Friday, December 14, 2018

हैं बंद खिड़कियाँ

सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻
शुभसंध्या💐

आज मेरी कलम से प्रस्तुत है विरह वेदना पर आशु रचना--

*हैं बंद खिड़कियाँ✍🏻*

मिलन अधूरे रह गए साजन,,,,
अँखियाँ काली बिन अंजन की----
व्यथा कहूँ मैं तन की अपने,
या लिखूं मैं पीड़ा अन्तर्मन की----

धरा तड़पकर सूख गयी,
न प्यास बुझाने आये बादल---
पाती लिख-लिख थकी अंकनी,
फिर भी दिल है, कोरा कागद---

निशा डरावे नागिन बनकर,
न मैं दुल्हन, न तुम साजन---
यौवन में यौवन बीत गया,
क्या अभी भी बाकी है स्पंदन,,,

मिल जाता जो आलिंगन तेरा,,,,,
मैं मीठा दरिया बन जाती----
तुम भौंरा बनकर गुनगुन करते,,,,
मैं फूलों सा, मुस्काती----

अक्सर दिल के चौबारे पर,,,,,
यादों की महफ़िल सजती है----
तेरे आने की शहनाई,
मन में अब भी बजती है-----

खोज-खोज कर पता तुम्हारा,,,,
मैं संदेसा लिखती हूँ-----
हवा में खुशबू तुम जैसी है,
यह अंदेशा लिखती हूँ----

नैन हमारे, सूखा सावन,,,
बंद खिड़कियां हैं, धड़कन की----
व्यथा कहूँ मैं तन की अपने,
या लिखूँ मैं पीड़ा अन्तर्मन की----

दिन-गुरुवार
दिनांक-१३/११/२०१८
निर्देश-एडेटिंग, कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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