Sunday, December 16, 2018

कहाँ है परमात्मा

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम

मित्रो जब लोंगो के मन मुताबिक कार्य नहीं होता तो अक्सर कहते हैं परमात्मा कहाँ हैं या फिर कहते हैं परमात्मा जैसा तो कुछ है नहीं संसार में।
पहले तो बात यह है कि तुम परमात्मा समझ किसे रहे हो और खोज कहाँ रहे हो?
यह समझना होगा------
परमात्मा हमारी आत्मा में ही है बस आत्मा को विकसित करने की जरुरत मात्र है। लेकिन विकसित आत्मा क्या है?
आत्मा को विकसित तो वही कर सकता है जो आत्मा की सुनता हो?
छल कपट रहित मन का स्वामी हो-----
जो सांसारिक क्रियाओं को अपना फर्ज समझ कर निभा रहा हो।
हम इंसान हैं हमारी दैनिक जरूरतें भी  हैं जो कुछ भौतिक हैं और कुछ शारीरिक भी।
इंसानों का मोहपास में फँसना भी स्वाभाविक है।
परंतु इन सबके बावजूद हम अपने अन्तर्मन के स्वामी है।
हम अपना आत्ममंथन जब तक स्वयं न करें तो कोई कुछ नहीं कर सकता।
एक कपटी और धूर्त स्त्री या पुरुष अपने जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता उसके पास चाहे जितने सांसारिक सुख और वैभव हों। क्यों की जब बात स्वयं के मूल्यांकन की आती है तो वह अंदर से कांप जाता है बौखलाता है उसे यही नहीं पता होता की वह चाहता क्या है।
जब की एक छलरहित स्त्री या पुरुष हर हाल में मुस्कुरा ले लेता है और अपने अंतर्मन में प्रसन्नता का अनुभव करता है।
हम चालाकी करके भौतिक चीजें तो हासिल कर सकते हैं परंतु आत्मिक सुख नहीं।

इसलिए जो लोग परमात्मा के अस्तित्व पर ऊँगली उठाते हैं उन्होंने कभी भी अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनी। वो हर सुबह उठते तो हैं लेकिन सिर्फ दिमांग से अन्तर्मन तो उनमें सोया हुआ है।

आप दो घण्टे घर के मंदिर में बैठे हैं परंतु पडोसी का सुख तकलीफ दे रहा,
आप आरती कर रहे लेकिन आवाज जोर से निकाल रहे ताकि पड़ोसियों तक जाये की हम पूजा करते हैं।
आप प्रसाद बाँट रहे परंतु नजर थाली पर है कहीं पूरा ख़त्म न हो जाये।
आप हवन कर रहे लेकिन घी बचाना चाहते हैं।
आप कन्याभोज करा रहे परंतु नौ कन्या से ज्यादा हो गईं तो परेशान हो गए।
आप किसी गरीब से मिलने जा रहे सड़ी-गली मिठाई लेकर यह सोंचते हुए की उंन्हें क्या पता अच्छी मिठाई का स्वाद-----
आप किसी की थोड़ी सी मदद करके बार-बार दिखा रहे की मैं न होता तो क्या होता?
आप अपनों के हिस्से की प्रॉपर्टी अपने नाम कर रहे और फिर अनायास असनीय अंजाम भुगतने पर रोते हुए बोलते हो कहाँ हैं परमात्मा-------

परमात्मा तो यहीं हैं।
हमारे अन्तर्मन में------
परमात्मा तो यही है हमारी विकसित आत्मा के रूप में-----
लेकिन आपने कुकर्म इतने किये कि आपको यही नहीं पता आपकी आत्मा कहाँ हैं------

आसा करती हूँ आप सबको लेख पसंद आएगा मैं कोई ज्ञानी तो नहीं अपने अनुभव लिखने का प्रयास किया है----

ओउम् परमात्मने नम:
--------मेरे विचार मेरी कलम से ✍🏻

निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
१७/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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