ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम🚩
मित्रों आज १जनवरी २०१९ का दिन है। देखा जाये तो हमारा इस नूतन वर्ष से सिर्फ गुलामी का सम्बन्ध है परंतु आज बुद्धिजीवी जिस भाषा में इस दिन का तिरस्कार कर रहे क्या वो भाषा यथोचित है।
सदियों तक हमपर यूरोपियों ने राज किया। आज इतिहास में हमें पढना पड़ता है कि भारत की खोज बास्को दिगामा ने की थी जैसे उससे पहले तो भारत था ही नहीं।
वो बास्को दिगामा जिसने कालीकट के महाराज को धोखे से मारकर वहां का डॉन बन बैठा और हमारे देश के समुद्री व्यापार को अपनी नजर लगा दी। तीन बार सोने से भरी अशर्फियों के जहाज भारत से पुर्तगाल ले गया तो उस बास्को दिगामा ने भारत में आकर सोना पैदा किया था क्या? जो यहाँ से भरकर ले गया लेकिन हमें इतिहास में तो उसकी महानता पढ़ायी जाती है ठीक उसी तरह जिस तरह अन्य विषयों पर गलत पढ़ाया जाता है।
जब झूठ को सच में परिवर्तित करके हमारी शिक्षा प्रणाली को बदल दिया गया और सदियों से हम वही पढ़ रहे हैं। हमारे अध्यापक, अध्यापिकाओं ने हमें वही पढ़ाया जो किताबों में लिखा था। हमारे बाप दादाओ ने वही पढ़ा और अपना अस्तित्व ही भूल गए।
वर्ण व्यवस्था जाति-पांति की व्यवस्था में बदल जाने के कारण हमारी संस्कृति का ज्ञान भी बस कुछ लोंगो तक सीमित रह गया और नतीजतन हमारी संस्कृति किसी कोने में कराहने लगी।
मैं आर्या शिवकान्ति स्वयं बचपन में इस सच से अंजान थी की हमारा नया साल कब आता है १ जनवरी को ही नए साल की शुरुआत समझती थी। हमें यह नहीं पता था कि १ अप्रैल मूर्ख दिवस के रूप में मनाना दरअसल हमारी संस्कृति का अपमान है जो शुरुआत अंग्रेजों ने की थी।
बचपन में मैंने अपनी मां से यह जरूर सुना था कि हमारा पंचांग चैत्र माह से शुरू होता है लेकिन वो भी इस विषय पर ज्यादा कुछ न बता पाती थीं।
मेरे मन में बचपन की वो उथल-पुथल स्वध्ययन में बदली और मैंने समझने का प्रयास किया अपनी संस्कृति को।
आज मेरी बेटियों की उम्र बहुत कम है परन्तु मैं उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति मजबूत कर चुकी हूँ। अब वो किसी के भी बीच रहें, किसी समुदाय, मजहब, पंथ के लोंगो के बीच रहें परंतु वह अपनी संस्कृति नहीं भूलेंगी।
आज का मॉडर्न वर्ग पांच सितारा, सात सितारा होटल में जाकर ३१ दिसम्बर की विदाई रात के १२ बजते ही कुछ इस तरह करता है कि लाइट बंद होते ही कौन कहाँ है पता नही----------इससे ज्यादा लिखना असभ्यता हो जायेगी-----
परंतु उन भोले भाले लोंगो का क्या जिन्हें आज भी सिर्फ यह पता है कि १ जनवरी ही नया साल है।
और जो बुद्धिजीवी हैं वो अपने ज्ञान के दम्भ में ऐसे चूर हैं कि अपना फर्ज न निभाकर सिर्फ यह दिखाते हैं कि हम यह नया साल नहीं मानते------ लेकिन क्यों नहीं मानाना चाहिए यह तो जमीनी स्तर पर समझाने का प्रयास करें।
कुछ लोंगो तक ज्ञान का संकुचित रह जाना सदियों से हमें गुलामी में जकड़े है। आज सोसल मीडिया हमारे रोजमर्रा के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तो क्यों न अपने ज्ञान का दम्भ दिखाने के बजाय एक सार्थक लेख लोंगो तक पहुंचाए। सब नहीं तो कुछ लोग तो विचार करेंगे।
आज न जाने कितने संगठन और संस्थाएं बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। तो गांव-गांव घूमकर अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार करने का भी थोड़ा वक्त तो निकालना चाहिए।
हम अपनी विचारधारा चार लोंगो तक ले जायेंगे, चार लोग आठ लोंगो तक----------- शायद फिर से वो दिन आ जाये की यह भारतवर्ष अपनी ताकत को पहचानने लगे-----
ओउम्
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
दिन-मंगलवार
दिनांक-०१/०१/२०१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
नमस्ते जी
जय श्री राम🚩
मित्रों आज १जनवरी २०१९ का दिन है। देखा जाये तो हमारा इस नूतन वर्ष से सिर्फ गुलामी का सम्बन्ध है परंतु आज बुद्धिजीवी जिस भाषा में इस दिन का तिरस्कार कर रहे क्या वो भाषा यथोचित है।
सदियों तक हमपर यूरोपियों ने राज किया। आज इतिहास में हमें पढना पड़ता है कि भारत की खोज बास्को दिगामा ने की थी जैसे उससे पहले तो भारत था ही नहीं।
वो बास्को दिगामा जिसने कालीकट के महाराज को धोखे से मारकर वहां का डॉन बन बैठा और हमारे देश के समुद्री व्यापार को अपनी नजर लगा दी। तीन बार सोने से भरी अशर्फियों के जहाज भारत से पुर्तगाल ले गया तो उस बास्को दिगामा ने भारत में आकर सोना पैदा किया था क्या? जो यहाँ से भरकर ले गया लेकिन हमें इतिहास में तो उसकी महानता पढ़ायी जाती है ठीक उसी तरह जिस तरह अन्य विषयों पर गलत पढ़ाया जाता है।
जब झूठ को सच में परिवर्तित करके हमारी शिक्षा प्रणाली को बदल दिया गया और सदियों से हम वही पढ़ रहे हैं। हमारे अध्यापक, अध्यापिकाओं ने हमें वही पढ़ाया जो किताबों में लिखा था। हमारे बाप दादाओ ने वही पढ़ा और अपना अस्तित्व ही भूल गए।
वर्ण व्यवस्था जाति-पांति की व्यवस्था में बदल जाने के कारण हमारी संस्कृति का ज्ञान भी बस कुछ लोंगो तक सीमित रह गया और नतीजतन हमारी संस्कृति किसी कोने में कराहने लगी।
मैं आर्या शिवकान्ति स्वयं बचपन में इस सच से अंजान थी की हमारा नया साल कब आता है १ जनवरी को ही नए साल की शुरुआत समझती थी। हमें यह नहीं पता था कि १ अप्रैल मूर्ख दिवस के रूप में मनाना दरअसल हमारी संस्कृति का अपमान है जो शुरुआत अंग्रेजों ने की थी।
बचपन में मैंने अपनी मां से यह जरूर सुना था कि हमारा पंचांग चैत्र माह से शुरू होता है लेकिन वो भी इस विषय पर ज्यादा कुछ न बता पाती थीं।
मेरे मन में बचपन की वो उथल-पुथल स्वध्ययन में बदली और मैंने समझने का प्रयास किया अपनी संस्कृति को।
आज मेरी बेटियों की उम्र बहुत कम है परन्तु मैं उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति मजबूत कर चुकी हूँ। अब वो किसी के भी बीच रहें, किसी समुदाय, मजहब, पंथ के लोंगो के बीच रहें परंतु वह अपनी संस्कृति नहीं भूलेंगी।
आज का मॉडर्न वर्ग पांच सितारा, सात सितारा होटल में जाकर ३१ दिसम्बर की विदाई रात के १२ बजते ही कुछ इस तरह करता है कि लाइट बंद होते ही कौन कहाँ है पता नही----------इससे ज्यादा लिखना असभ्यता हो जायेगी-----
परंतु उन भोले भाले लोंगो का क्या जिन्हें आज भी सिर्फ यह पता है कि १ जनवरी ही नया साल है।
और जो बुद्धिजीवी हैं वो अपने ज्ञान के दम्भ में ऐसे चूर हैं कि अपना फर्ज न निभाकर सिर्फ यह दिखाते हैं कि हम यह नया साल नहीं मानते------ लेकिन क्यों नहीं मानाना चाहिए यह तो जमीनी स्तर पर समझाने का प्रयास करें।
कुछ लोंगो तक ज्ञान का संकुचित रह जाना सदियों से हमें गुलामी में जकड़े है। आज सोसल मीडिया हमारे रोजमर्रा के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। तो क्यों न अपने ज्ञान का दम्भ दिखाने के बजाय एक सार्थक लेख लोंगो तक पहुंचाए। सब नहीं तो कुछ लोग तो विचार करेंगे।
आज न जाने कितने संगठन और संस्थाएं बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। तो गांव-गांव घूमकर अपनी संस्कृति का प्रचार प्रसार करने का भी थोड़ा वक्त तो निकालना चाहिए।
हम अपनी विचारधारा चार लोंगो तक ले जायेंगे, चार लोग आठ लोंगो तक----------- शायद फिर से वो दिन आ जाये की यह भारतवर्ष अपनी ताकत को पहचानने लगे-----
ओउम्
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
दिन-मंगलवार
दिनांक-०१/०१/२०१९
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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