सभी श्रेष्ठजनों को मेरी नमस्ते🙏🏻
जय श्री राम 🚩
मेरा आज का लेख
*जरुरी है स्त्रियों का थोड़ा बतमीज होना*
मैं उन स्त्रियों की बात नहीं कर रही हूँ जो एक बित्ता बदन पर और एक बित्ता कमर पर कपडा लपेट कर सड़क पर मॉडर्न होने का नाटक करती घूमती हैं क्यों कि उनके लिए तो मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है।
मैं बात कर रही हूँ उन स्त्रियों की जो हर बात में सर झुकाकर क़ुरबानी देती हैं, सिकुड़ी सी, छुईमुई सी, रोती, गिड़गिडाती हुयी, और फिर अपनी बेटी को भी वही बना देती हैं। जोर से मत बोलो, किसी के मुंह न लगो, हमेशा सर झुकाकर चलो ताकि तुम्हरा यूँ ही बलात्कार होता रहे और सदियों तक------ ये सब सिखाना इतना महत्वपूर्ण है?
आज इसी कारण न जाने कितनी स्त्रियों की जिंदगी बर्बाद हो गयी।
बेटियों को सबकुछ सिखाओ लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना मत सिखाओ।
जिम्मेदारी, प्रेम, त्याग के साथ स्त्री को याद रखना सिखाओ कि उसका भी स्वाभिमान है वह सिर्फ पुरुष के बिस्तर की शोभा नही उसके पैरों की जूती नहीं।
वो पुरुष जो समझते हैं स्त्री सिर्फ सम्भोग की वस्तु है, पुरुष की जागीर है, जब चाहे उसको मारे, पीटे, रौदें ऐसे पुरुषों को जितनी जल्दी हो सके मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।
यदि ख़ामोशी से सब सहा तो परिणाम घातक होते हैं और जो माँ बाप कहते हैं बेटी की डोली मायके से जाती है और ससुराल से अर्थी निकलती है उन्हें मां बाप कहलाने का हक नहीं। यह स्थति तो घर के अंदर की है।
परंतु जब एक स्त्री किसी कारण बस अकेले रहती है जीना चाहती है। तो हमेशा उसका संस्कारी और मृदुभाषी होकर रहना संभव नहीं।
यह समाज भोली भाली स्त्रियों को जीने नहीं देता हर जगह गिद्ध बैठे। रोज रोज नए नए दांव खेलते हैं। तब जरुरी हो जाता है एक स्त्री का बतमीज होना क्यों कि जब एक स्त्री सर उठाकर गिद्धों को जवाब देने उतर आती है तो वह सर पर पैर रखकर भागते हैं क्यों की उंन्हें तो मसलने के लिए छुई मुई आंसू बहाने वाली चाहिए जो अपनी आवाज न उठा सके।
अक्सर अपने से अनुभवी सज्जन और माताएं बहने कहने लगती हैं छोडो क्यों किसी के मुंह लगना----छोड़ना ही तो नहीं है क्यों छोड़ें ताकि वो किसी और भोली भाली स्त्री को अपना निशाना बनाये ताकि उसकी हिम्मत बढ़ती जाये वो फिर किसी और स्त्री के सामने उसके नाक, कान, आँखें, ओंठ देखकर वासना पूर्ति के लिए अपने हर पैंतरे आजमाएं----- क्यों हमारी शक्ल सूरत ईश्वर ने इसीलिए बनायी है क्या?------- क्यों छोड़ें?और कब तक छोड़ें?----हमारी संस्कृति में स्त्री कायर कब थी------?
स्त्री कायरता से बाहर निकलेगी तो उसका भला चाहने वाले स्वतः उसके साथ जुड़ते जायेंगे। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो स्त्री का भला चाहता है उसका स्वाभिमान कभी कुचलना नही चाहेगा और न ही स्त्री को सिर्फ वासना की वस्तु समझेगा------
*ओउम्*
जय आर्यवर्त
जय भारत
*मेरे विचार मेरी कलम से--✍🏻*
निर्देश-कॉपी पेस्ट वर्जित
दिन-बुधवार
दिनाँक-२३/०१/१९
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)
जय श्री राम 🚩
मेरा आज का लेख
*जरुरी है स्त्रियों का थोड़ा बतमीज होना*
मैं उन स्त्रियों की बात नहीं कर रही हूँ जो एक बित्ता बदन पर और एक बित्ता कमर पर कपडा लपेट कर सड़क पर मॉडर्न होने का नाटक करती घूमती हैं क्यों कि उनके लिए तो मेरे पास कोई शब्द ही नहीं है।
मैं बात कर रही हूँ उन स्त्रियों की जो हर बात में सर झुकाकर क़ुरबानी देती हैं, सिकुड़ी सी, छुईमुई सी, रोती, गिड़गिडाती हुयी, और फिर अपनी बेटी को भी वही बना देती हैं। जोर से मत बोलो, किसी के मुंह न लगो, हमेशा सर झुकाकर चलो ताकि तुम्हरा यूँ ही बलात्कार होता रहे और सदियों तक------ ये सब सिखाना इतना महत्वपूर्ण है?
आज इसी कारण न जाने कितनी स्त्रियों की जिंदगी बर्बाद हो गयी।
बेटियों को सबकुछ सिखाओ लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना मत सिखाओ।
जिम्मेदारी, प्रेम, त्याग के साथ स्त्री को याद रखना सिखाओ कि उसका भी स्वाभिमान है वह सिर्फ पुरुष के बिस्तर की शोभा नही उसके पैरों की जूती नहीं।
वो पुरुष जो समझते हैं स्त्री सिर्फ सम्भोग की वस्तु है, पुरुष की जागीर है, जब चाहे उसको मारे, पीटे, रौदें ऐसे पुरुषों को जितनी जल्दी हो सके मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए।
यदि ख़ामोशी से सब सहा तो परिणाम घातक होते हैं और जो माँ बाप कहते हैं बेटी की डोली मायके से जाती है और ससुराल से अर्थी निकलती है उन्हें मां बाप कहलाने का हक नहीं। यह स्थति तो घर के अंदर की है।
परंतु जब एक स्त्री किसी कारण बस अकेले रहती है जीना चाहती है। तो हमेशा उसका संस्कारी और मृदुभाषी होकर रहना संभव नहीं।
यह समाज भोली भाली स्त्रियों को जीने नहीं देता हर जगह गिद्ध बैठे। रोज रोज नए नए दांव खेलते हैं। तब जरुरी हो जाता है एक स्त्री का बतमीज होना क्यों कि जब एक स्त्री सर उठाकर गिद्धों को जवाब देने उतर आती है तो वह सर पर पैर रखकर भागते हैं क्यों की उंन्हें तो मसलने के लिए छुई मुई आंसू बहाने वाली चाहिए जो अपनी आवाज न उठा सके।
अक्सर अपने से अनुभवी सज्जन और माताएं बहने कहने लगती हैं छोडो क्यों किसी के मुंह लगना----छोड़ना ही तो नहीं है क्यों छोड़ें ताकि वो किसी और भोली भाली स्त्री को अपना निशाना बनाये ताकि उसकी हिम्मत बढ़ती जाये वो फिर किसी और स्त्री के सामने उसके नाक, कान, आँखें, ओंठ देखकर वासना पूर्ति के लिए अपने हर पैंतरे आजमाएं----- क्यों हमारी शक्ल सूरत ईश्वर ने इसीलिए बनायी है क्या?------- क्यों छोड़ें?और कब तक छोड़ें?----हमारी संस्कृति में स्त्री कायर कब थी------?
स्त्री कायरता से बाहर निकलेगी तो उसका भला चाहने वाले स्वतः उसके साथ जुड़ते जायेंगे। कोई भी ऐसा व्यक्ति जो स्त्री का भला चाहता है उसका स्वाभिमान कभी कुचलना नही चाहेगा और न ही स्त्री को सिर्फ वासना की वस्तु समझेगा------
*ओउम्*
जय आर्यवर्त
जय भारत
*मेरे विचार मेरी कलम से--✍🏻*
निर्देश-कॉपी पेस्ट वर्जित
दिन-बुधवार
दिनाँक-२३/०१/१९
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)
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