ओउम्
नमस्ते जी 🙏🏻
*एक संदेश आर्य समाज के नाम*
आर्य समाज के लिए अपने विचार बहुत ही हिम्मत करके लिखने जा रही हूँ।
ज्ञान, विज्ञान, तर्क, प्रमाण, आत्मचिंतन, स्वध्ययन, योग, अध्यात्म, वैदिक चिंतन-------- हर बात में पारंगत *आर्य समाज*------ आर्यवर्त की असली झलक अपने आप में आज भी समेटे हुए जिसमें राष्ट्र कल्याण एवं राष्ट्रभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी है।
जिसे आज भी शास्त्रार्थ में कोई नहीं पराजित कर सकता।
हे आर्य समाज मैं अज्ञानी हूँ फिर भी व्यवहारिक जीवन के कुछ विचार लिख रही हूँ।
आप इतने विद्वान होकर भी अपने देश में ही क्यों अलग-थलग हो। इस राष्ट्र कल्याण के लिए आप आगे क्यों नही आते।
आपकी छवि सिर्फ मूर्ति पूजा विरोधी तक सीमित क्यों है?
आपकी इस कमजोरी का फायदा उठाकर सच में जो पाखंडी हैं वो आपके खिलाफ समाज में जहर घोलते हैं।
समय और परिवेश को देखते हुए आप अपनी बात कहने का तरीका क्यों नहीं बदलते?
देखो ना मिटती जा रही हमारी संस्कृति। यदि उस वक्त स्वामी जी की बात मानी गयी होती तो आज जम्मूकश्मीर बिलखता न होता।
लेकिन तब स्वामी जी ने बिगुल बजाया था कहीं सफलता कहीं विफलता होनी ही थी। लेकिन आज उस बिगुल को बजे सैंकड़ो वर्ष बीत गए। फिर भी मिट गयी हमारी संस्कृति केरल और बंगाल में और भी कई राज्य निशाने पर हैं।
सिर्फ आप बचा सकते हो अपनी संस्कृति को वो चाहे सरदार भगत सिंह के रूप में हो या स्वामी रामदेव के रूप में।
लेकिन आपने अपनी छवि सीमित कर ली।
इंसान के अंदर जब ज्ञान का बीज पनपता है तब यथार्थ जानने का और फिर तर्क का बीज पनपता है।
परंतु आप सदियों से चली आ रही अज्ञानता को परत दर परत न हटा कर सीधे खंजर घोपकर परत हटाने लगते हो नतीजतन अज्ञानता या तो डर कर भागती है या आपसे चिढ़कर------
*आज विदेशी आपके कायल हैं।*
*लेकिन आप अपनों से ही घायल हैं----*
और इसका फायदा पाखंडी और स्वार्थी लोग उठाते हैं------
अंत में इतना ही कहूँगी------
लट्ठ मत मारो भाषा का----
दीप जगाओ आसा का-----
न करो किनारा अपनों से---
कुछ जतन करो निराशा का----- 🙏🏻
क्षमा सहित----मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻
दिन गुरुवार
दिनाँक-१७/०१/१९
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)
नमस्ते जी 🙏🏻
*एक संदेश आर्य समाज के नाम*
आर्य समाज के लिए अपने विचार बहुत ही हिम्मत करके लिखने जा रही हूँ।
ज्ञान, विज्ञान, तर्क, प्रमाण, आत्मचिंतन, स्वध्ययन, योग, अध्यात्म, वैदिक चिंतन-------- हर बात में पारंगत *आर्य समाज*------ आर्यवर्त की असली झलक अपने आप में आज भी समेटे हुए जिसमें राष्ट्र कल्याण एवं राष्ट्रभक्ति की भावना कूट कूट कर भरी है।
जिसे आज भी शास्त्रार्थ में कोई नहीं पराजित कर सकता।
हे आर्य समाज मैं अज्ञानी हूँ फिर भी व्यवहारिक जीवन के कुछ विचार लिख रही हूँ।
आप इतने विद्वान होकर भी अपने देश में ही क्यों अलग-थलग हो। इस राष्ट्र कल्याण के लिए आप आगे क्यों नही आते।
आपकी छवि सिर्फ मूर्ति पूजा विरोधी तक सीमित क्यों है?
आपकी इस कमजोरी का फायदा उठाकर सच में जो पाखंडी हैं वो आपके खिलाफ समाज में जहर घोलते हैं।
समय और परिवेश को देखते हुए आप अपनी बात कहने का तरीका क्यों नहीं बदलते?
देखो ना मिटती जा रही हमारी संस्कृति। यदि उस वक्त स्वामी जी की बात मानी गयी होती तो आज जम्मूकश्मीर बिलखता न होता।
लेकिन तब स्वामी जी ने बिगुल बजाया था कहीं सफलता कहीं विफलता होनी ही थी। लेकिन आज उस बिगुल को बजे सैंकड़ो वर्ष बीत गए। फिर भी मिट गयी हमारी संस्कृति केरल और बंगाल में और भी कई राज्य निशाने पर हैं।
सिर्फ आप बचा सकते हो अपनी संस्कृति को वो चाहे सरदार भगत सिंह के रूप में हो या स्वामी रामदेव के रूप में।
लेकिन आपने अपनी छवि सीमित कर ली।
इंसान के अंदर जब ज्ञान का बीज पनपता है तब यथार्थ जानने का और फिर तर्क का बीज पनपता है।
परंतु आप सदियों से चली आ रही अज्ञानता को परत दर परत न हटा कर सीधे खंजर घोपकर परत हटाने लगते हो नतीजतन अज्ञानता या तो डर कर भागती है या आपसे चिढ़कर------
*आज विदेशी आपके कायल हैं।*
*लेकिन आप अपनों से ही घायल हैं----*
और इसका फायदा पाखंडी और स्वार्थी लोग उठाते हैं------
अंत में इतना ही कहूँगी------
लट्ठ मत मारो भाषा का----
दीप जगाओ आसा का-----
न करो किनारा अपनों से---
कुछ जतन करो निराशा का----- 🙏🏻
क्षमा सहित----मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻
दिन गुरुवार
दिनाँक-१७/०१/१९
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)
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