Friday, November 30, 2018

मैं शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

सभी श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए 🙏🏻 मेरी कलम के साथ प्रस्तुत हूँ.....✍🏻


मेरे मन में उठते हुए प्रश्नों के साथ------
हमारा भारत देश अनेकों भाषाओं का देश, अनेक वेश-भूषाओं का देश,--------।
अनेक धर्मो का देश---?

ये अनेक धर्म क्या हैं?
कुछ लोंगो का कहना है मैं अपने लेख के द्वारा राजनीति करती हूँ किन्तु मैं तो किसी भी विषय पर लिखती हूँ। हाँ बात जब हमारी संस्कृति की आती है तो लेखनी विराम कैसे ले हमारी संस्कृति कोई दो कागज के टुकड़े तो हैं नही जो एक आर्टिकल लिख दिया और बात ख़त्म।

हाँ तो बात अनेक धर्म की है।
हमारी पुरातन संस्कृति में दो तरह के लोंगो के बीच ही युद्ध होते थे। एक वो जो धर्म की राह पर होते थे और दुसरे अधर्म की राह पर-----और युद्ध का नाम होता था धर्म युद्ध।

उदहारण देख लो देवासुर संग्राम, रामायण काल में राम रावण का युद्ध, महाभारत युद्ध-------इनके अतिरिक्त और कौन से अनेक धर्म थे हमारे देश में-----?

अनेक धर्म बना दिए गए----चलो यहां तक भी बर्दाश्त करें-----अनेक धर्म बने तो उन धर्मों के लिए लोग भी हमारे ही चुने गए कोई टोकरी में अंडे भरकर तो लाया न था जो यहाँ आकर फ़ैलाने से वो इंसानों में बदल गए और उनका धर्म फूट पड़ा-------यहां तक भी बरदाश्त करें-----

लेकिन बचे- खुचे इंसानों को जातियों में बदल दिया और नाम उस धर्म का नाम सनातन से हिन्दू धर्म हो गया।
अभी भी चैन न मिला तो आपसी बैर का जहर शदियों घोला गया हमारे ही जयचंदों के कारण---- आज तो हिन्दू धर्म में देशभक्तों का टोटा है और जयचंदों की भरमार है।

अब तो हाल ऐसा है कि अपने धर्म और संस्कृति को समझने और पढ़ने की कोई फुर्सत ही नहीं अपना काम निकला चलते बनो।

हमने तो कसम खाई है आपस में तब तक लड़ना न छोड़ेंगे जब बचे-खुचे लोग भी दूसरे धर्म में परिवर्तित न हो जाएं।
हम लड़ेंगे आरक्षण के नाम पर, हम लड़ेंगे जातिवाद के नाम पर, हम लड़ेंगे शोषण के नाम पर-----और ये लड़ाई भी सिर्फ अपनों के बीच मिट जाने की हद तक।

हम शोषित हैं अपनों से ही और हमारी संस्कृति और इतिहास मिट रहे हमारी अज्ञानता के कारण। जब हम अपनी संस्कृति से ही दूर होते जायेंगे तो हमारा लहू पानी बनता जायेगा और कोई भी हमें कुचल कर चला जायेगा।

आज हम बटें हैं एस टी, एस सी, ओ बी सी, जनरल-----
एस टी, एस सी  बनकर आधा हिन्दू निकल गया अपने आपको शोषित बोलकर, ओ बी सी अपनी दुनिया में मस्त, वैश्य समाज किससे क्या कहे?
अब कुछ% रह गए जनरल जो अपनी ही अकड़ में फूले हैं उनमें से कुछ समझदार यदि इन्हें समझाना चाहें तो उनकी कोई सुनता नहीं।

क्या कर रहे हम हमें खुद नहीं पता। एक दूसरे पर लांछन लगाते हैं कि हमारी प्रतिभा कुचली जा रही---- और यह सच भी है कहीं न कहीं क्यों की यदि रात दिन मेहनत करके आया कोई व्यक्ति उस व्यक्ति के कारण अयोग्य बना दिया जाये जिसमें प्रतिभा ही नहीं---तो यह देश का दुर्भाग्य है हाँ ऐसा आरक्षण देश का दुर्भाग्य है परंतु इससे भी बड़ा दुर्भाग्य एक और है।
जब आज के समय में भी जाति-वाद के नाम पर प्रतिभा कुचली जाती है स्कूलों में माशूम बच्चों को जब कुछ स्वार्थी अध्यापक यह कहकर कुंठित करते हैं कि यह तो एस सी है, एस टी आरक्षण के नाम पर नौकरी मिल जायेगी, कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां आज भी जाति-पांति के नाम पर प्रतिभाशाली बच्चों को मानसिक तौर पर आघात दिआ जाता है।

प्रतिभा तो हमारी ही कुचली जा रही चाहे वो आरक्षण के नाम पर हो या जाति-पांति के नाम पर।
अरे कुछ कुचलना ही है तो अयोग्यता को कुचलो, बच्चों में स्वाभिमान पैदा करो।
देश के लिए स्वाभिमानी नागरिक तैयार करो।
एक शिक्षक बदलाव ला सकता भावी नागरिकों का निर्माण कर सकता है परंतु इसके लिए पहले एक शिक्षक का इस योग्य होना जरुरी है।
आज के परिवेश में जब ज्यादातर शिक्षक ही अयोग्य हैं तो योग्य पीड़ी कैसे तैयार होगी।

हम उलझे हैं अपना ही पतन करने में।क्या होगा हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य?
और क्या होंन्गे हम उनके लिए आदर्श या कायर?
हम आपस में इतने उलझ चुके हैं कि बाकी कुछ सोंच ही नही सकते। न अपने धर्म के बारे में, न समाज के बारे में, न अपनी संस्कृति के बारे में और न ही अपने राष्ट्र के बारे में।
हम उलझे हैं या फिर हम साजिश का शिकार हैं कभी थोड़ा समय निकाल कर सोंचों।

इन समस्याओं का हल खोजो, अपनी संस्कृति को बचाने का हल खोजो बाकी समस्याएं स्वतः छोटी हो जाएंगी।

हमारे राष्ट्र की शान है हमारा सनातन धर्म। संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकलते हुए वैदिक पथ अपनाओ।
आपसी बैर भाव दूर करने का और कोई रास्ता नहीं।
स्वाभिमान और शान से जीने का और कोई रास्ता नहीं।
वीर, स्वाभिमानी और प्रतिभाशाली बनने का यदि कोई मार्ग है तो वो सिर्फ वैदिक मार्ग है जिस मार्ग पर चलने का सन्देश श्री मर्यादापुर्षोत्तम राम और योगीराज श्री कृष्ण ने भी दिया है-----
कम से कम अपने भगवन और आराध्यों के दिखाये मार्ग पर तो चलो-----ओउम्

एक कोशिश------🖋

आओ लौट चलें वेदों की ओर-----

मेरे विचार मेरी कलम से ✍🏻
०१/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

No comments:

Post a Comment