सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻
प्रस्तुत हैं मेरे विचार मेरी कलम से ------ 🖋
मेरे मन में अक्सर सवाल उठते हैं कि हिन्दू धर्म प्रचारक ही जेल क्यों जातें हैं और जाते भी हैं तो इस तरह की वापस ही न आएं।
माना कि कुछ पाखंडी हैं जादू, टोना, ज्योतिष आदि का सहारा लेकर पाखंड फैलाते हैं परंतु सोंचने की बात है जो गुरुकुल चलाते हैं, यज्ञ, हवन करते हैं। बालक- बालिकाओं को सनातन संस्कृति की ओर ले जाने का प्रयाश करते हैं, जिनका जादू, टोन, ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं उन पर भी संगीन आरोप लगाकर जेल भेज दिया जाता है।
और आरोप तो इतना बड़ा सीधे बलात्कार जो शब्द हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं।
हमारी संस्कृति वो है जिसे कुछ दिन समझकर बलात्कारी भी सन्यासी हो जाये परंतु यहाँ तो हमारे सन्यासी ही बलात्कारी हो रहे।
एक और बड़ा अचम्भा बाबा रामदेव को लेकर सबसे पहले तो हिन्दू अंग्रेज बोलतें हैं वो तो बिजनेस मैंन है जनता को उल्लू बनाये है।
अरे हैं बिजनेश मैंन तो तुम्हारे बाप का क्या जाता है। देश का पैसा देश में ही तो है। न जाने कितने बेरोजगारों को रोजगार दिया उस बाबा ने न जाने कितने भंडारे करवाते हैं रोज तो उसका खर्च तुम उठाते हो?
और ये जो दुनिया के प्रोडक्ट तैयार करने में उन पर रिसर्च करने में खर्च आता है वो फ्री होता है क्या? उसमें पैसा न लगता है?
विदेशी कंपनियों की सड़ी-गली चीजे ब्रांडेड समझ कर खरीदोगे परंतु बाबा के प्रोडक्ट में मिलावट है कौन सी मिलावट है भाई?
इनकम टैक्स वालों को तो उनके पीछे ऐसे लगा दिया जाता रहा जैसे वो सन्यासी न कोई लुटेरे हो गए। अमेरिका कह दे गोबर खा लो तो खा लोगे, अमेजन पर जाकर गोबर के उपले ऑर्डर कर दोगे चाहे वो गाय के हों या न हो लेकिन जब हमारे बड़े बुजर्ग और किसान वही बात समझाएँ तो छी---------सच में तुम मानसिक रूप से गुलाम हो चुके हो।
हमने कहीं पढ़ा था एक बार जापान की सरकार को दूसरे देश से संतरे अपने देश में बेचने के लिए व्यापार का समझौता करना पड़ा। तब वहां की सरकार ने संतरे खरीदने या न खरीदने का फैसला वहां की जनता पर छोड़ दिया और परिणाम स्वरूप वहां की जनता ने विदेश से आये एक भी संतरे को हाथ न लगाया यह कहते हुए की हम अपने देश कडुआ संतरा ही खाएंगे लेकिन अपनी पूँजी विदेश न जाने देंगे।
आज हर पढ़ा लिखा आदमी जापान की तरक्की के बारे में बड़े चटकारे से बताता है लेकिन उनकी देशभक्ति के बारे में न बताएँगे।
अरे कुछ तो दिल की आवाज सुनो ये साधू, सन्यासी, स्वदेशी का प्राचार्य करने वाले, वेदों का प्रचार प्रसार करने वाले हमारी मरी हुई संस्कृति के लिए एक आशा की किरण हैं।
इन्हें सम्मान दो, किसी के भी कहने पर तुम भी आरोप लगाने मत लग जाओ, थोड़ा तो सोंचों।
कुछ ऐसे रत्न आज भी हैं हमारे देश में जो हमारे लिए जी रहे, उनका अपना परिवार नही, घर संसार नहीं रात दिन देश के लिए लड़ रहे फिर भी उन पर आरोप क्यों?
मेरे विचार मेरी कलम से--- 🙏🏻
पसंद आये तो प्रतिक्रिया दें
न पसंद आये तो कुतर्क न करें----
ओउम्
आओ लौट चलें वेदों की ओर----
२३/११/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
प्रस्तुत हैं मेरे विचार मेरी कलम से ------ 🖋
मेरे मन में अक्सर सवाल उठते हैं कि हिन्दू धर्म प्रचारक ही जेल क्यों जातें हैं और जाते भी हैं तो इस तरह की वापस ही न आएं।
माना कि कुछ पाखंडी हैं जादू, टोना, ज्योतिष आदि का सहारा लेकर पाखंड फैलाते हैं परंतु सोंचने की बात है जो गुरुकुल चलाते हैं, यज्ञ, हवन करते हैं। बालक- बालिकाओं को सनातन संस्कृति की ओर ले जाने का प्रयाश करते हैं, जिनका जादू, टोन, ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं उन पर भी संगीन आरोप लगाकर जेल भेज दिया जाता है।
और आरोप तो इतना बड़ा सीधे बलात्कार जो शब्द हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं।
हमारी संस्कृति वो है जिसे कुछ दिन समझकर बलात्कारी भी सन्यासी हो जाये परंतु यहाँ तो हमारे सन्यासी ही बलात्कारी हो रहे।
एक और बड़ा अचम्भा बाबा रामदेव को लेकर सबसे पहले तो हिन्दू अंग्रेज बोलतें हैं वो तो बिजनेस मैंन है जनता को उल्लू बनाये है।
अरे हैं बिजनेश मैंन तो तुम्हारे बाप का क्या जाता है। देश का पैसा देश में ही तो है। न जाने कितने बेरोजगारों को रोजगार दिया उस बाबा ने न जाने कितने भंडारे करवाते हैं रोज तो उसका खर्च तुम उठाते हो?
और ये जो दुनिया के प्रोडक्ट तैयार करने में उन पर रिसर्च करने में खर्च आता है वो फ्री होता है क्या? उसमें पैसा न लगता है?
विदेशी कंपनियों की सड़ी-गली चीजे ब्रांडेड समझ कर खरीदोगे परंतु बाबा के प्रोडक्ट में मिलावट है कौन सी मिलावट है भाई?
इनकम टैक्स वालों को तो उनके पीछे ऐसे लगा दिया जाता रहा जैसे वो सन्यासी न कोई लुटेरे हो गए। अमेरिका कह दे गोबर खा लो तो खा लोगे, अमेजन पर जाकर गोबर के उपले ऑर्डर कर दोगे चाहे वो गाय के हों या न हो लेकिन जब हमारे बड़े बुजर्ग और किसान वही बात समझाएँ तो छी---------सच में तुम मानसिक रूप से गुलाम हो चुके हो।
हमने कहीं पढ़ा था एक बार जापान की सरकार को दूसरे देश से संतरे अपने देश में बेचने के लिए व्यापार का समझौता करना पड़ा। तब वहां की सरकार ने संतरे खरीदने या न खरीदने का फैसला वहां की जनता पर छोड़ दिया और परिणाम स्वरूप वहां की जनता ने विदेश से आये एक भी संतरे को हाथ न लगाया यह कहते हुए की हम अपने देश कडुआ संतरा ही खाएंगे लेकिन अपनी पूँजी विदेश न जाने देंगे।
आज हर पढ़ा लिखा आदमी जापान की तरक्की के बारे में बड़े चटकारे से बताता है लेकिन उनकी देशभक्ति के बारे में न बताएँगे।
अरे कुछ तो दिल की आवाज सुनो ये साधू, सन्यासी, स्वदेशी का प्राचार्य करने वाले, वेदों का प्रचार प्रसार करने वाले हमारी मरी हुई संस्कृति के लिए एक आशा की किरण हैं।
इन्हें सम्मान दो, किसी के भी कहने पर तुम भी आरोप लगाने मत लग जाओ, थोड़ा तो सोंचों।
कुछ ऐसे रत्न आज भी हैं हमारे देश में जो हमारे लिए जी रहे, उनका अपना परिवार नही, घर संसार नहीं रात दिन देश के लिए लड़ रहे फिर भी उन पर आरोप क्यों?
मेरे विचार मेरी कलम से--- 🙏🏻
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न पसंद आये तो कुतर्क न करें----
ओउम्
आओ लौट चलें वेदों की ओर----
२३/११/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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