Sunday, January 27, 2019

ओउम्
नमस्ते जी 🙏🏻
जय श्री राम 🚩

प्रस्तुत हैं मेरी कलम से हमारे कुछ निजी विचार हो सकता है आपको कडुवे लगें परंतु आप बुद्धिजीवी लोग इसका कारण समझने का प्रयाश जरूर करेंगे---- क्यों कि समय की मांग और जमीनी हकीकत साथ में लेकर नहीं चलेंगे तो रहा बचा भी सनातन धर्म कहीं रोता हुआ विदा न हो जाये----

*स्वामी दयानंद सरस्वती को लेकर हिन्दू समाज में भ्रम*

बहुत ही कम हिन्दू हैं जो स्वामी दयानन्द के बारे में ज्यादा कुछ जानते हैं। अन्यथा स्वामी दयानंद को मूर्ति पूजा विरोधी समझकर किनारा कर लेते हैं।
यह आग पाखंडियों की लगाई हुयी है जो सिर्फ अपना फायदा देखते हैं देश हित से उनका कोई लेना देना नहीं।
इसका जिम्मेदार आर्य समाज भी कम नहीं है जो अपना मुख्य उद्देश्य हिंदुओं तक नहीं पहुंचा पा रहा।
जिनके ज्यादातर संदेश हिंदुओं का मजाक उड़ाने वाले होते हैं। उनके तौर तरीकों का तिरस्कार करने वाले होते हैं, उंन्हें अपमानित करने वाले होते हैं।

बेसक स्वामी जी पाखंड विरोधी थे परंतु वो राम और कृष्ण का सम्मान उनसे कई गुना ज्यादा करते थे जितना जय श्री राम और जय श्री कृष्ण बोलने वाले करते हैं।
क्या यह बात हिंदुओं तक पहुंचाना हमारा फर्ज नहीं।

स्वामी जी राम, कृष्ण, हनुमान आदि का चित्र या मूर्ति रखने के विरोधी नहीं थे न ही इनके नाम पर मंदिर बनाने के विरोधी थे बल्कि इनके नाम पर जो पाखंड होता है जो कल्पनाएं की जाती हैं।
योगेश्वर, हनुमान आदि का जो चरित्र और कल्पनाएं दिखाकर बताकर समाज में  सनातन धर्म के इन महान आदर्शों का, इन महान आर्यों का, जिनकी महानताओं, आसाधारण योग्यताओं, असाधारण कार्यों के कारण हिन्दू धर्म के भगवान् हैं उनका जो चरित्र गन्दा किया गया है स्वामी जी उसके विरोधी थे।

मंदिर में हमारे ऋषि मुनियों की, राम, कृष्ण के चित्र हों। उनका सुंदर तरीके से राखरखाव हो, मंदिरों की प्रणाली गुरुकुल पद्धति में परवर्तित हो। वहां हर दिन हवन, यज्ञ हों और वो वैदिक शिक्षा का केंद्र हों।
राम, कृष्ण, हनुमान जैसे महान आदर्शो के चरित्र का सच्चा वर्णन हो- हर बच्चे को उसकी शिक्षा में मनीषियों, विदुषयों की कहानियां और उदाहरण बताये जाएँ, ऐसे चित्र क्षिक्षाकेंद्र (मंदिर) में बहुत ही सुरक्षा और सम्मान से रखे जाएँ और उन्हें हर कोई आकर गन्दा या दूषित न करे, उनके नाम पर पाखंड न करे------- हाँ यही तो सपना था उनका----- लेकिन बदकिस्मती देखो आज एक तरफ आर्य समाज सिर्फ मूर्तिपूजक विरोधी की छवि बनाये बैठा है और हिन्दू समाज उंन्हें अपना दुश्मन माने बैठा है------- दोनों ही तरह से सनातनधर्म रो रहा है।
हिन्दुओं की अज्ञानता चरम सीमा पर पहुँच चुकी है।

राम, कृष्ण की पूजास्थल  आज मांसाहारी, विधर्मी, देशद्रोही के मंदिर में परिवर्तित होते जा रही है-------आज लोग अपने राम,कृष्ण को भूलकर न जाने किस किस भगवान को पूजने लगे हैं।
मूर्ति पूजा तो थमी नहीं हमारे आदर्श श्री राम और योगेश्वर का चरित्र पूरी तरह मिटाते हुए सही मायने में तो मूर्ति पूजा अब शुरू हुयी है जो नए नए भगवन पैदा हुए हैं जिन्होंने न तो लंकेश को मारकर रामराज स्थापित किया न ही महाभारत में कौरव सेना को परास्त किया फिर भी न जाने ये पीर्, फ़कीर, सर पर चाँद तारा वाले हिंदुओं के भगवान क्यों हैं----- आज ये भिखमंगे भगवान् हिंदुओ की अज्ञानता पर ठहाके लगा रहे हैं---------

और इस समाज के बुद्धिजीवी चिल्ला रहे हम ज्ञानी हैं आओ डिबेट करो------
आप भूल गए जब बारिश का मौशम आता है तब कोयल की नहीं मेंढकों की आवाज सुनाई देती है------

कोयल को सोंचना चाहिए वसंत का उपयोग कैसे करें------
अगर वसंत निकल गया तो मेढ़क जुबान न खोलने देंगे------

*मैं न तो बहुत ज्ञानी हूँ*
*न ही शास्तार्थ करने की योग्यता है----*
*लेकिन मेरी कलम में,*
*हकीकत चरितार्थ करने की योग्यता है----- ✍🏻*

 *ओउम्*

मेरे विचार मेरी कलम से----

दिनाँक-२८/०१/१९
दिन-सोमवार
निर्देश- एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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