*गँवार एक व्यंग्य*
हमारे देश में गंवारों को जिंदा रहना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे शरीर के लिए भोजन की जररूत है।
जी गँवार मतलब जो अंग्रेजी में बात नहीं करते+गांव के लोग+जिन्हें बनावटीपन नहीं आता।
हाँ जी आजकल के पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियों की भाषा में ऐसे लोंगों को गँवार कहा जाता है।
सोंचों यदि ये गँवार न होंगे तो क्या होगा?
तो कोई नमस्ते नहीं कहेगा, जय श्री राम और जय श्री कृष्णा के स्वर जो हमारे आस-पास गूंजते हैं वो भी बिलुप्त हो जायेंगे------
हर तरफ हाय, हाय और हेलो, हेलो ही सुनने को मिलेगा------
और हमारी आने वाली पीढ़ी राम कृष्ण के बचपन की कहानी न पढ़कर सिर्फ हाय और हेलो शब्द के प्रतिपादन पर ही खोज करेगी।
हाँ जी ये गँवार ही तो हैं जो हमारी भारतीयता को बचाये हुए हैं। जो स्त्रियों को अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर घुमते देख खुद शरमा जाते हैं जो हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं, जो दौड़कर अपने से बड़ों के पैरों पर झुक जाते हैं।
ये गँवार ही तो हैं जो हमारे देश की विविध आंचलिक भाषाओँ को बचाये हुए हैं, संस्कृति को बचाये हुए हैं।
दादी, नानी, दादा, नाना जैसे शब्दों का हमारे जीवन में महत्व बनाये हुए हैं।
*वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण देश में गांवों का वजूद है*
*हाँ जी वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण अन्य उपजता है और किसानों का वजूद है*
और समझदारों के पेट से होकर गुजरता है।
अगर इन्हें भी समझदारी और होशियारी की शिक्षा मिल गयी तो तो पूरा देश अपने आपको आधुनिक कहता हुआ गले में पट्टा डालकर घूमेगा और उस पट्टे पर संतुलन बनाने वाला होगा तुम्हारा वो मालिक जो सिर्फ गाली देकर ही बात करेगा और तुम दाँत निपोरते हुए हुए झूठी हेकड़ी दिखाकर फेंकी हुयी रोटियाँ खाओगे--------
तो भइया कुछ गाने ऐसे भी बजने दो-----
*इमली का भूटा, बेरी का बेर----
इमली खट्टी मीठे बेर------*
नहीं तो अब वो हाल है साहिब इंग्लिश मीडियम में आठवीं में पढ़ने वाला एक बच्चा पूछ रहा था गुड़ का स्वाद कैसा लगता है।
कहीं ऐसा न हो आने वाली पीढ़ी सच में खेतों में गन्ना उगाने के लिए गुड़ बोन लगे 😃
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
०४/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
हमारे देश में गंवारों को जिंदा रहना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे शरीर के लिए भोजन की जररूत है।
जी गँवार मतलब जो अंग्रेजी में बात नहीं करते+गांव के लोग+जिन्हें बनावटीपन नहीं आता।
हाँ जी आजकल के पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियों की भाषा में ऐसे लोंगों को गँवार कहा जाता है।
सोंचों यदि ये गँवार न होंगे तो क्या होगा?
तो कोई नमस्ते नहीं कहेगा, जय श्री राम और जय श्री कृष्णा के स्वर जो हमारे आस-पास गूंजते हैं वो भी बिलुप्त हो जायेंगे------
हर तरफ हाय, हाय और हेलो, हेलो ही सुनने को मिलेगा------
और हमारी आने वाली पीढ़ी राम कृष्ण के बचपन की कहानी न पढ़कर सिर्फ हाय और हेलो शब्द के प्रतिपादन पर ही खोज करेगी।
हाँ जी ये गँवार ही तो हैं जो हमारी भारतीयता को बचाये हुए हैं। जो स्त्रियों को अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर घुमते देख खुद शरमा जाते हैं जो हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं, जो दौड़कर अपने से बड़ों के पैरों पर झुक जाते हैं।
ये गँवार ही तो हैं जो हमारे देश की विविध आंचलिक भाषाओँ को बचाये हुए हैं, संस्कृति को बचाये हुए हैं।
दादी, नानी, दादा, नाना जैसे शब्दों का हमारे जीवन में महत्व बनाये हुए हैं।
*वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण देश में गांवों का वजूद है*
*हाँ जी वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण अन्य उपजता है और किसानों का वजूद है*
और समझदारों के पेट से होकर गुजरता है।
अगर इन्हें भी समझदारी और होशियारी की शिक्षा मिल गयी तो तो पूरा देश अपने आपको आधुनिक कहता हुआ गले में पट्टा डालकर घूमेगा और उस पट्टे पर संतुलन बनाने वाला होगा तुम्हारा वो मालिक जो सिर्फ गाली देकर ही बात करेगा और तुम दाँत निपोरते हुए हुए झूठी हेकड़ी दिखाकर फेंकी हुयी रोटियाँ खाओगे--------
तो भइया कुछ गाने ऐसे भी बजने दो-----
*इमली का भूटा, बेरी का बेर----
इमली खट्टी मीठे बेर------*
नहीं तो अब वो हाल है साहिब इंग्लिश मीडियम में आठवीं में पढ़ने वाला एक बच्चा पूछ रहा था गुड़ का स्वाद कैसा लगता है।
कहीं ऐसा न हो आने वाली पीढ़ी सच में खेतों में गन्ना उगाने के लिए गुड़ बोन लगे 😃
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
०४/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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