Saturday, December 29, 2018

हिंदुओं के भगवान, भूगोल और विज्ञान

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩

आज हमारे आर्टिकल का शीर्षक है-----

*हिंदुओं के भगवान, भूगोल और विज्ञान*

मैं इस लेख में सिर्फ अपने देश और अपने कुछ विद्वान ऋषियों, मनीषियों की बात करुँगी।

मित्रों अंग्रेजों द्वारा चलाई गई मैकाले शिक्षा प्रणाली ने हमारी तर्क शक्ति, विज्ञान शक्ति सब ध्वस्त कर दी। हम अपनी संस्कृति से विमुक्त होते जा रहे अपने बच्चों को सिर्फ एक गुलाम मानसिकता का बनाते जा रहे।
आज विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की करने वाले देश अपनी भाषा बोलते हैं, अपने देश के प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं लेकिन हम उनके उतरन भी ब्रांडेड समझकर शेखी बघारते हैं क्यों कि हम सदियों तक गुलाम रहे और उस गुलामी से बाहर नहीं निकल पा रहे।
अब मैं बात करुँगी इस गुलामी की मानसिकता से पहले क्या था हमारा देश?
बादशाह था विज्ञान का, तर्क का, आध्यात्म का, आयुर्वेद का और न जाने किस-किस क्षेत्र में------

जब दुनिया को खड़े होना न आता था तब यह भारतवर्ष दौड़ रहा था विज्ञान और भूगोल के क्षेत्र में------ जब दुनिया ने चलना सीखा तो डाका डाल दिया हमारी पवित्र भूमि पर------ कभी इस देश ने, कभी उस देश ने-----
इस कदर डाका डाला कि अब तो हमें आदत हो गयी जब तक डाका न पड़े चैन नहीं आता------

हमारा देश जिस देश में कहा जाता है भगवान के नाम पर पाखंड है। हाँ जी
क्यों की हम उन भगवानों को समझने का प्रयास न तो करते हैं न ही अपने बच्चों को कराते हैं।

हम बच्चों को यह नहीं सिखाते की परमपिता परमात्मा तो सिर्फ एक है जो सर्वशक्तिमान है और जो ये अलग अलग भगवान हैं वो तो दरसल हमारी अज्ञानता है हमने उन भगवानों के कार्यों को ही नही समझा। उनका सम्मान क्यों करना चाहिए क्यों हमारे पूर्वजों ने उन्हें हमारे दैनिक जीवन से जोड़ा होगा?

मैं अपने तर्क द्वारा एक झलक दिखाना चाहूँगी भगवान, भूगोल और विज्ञान की------

आज भी कई मंदिर ऐसे मिल जायेंगे जहां नौ ग्रहों की पूजा होती है------
ये नौ गृह क्या हैं------
हमारे महान वैज्ञानिक ऋषि आर्य भट्ट की खोज जिन्होंने हजारों वर्ष वर्ष पूर्व भूगोल शास्त्र पर विजय पाई थी---- मतलब उन्होंने टेलिस्कोप की खोज भी की होगी-------- उन्होंने सूर्य और पृथ्वी की दूरी हजारों वर्ष पूर्व जो निर्धारित की थी आज भी कोई नहुँ झुठला पाया हम आज भी वही दूरी पढ़ रहे परंतु किसी और के नाम से। हमने अपने पूर्वजों से सुना और कई बार पढ़ा भी की हमारे मनीषियों ने २७ ग्रहों को खोजने में सफलता प्राप्त कर ली थी। आज तक कोई भी देश नौ ग्रह से ज्यादा नही खोज पाया।

आज टी वी धारावाहिकों में हमारी विज्ञान को अजीब सा रूप दे दिया गया------- गुरु, मंगल शुक्र, शनि, यम------------ सभी को जादुई देवताओं के रूप में पेश किया जाता है जो अकल्पनीय लगता है------

महान ब्रह्मचारी, बलशाली, राजनीतिज्ञ, सर्वगुणी महान वैज्ञानिक बजरंग बली को सूर्य को निगलते हुए दिखा दिया सूर्य जो पृथ्वी से कई गुना बड़ा है कोई कैसे निगल सकता है हाँ निगल सकता है एक वैज्ञानिक?
और बजरंगबली एक वैज्ञानिक थे।
आज भी आंचलिक भाषाओँ में कहते हैं वो पढाई में या अमुख विषय में इतना प्रखर है कि उसे निगल गया, गटक गया, घोलकर पी गया------बगैरह----
तो यहाँ पर विषय यह बनता है कि सूर्य का तापमान बहुत ज्यादा होने के कारण उस पर शोध अधूरे रह जाते हैं और हो सकता है हमारे महान वैज्ञानिक ने सूर्य पर कोई अकल्पनीय रिसर्च की हो जिस्की परिवर्तित भाषा सूर्य को निगलना हो गया-------

इस तरह तो बहुत लंबी कतार है हमारे मनीषियों की और हो सकता है बुद्धिजीवी मुझे पागल समझें------

इस लिए मैं अपने आर्यवर्त के कुछ हजार साल पूर्व के राजाओं और उनके ज्ञान विज्ञान का उदाहरण देना चाहूँगी------
उनमें से एक हैं महान वैज्ञानिक महाराजा विक्रमादित्य आज भी उनकी वेदशाला दिल्ली में स्थति है जिसे विष्णुस्थम्ब के नाम से जाना जाता था। जिसे मुगलों ने तोड़ फोड़कर कुतुबमीनार का नाम दे दिया------ महाराज विक्रमादित्य का सिंघासन किस सिस्टम से बना था कि उनके अलावा कोई नहीं बैठ सकता था ३२ बोलने वाले रोबोट जो कोडवर्ड में बात करते थे।
और बाद में वो सिंघासन कोई नही पा सका-------महाराज कितने महान वैज्ञानिक थे हमारे इतिहास से गायब कर दिया गया------ उनके सहकर्मियों को मार दिया गया------

एक और भी वैज्ञानिक हुए महाराज हर्ष वर्धन जिन्होंने दुनिया को सबसे पहले बताया घर पर पानी से बर्फ कैसे जमती है------हाँ जी जिन देशों में कुदरती बर्फ है उंन्हें भी न पता था  बर्फ कैसे जमाते हैं।
न जाने कितने लोहे के औजार हथियारों का निर्माण किया महाराज हर्षवर्धन ने---------लेकिन इतिहास से उनकी विज्ञान भी गायब-------
दुनिया को रौंदने वाला सिकंदर आचार्य चाणक्य के सामने न टिक सका लेकिन वो महान आचार्य आज चुटकुलों का पात्र है------ देश पर मौर्य साम्राज्य स्थापित करने वाला देश की बिगड़ी हुयी अर्थ व्यवस्था को संभाल उसे स्वर्ण युग बनाने वाले आचार्य की नीतियों को आज हेय दृष्टि दे दी गयी।

या तो इतिहास से गायब कर दो या फिर स्वरूप बिगाड़ दो।
यदि कुछ धर्म के नाम पर बचाकर रखा तो उसे ऐसा मोड़ दे दिया की हमारे पूर्वज हँसी का पात्र बन गए--------

मैंने कुछ दिन पहले एक आर्टीकल लिखा था *नियोग कोई व्यभिचार नहीं*

लेकिन नियोग व्यवस्था से पांडव जैसे महान वीरों को पैदा करने वाली महान विदुषी स्त्रियाँ जो अपने युग की वैज्ञानिक थी उन्हें आज मजाक का पात्र बनाया जा रहा लेकिन आज पैदा हुआ अमेरिकन विज्ञान आदमी से भी बच्चा पैदा कर दे तो वाह वाह------

पता नहीं हम कभी आजाद भी होंगे या पूर्णतयः विलुप्त हो जायेंगे-------पता नहीं भटके हुए कभी घर वापस होंन्गे या बचाखुचा भी बेंच देंगे बनावटी आधुनिकता के नाम पर-----

मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
दिन-रविवार
दिनांक- ३०/१२/१८
निर्देश-कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Friday, December 28, 2018

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩

मित्रों  हमारे लेख और रचनाओं को पढ़कर कभी सज्जन बहुत भावुक हो जाते हैं या फिर कुछ लोग हमारे जीवन सम्बंधित पहलुयों को जानने के लिए बेचैन हो उठते हैं।
कुछ ऐसे भी हैं मुझे सलाह देने लगते हैं जीना सीखो, खुश रहो, एक बार जिंदगी मिलती है बगैरह--------- मुझे बड़ा मुश्किल लगने लगता है सभी को उत्तर देना क्यों की समयाभाव होता है।

मैं इतना ही कहना चाहूँगी स्वयं को पढ़ना अपने जीवन का सबसे मुश्किल कार्य है और जिसने स्वयं को पढ़ना सीख लिया उसकी बेचैनियां स्वत: ख़त्म हो जाती हैं।

आप लेख और रचनाएँ पढ़कर उसमें अपने लिए शब्द तलाशते हैं कि मेरे लिए या मेरे मन को अच्छा लगने वाला इसमें क्या है और यह मानव स्वभाव भी है परंतु जिस दिन से आप यह सोंचकर पढ़ने लगते हैं कि ये उस लेखक या लेखिका के स्वतंत्र विचार हैं अब आपको यह देखना है कि इसमें जीवन की यथार्थता कितनी है तब आप उस लेखक या लेखिका के बारे में नहीं बल्कि जीवन दर्शन के बारे में सोंचते हैं।

किसी के विचारों से स्वयं को बांधकर आप अपने व्यक्तित्व का का विकास नहीं कर सकते बल्कि  विचारों में कितनी सत्यता है और ये विचार पठनीय क्यों हैं इस मुद्दे पर विश्लेषण करके आप अपने मस्तिष्क को स्वयं एक नई दिशा दे सकते हैं और जब ऐसा होगा तो आप अपने मन मस्तिष्क को स्वतंत्र महसूश करेंगे।

कोई भी ऐसा लेखक या लेखिका जो स्वतंत्र रूप से लिखता हो वो सच में इतना भी मूर्ख तो नहीं होगा कि उसकी खुशी किसमें है उसे पता नहीं, वो कितना नादाँ या समझदार है उसे पता नहीं,  उसे लिखना चाहिए या नहीं उसे पता नहीं-------- यह उसकी अपनी मन:स्थिति है कब, क्या, क्यों लिखता है----------😊

मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻
दिन शुक्रवार
दिनांक-२८/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, December 27, 2018

न मांगो हिसाब मेरा,,,,
अब बेहिसाब रहने दो--------
मेरी अदालत में मेरी,
किताब रहने दो-----

अच्छे नहीं लगते अब,
हमें गम के साए----
छाँव में तुम रहो,,,,,,
हमें आफ़ताब रहने दो---✍🏻🔥

२८/१२/१८
आर्या शिवकान्ति--------

Wednesday, December 26, 2018

सभी प्रियजनों को मेरी नमस्ते----
सुप्रभातं
जय श्री राम

आज सभ्य समाज के बारे में प्रस्तुत है मेरे कुछ निजी विचार....

भगवान राम को रामा, भगवान कृ्ष्ण को कृष्णा, स्वामी विवेकानंद को विवेकानंदा, स्वामी दयानंद को  दयानंदा.....इस तरह के  यह सम्बोंधन आजकल का सभ्य समाज करता है जैसे हमारे सभी आराध्य अमेरिका के ह्वाइट हाउस में जन्में थे|और तो और सभ्य समाज हिंदी या अपनी मातृभाषा में बात करने वालों को जाहिल गंवार भी कहते हैं|
इसी तरह के कुछ सभ्य समाजियों की संताने अधर में लटकी हैं बेचारे परीक्षा पत्र पर उल्टी करने के लिये खूब अंग्रेजी ठूंसते हैं परन्तु उल्टी करने से पहले ही सारे जवाब अदृश्य हो जाते हैं इनकी देखा देखा में कुछ अनपढ़ अमीर पहुंचते हैं सर और मैडम के पास मेरे बच्चे को ऐसी अंग्रेजी सिखाओ कि बस तोते की तरह बोलने लगे|
इनसे पूछो मातृभाषा तो आती है ना आपके बेटे को तो कहेंगे अरे मातृभाषा भी कोई सीखता है क्या अपने आप आ जायेगी|आ जायेगी? मतलब अभी तक आयी नहीं!
वो सब छोड़ो आप तो बस अंग्रेजी सिखाओ| इधर अध्यापक अध्यापिकायें भी स्पीकिंग कोर्स करके दौड़े चले आ रहे लेकिन एक वचन बहुवचन का मतलब नहीं बता पा रहे हैं|

हां जी अब हमने भी बच्चे को रटा दिया तोते की तरह...तोते को रटाया मोहन इज आ गुड बॉय....परीक्षा में आ गया मोहन की जगह सोहन..
 बेचारे को कर्ता , क्रिया कुछ पता नहीं सोंच रहा मैंने तो मोहन रटा था सोहन कहां से आ गया?

पिता जी आये भन्नाते हुये यह सब गलत लिखकर आया आपने क्या पढ़ाया?
मैंने कहा जी तोते की तरह रटाया...तोता वही बोलता है जो उसे रटाओ उसमें अपना दिमांग लगाने की क्षमता नहीं होती
.
तो फिर आपके बच्चे हमेशा अच्छा रिजल्ट कैसे लाते हैं...
जी मेरे बच्चे तोता नहीं हैं| इंसान हैं इसलिये हमने अपनी मातृभाषा में समझाया...
मोहन सोहन जो भी लिख देना..बस सारे नियम अपने दिमांग में रखाना..

हमने अपने बच्चों को बताया..
अ...को अंग्रेजी में a लिखते हैं|
a says अ कहेंगे तो परेशानी होगी|
क्यूं...
हिंदी में स्वयं में उच्चारित होने वाले वर्ण १३ हैं जिन्हें स्वर कहते हैं|
एक अनुस्वार
फिर विसर्ग
जिह्वामूलीय
उपध्मानीय
क वर्ग
च वर्ग
ट वर्ग
त वर्ग
प वर्ग............

अब अंग्रेजी में होते हैं २६ अक्षर
जिनके द्वारा हम हिंदी सीख नहीं सकते|
इसलिये हिंदी द्वारा अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखा दी बस आराम से होने दो परीक्षा अपने आप लिखते रहेंगे उत्तर |

क्या बताऊँ सज्जनों सभ्य लोग मुझे मानसिक रोगी समझ बैठे|

फिर हिंदुस्तानी अंग्रेजों को उदाहरण जो दिया मैंने..वो तो बोले एकदम पागल हूं मैं..

हुआ यूं कल मेंरे किसी अपने ने कहा था.
अंग्रेजी में बात करने वाले तो रोड पर झाड़ू लगाते भी मिल जायेंगे परन्तु पूरे हिंदस्तान में कोई संस्कृत भाषा बोलने वाला बंदा सब्जी की ठेली लगाये भी मिल जाये तो बता दो...
यह है हमारी दैव वाणी की कीमत हमारे सनातन धर्म की कीमत, हमारे आर्यावर्त की कीमत... जिसे आज भी अंग्रेज चुराने आते हैं और चुरा चुरा कर एक दिन वो चोर सच में विद्वान बन जायेंगे और हम उनकी भाषा के आज भी गुलाम हैं कल भी गुलाम रहेंगे।जो दिखावे में जीने वाले और खुद को माडर्न कहने वालों के समझ नहीं आने वाली........
आज हमारे देश में होने वाले हर खोज को अंग्रेजों ने अपने नाम कर लिया----- चाहे वो आर्यभट्ट द्वारा यूनिवर्स पर आधारित खोंजें हों या फिर महर्षि भरद्वाज द्वारा विमान को बनाने के फार्मूले पढ़कर 18वीं सदी में विमान बनाकर बिना चालक सकुशल विमान उड़ाकर उसकी लैंडिंग कराने वाले हिंदुस्तानी वैज्ञानिक तलपदे साहब हों।
लेकिन हम तो उन चोर गैलीलियो और राइट ब्रॉथेर को ही महान मानेंगे क्यों की हमारे पास अपनी अक्ल तो है लेकिन उसका रिमोट कन्ट्रोल किसी और को दे चुके हैं।

जय आर्यावर्त
जय भारत
ओ३म् परमात्मने नम:

मेरे विचार मेरी कलम से..
२६/१२/१७

आर्या शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Sunday, December 23, 2018

दिल को सच्चा रखने खातिर?

सभी श्रेष्ठजनों को नमन करती हूँ-------

मेरी कविता के साथ मेरी कलम हाजिर है------

कविता का शीर्षक है----

*दिल को सच्चा रखने खातिर?*

छोड़ के सारी दुनियादारी,,,,
मन को कभी संवरने दो----
सुन रिमझिम-रिमझिम बूंदों की,,,
मन इंद्रधनुष तो बनने दो????

*क्यों? कब? कैसे?*
हर जगह न सोंचों----
बेवजह भी तुम, मुस्काओ कभी,
नादानी दिल को करने दो-----

बच्चों में देखो बचपन को,
न अपना बचपन खोजो तुम---
मन मेरा भी है बच्चों सा,,,,,
मन से ऐसा सोंचों तुम-----

दिल जिसका निश्छल होता है,
मुस्कान भी उसकी दासी है----
क्या खोज रहे तुम यहाँ-वहाँ,
तुम में ही मथुरा काशी है-----

न जमीर खुद का ढकने दो,
शान ए शौकत और रुआबों से,,,
इक दुनिया दिल में रहने दो,
बचपन के सच्चे ख्वाबों से-----

नादान न समझो बचपन को,
उसमें ही सच्चा ईश्वर था----
जो चेहरे पर, दिखता था,
वो ही तेरे भीतर था------

तुम चाहो तो अंदर बाहर से,
खुद को अब, गढ़ सकते हो----
तब पढ़ना न आता था,
अब सही-गलत पढ़ सकते हो-----

*लेकिन खुद को पढ़ने खातिर,*
*दिल को सच्चा कर डालो,,,*
*दिल को सच्चा करने खातिर,*
*खुद को बच्चा कर डालो*

कभी तो हर्षित, पुलकित मन को,
पतंग बनकर उड़ने दो----
जब थककर वापस आएगा,,,,
तो खुद में उसे विचरने दो-----

सुन रिमझिम-रिमझिम बूंदों की,
मन इंद्रधनुष तो बनने दो-----
बेवजह भी तुम मुस्काओ कभी,
*नादानी दिल को करने दो------*
💐💐💐💐💐💐💐

दिन-रविवार
दिनाँक-२३/१२/१८
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

✍🏻
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)

Thursday, December 20, 2018

नियोग कोई व्यभिचार नहीं

ओउम्
सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन
सुप्रभातं 💐
जय श्री राम 🚩

*नियोग कोई व्यभिचार नहीं*

आज फिर प्रस्तुत हूँ अपने मन के कुछ तर्क और विचार लेकर मेरी कलम के साथ-----
हमारा आज का मुद्दा हमारी संस्कृति और सनातन धर्म से सम्बंधित है-------

मित्रों सनातन धर्म जो अनादिकाल से इस सृष्टि में व्याप्त है जिसका न तो आदि है न ही अंत------इसका अनुसरण करने वाली हमारी संस्कृति विज्ञान, तर्क, आध्यात्म के हर पन्ने पर खरी है लेकिन आज हमारा समाज सच से बहुत दूर पाखंड का शिकार हो चुका है।
आज अपने इस लेख में महाभारत काल की कुछ बातों पर अपने विचार प्रस्तुत करूँगी------

महाभारत काल या फिर ये कहें विश्वगुरु आर्यवर्त का अंतिम काल हाँ जी यदि भारत के ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति को  समझना है तो महाभारत काल के पहले जाना होगा क्यों की इसके बाद तो हमारे आर्यवर्त का जो बलात्कार हुआ है उसका अंजाम आज हम सिर्फ गुलाम हैं दूसरों की भाषा के, दूसरों की रहन सहन के---

महर्षि वेदव्यास ने *जय महाकाव्य* की रचना की थी
जो बाद में *भारत* हुआ
उसके बाद *महाभारत*
और यही नहीं जिस तरह *मनुस्मृति* में परिवर्तन कर हमारी आर्यवर्त की संविधान व्यवस्था ख़त्म कर दी गयी,,,,
और आज हम गुलामों के संविधान व्यवस्था पर मर कट रहे हैं इसी तरह महाभारत से लेकर अन्य हर उस विषय में परिवर्तन और मिलावट सामिल की गयी जो देश का सुनहरा भविष्य था।
आज यदि हमारी संस्कृति कुछ विद्वानों के रूप में बची है तो उल्टा उन्हें ही षड्यंत्र का शिकार बना दिया जाता है।

आज मैं एक मुद्दा और उठाऊंगी जिस तरह योगेश्वर श्री कृष्ण के चरित्र को बदनाम किया गया इसी तरह हमारी विदुषी स्त्रियों को भी बदनाम किया गया कुंती, माद्री और द्रोपदी आदि को-----

जब कोई विधर्मी आपके इन महान पूर्वजों पर अंगुली उठाता है तो आप जवाब नहीं दे पाते क्यों------?
कारन क्या है?

क्यों की आप जादू, टोने और पाखंड की दुनिया में जी रहे हैं------

जब *जय महाकाव्य, से *भारत* और भारत से *महाभारत* हो गया तो फिर यह कैसे मान लिया हमारे महान पूर्वजों का जो चरित्र दिखाया जा रहा वो सच होगा---–----- कोई स्त्री एक साथ पाँच पुरुषों की पत्नी कैसे हो सकती है------ या फिर कुंती जैसी विदुषी कोई व्यभिचारिणी हो सकती है।

मित्रों हमारी संस्कृति के अनुसार स्त्री पुरुष को समागम सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए करना चाहिए और गुनी, बलशाली, विद्वान संतान प्राप्ति के लिए स्त्री-पुरुष ब्रह्मचारी जीवन बिताते हुए शरीर को निरोग और बलिष्ठ बनाते थे।
यज्ञ, हवन करते थे, वेदों का का अध्ययन करते थे---- और फिर इस राष्ट्र के लिए एक सर्वगुनी संतान को उतपन्न करते थे। यह बात मैं श्री कृष्ण, कुंती, माद्री, द्रोपदी जैसे विद्वानों के बारे में ही बोल रही हूँ जिन्हें आज समाज में मजाक का पात्र बना दिया गया है।
स्वयं योगिराज श्री कृष्ण और माता रुक्मणि ने बारह साल ब्रम्हचर्य का पालन करने के बाद अपनी संतान प्रद्युम्न को जन्म दिया था।

अब बात माता कुंती और  माद्री की करें। ये स्त्रियाँ अपने युग की निर्माता और आज की भाषा में कहें तो वैज्ञानिक भी थीं। पांडु महाराज जन्म से रोगग्रस्त थे जो योग्य संतान उतपन्न करने में असमर्थ थे।

हमारी संस्कृति में नियोग व्यवस्था बताई गयी है। नियोग व्यवस्था मतलब कोई व्यभिचार नहीं।

परंतु आज का समाज जो पोर्न फिल्मों में लिप्त है, शारीरिक संबंध को दाल रोटी समझकर खा रहा उसे तो नियोग मतलब व्यभिचार ही समझ आएगा।
लेकिन यदि देखें तो आज भी नियोग होता है। जो ज्यादा होशियार लोग हैं अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों के तरक्की की पीपीडी बजाते हैं वो तो समझ ही जायेंगे की आज कुछ चिकित्सीय क्रियाओं द्वारा नियोग कराया जाता है मतलब पुरुष के सुक्राणु स्त्री में प्रतिस्थापित कर संतान उतपन्न की जा रही है स्त्री में ही क्यों कुछ साल पहले तो पुरुष के पेट में बच्चे को विकसित करने का मामला विज्ञानं की दुनिया में खूब छाया था।

तो अब हम अपनी संस्कृति की नियोग व्यवस्था की बात करते है यह नियोग आज की तरह नहीं था जो किसी भी व्यभिचारी या दुर्व्यसन एवं प्रतिदिन सम्भोग करने वाले पुरुष के नियोग द्वारा संतान उतपन्न किया जाये परंतु यह नियोग विज्ञान के साथ-साथ ब्रह्मचर्य, आध्यात्म जैसे विभिन्न बातों पर आधारित था जो हमारी विदुषी स्त्रियों ने धारण कर इस राष्ट्र को पाँच पांडवों जैसे पुत्र दिए जो ऐसी कलाओं में निपुण थे जिनके बारे में आज लोंगो को यकीन नहीं होता और काल्पनिक बातें कहकर मजाक उड़ाते हैं।
साक्ष्यों पर आधारित हमारा हर मुद्दा चाहे वो रामायण काल हो या महाभारत काल यदि आपको कल्पना मात्र लगता है तो आप स्वयं एक मजाक का पात्र हैं और कुछ भी नहीं------ ओउम्

मुझ जैसे अज्ञानी की कलम से इस मुद्दे पर बस इतना ही बाकी आप स्वयं सोंचें हमारी संस्कृति हमारा गौरव है अपमानित होने का विषय नहीं------जिस जर्मनी और अमरीका जैसे देश के गीत गा रहे हो वो तो अभी उस विज्ञान का क ख ग भी न खोज पाए लेकिन अपसोस हम आज अपनी ताकत खो चुके हैं-------
स्वयं को पहचानों, अपने देश से प्रेम करो, अपनी संस्कृति को पहचानों----- जय आर्यवर्त, जय भारत------🚩🚩🚩🚩🚩

मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻

*आओ लौट चलें वेदों की ओर--*

दिन-शुक्रवार
दिनांक- २१/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Wednesday, December 19, 2018

आप सभी श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए--------

कुछ विचारों की प्रस्तुति-----

मैं समझती हूं हर व्यक्ति मुझसे किसी न किसी विषय में श्रेष्ठ है इसलिए मैं हर व्यक्ति में छिपी श्रेष्ठता को नमन करती हूँ------

एक शेर अर्ज किया है गौर फरमाएं----

*मेरी जिंदगी में शामिल हर शख्स को सलाम,*
*जो मजबूर है उसे भी,*
*जो मगरूर है उसे भी-------*

और दोनों तरह के ही लोंगो से हमें  स्वयं को समझने का मौका मिलता है। अन्तर्मन को टटोलने का मौका मिलता है कि हम किस श्रेणी में हैं। हमने अपने जीवन में देखा बहुत पढ़े-लिखे और संस्कारी लोंगो को भी झूठी शान-शौकत का असर हो जाता है वो अपने और अपनों से ज्यादा ये सोंचने लगते हैं हमारा समाज में रुतवा है, पैसा है, हमारे ज्ञान का प्रचार प्रसार है। यहां तक की समाज के समझदार लोंगो को दूसरों मजाक उड़ाते तक देखा और जब तक आपके मन में ऐसे विचार आते हैं तो आपको बताने की जरुरत नहीं की आपका अन्तर्मन अभी तक विकसित नहीं हुआ।
अब आप अपने आस-पास देखें क्या आपके आस-पास आपका कोई भी आलोचक नहीं, क्या आपके पास वो जादू है जिससे आप स्वयं से जुड़े हर रिस्ते को खुश कर सकें नहीं ना।
आप ध्यान से सोंचेंगे तो कहीं सफल तो कहीं असफल नजर आएंगे।
आप किसी के लिए जीने की वजह तो किसी के लिए बोझ भी हो सकते हैं। ये सब समझने के बाद हमें अनुभव होता है---

*कि जिंदगी भर हम भरते ही रह गए इस जिंदंगी को सीपी समझकर,,,,,,,*
*लेकिन इस सीपी में भी समन्दर बड़ा गहरा था साहिब----*

 पुस्तकीय ज्ञान तो हमने हासिल कर लिया, हमने  सिर्फ वो पढ़ा जो किसी और ने लिखा था  लेकिन स्वयं को नहीं पढ़ा।

जब हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं, आत्मचिंतन करते हैं तो स्वत: एक विषय तैयार होता है एक प्रभावपूर्ण विषय और आप दिन प्रतिदिन अपने अन्तर्मन में  एक सुखद अनुभूति का अहसास करने लगते हैं------

अंत में मैं फिर कहूँगी मैं कोई ज्ञानी तो नहीं हूँ बस अपने अनुभव, अहसास, स्वध्ययन को कलम से उतारने का प्रयास करती हूँ---🙏🏻
मैं कोई ज्ञानी तो नहीं हूँ इसी शब्द पर दो दिन पहले एक भाई ने मुझे काफी परेशान किया था। मेरा साक्षात्कार ले रहे थे जिसके लिए मेरा मन बिलकुल तैयार नहीं था मेरा कवि मन साक्षात्कार यूं ही क्यों देने लगा-----
हो सकता है वो भाई मेरी पोस्ट पढ़कर समझने का प्रयास करें----

मेरे विचार मेरी कलम से---- ✍🏻

निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
१९/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, December 18, 2018

देश भक्ति खाक करोगे जब जमीर ही तुम्हारा मर चुका

सरकार कोई भी हो मुंह में निवाले डालने नहीं आएगी,,,,
वो तो अपने आप ही खाने पड़ेंगे-----
लेकिन हम जिसे चुन रहे वो देश का स्वाभिमान है या नाशूर------
यह तो सोंचना चाहिये-----

आज दुनिया का सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्व को हमारे देश के ही लोग सम्मान नहीं दे सकते।
शायद इसलिए की उसने अपनी कोई प्रोपर्टी नहीं बनाई, रिश्तेदारियां नहीं निभायीं, देश के राजस्व विभाग को भर दिया, उसके राज में जनता बोम्ब विस्फोटों से तड़प-तड़प कर नहीं मर रही, बंगला देशियों को चुन-चुन खोज लिया, सऊदी अरब में भी गीता को शिरोधार्य करा दिया-------

क्यों की हमारे देश वाशियों को तो पेट्रोल पीना था, अब वो भी पी लो भाई।
गांव के लोग जिन्हें देश दुनियां की खबर नहीं है उंन्हें भड़का लो जब से गायों के कसाई खानों पर पाबंदियां हैं गाय तो लोग पाल रहे लेकिन किसानों की फसल सांड बर्बाद कर रहे फिर उठा लो मौके का फायदा जयचंदों लोंगो को यह न समझाओ की धीरे-धीरे समस्याएं सुलझती जाएँगी और किसानों पर तो हमारा देश बसता है तो उनकी समस्याएं एक देश भक्त लिए कितनी खटकती होंगी।
कोई और ऑप्सन होता तो फायदा उठाते भी अच्छा लगता लेकिन तुम लोंगों ने ठान ली है हम गुलामी करते आये हैं और करते रहेंगे वापस मुड़कर न देखेंगे।
जमीर मर चुका है तो देश भक्ति क्या करोगे------

मेरे विचार मेरी कलम से-----

ओउम्
सभी को मेरी नमस्ते
सुप्रभातं
जय श्री राम

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, December 16, 2018

कहाँ है परमात्मा

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम

मित्रो जब लोंगो के मन मुताबिक कार्य नहीं होता तो अक्सर कहते हैं परमात्मा कहाँ हैं या फिर कहते हैं परमात्मा जैसा तो कुछ है नहीं संसार में।
पहले तो बात यह है कि तुम परमात्मा समझ किसे रहे हो और खोज कहाँ रहे हो?
यह समझना होगा------
परमात्मा हमारी आत्मा में ही है बस आत्मा को विकसित करने की जरुरत मात्र है। लेकिन विकसित आत्मा क्या है?
आत्मा को विकसित तो वही कर सकता है जो आत्मा की सुनता हो?
छल कपट रहित मन का स्वामी हो-----
जो सांसारिक क्रियाओं को अपना फर्ज समझ कर निभा रहा हो।
हम इंसान हैं हमारी दैनिक जरूरतें भी  हैं जो कुछ भौतिक हैं और कुछ शारीरिक भी।
इंसानों का मोहपास में फँसना भी स्वाभाविक है।
परंतु इन सबके बावजूद हम अपने अन्तर्मन के स्वामी है।
हम अपना आत्ममंथन जब तक स्वयं न करें तो कोई कुछ नहीं कर सकता।
एक कपटी और धूर्त स्त्री या पुरुष अपने जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता उसके पास चाहे जितने सांसारिक सुख और वैभव हों। क्यों की जब बात स्वयं के मूल्यांकन की आती है तो वह अंदर से कांप जाता है बौखलाता है उसे यही नहीं पता होता की वह चाहता क्या है।
जब की एक छलरहित स्त्री या पुरुष हर हाल में मुस्कुरा ले लेता है और अपने अंतर्मन में प्रसन्नता का अनुभव करता है।
हम चालाकी करके भौतिक चीजें तो हासिल कर सकते हैं परंतु आत्मिक सुख नहीं।

इसलिए जो लोग परमात्मा के अस्तित्व पर ऊँगली उठाते हैं उन्होंने कभी भी अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनी। वो हर सुबह उठते तो हैं लेकिन सिर्फ दिमांग से अन्तर्मन तो उनमें सोया हुआ है।

आप दो घण्टे घर के मंदिर में बैठे हैं परंतु पडोसी का सुख तकलीफ दे रहा,
आप आरती कर रहे लेकिन आवाज जोर से निकाल रहे ताकि पड़ोसियों तक जाये की हम पूजा करते हैं।
आप प्रसाद बाँट रहे परंतु नजर थाली पर है कहीं पूरा ख़त्म न हो जाये।
आप हवन कर रहे लेकिन घी बचाना चाहते हैं।
आप कन्याभोज करा रहे परंतु नौ कन्या से ज्यादा हो गईं तो परेशान हो गए।
आप किसी गरीब से मिलने जा रहे सड़ी-गली मिठाई लेकर यह सोंचते हुए की उंन्हें क्या पता अच्छी मिठाई का स्वाद-----
आप किसी की थोड़ी सी मदद करके बार-बार दिखा रहे की मैं न होता तो क्या होता?
आप अपनों के हिस्से की प्रॉपर्टी अपने नाम कर रहे और फिर अनायास असनीय अंजाम भुगतने पर रोते हुए बोलते हो कहाँ हैं परमात्मा-------

परमात्मा तो यहीं हैं।
हमारे अन्तर्मन में------
परमात्मा तो यही है हमारी विकसित आत्मा के रूप में-----
लेकिन आपने कुकर्म इतने किये कि आपको यही नहीं पता आपकी आत्मा कहाँ हैं------

आसा करती हूँ आप सबको लेख पसंद आएगा मैं कोई ज्ञानी तो नहीं अपने अनुभव लिखने का प्रयास किया है----

ओउम् परमात्मने नम:
--------मेरे विचार मेरी कलम से ✍🏻

निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
१७/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Friday, December 14, 2018

हैं बंद खिड़कियाँ

सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻
शुभसंध्या💐

आज मेरी कलम से प्रस्तुत है विरह वेदना पर आशु रचना--

*हैं बंद खिड़कियाँ✍🏻*

मिलन अधूरे रह गए साजन,,,,
अँखियाँ काली बिन अंजन की----
व्यथा कहूँ मैं तन की अपने,
या लिखूं मैं पीड़ा अन्तर्मन की----

धरा तड़पकर सूख गयी,
न प्यास बुझाने आये बादल---
पाती लिख-लिख थकी अंकनी,
फिर भी दिल है, कोरा कागद---

निशा डरावे नागिन बनकर,
न मैं दुल्हन, न तुम साजन---
यौवन में यौवन बीत गया,
क्या अभी भी बाकी है स्पंदन,,,

मिल जाता जो आलिंगन तेरा,,,,,
मैं मीठा दरिया बन जाती----
तुम भौंरा बनकर गुनगुन करते,,,,
मैं फूलों सा, मुस्काती----

अक्सर दिल के चौबारे पर,,,,,
यादों की महफ़िल सजती है----
तेरे आने की शहनाई,
मन में अब भी बजती है-----

खोज-खोज कर पता तुम्हारा,,,,
मैं संदेसा लिखती हूँ-----
हवा में खुशबू तुम जैसी है,
यह अंदेशा लिखती हूँ----

नैन हमारे, सूखा सावन,,,
बंद खिड़कियां हैं, धड़कन की----
व्यथा कहूँ मैं तन की अपने,
या लिखूँ मैं पीड़ा अन्तर्मन की----

दिन-गुरुवार
दिनांक-१३/११/२०१८
निर्देश-एडेटिंग, कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, December 13, 2018

मन देखे तुमको दर्पण में

सभी श्रेष्ठजनों को मेरी नमस्ते-----

आज हमारी कलम से एक प्रेमी द्वारा अपनी प्रेयसी से प्रणय निवेदन पर एक रचना प्रस्तुत करने का प्रयाश------ ✍🏻🙏🏻

*मन देखे तुमको दर्पण में*

हे प्रिये तुम्हारे नैनों में,
मैं वजूद अपना तलाश रहा----
तुम वजह बनी हो जीने की,
तेरा साया जबसे साथ रहा----

मन केशरिया रहता हरपल,
प्रिये तुम्हारी यादों में-----
तुम फूल ढाक के लगती हो,
इन वसंत जैसे ख्वाबों में-----

ये हृदय तुम्हारा दास हुआ,
तुम मेरे मन की मधुवन है,,,,,
मैं आसमां सा तड़प रहा,
तुम इन्तजार का सावन हो-----

मन से लेकर धड़कन तक,
अजनबी से लेकर बंधन तक-----
क्या तुम भी मुझे सजाओगी,,,
पायल से लेकर कंगन तक-----

तुम दर्पण मेरे, मेरे मन दर्पण की,
मन तुमको देखे दर्पण में-----
नित सींच रहा हूँ, प्रिये तुम्हें,
अपने दिल के आँगन में----

तुम मेरे मन का मंदिर हो,
मैं प्रेम पुजारी हूँ तेरा-----
चाहूँ मैं बस प्रेम का आँचल,
नहीं शिकारी हूँ तेरा------

था तुम बिन पतझड़,
जीवन अब तक-----
अब तन-मन तुम पर हार रहा----
हे प्रिये तुम्हारे नैनों में,,,
मैं वजूद अपना तलाश रहा---✍🏻

दिन-बुधवार
दिनांक- 12/12/18
 निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, December 6, 2018

बेचैनी**** स्मृतियों पर आधारित लेख

सभी आदरणीय श्रेष्ठजनों को नमस्ते 🙏🏻
सुप्रभात 💐💐💐
जय श्री राम 🚩

*बेचैनी*
स्मृतियों पर आधारित लेख--✍🏻

मित्रों अक्सर लोग बेचैन रहते हैं और उन्हें यही नहीं पता उनकी बेचैनी का कारण क्या है?

एक व्यक्ति था उसकी बेचैनी का कभी अंत ही न होता था।
क्यों बेचैन पता नहीं।
अच्छे पद पर नौकरी करता था। लेकिन उसकी बेचैनी पद और पैसे के साथ बढती जाती।
अजीब उलझने थीं उसकी यदि पैसा पत्नी और बच्चों के नाम कर दिया तो मेरी इज्जत न करेंगे इस लिए अपनी सारी प्रोपर्टी और पैसे को सिर्फ अपने नाम रखता था।
जब पैसे सुरक्षित हो गए तो सोंचता पत्नी के पास गहने हैं मैं तो पत्नी के साथ बहुत बुरा सुलूक करता हूँ।
गहने लेकर बेंचकर अपनी जिंदगी कहीं और शुरू कर ली तो मेरी हार हो जायेगी और वह गहने भी ले जाकर छुपा दिया। फिर भी उसकी पत्नी और बच्चे अपनी दुनिया में खुश थे। अब महाशय को लगा अरे मेरी पत्नी स्वस्थ्य रहेगी तो मारपीट के बदले मुझपर भी हाथ उठा सकती है तो वे किसी भी तरह पत्नी को स्वस्थ्य न रहने देते अलग-अलग तरीके से मानसिक और शारीरिक कष्ट देते। उनकी दौलत पर तो पत्नी का कोई हक ही न था लेकिन स्वाभिमानी होने के कारण खुद की मेहनत से ही कमाये पैसों के कपड़े पहनती और अपनी जरूरतें पूरी करती क्यों कि पति महोदय हद से ज्यादा नीच थे तो एक स्वाभिमानी स्त्री कब तक बरदास्त करती।

और महोदय को तो बेचैन रहने की आदत थी अब देखिये पत्नी जी अपनी आंतरिक सुख के लिए यदि योग और ध्यान के लिए बैठ जाए तो कुछ समय पश्चात् उसको हिलाना डुलाना चालू कर देते फिर भी काम न बने तो ऊपर पानी भी डाल देते।

लेकिन महोदय की बेचैनी रुकने का नाम ही न लेती और पत्नी जी तो पेड़-पौधे, चिड़िया-गिल्लू और मोहल्ले के छोटे-छोटे बच्चों में भी ख़ुशी खोज लेती अब महोदय जी की पत्नी जब आंगन में बैठती तो कुछ गिलहरियाँ भी उनके इर्द-गिर्द आ जाती शरारती अंदाज में लेकिन महोदय को तो बेचैनी थी रख दिया गिलरियों के खाने में चूहा मारने की दवाई बेचारी कई तो मर गयीं और बाकी डर के मारे वो नीम का पेड़ ही छोड़कर चली गयीं।
बेचैनी कितनी अजीब बात है पेड़-पौधों से भी पत्नी जी बतिया लेती थीं तो फिर उनका सबसे पसंदीदा फूल वाला पेड़ महोदय इतनी होशियारी से जड़ से काटते बेचारा तीन-चार दिन में सूख जाता।

लेकिन महोदय की बेचैनी कम न होती किसी पडोसी-रिस्तेदार से मतलब नहीं रखते परंतु पत्नी की पीठ पीछे बेचारे पति वाला रोना रोते। दुनिया के सबसे दुखी इंसान की पत्नी ने जब बच्चों को ट्यूशन पढ़कर इज्जत कमाई तो पति जी ने बाजार में बेंच दी उनकी पत्नी अक्सर गिनती करते समय भूल जाती की उसका किस-किस से अवैध संबंध है।

साथ ही पति जी ने पत्नी की कमायी हड़पना न भूले।
लेकिन बेचैनी थी की ख़त्म ही नहीं होती।
अब तो उन्होंने अपनी पत्नी से बच्चों को ही छीनने की ठान ली। महोदय बेटियों को लेकर बैडरूम अंदर से बंद करके सो जाते और पत्नी को कभी चादर नहीं देते तो कभी बिस्तर-----लेकिन इनकी बेचैनी कम न होती अगर पत्नी को नींद आ जाये तो ये पूरी रात नाटक करके गुजार देते। इनके ड्रामे के कारण इनके बच्चे इन्हें राक्षस कहकर बुलाते और ये बच्चों की पढाई छुड़ाने और मकान बेंचने की धमकी देते----- इन महाशय की बेचैनियों की कहानी की लिस्ट तो इतनी लंबी है कि बताना मुश्किल परंतु उनकी पत्नी जी श्रीमान जी की बेचैनियों को विराम देने हेतु अपने बच्चों के साथ घर छोड़कर चली गईं एक अनवरत संघर्ष की ओर---- न सर पर छत थी न हाथ में पैसा लेकिन रोज-रोज के तमाशे के एक दिन निकल गए उनके कदम घर से बाहर और फिर महाशय की दरिंदगी और बेचैनियों का आलम और बुलंदियों पर चढ़ा जितनी नीचता दिखा सकते थे दिखायी अपनी ही औलाद को भूखे तड़पने के लिए, पत्नी के मायके वालों को भूखे तड़पाने के लिए लेकिन उनकी पत्नी जी किसी भी कीमत पर न वापस आयीं और न ही हार मानी।

उस बेचैन आदमी के चेहरे अब धृष्ठता का अंबार कई गुना बढ़ गया है उसे अभी भी लगता है पैसे से पत्नी के शरीर पर राज कर सकता है उससे और बच्चों से अपने तलवे चाटवा सकता है।

सुना है उसकी बेचैनियाँ कम होने की बजाय बढ़ गयी हैं और उसकी पत्नी स्वयं को विधवा मान चुकी है।
उसे उस दुष्ट की एक बात जरूर याद आती है मैं तेरे खुश होने की हर वजह छीन लूंगा तू सिर्फ उतना ही पानी पीयेगी जितना मैं चाहूं और उतना ही खाना खायेगी जितना मैं चाहूं। लेकिन उसका दूसरा शब्द भी याद आता है कि मेरे इतने षड्यंत्रों के बाद भी तेरी मुस्कुराहट क्यों न छीन पाया किस मिटटी की बनी है तू------तुझे तो बर्बाद कर दूँगा 😃

उसकी पत्नी समझ चुकी थी जो पहली पत्नी की आत्महत्या कराके न सुधरा इतने कुकर्म करके न सुधरा उसे सुधारने में अपना और वक्त बर्बाद न करके अब आखिरी साँस तक अपना संघर्ष करेगी-------

*लेख द्वारा एक संदेश देना चाहूँगी----*

मित्रों रिस्ते हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम इंसान हैं हमें जीवन के हर मोड़ पर किसी न किसी रिस्ते की जरुरत पड़ती है।
रिस्तों का इस्तेमाल न करो उनके साथ छल न करो।
पैसा कमाया जाता है और रिस्ता निभाया जाता है।
आप पैसे से भौतिक सुख खरीद सकते हैं लेकिन आप नहीं खरीद सकते एक सच्चा रिस्ता, सच्चा प्रेम आप नहीं खरीद सकते मरते हुए इंसान की जिंदगी और न ही गया हुआ समय।

प्यार से रहो अपने रिस्तों के साथ दिल खोलकर जिओ कोई धोखा देकर जायेगा जाने दो हमारा नसीब और हमारे हाथ पैर तो नहीं ले जायेगा। हमें सुकून तो रहेगा की हमने दिल से रिस्ता निभाया था----- लेकिन जो इस लायक न था चला गया----✍🏻

ओउम् परमात्मने नम:
६/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Monday, December 3, 2018

गँवार एक व्यंग्य

*गँवार एक व्यंग्य*

हमारे देश में गंवारों को जिंदा रहना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे शरीर के लिए भोजन की जररूत है।
जी गँवार मतलब जो अंग्रेजी में बात नहीं करते+गांव के लोग+जिन्हें बनावटीपन नहीं आता।
हाँ जी आजकल के पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियों की भाषा में ऐसे लोंगों को गँवार कहा जाता है।

सोंचों यदि ये गँवार न होंगे तो क्या होगा?
तो कोई नमस्ते नहीं कहेगा, जय श्री राम और जय श्री कृष्णा के स्वर जो हमारे आस-पास गूंजते हैं वो भी बिलुप्त हो जायेंगे------

हर तरफ हाय, हाय और हेलो, हेलो ही सुनने को मिलेगा------
और हमारी आने वाली पीढ़ी राम कृष्ण के बचपन की कहानी न पढ़कर सिर्फ हाय और हेलो शब्द के प्रतिपादन पर ही खोज करेगी।

हाँ जी ये गँवार ही तो हैं जो हमारी भारतीयता को बचाये हुए हैं। जो स्त्रियों को अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर घुमते देख खुद शरमा जाते हैं जो हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं, जो दौड़कर अपने से बड़ों के पैरों पर झुक जाते हैं।

ये गँवार ही तो हैं जो हमारे देश की विविध आंचलिक भाषाओँ को बचाये हुए हैं, संस्कृति को बचाये हुए हैं।
दादी, नानी, दादा, नाना जैसे शब्दों का हमारे जीवन में महत्व बनाये हुए हैं।

*वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण देश में गांवों का वजूद है*
*हाँ जी वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण अन्य उपजता है और किसानों का वजूद है*

और समझदारों के पेट से होकर गुजरता है।
अगर इन्हें भी समझदारी और होशियारी की शिक्षा मिल गयी तो तो पूरा देश अपने आपको आधुनिक कहता हुआ गले में पट्टा डालकर घूमेगा और उस पट्टे पर संतुलन बनाने वाला होगा तुम्हारा वो मालिक जो सिर्फ गाली देकर ही बात करेगा और तुम दाँत निपोरते हुए हुए झूठी हेकड़ी दिखाकर फेंकी हुयी रोटियाँ खाओगे--------

तो भइया कुछ गाने ऐसे भी बजने दो-----
*इमली का भूटा, बेरी का बेर----
इमली खट्टी मीठे बेर------*

नहीं तो अब वो हाल है साहिब इंग्लिश मीडियम में आठवीं में पढ़ने वाला एक बच्चा पूछ रहा था गुड़ का स्वाद कैसा लगता है।
कहीं ऐसा न हो आने वाली पीढ़ी सच में खेतों में गन्ना उगाने के लिए गुड़ बोन लगे 😃

मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
०४/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, December 2, 2018

स्वाभिमान का दूसरा नाम--भगवा रंग

*स्वाभिमान का नाम दूसरा--भगवा रंग*

न ज्ञान समन्दर मुझमें है,
जो मैं पंडित कहलाऊँ-----
निज भुजाओं में वो बल नहीं,
कि मैं क्षत्राणी बन पाऊँ-----

न वैश्य मुझे तुम समझो जी,
न ही मैं व्यापार करूँ,,,,
तुम समझ रहे हो शूद्र मुझे?
क्यूँ अछूत मैं कहलाऊँ------?

जब सत्य सनातन अपमानित हो,
तब मैं पंडित बन जाती,,,,
स्वाभिमान पर वार करोगे,
तब मैं ज्वाला बन जाती-----

भूख से अपना तड़पे न कोई,,,,
जल और और अन्न जुटाऊँ मैं,,,,,
निज तन-मन को जब साफ करूँ,
तभी शूद्र कहलाऊँ मैं----🙏🏻😊

@@@@@@@@@@@@

जाति हमारी पूछ-पूछ कर,
तुम जात कहाँ हो,,,,,,
खुद पता करो------
जाति-पांति के चक्कर में,
मर मिटने की न खता करो-----

खूब मुगलों ने उत्पाद किया,,,,
वर्ण मिटाया, जाति किया----
मारा-काटा जनेऊ तोडा,,,,
इस तरह हमें बर्बाद किया-----

न वेदों का ज्ञान धराते हो,
न गीता ही पढ़ पाते हो----
अपवाद बनाकर 'सत्य सनातन'
पाखंड स्वयं फैलाते हो-----

न राम राज में था, पीड़ित कोई,,,,
न श्याम कोई व्यभिचारी थे-----
माता रुक्मणि के पति थे जो,
वो योगेश्वर जनेऊधारी थे-----

सच तुमको है स्वीकार नहीं,
की गयी मिलावट पढ़ते हो-----
अपने ही ऋषि मुनियों पर,,,,
खुद ही कहानी गढ़ते हो------

नशेड़ी कहे ब्राह्मण खुद को,,,,
दलित कहे मैं शोषित हूँ-----
धर्म ग्रंथ सब रोकर कहते,,,,
मैं पाखंड से पोषित हूँ------

सच को न स्वीकारे कोय-----
देख दुर्दशा *तनु* रोये------
हे ईश्वर तुम दया करो,,,,,,
फिर अपनी दुनिया, वैदिक होय----

वैदिक युग था,
जाति नहीं थी----
इस कलयुग में वर्ण नहीं है----
अधर्म को आकर धर्म सिखाये,,,,
ऐसा कोई कर्ण नही है-----

वर्ण व्यवस्था, जाति-पांति में,,
अंतर करना सीखो तुम-----
सिर-पैर बिना की बातें करके,,,,
इधर-उधर मत बिखरो तुम-----

मनन करो कुछ सोंचों मन में,,,
कौन कहाँ से आये थे,,,,,
वेदशाला कुतुबमीनार हो गयी,
नालंदा जलवाए थे-----
तेजो भी जो ताज हो गया,,,,,
वो मुग़ल कला सरताज हो गया-----
अकबर पोथी व्यापक हो गयी,,,,
हमारे प्रताप! दो पन्नों में समाये थे----

झाँसी जब वीरान हुयी,
ग़द्दार एक पिंडारी था????
था जाया उसका चाँद मियाँ,,,
वो बुड़बक देश पे भारी था----

राम, श्याम को भूल गए तुम,,,,
साईं-साईं चिल्लाते हो----
क्यूँ विश्वगुरु था देश हमारा-----
धरातल तक न जाते हो????

आदि न जिसका अंत कोई,,,
वो सत्य सनातन धर्म हमारा-----
स्वभिमान का नाम दूसरा,,,,
हाँ जी भगवा रंग हमारा----

यह पावन धरा हमारी है,,,
इस पर बलि-बलि जाऊँ मैं,,,
नहीं है मुझको खेद कोई,,,,
ब्राह्मण या शूद्र कहाऊँ मैं------

स्वरचित- २८/०४/२०१७

कुछ परिवर्तन के साथ प्रस्तुति
०२/१२/१८

निर्देश-एडेडिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
की कलम से----✍🏻
आजमा कर देख लो---
सच्चाई वो हथियार है साहिब,,,,,

जो बहादुरों से रिस्ते जोड़ता है,
कायरों से नहीं----

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
की कलम से