Saturday, November 24, 2018

तन्हाई मुझमें काँप रही

*तन्हाई मुझमें कांप रही*

कुछ जहर पिया है शब्दों का,
कुछ तीर चुभे हैं सीने में------
तन्हाई मुझमें काँप रही,,,,,,
हम व्यस्त बहुत हैं जीने में-----

मिला गजब का अपनापन,,,,,,
न जाने किस संग क्या बंधन------
उस अपनेपन ने छल डाला,,,,,,,
था, जिसको कहता अपना मन---

छाले कब तक पड़ते पग में,,,,,,
डर भी कब तक बहता रग में-----
रुकने पर भी दर्द बहुत था,,,,,,,
खून अगर जम जाता नस में----

मौत- मौत हम करते रह गये,,,,
मौत भी एकदिन डर कर भागी--
कदम हमारे कदम से बोले,
जीत मिलेगी डर के आगे-------

मन के अंदर जब मैं झाँकू,,,,,,
अजब सा आलम दिखता है----
चौमासा तो जवां हो गया,
सूखा सावन दिखता है-------

ऐ ठोकर न तू,
हो शर्मिंदा,
हमें मोहब्बत तुझसे है,,,,,,
तू दुल्हन मेरे मन दर्पण की,,,,
मेरी इबादत तुझसे है------

बिन प्यास मिले जो पानी भी,,,,,
तो समझ न आता पीने में----
अब डर से दो-दो करने थे,,,,,,
जख्मों को धरो करीने में-------

कुछ जहर पिया है शब्दों का,
कुछ तीर चुभे हैं सीने में----
तन्हाई मुझमें कांप रही,
हम व्यस्त बहुत हैं जीने में------


समय- रात्रि ११:१० बजे
दिनांक- २४/११/१८
दिन-शनिवार

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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