Sunday, December 23, 2018

दिल को सच्चा रखने खातिर?

सभी श्रेष्ठजनों को नमन करती हूँ-------

मेरी कविता के साथ मेरी कलम हाजिर है------

कविता का शीर्षक है----

*दिल को सच्चा रखने खातिर?*

छोड़ के सारी दुनियादारी,,,,
मन को कभी संवरने दो----
सुन रिमझिम-रिमझिम बूंदों की,,,
मन इंद्रधनुष तो बनने दो????

*क्यों? कब? कैसे?*
हर जगह न सोंचों----
बेवजह भी तुम, मुस्काओ कभी,
नादानी दिल को करने दो-----

बच्चों में देखो बचपन को,
न अपना बचपन खोजो तुम---
मन मेरा भी है बच्चों सा,,,,,
मन से ऐसा सोंचों तुम-----

दिल जिसका निश्छल होता है,
मुस्कान भी उसकी दासी है----
क्या खोज रहे तुम यहाँ-वहाँ,
तुम में ही मथुरा काशी है-----

न जमीर खुद का ढकने दो,
शान ए शौकत और रुआबों से,,,
इक दुनिया दिल में रहने दो,
बचपन के सच्चे ख्वाबों से-----

नादान न समझो बचपन को,
उसमें ही सच्चा ईश्वर था----
जो चेहरे पर, दिखता था,
वो ही तेरे भीतर था------

तुम चाहो तो अंदर बाहर से,
खुद को अब, गढ़ सकते हो----
तब पढ़ना न आता था,
अब सही-गलत पढ़ सकते हो-----

*लेकिन खुद को पढ़ने खातिर,*
*दिल को सच्चा कर डालो,,,*
*दिल को सच्चा करने खातिर,*
*खुद को बच्चा कर डालो*

कभी तो हर्षित, पुलकित मन को,
पतंग बनकर उड़ने दो----
जब थककर वापस आएगा,,,,
तो खुद में उसे विचरने दो-----

सुन रिमझिम-रिमझिम बूंदों की,
मन इंद्रधनुष तो बनने दो-----
बेवजह भी तुम मुस्काओ कभी,
*नादानी दिल को करने दो------*
💐💐💐💐💐💐💐

दिन-रविवार
दिनाँक-२३/१२/१८
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

✍🏻
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)

No comments:

Post a Comment