Sunday, January 6, 2019

कितना जरुरी है कथनी और करनी में समानता होना-------

मित्रों आज के परिवेश में हम देखते हैं लोग वैसे बहुत कम होते हैं जैसा वो स्वयं के बारे में बताते हैं।
झूठी शान ए शौकत, बड़ी-बड़ी बातें----- हमेशा दूसरों में कमियाँ निकालना------
यहां तक की उनकी सोंच होती है कि हम दूसरों को नीचा दिखाकर स्वयं ऊपर उठ जायेंगे----नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। आपका स्वाभाव जैसा होता है स्वतः आपके करीब धीरे-धीरे उसी मानसिक स्थिति के लोग आ जाते हैं और कोई आपसे विपरीत मानसिक स्थति का जुड़ा तो धीरे-धीरे अलग हो जाता है।
यदि आप ये सोंचते हैं कि ओहदा और रुतबे से आपको लोग चाहते है आपकी बड़ी इज्जत है तो गलत है।
आपके ओहदे और रुतबे से लोग आपकी सिर्फ चाटुकारिता करेंगे और आज के समय में चाटुकारिता ही सर्वस्य नजर आती है।
लेकिन यदि आपकी कथनी और करनी समान है तो आप हमेशा निडरता से जियेंगे एवं आपके जीवन में कई लोग ऐसे सामिल होंन्गे जो आपको सच में बहुत प्रेम करते हैं आपका सम्मान करते हैं।
 उपदेशक बनना आसान है उसे जीवन में धारण करना और उस मार्ग पर चलना बेहद कठिन।
इसीलिए किसी के विषय में कोई धारणा बनाने से पहले उसको समझें, और उपदेश देने से पहले स्वयं में धारण करें।
यदि आप में सच स्वीकार करने और धारण करने की क्षमता नहीं तो दूसरों की निंदा या गलतियां निकाल कर आप दूसरों की नजरों में सम्मान नही पा सकते हाँ कुछ चाटुकार लोग जरूर पा सकते हो जिसे आप झूठी हेकड़ी दिखाते हुए लोंगों बोल सकते हो की हमारे तो बड़े बड़े दोस्त हैं---- लेकिन असल में वो बड़े नहीं नीयत में आपसे भी ज्यादा खोटे हैं-----------लोंगों से नजरें मिलाकर बात करने के लिए पहले स्वयं को आइना बनाना पड़ता है----

एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित के साथ----
मेरे विचार मेरी कलम से-----✍🏻

दिन-सोमवार
दिनाँक ०७/०१/१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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