षा न देकर पाखंड का शिकार बना रहे जिस कारण वे दूसरों की बातों का जवाब नहीं दे पाते हार मान जाते हैं।

सज्जनों क्या कैकेयी सच में कुमाता थीं।
महान योद्धा, राजकाज संभालने में निपुण, राजा दशरथ की सबसे प्रिय रानी, अपनी जान की परवाह न करते हुए युद्ध भूमि में राजा की जान बचाने वाली पत्नी।
यदि वो राजा दशरथ से अपने पुत्र के लिए राज माँगती तो क्या वो मना करते?
श्री राम महाराज को वनवास भेजने की जरुरत क्या थी?
क्या उन्हें इसका अंजाम न पता था कि ऐसा करने पर अयोध्या नगरी शोकाकुल हो जायेगी।

क्या कैकेयी को ये भी न पता था कि उनका पुत्र भरत कभी भी भगवन श्री राम का स्थान ग्रहण न करेंगे।
जब राम को वन भेजा गया तब भरत ननिहाल क्यों भेजे गए थे। उनकी अनुपस्थिति में ही यह फैसला क्यों लिया गया?

हम यह क्यों भूल जाते हैं जिन भरत ने राजपाट त्याग सिंघासन पर प्रभु श्री राम की चरण पादुका रखकर तपिस्वी की भांति जीवनयापन करते हुए चौदह वर्ष प्रजा का ध्यान रखा उन भरत में कैकेयी के दिए ही तो संस्कार थे।

हमने हमेशा पढ़ा रावण बलशाली था उसे जीतना आसान न था।
राक्षसों का आतंक बढ़ गया था।
वो ऋषियों मुनियों को यज्ञ, हवन न करने देते थे।
उस रावण से लड़ने के लिए आर्यवर्त को राक्षसों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए श्री राम ने पहले जगह-जगह  ऋषि, मुनियों के आश्रम मुक्त कराये, छोटे-छोटे युद्ध करते हुए आगे बढ़ते रहे परंतु शूर्पणखा और मामा मारीच का किरदार यह कहता है कि रावण ने श्री राम के पीछे अपने जाशूस छोड़ रखे थे और परिणाम स्वरूप माँ सीता का अपहरण हुआ।

यह युद्ध शायद आयोद्धा में रहकर जीतना और लड़ना संभव न था क्यों कि कैकेयी तो महाराजा दशरथ के अपमान का बदला रावण से लेना चाहती थीं।

और श्री रामचंद्र आर्यवर्त की तकलीफें ख़त्म कर एक सुखद राम राज्य लाना चाहते थे जिसके लिए ये सब घटित होना ही था सिवाय माता सीता के अपहरण के।

सोंचने वाली बात है श्री रामचंद्र ने श्री लंका पहुँचने से पहले इतनी विशाल सेना क्यों तैयार की थी एवं युद्ध के पूर्व महान पराक्रमी, एवं सबसे बुद्धिमान योद्धा वीर हनुमान को श्री लंका भेजा और उन्होंने सिर्फ माता सीता के रहने का ठिकाना ही नहीं खोजा बल्कि पूरी लंका का भ्रमण किया और वहां के भेदी विभीषण को भी खोजा-------------



सज्जनों हम बचपन से बुद्धिजीवियों से सुनते आये हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में मिलावट की गयी। हमें हमारे इतिहास से वंचित किया गया। हमेशा गलत इतिहास पढ़ाया गया। हमें सच्चाई से दूर पाखंड की ओर घसीटा गया और हमारी संस्कृति के टुकड़े -टुकड़े कर दिए गए। किन्तु कुछ तत्व हैं तो अटल सत्य हैं जिन्हें मिटाया न जा सका।
क्या आप आने वाली पीढ़ी को प्रमाणिकता और तर्क के आधार पर सनातन धर्म के प्रति कट्टर बनाना चाहेंगे?

आज के विचार में बस इतना ही मैं ज्ञानी तो नहीं न ही मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है।
आपको विचार अच्छे लगें तो इस विषय पर सोंचें अन्यथा न लें।
बस हमें हमारा सनातन धर्म प्यारा है 🙏🏻

मेरे विचार मेरी कलम से-----🖋
  २०/११/१८

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Wednesday, November 14, 2018

सभी बुद्धिजीवी, श्रेष्ठजनों को मेरा नमन----

आप सबके समक्ष मेरे कुछ विचारों की एक और प्रस्तुति
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प्रेम?????
मन से अन्तर्मन तक के लंबे सफर तय करके हृदय पटल पर अपनी छाप छोड़ने वाला प्रेम एक अमित दृश्य होता है जो हृदय रुपी सरिता में निरंतर बहता रहता है। हाँ  एक सरिता की भाँति ही तो होता है ये प्रेम कहाँ आसान हैं इस सरिता की राहें कहीं महफ़िल से गुजरती हैं तो कही निर्जन से,  कहीं पथरीले पथ और कहीं मधुवन--------- लेकिन हृदय पटल का ये कोलाहल कभी खामोशियाँ तो कभी ध्वनि उतपन्न करता हुआ निरंतर बहता है बस बहता है------उसका अंत भी कभी कभी समंदर के आगोश में पहुँचने से पहले भूमिगत हो जाना भी होता है। लेकिन यह धारा एक बार हृदय से निकलने के बाद पुनः हृदय में नहीं समां सकती बहती है या तो खामोशियों से या गुनगुनाहट से------ कभी मंद-मंद बसंती हवा सी और कभी सनसनाहट सी----------
बेहद जरुरी है हाँ जी बेहद जरुरी है सजदा ये मोहब्बत करना यदि करो तो जी भर करो, अंधेपन में करो, खुद से ज्यादा करो,  रिस्ता कोई भी हो प्रेम करो तो छल रहित--------- धोखा मिलेगा तो पीड़ा होगी पीड़ा होगी तो ईश्वर मिलेगा,,,,, पीड़ा होगी तो स्वाभिमान जागेगा-----पीड़ा होगी तो जिंदगी को करीब से समझने का मौका मिलेगा।
यदि धोखा न मिला तो उन रिस्तों से साथ स्वर्ग का अनुभव होगा जिनसे तुमने प्रेम किया और ईश्वर की कृपा मिलेगी। दोनों ही तरह लाभ हमें मिलेगा सुकून हमें मिलेगा------------------इसलिए जीवन में प्रेम बेहद जरुरी है।

एक शेर अर्ज किया है।
गौर फरमाएं---

दिल की महफ़िल में अक्सर,,,,,,,
हम आईने से बात करते हैं---------
तुम क्या दिखाओगे आइना हमें,,,,,
हम तो हर सुबह यहीं से शुरुआत करते हैं------

मेरे विचार मेरी कलम से----
14/11/18

निर्देश- एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Monday, November 12, 2018

ये चाहते भी बड़ी अजीब होती हैं साहिब,,,,,,
न तो टिकती हैं न ही मिटती हैं---------

बस एक दिल ही तो है जो सीपी में समंदर समाए हुए है------------

12/11/18

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
होंठ अक्सर तब खामोश होते हैं दुनिया की अदालत में साहिब--------

जब जख्म भी अपने हों और जख्म देने वाला भी अपना-------

12/11/18
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी) की कलम से

Thursday, November 1, 2018

फर्ज और जिम्मेदारी समझ कर सींचे गये रिस्ते यदि फलीभूत होने के बाद हमें ठुकरा भी दें तो हमारे अन्तर्मन को तकलीफ नहीं होती------
क्यों की हमने तो सिर्फ वो किया जो करना चाहिए और यदि यह जिम्मेदारी लालचबस निभाओगे तो उचित उम्मीदें पूरी न होने पर तकलीफ जरूर होगी------

हम एक किसान हैं अपने जीवन के। आने वाली ओला वृष्टि या सूखा नहीं रोक सकते परंतु इस डर से हम जीवन रुपी खेत को अपनी जिम्मेदारियों, लगन और निष्ठा से खून पसीना बहाते हुए, धुप, छांव, बारिस में अपने कर्म सम्पूर्ण न करें------यह गलत होगा-----

ओउम्
आप सभी को मेरी नमस्ते

मेरे विचार मेरी कलम से

०२/११/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)