Wednesday, December 19, 2018

आप सभी श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए--------

कुछ विचारों की प्रस्तुति-----

मैं समझती हूं हर व्यक्ति मुझसे किसी न किसी विषय में श्रेष्ठ है इसलिए मैं हर व्यक्ति में छिपी श्रेष्ठता को नमन करती हूँ------

एक शेर अर्ज किया है गौर फरमाएं----

*मेरी जिंदगी में शामिल हर शख्स को सलाम,*
*जो मजबूर है उसे भी,*
*जो मगरूर है उसे भी-------*

और दोनों तरह के ही लोंगो से हमें  स्वयं को समझने का मौका मिलता है। अन्तर्मन को टटोलने का मौका मिलता है कि हम किस श्रेणी में हैं। हमने अपने जीवन में देखा बहुत पढ़े-लिखे और संस्कारी लोंगो को भी झूठी शान-शौकत का असर हो जाता है वो अपने और अपनों से ज्यादा ये सोंचने लगते हैं हमारा समाज में रुतवा है, पैसा है, हमारे ज्ञान का प्रचार प्रसार है। यहां तक की समाज के समझदार लोंगो को दूसरों मजाक उड़ाते तक देखा और जब तक आपके मन में ऐसे विचार आते हैं तो आपको बताने की जरुरत नहीं की आपका अन्तर्मन अभी तक विकसित नहीं हुआ।
अब आप अपने आस-पास देखें क्या आपके आस-पास आपका कोई भी आलोचक नहीं, क्या आपके पास वो जादू है जिससे आप स्वयं से जुड़े हर रिस्ते को खुश कर सकें नहीं ना।
आप ध्यान से सोंचेंगे तो कहीं सफल तो कहीं असफल नजर आएंगे।
आप किसी के लिए जीने की वजह तो किसी के लिए बोझ भी हो सकते हैं। ये सब समझने के बाद हमें अनुभव होता है---

*कि जिंदगी भर हम भरते ही रह गए इस जिंदंगी को सीपी समझकर,,,,,,,*
*लेकिन इस सीपी में भी समन्दर बड़ा गहरा था साहिब----*

 पुस्तकीय ज्ञान तो हमने हासिल कर लिया, हमने  सिर्फ वो पढ़ा जो किसी और ने लिखा था  लेकिन स्वयं को नहीं पढ़ा।

जब हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं, आत्मचिंतन करते हैं तो स्वत: एक विषय तैयार होता है एक प्रभावपूर्ण विषय और आप दिन प्रतिदिन अपने अन्तर्मन में  एक सुखद अनुभूति का अहसास करने लगते हैं------

अंत में मैं फिर कहूँगी मैं कोई ज्ञानी तो नहीं हूँ बस अपने अनुभव, अहसास, स्वध्ययन को कलम से उतारने का प्रयास करती हूँ---🙏🏻
मैं कोई ज्ञानी तो नहीं हूँ इसी शब्द पर दो दिन पहले एक भाई ने मुझे काफी परेशान किया था। मेरा साक्षात्कार ले रहे थे जिसके लिए मेरा मन बिलकुल तैयार नहीं था मेरा कवि मन साक्षात्कार यूं ही क्यों देने लगा-----
हो सकता है वो भाई मेरी पोस्ट पढ़कर समझने का प्रयास करें----

मेरे विचार मेरी कलम से---- ✍🏻

निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
१९/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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