Wednesday, December 26, 2018

सभी प्रियजनों को मेरी नमस्ते----
सुप्रभातं
जय श्री राम

आज सभ्य समाज के बारे में प्रस्तुत है मेरे कुछ निजी विचार....

भगवान राम को रामा, भगवान कृ्ष्ण को कृष्णा, स्वामी विवेकानंद को विवेकानंदा, स्वामी दयानंद को  दयानंदा.....इस तरह के  यह सम्बोंधन आजकल का सभ्य समाज करता है जैसे हमारे सभी आराध्य अमेरिका के ह्वाइट हाउस में जन्में थे|और तो और सभ्य समाज हिंदी या अपनी मातृभाषा में बात करने वालों को जाहिल गंवार भी कहते हैं|
इसी तरह के कुछ सभ्य समाजियों की संताने अधर में लटकी हैं बेचारे परीक्षा पत्र पर उल्टी करने के लिये खूब अंग्रेजी ठूंसते हैं परन्तु उल्टी करने से पहले ही सारे जवाब अदृश्य हो जाते हैं इनकी देखा देखा में कुछ अनपढ़ अमीर पहुंचते हैं सर और मैडम के पास मेरे बच्चे को ऐसी अंग्रेजी सिखाओ कि बस तोते की तरह बोलने लगे|
इनसे पूछो मातृभाषा तो आती है ना आपके बेटे को तो कहेंगे अरे मातृभाषा भी कोई सीखता है क्या अपने आप आ जायेगी|आ जायेगी? मतलब अभी तक आयी नहीं!
वो सब छोड़ो आप तो बस अंग्रेजी सिखाओ| इधर अध्यापक अध्यापिकायें भी स्पीकिंग कोर्स करके दौड़े चले आ रहे लेकिन एक वचन बहुवचन का मतलब नहीं बता पा रहे हैं|

हां जी अब हमने भी बच्चे को रटा दिया तोते की तरह...तोते को रटाया मोहन इज आ गुड बॉय....परीक्षा में आ गया मोहन की जगह सोहन..
 बेचारे को कर्ता , क्रिया कुछ पता नहीं सोंच रहा मैंने तो मोहन रटा था सोहन कहां से आ गया?

पिता जी आये भन्नाते हुये यह सब गलत लिखकर आया आपने क्या पढ़ाया?
मैंने कहा जी तोते की तरह रटाया...तोता वही बोलता है जो उसे रटाओ उसमें अपना दिमांग लगाने की क्षमता नहीं होती
.
तो फिर आपके बच्चे हमेशा अच्छा रिजल्ट कैसे लाते हैं...
जी मेरे बच्चे तोता नहीं हैं| इंसान हैं इसलिये हमने अपनी मातृभाषा में समझाया...
मोहन सोहन जो भी लिख देना..बस सारे नियम अपने दिमांग में रखाना..

हमने अपने बच्चों को बताया..
अ...को अंग्रेजी में a लिखते हैं|
a says अ कहेंगे तो परेशानी होगी|
क्यूं...
हिंदी में स्वयं में उच्चारित होने वाले वर्ण १३ हैं जिन्हें स्वर कहते हैं|
एक अनुस्वार
फिर विसर्ग
जिह्वामूलीय
उपध्मानीय
क वर्ग
च वर्ग
ट वर्ग
त वर्ग
प वर्ग............

अब अंग्रेजी में होते हैं २६ अक्षर
जिनके द्वारा हम हिंदी सीख नहीं सकते|
इसलिये हिंदी द्वारा अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखा दी बस आराम से होने दो परीक्षा अपने आप लिखते रहेंगे उत्तर |

क्या बताऊँ सज्जनों सभ्य लोग मुझे मानसिक रोगी समझ बैठे|

फिर हिंदुस्तानी अंग्रेजों को उदाहरण जो दिया मैंने..वो तो बोले एकदम पागल हूं मैं..

हुआ यूं कल मेंरे किसी अपने ने कहा था.
अंग्रेजी में बात करने वाले तो रोड पर झाड़ू लगाते भी मिल जायेंगे परन्तु पूरे हिंदस्तान में कोई संस्कृत भाषा बोलने वाला बंदा सब्जी की ठेली लगाये भी मिल जाये तो बता दो...
यह है हमारी दैव वाणी की कीमत हमारे सनातन धर्म की कीमत, हमारे आर्यावर्त की कीमत... जिसे आज भी अंग्रेज चुराने आते हैं और चुरा चुरा कर एक दिन वो चोर सच में विद्वान बन जायेंगे और हम उनकी भाषा के आज भी गुलाम हैं कल भी गुलाम रहेंगे।जो दिखावे में जीने वाले और खुद को माडर्न कहने वालों के समझ नहीं आने वाली........
आज हमारे देश में होने वाले हर खोज को अंग्रेजों ने अपने नाम कर लिया----- चाहे वो आर्यभट्ट द्वारा यूनिवर्स पर आधारित खोंजें हों या फिर महर्षि भरद्वाज द्वारा विमान को बनाने के फार्मूले पढ़कर 18वीं सदी में विमान बनाकर बिना चालक सकुशल विमान उड़ाकर उसकी लैंडिंग कराने वाले हिंदुस्तानी वैज्ञानिक तलपदे साहब हों।
लेकिन हम तो उन चोर गैलीलियो और राइट ब्रॉथेर को ही महान मानेंगे क्यों की हमारे पास अपनी अक्ल तो है लेकिन उसका रिमोट कन्ट्रोल किसी और को दे चुके हैं।

जय आर्यावर्त
जय भारत
ओ३म् परमात्मने नम:

मेरे विचार मेरी कलम से..
२६/१२/१७

आर्या शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

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