Wednesday, January 30, 2019

ईश्वर उन्हें कभी नहीं दिखता जो दूसरों को परेशान करने लिए जीते हैं। ईश्वर उंन्हें भी कभी नहीं दिखता जो छल कपट से भरे हैं। ईश्वर सिर्फ उन्हें दिखता है जिनका अन्तर्मन स्वच्छ है, निर्मल है। वक्त कितना भी बुरा हो ईश्वर पर भरोषा सिर्फ वही कर सकता जिसे अपने कर्मों पर भरोषा हो। क्यों कि जिसके कर्म अच्छे हैं उसे ईश्वर यूँ मिटने नहीं देगा। जब आप कर्म को प्रधान मानकर चलेंगे जगह-जगह चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ेगा, मान-अपमान का सामना करना पड़ेगा। यदि चुनौतियाँ, संघर्ष, प्रतिकूलताएँ, मान-अपमान जीवन में न मिला तो भी आपका अनुभव अधूरा रह जायेगा------
आपको अहंकार होगा झूठी शान-शौकत का, आपको अहंकार होगा अपने ज्ञान का-------तो फिर आप रह गए ईश्वर की सच्ची अनुभूति से वंचित----
जब आपका हर अहंकार टूटकर चकनाचूर  हो जाये,,,
जब आप ईश्वर को इस तरह पुकारें जैसे एक बच्चा अपने माँ के दूर होने पर उसे पुकारता है----- हाँ जी बस इसी अहसास में तो है ईश्वर-----
जब आपका कर्तव्य सर्वोपरि हो---- आप जीवन के हर मोड़ पर धक्के खा रहे हों,,,,,,
हर तरफ अँधेरा हो-----
हर कोई गैर सा लगे--------फिर भी तुम लड़खड़ाते हुए बढ़ते जा रहे हो,,, आप शिथिल होकर गिरने वाले हो और  कोई भी अजनबी आकर तुम्हें सहारा दे---- यहीं तो है ईश्वर------
*अच्छे कर्म करते जाओ*
थके हो फिर भी चलते जाओ-----
वो किसी न किसी को जरूर भेजेगा माध्यम बनाकर-----लेकिन शर्त इतनी है कि तुम्हें रुकना नहीं है अंतिम साँस तक----- हालात कैसे भी हों----

हमारे सद्कर्म ही ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जितनी सच्चाई इस बात में हैं उतनी ही सच्चाई इस बात में भी की छल, कपट, बुरे कर्मों का अंजाम बुरा जरूर होता है----

*आज नहीं तो कल मिलेगा*
*तेरे कर्मों का फल मिलेगा--*

जितनी देर से मिलेगा उतना ही अच्छा मिलेगा,
जितनी देर से मिलेगा उतना ही बुरा मिलेगा---

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम

मेरी अनुभूति मेरे विचार मेरी कलम से----

यह मेरे विचार हैं जरुरी नहीं की आप सहमत हों,,,
असहमति पर अपने विचार जरूर व्यक्त करें लेकिन निर्रथक टिप्पड़ी न दें---

दिन-गुरुवार
दिनाँक-३१/०१/१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

निश्छल भावना एक संदेश

ओउम्
नमस्ते जी 🙏🏻
जय श्री राम 🚩

सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन---- एवं हमारी कविता पढ़ने के लिए आभार-----जिसका शीर्षक है 👇🏻

*!!निश्छल भावना!!एक संदेश*

देखो एक अजनबी मेरे,
 हृदय का जहां हिला गया----
ममता का आँचल जाग उठा,
वो माँ कहकर मुझे
बुला गया-------

नजरों में निश्छल भाव थे,
शब्दों में प्रेम का गुंजन था,,,,
हिय में घुमड़ा ममता का बादल,,
दिल से दिल का बंधन था-----

यह नारी का नारीत्व था,
या कुदरत का चक्र था,,,,
धरा भी पुलकित हो उठी,
जब जब माँ का जिक्र था----

हर शब्द-शब्द में अमरत बहता,
वो जब भी मुझको माँ कहता---
हर बला से उसकी दूरी हो,,,,
हर  दुआ में मेरा,
दिल कहता----

बरगद की शीतल छाँव सा,
ढाक के कोमल फूलों जैसा---
मन ममता में झूम उठा,,,,
सावन के बहके झूलों जैसा----

न जाने कौन सा जादू है,,,
माँ शब्द से पनपे,
 आँचल में----
मेरे मन का सोम भी देखो,
लुकता-छिपता बादल में----

भारतमाता की भूमि ये,
फिर से पावन हो जाये,,,,
स्त्री का उड़ता आँचल यदि,
 माँ-बहन का दामन हो जाये----

हर गली सुरक्षित जीवन की,
नारी है देश की उपवन सी,,,,
तुम पिता, पुत्र और भाई बनो,
यह धरा लगेगी मधुवन सी----

मैं स्वचिन्तन में खोयी थी,
वो अन्तर्मन में आ गया-----

*ममता का आँचल जाग उठा,*
*वो माँ कहकर मुझे बुला गया*
ममता का आँचल जग उठा,
वो माँ कहकर मुझे बुला गया---
✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

दिनाँक-२७/०१/१९
दिन- रविवार
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)

Sunday, January 27, 2019

ओउम्
नमस्ते जी 🙏🏻
जय श्री राम 🚩

प्रस्तुत हैं मेरी कलम से हमारे कुछ निजी विचार हो सकता है आपको कडुवे लगें परंतु आप बुद्धिजीवी लोग इसका कारण समझने का प्रयाश जरूर करेंगे---- क्यों कि समय की मांग और जमीनी हकीकत साथ में लेकर नहीं चलेंगे तो रहा बचा भी सनातन धर्म कहीं रोता हुआ विदा न हो जाये----

*स्वामी दयानंद सरस्वती को लेकर हिन्दू समाज में भ्रम*

बहुत ही कम हिन्दू हैं जो स्वामी दयानन्द के बारे में ज्यादा कुछ जानते हैं। अन्यथा स्वामी दयानंद को मूर्ति पूजा विरोधी समझकर किनारा कर लेते हैं।
यह आग पाखंडियों की लगाई हुयी है जो सिर्फ अपना फायदा देखते हैं देश हित से उनका कोई लेना देना नहीं।
इसका जिम्मेदार आर्य समाज भी कम नहीं है जो अपना मुख्य उद्देश्य हिंदुओं तक नहीं पहुंचा पा रहा।
जिनके ज्यादातर संदेश हिंदुओं का मजाक उड़ाने वाले होते हैं। उनके तौर तरीकों का तिरस्कार करने वाले होते हैं, उंन्हें अपमानित करने वाले होते हैं।

बेसक स्वामी जी पाखंड विरोधी थे परंतु वो राम और कृष्ण का सम्मान उनसे कई गुना ज्यादा करते थे जितना जय श्री राम और जय श्री कृष्ण बोलने वाले करते हैं।
क्या यह बात हिंदुओं तक पहुंचाना हमारा फर्ज नहीं।

स्वामी जी राम, कृष्ण, हनुमान आदि का चित्र या मूर्ति रखने के विरोधी नहीं थे न ही इनके नाम पर मंदिर बनाने के विरोधी थे बल्कि इनके नाम पर जो पाखंड होता है जो कल्पनाएं की जाती हैं।
योगेश्वर, हनुमान आदि का जो चरित्र और कल्पनाएं दिखाकर बताकर समाज में  सनातन धर्म के इन महान आदर्शों का, इन महान आर्यों का, जिनकी महानताओं, आसाधारण योग्यताओं, असाधारण कार्यों के कारण हिन्दू धर्म के भगवान् हैं उनका जो चरित्र गन्दा किया गया है स्वामी जी उसके विरोधी थे।

मंदिर में हमारे ऋषि मुनियों की, राम, कृष्ण के चित्र हों। उनका सुंदर तरीके से राखरखाव हो, मंदिरों की प्रणाली गुरुकुल पद्धति में परवर्तित हो। वहां हर दिन हवन, यज्ञ हों और वो वैदिक शिक्षा का केंद्र हों।
राम, कृष्ण, हनुमान जैसे महान आदर्शो के चरित्र का सच्चा वर्णन हो- हर बच्चे को उसकी शिक्षा में मनीषियों, विदुषयों की कहानियां और उदाहरण बताये जाएँ, ऐसे चित्र क्षिक्षाकेंद्र (मंदिर) में बहुत ही सुरक्षा और सम्मान से रखे जाएँ और उन्हें हर कोई आकर गन्दा या दूषित न करे, उनके नाम पर पाखंड न करे------- हाँ यही तो सपना था उनका----- लेकिन बदकिस्मती देखो आज एक तरफ आर्य समाज सिर्फ मूर्तिपूजक विरोधी की छवि बनाये बैठा है और हिन्दू समाज उंन्हें अपना दुश्मन माने बैठा है------- दोनों ही तरह से सनातनधर्म रो रहा है।
हिन्दुओं की अज्ञानता चरम सीमा पर पहुँच चुकी है।

राम, कृष्ण की पूजास्थल  आज मांसाहारी, विधर्मी, देशद्रोही के मंदिर में परिवर्तित होते जा रही है-------आज लोग अपने राम,कृष्ण को भूलकर न जाने किस किस भगवान को पूजने लगे हैं।
मूर्ति पूजा तो थमी नहीं हमारे आदर्श श्री राम और योगेश्वर का चरित्र पूरी तरह मिटाते हुए सही मायने में तो मूर्ति पूजा अब शुरू हुयी है जो नए नए भगवन पैदा हुए हैं जिन्होंने न तो लंकेश को मारकर रामराज स्थापित किया न ही महाभारत में कौरव सेना को परास्त किया फिर भी न जाने ये पीर्, फ़कीर, सर पर चाँद तारा वाले हिंदुओं के भगवान क्यों हैं----- आज ये भिखमंगे भगवान् हिंदुओ की अज्ञानता पर ठहाके लगा रहे हैं---------

और इस समाज के बुद्धिजीवी चिल्ला रहे हम ज्ञानी हैं आओ डिबेट करो------
आप भूल गए जब बारिश का मौशम आता है तब कोयल की नहीं मेंढकों की आवाज सुनाई देती है------

कोयल को सोंचना चाहिए वसंत का उपयोग कैसे करें------
अगर वसंत निकल गया तो मेढ़क जुबान न खोलने देंगे------

*मैं न तो बहुत ज्ञानी हूँ*
*न ही शास्तार्थ करने की योग्यता है----*
*लेकिन मेरी कलम में,*
*हकीकत चरितार्थ करने की योग्यता है----- ✍🏻*

 *ओउम्*

मेरे विचार मेरी कलम से----

दिनाँक-२८/०१/१९
दिन-सोमवार
निर्देश- एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
दिल किया रोने को तो आँख भिगोने के लिए कुछ न था-----
हम तो यूँ ही डर गये,,,
पास में खोने के लिए कुछ न था---

मरने से पहले कुछ करना जरुरी था,,,,
हर पल समर्पित कर दिया कर्म को अपने,,,,,
बस यही सोंचकर---

रोते भी गर,
तो *वक्त* रोने के लिए कुछ न था-----

ओउम्
शुभसंध्या जी----

२७/०१/१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, January 22, 2019

सभी श्रेष्ठजनों को मेरी नमस्ते🙏🏻
जय श्री राम 🚩

मेरा आज का लेख
*जरुरी है स्त्रियों का थोड़ा बतमीज होना*

मैं उन स्त्रियों की बात नहीं कर रही हूँ जो एक बित्ता बदन पर और एक बित्ता कमर पर कपडा लपेट कर सड़क पर मॉडर्न होने का नाटक करती घूमती हैं क्यों कि उनके लिए तो मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है।

मैं बात कर रही हूँ उन स्त्रियों की जो हर बात में सर झुकाकर क़ुरबानी देती हैं, सिकुड़ी सी, छुईमुई सी, रोती, गिड़गिडाती हुयी, और फिर अपनी बेटी को भी वही बना देती हैं। जोर से मत बोलो, किसी के मुंह न लगो, हमेशा सर झुकाकर चलो ताकि तुम्हरा यूँ ही बलात्कार होता रहे और सदियों तक------ ये सब सिखाना इतना महत्वपूर्ण है?

आज इसी कारण न जाने कितनी स्त्रियों की जिंदगी बर्बाद हो गयी।
बेटियों को सबकुछ सिखाओ लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना मत सिखाओ।
जिम्मेदारी, प्रेम, त्याग के साथ स्त्री को याद रखना सिखाओ कि उसका भी स्वाभिमान है वह सिर्फ पुरुष के बिस्तर की शोभा नही उसके पैरों की जूती नहीं।

वो पुरुष जो समझते हैं स्त्री सिर्फ सम्भोग की वस्तु है, पुरुष की जागीर है, जब चाहे उसको मारे, पीटे, रौदें ऐसे पुरुषों को जितनी जल्दी हो सके मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।

यदि ख़ामोशी से सब सहा तो परिणाम घातक होते हैं और जो माँ बाप कहते हैं बेटी की डोली मायके से जाती है और ससुराल से अर्थी निकलती है उन्हें मां बाप कहलाने का हक नहीं। यह स्थति तो घर के अंदर की है।

परंतु जब एक स्त्री किसी कारण बस अकेले रहती है जीना चाहती है। तो हमेशा उसका संस्कारी और मृदुभाषी होकर रहना संभव नहीं।
यह समाज भोली भाली स्त्रियों को जीने नहीं देता हर जगह गिद्ध बैठे। रोज रोज नए नए दांव खेलते हैं। तब जरुरी हो जाता है एक स्त्री का बतमीज होना क्यों कि जब एक स्त्री सर उठाकर गिद्धों को जवाब देने उतर आती है तो वह सर पर पैर रखकर भागते हैं क्यों की उंन्हें तो मसलने के लिए छुई मुई आंसू बहाने वाली चाहिए जो अपनी आवाज न उठा सके।
अक्सर अपने से अनुभवी सज्जन और माताएं बहने कहने लगती हैं छोडो क्यों किसी के मुंह लगना----छोड़ना ही तो नहीं है क्यों छोड़ें ताकि वो किसी और भोली भाली स्त्री को अपना निशाना बनाये ताकि उसकी हिम्मत बढ़ती जाये वो फिर किसी और स्त्री के सामने उसके नाक, कान, आँखें, ओंठ देखकर वासना पूर्ति के लिए अपने हर पैंतरे आजमाएं----- क्यों हमारी शक्ल सूरत ईश्वर ने इसीलिए बनायी है क्या?------- क्यों छोड़ें?और कब तक छोड़ें?----हमारी संस्कृति में स्त्री कायर कब थी------?
स्त्री कायरता से बाहर निकलेगी तो उसका भला चाहने वाले स्वतः उसके साथ जुड़ते जायेंगे। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो स्त्री का भला चाहता है उसका स्वाभिमान कभी कुचलना नही चाहेगा और न ही स्त्री को सिर्फ वासना की वस्तु समझेगा------

*ओउम्*
जय आर्यवर्त
जय भारत

*मेरे विचार मेरी कलम से--✍🏻*
निर्देश-कॉपी पेस्ट वर्जित
दिन-बुधवार
दिनाँक-२३/०१/१९

*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)

Monday, January 21, 2019

*ओउम्*
आप सभी श्रेष्ठ जनों को नमस्ते करती हूँ--- 🙏🏻

श्री राम, श्री कृष्ण की इस पावन धरा पर सदैव उनकी जयकार हो----🚩
*जय जय श्री राम*

बहुत लोग कहते हैं ईश्वर जैसा कुछ नहीं है जबकि उंन्हें भी अन्तर्मन में कुछ कुलबुलाता सा महसूश होता है लेकिन वो डर के मारे उसे दबोच देते हैं।
डर लगता है ऐसे लोंगो को यदि वो ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार कर लेंगे तो कहीं उन्हें मिथ्याभाषण, पाप आदि करने से डर न लगने लगे।
कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कहते हैं ईश्वर सब देखता है और ऐसा कहते वक्त उनकी जुबान लड़खड़ाती है या फिर नजरे बगलें झाँकती हैं| दरअसल उंन्हें पता होता है कि ईश्वर सच में सब देख रहा है और यदि उसने सबको दिखा दिया तो क्या होगा?

फिर भी ऐसे व्यक्ति अपनी धृष्टता और अभिमान के कारण अपने अधोगति का मार्ग प्रशस्त करता रहता है। वो हासिल करता है धन,  दौलत, जमीन, जायदाद, चालाकी का पुरस्कार् भी,,,,,,लेकिन उसे कभी सच्चे सुख की अनुभूति नही होती इसी कारण वो उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी छटपटाता रहता है बहुत कुछ पाने को---- क्या पाना चाहता है उसे नही पता, क्यों जीना चाहता है उसे नही पता और वह वंचित रह जाता है एक सुखद नींद से---------------

*ओउम्*
मेरे विचार मेरी कलम से---- ✍🏻

दिन-मंगलवार
दिनाँक-२२/०१/१९

*आर्या शिवकान्ति आर कमल* (तनु जी)

Wednesday, January 16, 2019

एक संदेश आर्य समाज के नाम

ओउम्
नमस्ते जी 🙏🏻

*एक संदेश आर्य समाज के नाम*

आर्य समाज के लिए अपने विचार बहुत ही हिम्मत करके लिखने जा रही हूँ।
ज्ञान, विज्ञान, तर्क, प्रमाण, आत्मचिंतन, स्वध्ययन, योग, अध्यात्म, वैदिक चिंतन-------- हर बात में पारंगत *आर्य समाज*------ आर्यवर्त की असली झलक अपने आप में आज भी समेटे हुए जिसमें राष्ट्र कल्याण एवं राष्ट्रभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी है।
जिसे आज भी शास्त्रार्थ में कोई नहीं पराजित कर सकता।

हे आर्य समाज मैं अज्ञानी हूँ फिर भी व्यवहारिक जीवन के कुछ विचार लिख रही हूँ।
आप इतने विद्वान होकर भी अपने देश में ही क्यों अलग-थलग हो। इस राष्ट्र कल्याण के लिए आप आगे क्यों नही आते।
आपकी छवि सिर्फ मूर्ति पूजा विरोधी तक सीमित क्यों है?

आपकी इस कमजोरी का फायदा उठाकर सच में जो पाखंडी हैं वो आपके खिलाफ समाज में जहर घोलते हैं।
समय और परिवेश को देखते हुए आप अपनी बात कहने का तरीका क्यों नहीं बदलते?

देखो ना मिटती जा रही हमारी संस्कृति। यदि उस वक्त स्वामी जी की बात मानी गयी होती तो आज जम्मूकश्मीर बिलखता न होता।

लेकिन तब स्वामी जी ने बिगुल बजाया था कहीं सफलता कहीं विफलता होनी ही थी। लेकिन आज उस बिगुल को बजे सैंकड़ो वर्ष बीत गए। फिर भी मिट गयी हमारी संस्कृति केरल और बंगाल में और भी कई राज्य निशाने पर हैं।

सिर्फ आप बचा सकते हो अपनी संस्कृति को वो चाहे सरदार भगत सिंह के रूप में हो या स्वामी रामदेव के रूप में।
लेकिन आपने अपनी छवि सीमित कर ली।
इंसान के अंदर जब ज्ञान का बीज पनपता है तब यथार्थ जानने का  और फिर तर्क का बीज पनपता है।
परंतु आप सदियों से चली आ रही अज्ञानता को परत दर परत न हटा कर सीधे खंजर घोपकर परत हटाने लगते हो नतीजतन अज्ञानता या तो डर कर भागती है या आपसे चिढ़कर------

*आज विदेशी आपके कायल हैं।*
*लेकिन आप अपनों से ही घायल हैं----*

और इसका फायदा पाखंडी और स्वार्थी लोग उठाते हैं------

अंत में इतना ही कहूँगी------

लट्ठ मत मारो भाषा का----
दीप जगाओ आसा का-----
न करो किनारा अपनों से---
कुछ जतन करो निराशा का----- 🙏🏻

क्षमा सहित----मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻

दिन गुरुवार
दिनाँक-१७/०१/१९
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)

Sunday, January 6, 2019

कितना जरुरी है कथनी और करनी में समानता होना-------

मित्रों आज के परिवेश में हम देखते हैं लोग वैसे बहुत कम होते हैं जैसा वो स्वयं के बारे में बताते हैं।
झूठी शान ए शौकत, बड़ी-बड़ी बातें----- हमेशा दूसरों में कमियाँ निकालना------
यहां तक की उनकी सोंच होती है कि हम दूसरों को नीचा दिखाकर स्वयं ऊपर उठ जायेंगे----नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आपका स्वाभाव जैसा होता है स्वतः आपके करीब धीरे-धीरे उसी मानसिक स्थिति के लोग आ जाते हैं और कोई आपसे विपरीत मानसिक स्थति का जुड़ा तो धीरे-धीरे अलग हो जाता है।
यदि आप ये सोंचते हैं कि ओहदा और रुतबे से आपको लोग चाहते है आपकी बड़ी इज्जत है तो गलत है।
आपके ओहदे और रुतबे से लोग आपकी सिर्फ चाटुकारिता करेंगे और आज के समय में चाटुकारिता ही सर्वस्य नजर आती है।
लेकिन यदि आपकी कथनी और करनी समान है तो आप हमेशा निडरता से जियेंगे एवं आपके जीवन में कई लोग ऐसे सामिल होंन्गे जो आपको सच में बहुत प्रेम करते हैं आपका सम्मान करते हैं।
 उपदेशक बनना आसान है उसे जीवन में धारण करना और उस मार्ग पर चलना बेहद कठिन।
इसीलिए किसी के विषय में कोई धारणा बनाने से पहले उसको समझें, और उपदेश देने से पहले स्वयं में धारण करें।
यदि आप में सच स्वीकार करने और धारण करने की क्षमता नहीं तो दूसरों की निंदा या गलतियां निकाल कर आप दूसरों की नजरों में सम्मान नही पा सकते हाँ कुछ चाटुकार लोग जरूर पा सकते हो जिसे आप झूठी हेकड़ी दिखाते हुए लोंगों बोल सकते हो की हमारे तो बड़े बड़े दोस्त हैं---- लेकिन असल में वो बड़े नहीं नीयत में आपसे भी ज्यादा खोटे हैं-----------लोंगों से नजरें मिलाकर बात करने के लिए पहले स्वयं को आइना बनाना पड़ता है----

एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित के साथ----
मेरे विचार मेरी कलम से-----✍🏻

दिन-सोमवार
दिनाँक ०७/०१/१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, January 3, 2019

क्यों स्त्री अपवित्र है?

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩


*क्यों स्त्री अपवित्र है?*

तुम कहते हो तब स्त्री अपवित्र है,,,,
जब वह कुदरती चक्र से गुजरती है------

यह कुदरती चक्र ईश्वर ने,
इस धरती पर तुम्हें जन्मने के लिए बनाया है-----
जब तुम्हारा निर्माण हो रहा था,,,
उसके उसी अंडे से----
जिसके फूटने से वह अपवित्र हो जाती है---
तब स्त्री अपवित्र नही थी------
 उस स्त्री के छाती का दूध पीकर बड़े हो रहे थे,
तब वह अपवित्र न थी-----

जब तुम उसी स्त्री को बलात्कारी नजरों से देखते हो,,,,
तब भी वो अपवित्र नहीं दिखती----

तुम स्त्री को जगत जननी जगदम्बा के रूप में पूजते और उसके मंदिर में नाक रगड़ते हो,,,,
लेकिन मंदिर के बाहर खड़ी स्त्री अपवित्र है-------

बड़े-बड़े विद्वानों से शास्त्रार्थ करने वाली हमारे देश की विदुषयों से लेकर आज तक कि हर स्त्री में तुम्हें अपवित्रता दिखती है-----

श्री लंका तक श्री रामचंद के लिए विजय पथ बनाने वाली माता कैकेयी या फिर-------
महाराजा शिवाजी जैसे शेर पैदा कर उसे राजनीति, कूटनीति, राष्ट्रनीति सिखाने वाली स्त्री माता जीजाबाई अपवित्र है क्यों?

पुरुषों के लिए स्त्री इसलिए अपवित्र है क्यों कि स्त्री मानती है कि वह अपवित्र है-----

एक स्त्री दूसरी रजस्वला स्त्री पर अत्याचार करती है,,,,,
माँ के रूप में, सास के रूप में,
ननद के रूप में-----

क्यों तमाशे होते हैं घर में,,,,,
स्त्री को मासिक धर्म आने पर----
इसमें नया क्या है,,,,,
वो तो प्रतिमाह की प्रक्रिया है-----
कुदरती प्रक्रिया जो ईश्वर ने एक स्त्री को माँ बनने के संकेतों से जोड़ा है-------

लेकिन तमाशा देखो,
ये मत छुओ, वो मत छुओ,
भाई से दूर रहो, बाप से दूर रहो-----
घर का मंदिर बन्द कर दो----
सब अपवित्र हो जायेगा-----

पति से दूर रहो यह तो समझ आया,,,,
पति से दूर रहो का मतलब उस वक्त शारीरिक संबंध से दूर रहो,,,,

लेकिन भाई, बाप को न छुओ??

तो भाई बाप अपनी माँ के कोख से जन्मते समय,
खून में न सने थे क्या------?
उसी लथपथ माँ का दूध न पिया था?

अब जिसके घर चार स्त्रियाँ हैं,
तब तो वह घर कभी पवित्र हो ही नहीं सकता????
वहां पर शुभकार्य के लिए कौन सा दिन तय किया जाये?

कितनी अजीब बात है,,,
हमारा ज्ञान, विज्ञान सब असफल,,,,
अगर कुछ बचा है-----
तो बस बिना मतलब के तमाशे और पाखंड------

बगीचे पेड़ सब मुरझा जायेंगे,,,,
स्त्री इतनी अपवित्र है-----
आचार, घी, तेल सब ख़राब हो जायेगा--------स्त्री इतनी अपवित्र है?

मेरे साथ तो ऐसा आज तक कुछ न हुआ,,,,,,
न कोई बगीचा सूखा,
न फूल-----
जब की मुझे बागवानी का बहुत शौक रहा हमेशा से-----

अगर कोई वस्तु ख़राब होती है,,,,
उसका कोई और कारण होगा-----

उस वक्त अगर कोई पेड़ सूखता है,,,तो उसका भी कोई और कारन होगा----

सच में अगर कुछ सूखता है तो स्वयं रजस्वला स्त्री----
तकलीफ उसे होती है, दर्द उसे होता है----
यदि खानपान अच्छा नहीं तो ल्यूकेरिया और कमजोरी उसे होती है-----
हिओग्लोबिन उसका कम हो जाता है-------

लेकिन इसमें वो अपवित्र क्यों?

हाँ हमारे पूर्वजों ने अगर ऐसे वक्त में स्त्रियों को,,,,
भारी भरकम गृहकार्यों से दूर रखा,,,
उसे एकांत में आराम करने,,,को
कहा तो उसका कारण है-----

किसी को ज्यादा तकलीफ होती है, ऐसे में आराम करना स्वास्थ्य के लिए उचित है।
भारी भरकम कार्य और वजन उठाने से इस स्थति में स्त्री के गर्भाशय के लिए हानिकारक हो सकता है------ इस लिए रोका गया-------

आजकल हम देख रहे हैं ज्यादातर स्त्रियों को गर्भाशय सम्बन्धी तकलीफें बढ़ती जा रही हैं-------
और ये ऐसी तकलीफ है जो यदि ज्यादा बढ़ गयी-----तो फिर स्त्रियों का स्वस्थ्य और निरोग रहना असंभव हो जाता है------

इसलिए सावधानियां अति आवश्यक है-----
लेकिन आपने तो सीधे तमाशा बना दिए-----
कुदरत के इस चक्र को------ जैसे कोई अजूबा है------ जिसकी छाया पड़ते ही तुम भूमिगत हो जाओगे-------

मेरे विचार मेरी कलम से---- ✍🏻
दिन-शुक्रवार
दिनाँक-०४/०१/१९
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Wednesday, January 2, 2019

अन्तर्मन की प्रसन्नता?

ओउम् 🚩

सभी श्रेष्ठजनों को नमन---- 🙏🏻💐
*अन्तर्मन की प्रसन्नता?*

मित्रों बहुत ही आसान है प्रसन्नचित्त रहना---- आज इस विषय पर अपने कुछ विचार और अनुभव प्रस्तुत करूँगी।
आपने कई बार अनुभव किया होगा कभी-कभी शक्ल-सूरत से साधारण दिखने वाला मनुष्य बहुत ज्यादा सुंदर दिखने वाले मनुष्य से ज्यादा प्रभावशाली और सुंदर दिखता है।
ऐसा इसलिए होता है क्यों कि उस साधारण दिखने वाले व्यक्ति का मन प्रसन्न है।

अक्सर देखा गया है हम ईर्ष्या, द्वेष, घमंड आदि के कारण अपने मन का दुखी करते हैं। लेकिन यह नहीं सोंचते कि इससे हम स्वयं को तकलीफ दे रहे हैं।
मनुष्य किसी भी परिस्थिति में हो वो प्रसन्न रह सकता है।

मान लो आप अपने किसी दुःख से दुखी हैं और रास्ते पर चलते समय कोई परिवार किसी कारण खुशियां मनाते हुए दिख गया। आप कुछ पल अपना दुख भूल कर ईश्वर से कहिये हे परमात्मा इनकी खुशियाँ बरकरार रहें--- उनकी खुशियाँ बरकरार रहेंगी या क्षणिक वो ईश्वर जाने परंतु हमारे मन में में हलकान महसूश होगी कुछ पल के लिए ही सही हम अपना दुख भूल जाएँगे।

हमने अक्सर देखा लोग अकारण ही मुंह बिगाड़कर अपना पूरा दिन ख़राब कर लेते हैं, पड़ोसी के घर के ठहाके उंन्हें तकलीफ देते हैं, किसी को अपने पड़ोसी के सुख सुविधाओं से तकलीफ तो किसी स्त्री को दूसरी स्त्री की सुंदरता या बात व्यवहार से तकलीफ-----

 होड़ लगी है एक दुसरे से बेहतर दिखने की------ और इस होड़ में स्वयं का विकास और अन्तर्मन का सुकून खो देते हैं।

क्यों बनना किसी के जैसा हमें स्वयं को बेहतर बनाना है अपने आपसे प्रेम करना है। हमारे पास जो है उसको तो हम संभाल नहीं पाते और दूसरों से जलकर उनका क्या बिगाड़ लेंगे स्वयं का ही बिगड़ेगा, समय बिगड़ेगा, शक्ल बिगड़ेगी, स्वास्थ्य बिगड़ेगा और साधन भी बिगड़ेंगे-----

कुछ लोग तो अपने ही घर में बेचैन हैं----मैं ये करता हूँ, मैं वो करता हूँ,,,,, मैं न होता तो ये होता, मैं न होता तो वो होता------
सारी प्रोपर्टी अपने नाम रखूँगा,
तभी तुम सब हमारे कब्जे में रहोगे,,,,,
बच्चों को कुछ न दूंगा बड़े होकर बेईमानी कर गए तो,,,,,
पत्नी के नाम कुछ न करूंगा किसी के साथ भाग गई तो?

वैसे चाहे तुम्हारे अपनेपन के कारण लोग तुम्हारे पास रुक भी जाते लेकिन ऐसी सोंच के कारण जरूर भाग जायेंगे------

गलत सोंच है मैं जो कर रहा हूँ वो मेरा फर्ज है और इस फर्ज का जो नाजायज फायदा उठाएगा उसका भविष्य वक्त तय करेगा। हम सारी उम्र तो किसी का साथ नहीं दे सकते।
हम अपना कर्तव्य और फर्ज ही निभाने तो यहाँ आये हैं-----

और जब हम अपना जीवन कर्तव्य, फर्ज और संघर्ष समझकर जीने लगते हैं----- अन्तर्मन हर हाल में प्रसन्न रहता है। ये दुनिया खूबसूरत लगती है क्यों कि हमारी सोंच जैसी होगी धीरे-धीरे हम उसी तरह के लोंगो के संपर्क में आने लगते हैं------

मैं एक कवियत्री और लेखिका हूँ। बहुत बार हमें सलाह दी जाती है चाटुकारिता और चालाकियों कि लेकिन मैं स्प्ष्ट बोल देती हूँ------लेखन मेरे अन्तर्मन की आवाज है, मेरा स्वाभिमान है----- और मैं इसकी मालकिन जैसी हूँ वैसी ही रहुँगीं------

क्यों की चाटुकारिता करने से हमारा अन्तर्मन दुखी हो जायेगा और हमारे कलम की बादशाही खत्म------

मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ स्वयं का मूल्यांकन करें आप स्वयं के लिए जी रहे हैं---- या दिखावे के लिए------? आप फर्ज के लिए जी रहे या घमंड में-----?
आप ज्ञान के दम्भ में जी रहे----- या ज्ञान रूपी समन्दर की एक बूंद बनकर-----?
आप स्वयं की परिस्थतियों से दुखी हैं या दूसरों की खुशियों से---?

जो काबिले तारीफ है उसकी खुलकर तारीफ करें,,,,, जो धारणीय है उसे धारण करें,
जो विचारणीय है उस पर विचार करें------? जो सुंदर है उसे नमस्कार करें------? बस हो गया आपका मन प्रसन्न हमेशा के लिए, हरहाल में-----हर परिस्थति में----

मेरे विचार मेरी कलम से---- ✍🏻
दिन-गुरुवार
दिनाँक-०३/०१/१९

आर्या शिवकान्ति कमल
(तनु जी)

Tuesday, January 1, 2019

दुःख हमारा प्रिय सखा

*दुख हमारा प्रिय सखा*

जिसने हमें स्वयं से मिलाया,
जिसने हमें बताया हम क्या है?
कौन हैं-------?

जो हमें जीवन की परिभाषा सिखा रहा था,,,,
कभी मौन चित्त होकर,,,,
कभी आंसुओं में बहकर------

जो सिखा रहा था हमें----
हर एक अन्न के दाने की कीमत-----
और सच्चे झूठे रिस्तों की अहमियत------

जो उठा रहा था,
नकाब आस्तीन के साँपों का,,,,
हमारे जीवन से जिसने,,,,,
वो नकाबी फेंक दिए,,,
जो हमारे काबिल न थे----
वो हमारा प्रिय सखा,
और हमारा हितैषी *दुःख था*

जिस शब्द को सुनकर हमारी नादानियाँ सहम जाती थी-----
जिसके बिना जीवन के अनुभव अधूरे रह जाते हैं----

भले ही उम्र से कोई बूढा हो जाये---
दुःख जिसका मित्र बनकर न आया,,,,
उसके अनुभव अधूरे रह जाते हैं----

हाँ वह दुःख ही तो था----
जिसने हमें अहंकारी बनने से रोका,,,,
सुख का क्या----अपरिपक्व है,
अज्ञानी है-----

जिसने हमें सिखाया,,,,
दर्द की चीत्कार पर विजय पाना,
और जीवन के हर बवंडर से टकराना-----

जिसने निखारा हमारे स्वाभिमान को,,,,,
हर हाल में अडिग, अचल सा बनाने वाला-----
मुझे स्वयं को स्वयं से मिलाने वाला-----
हमारा प्रिय सखा दुःख था-----

हे मित्र यदि तुम न होते-----
तो हम अनाड़ी रह जाते-----
जीवन के हर क्षेत्र में------
और हम अनुभवहीन,,
कौरव साबित होते----
जीवन के कुरुक्षेत्र में------

ये जीवन पथ----?
कहीं दलदल तो कहीं अग्निपथ भी है------
इसे पार करके जब,
राही को मीठा पानी मिले------
तो वह उसे अमृत समझ कर,,,
बूँद-बूँद संजोयेगा------

हर बूँद की कीमत समझाने वाले,
 हे प्रिय मित्र-------
अब हमें संजोना है हरपल,
स्वयं को, स्वयं से----
आप हमारे अन्तर्मन के सुख का कारण हो??????

तुम मुझतक आये यह मेरा सौभग्य है------
अब मुझे तुमसे डर नहीं लगता,
तुम अपने से लगते हो-----
तुम पवित्र हो,
मन से, वचन से, कर्म से-----✍🏻

ओउम् 🚩

दिन -बुधवार
दिनाँक-०२/०१/२०१९
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

जब आएगा वसंत अपना

सभी आदरणीय, श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए----🙏🏻

प्रस्तुत है मेरी कविता जिसका शीर्षक है *जब आएगा वसंत अपना*

जब आएगा वसंत अपना,
तितलियां भी अंगड़ाई लेंगी---
बाग खिलने से पहले,,,,
कलियाँ भी अंगड़ाई लेंगी-----

होंगे धनिया के खेत फूले,
बयारि मंद होगी----
फिजाओं में ऐसी खुशबू,
जो सबको पसंद होगी-----

फगवा जवान होगा,
होली के रंग होंगे------
नाचेंगे हम जमीं पर,
और मन पतंग होंगे------

गावों में गुड़ की खुशबू,
रसखीर मीठे रस की----
पीपल की सरसराहटें---
कहेंगी कुछ तो हँस के,,,,

दुल्हन भी खूब सजेंगी,,,
दूल्हे भी खूब सजेंगे-----
कुदरत भी सज संभलकर,,,
चूनर में जब उड़ेगी-----

पायल की जैसी छन-छन,
करती हुयी हवाएं---
प्रियतम की वो छुअन सी---
चलती हुई हवाएं----

धरती भी होगी दुल्हन,
मौशम भी दूल्हा होगा----
श्रृंगार करके जी भर,,
मधुवन भी फूला होगा----

महुआ के पेड़ नीचे,,,
बिखरेगी खुशबू फिर से---
बेरों के झुरमुटों में,,,,
निखरेगी खुशबू फिर से-----

सरसों के खेत कहते,
है मिलन की रात आयी----
धरा भी ऐसी लागे----
जैसे दुल्हन की मुंह दिखाई-----

देखो जी कैसा-कैसा,
इस मन का हाल होगा----
धरती बनेगी दुल्हन जब,
नया साल होगा-----

सौगात लेके जल्दी,,,,
आ जाना ऋतुओं के राजा,,,
भारतियों को भारत,,,,
दिखा जाना ऋतुओं के राजा----

बंशी भी मन बजेगी,,,
कोयलिया भी शहनाई लेगी----
बाग खिलने से पहले,
कलियाँ भी अंगड़ाई लेंगी------

जब आएगा वसंत--------

कविता रचने का दिनाँक
१७/१२/२०१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम🚩

मित्रों आज १जनवरी २०१९ का दिन है। देखा जाये तो हमारा इस नूतन वर्ष से सिर्फ गुलामी का सम्बन्ध है परंतु आज बुद्धिजीवी जिस भाषा में इस दिन का तिरस्कार कर रहे क्या वो भाषा यथोचित है।
सदियों तक हमपर यूरोपियों ने राज किया। आज इतिहास में हमें पढना पड़ता है कि भारत की खोज बास्को दिगामा ने की थी जैसे उससे पहले तो भारत था ही नहीं।
वो बास्को दिगामा जिसने कालीकट के महाराज को धोखे से मारकर वहां का डॉन बन बैठा और हमारे देश के समुद्री व्यापार को अपनी नजर लगा दी। तीन बार सोने से भरी अशर्फियों के जहाज भारत से पुर्तगाल ले गया तो उस बास्को दिगामा ने भारत में आकर सोना पैदा किया था क्या? जो यहाँ से भरकर ले गया लेकिन हमें इतिहास में तो उसकी महानता पढ़ायी जाती है ठीक उसी तरह जिस तरह अन्य विषयों पर गलत पढ़ाया जाता है।

जब झूठ को सच में परिवर्तित करके हमारी शिक्षा प्रणाली को बदल दिया गया और सदियों से हम वही पढ़ रहे हैं। हमारे अध्यापक, अध्यापिकाओं ने हमें  वही पढ़ाया जो किताबों में लिखा था। हमारे बाप दादाओ ने वही पढ़ा और अपना अस्तित्व ही भूल गए।
वर्ण व्यवस्था जाति-पांति की व्यवस्था में बदल जाने के कारण हमारी संस्कृति का ज्ञान भी बस कुछ लोंगो तक सीमित रह गया और नतीजतन हमारी संस्कृति किसी कोने में कराहने लगी।

मैं आर्या शिवकान्ति स्वयं बचपन में इस सच से अंजान थी की हमारा नया साल कब आता है १ जनवरी को ही नए साल की शुरुआत समझती थी। हमें यह नहीं पता था कि १ अप्रैल मूर्ख दिवस के रूप में मनाना दरअसल हमारी संस्कृति का अपमान है जो शुरुआत अंग्रेजों ने की थी।

बचपन में मैंने अपनी मां से यह जरूर सुना था कि हमारा पंचांग चैत्र माह से शुरू होता है लेकिन वो भी इस विषय पर ज्यादा कुछ न बता पाती थीं।
मेरे मन में बचपन की वो उथल-पुथल स्वध्ययन में बदली और मैंने समझने का प्रयास किया अपनी संस्कृति को।
आज मेरी बेटियों की उम्र बहुत कम है परन्तु मैं उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति मजबूत कर चुकी हूँ। अब वो किसी के भी बीच रहें, किसी समुदाय, मजहब, पंथ के लोंगो के बीच रहें परंतु वह अपनी संस्कृति नहीं भूलेंगी।

आज का मॉडर्न वर्ग पांच सितारा, सात सितारा होटल में जाकर ३१ दिसम्बर की विदाई रात के १२ बजते ही कुछ इस तरह करता है कि लाइट बंद होते ही कौन कहाँ है पता नही----------इससे ज्यादा लिखना असभ्यता हो जायेगी-----
परंतु उन भोले भाले लोंगो का क्या जिन्हें आज भी सिर्फ यह पता है कि १ जनवरी ही नया साल है।
और जो बुद्धिजीवी हैं वो अपने ज्ञान के दम्भ में ऐसे चूर हैं कि अपना फर्ज न निभाकर सिर्फ यह दिखाते हैं कि हम यह नया साल नहीं मानते------ लेकिन क्यों नहीं मानाना चाहिए यह तो जमीनी स्तर पर समझाने का प्रयास करें।

कुछ लोंगो तक ज्ञान का संकुचित रह जाना सदियों से हमें गुलामी में जकड़े है। आज सोसल मीडिया हमारे रोजमर्रा के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तो क्यों न अपने ज्ञान का दम्भ दिखाने के बजाय एक सार्थक लेख लोंगो तक पहुंचाए। सब नहीं तो कुछ लोग तो विचार करेंगे।

आज न जाने कितने संगठन और संस्थाएं बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। तो गांव-गांव घूमकर अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार करने का भी थोड़ा वक्त तो निकालना चाहिए।
हम अपनी विचारधारा चार लोंगो तक ले जायेंगे, चार लोग आठ लोंगो तक----------- शायद फिर से वो दिन आ जाये की यह भारतवर्ष अपनी ताकत को पहचानने लगे-----

ओउम्
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻

दिन-मंगलवार
दिनांक-०१/०१/२०१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)