ओउम्
सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन
सुप्रभातं 💐
जय श्री राम 🚩
*नियोग कोई व्यभिचार नहीं*
आज फिर प्रस्तुत हूँ अपने मन के कुछ तर्क और विचार लेकर मेरी कलम के साथ-----
हमारा आज का मुद्दा हमारी संस्कृति और सनातन धर्म से सम्बंधित है-------
मित्रों सनातन धर्म जो अनादिकाल से इस सृष्टि में व्याप्त है जिसका न तो आदि है न ही अंत------इसका अनुसरण करने वाली हमारी संस्कृति विज्ञान, तर्क, आध्यात्म के हर पन्ने पर खरी है लेकिन आज हमारा समाज सच से बहुत दूर पाखंड का शिकार हो चुका है।
आज अपने इस लेख में महाभारत काल की कुछ बातों पर अपने विचार प्रस्तुत करूँगी------
महाभारत काल या फिर ये कहें विश्वगुरु आर्यवर्त का अंतिम काल हाँ जी यदि भारत के ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति को समझना है तो महाभारत काल के पहले जाना होगा क्यों की इसके बाद तो हमारे आर्यवर्त का जो बलात्कार हुआ है उसका अंजाम आज हम सिर्फ गुलाम हैं दूसरों की भाषा के, दूसरों की रहन सहन के---
महर्षि वेदव्यास ने *जय महाकाव्य* की रचना की थी
जो बाद में *भारत* हुआ
उसके बाद *महाभारत*
और यही नहीं जिस तरह *मनुस्मृति* में परिवर्तन कर हमारी आर्यवर्त की संविधान व्यवस्था ख़त्म कर दी गयी,,,,
और आज हम गुलामों के संविधान व्यवस्था पर मर कट रहे हैं इसी तरह महाभारत से लेकर अन्य हर उस विषय में परिवर्तन और मिलावट सामिल की गयी जो देश का सुनहरा भविष्य था।
आज यदि हमारी संस्कृति कुछ विद्वानों के रूप में बची है तो उल्टा उन्हें ही षड्यंत्र का शिकार बना दिया जाता है।
आज मैं एक मुद्दा और उठाऊंगी जिस तरह योगेश्वर श्री कृष्ण के चरित्र को बदनाम किया गया इसी तरह हमारी विदुषी स्त्रियों को भी बदनाम किया गया कुंती, माद्री और द्रोपदी आदि को-----
जब कोई विधर्मी आपके इन महान पूर्वजों पर अंगुली उठाता है तो आप जवाब नहीं दे पाते क्यों------?
कारन क्या है?
क्यों की आप जादू, टोने और पाखंड की दुनिया में जी रहे हैं------
जब *जय महाकाव्य, से *भारत* और भारत से *महाभारत* हो गया तो फिर यह कैसे मान लिया हमारे महान पूर्वजों का जो चरित्र दिखाया जा रहा वो सच होगा---–----- कोई स्त्री एक साथ पाँच पुरुषों की पत्नी कैसे हो सकती है------ या फिर कुंती जैसी विदुषी कोई व्यभिचारिणी हो सकती है।
मित्रों हमारी संस्कृति के अनुसार स्त्री पुरुष को समागम सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए करना चाहिए और गुनी, बलशाली, विद्वान संतान प्राप्ति के लिए स्त्री-पुरुष ब्रह्मचारी जीवन बिताते हुए शरीर को निरोग और बलिष्ठ बनाते थे।
यज्ञ, हवन करते थे, वेदों का का अध्ययन करते थे---- और फिर इस राष्ट्र के लिए एक सर्वगुनी संतान को उतपन्न करते थे। यह बात मैं श्री कृष्ण, कुंती, माद्री, द्रोपदी जैसे विद्वानों के बारे में ही बोल रही हूँ जिन्हें आज समाज में मजाक का पात्र बना दिया गया है।
स्वयं योगिराज श्री कृष्ण और माता रुक्मणि ने बारह साल ब्रम्हचर्य का पालन करने के बाद अपनी संतान प्रद्युम्न को जन्म दिया था।
अब बात माता कुंती और माद्री की करें। ये स्त्रियाँ अपने युग की निर्माता और आज की भाषा में कहें तो वैज्ञानिक भी थीं। पांडु महाराज जन्म से रोगग्रस्त थे जो योग्य संतान उतपन्न करने में असमर्थ थे।
हमारी संस्कृति में नियोग व्यवस्था बताई गयी है। नियोग व्यवस्था मतलब कोई व्यभिचार नहीं।
परंतु आज का समाज जो पोर्न फिल्मों में लिप्त है, शारीरिक संबंध को दाल रोटी समझकर खा रहा उसे तो नियोग मतलब व्यभिचार ही समझ आएगा।
लेकिन यदि देखें तो आज भी नियोग होता है। जो ज्यादा होशियार लोग हैं अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों के तरक्की की पीपीडी बजाते हैं वो तो समझ ही जायेंगे की आज कुछ चिकित्सीय क्रियाओं द्वारा नियोग कराया जाता है मतलब पुरुष के सुक्राणु स्त्री में प्रतिस्थापित कर संतान उतपन्न की जा रही है स्त्री में ही क्यों कुछ साल पहले तो पुरुष के पेट में बच्चे को विकसित करने का मामला विज्ञानं की दुनिया में खूब छाया था।
तो अब हम अपनी संस्कृति की नियोग व्यवस्था की बात करते है यह नियोग आज की तरह नहीं था जो किसी भी व्यभिचारी या दुर्व्यसन एवं प्रतिदिन सम्भोग करने वाले पुरुष के नियोग द्वारा संतान उतपन्न किया जाये परंतु यह नियोग विज्ञान के साथ-साथ ब्रह्मचर्य, आध्यात्म जैसे विभिन्न बातों पर आधारित था जो हमारी विदुषी स्त्रियों ने धारण कर इस राष्ट्र को पाँच पांडवों जैसे पुत्र दिए जो ऐसी कलाओं में निपुण थे जिनके बारे में आज लोंगो को यकीन नहीं होता और काल्पनिक बातें कहकर मजाक उड़ाते हैं।
साक्ष्यों पर आधारित हमारा हर मुद्दा चाहे वो रामायण काल हो या महाभारत काल यदि आपको कल्पना मात्र लगता है तो आप स्वयं एक मजाक का पात्र हैं और कुछ भी नहीं------ ओउम्
मुझ जैसे अज्ञानी की कलम से इस मुद्दे पर बस इतना ही बाकी आप स्वयं सोंचें हमारी संस्कृति हमारा गौरव है अपमानित होने का विषय नहीं------जिस जर्मनी और अमरीका जैसे देश के गीत गा रहे हो वो तो अभी उस विज्ञान का क ख ग भी न खोज पाए लेकिन अपसोस हम आज अपनी ताकत खो चुके हैं-------
स्वयं को पहचानों, अपने देश से प्रेम करो, अपनी संस्कृति को पहचानों----- जय आर्यवर्त, जय भारत------🚩🚩🚩🚩🚩
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
*आओ लौट चलें वेदों की ओर--*
दिन-शुक्रवार
दिनांक- २१/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन
सुप्रभातं 💐
जय श्री राम 🚩
*नियोग कोई व्यभिचार नहीं*
आज फिर प्रस्तुत हूँ अपने मन के कुछ तर्क और विचार लेकर मेरी कलम के साथ-----
हमारा आज का मुद्दा हमारी संस्कृति और सनातन धर्म से सम्बंधित है-------
मित्रों सनातन धर्म जो अनादिकाल से इस सृष्टि में व्याप्त है जिसका न तो आदि है न ही अंत------इसका अनुसरण करने वाली हमारी संस्कृति विज्ञान, तर्क, आध्यात्म के हर पन्ने पर खरी है लेकिन आज हमारा समाज सच से बहुत दूर पाखंड का शिकार हो चुका है।
आज अपने इस लेख में महाभारत काल की कुछ बातों पर अपने विचार प्रस्तुत करूँगी------
महाभारत काल या फिर ये कहें विश्वगुरु आर्यवर्त का अंतिम काल हाँ जी यदि भारत के ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति को समझना है तो महाभारत काल के पहले जाना होगा क्यों की इसके बाद तो हमारे आर्यवर्त का जो बलात्कार हुआ है उसका अंजाम आज हम सिर्फ गुलाम हैं दूसरों की भाषा के, दूसरों की रहन सहन के---
महर्षि वेदव्यास ने *जय महाकाव्य* की रचना की थी
जो बाद में *भारत* हुआ
उसके बाद *महाभारत*
और यही नहीं जिस तरह *मनुस्मृति* में परिवर्तन कर हमारी आर्यवर्त की संविधान व्यवस्था ख़त्म कर दी गयी,,,,
और आज हम गुलामों के संविधान व्यवस्था पर मर कट रहे हैं इसी तरह महाभारत से लेकर अन्य हर उस विषय में परिवर्तन और मिलावट सामिल की गयी जो देश का सुनहरा भविष्य था।
आज यदि हमारी संस्कृति कुछ विद्वानों के रूप में बची है तो उल्टा उन्हें ही षड्यंत्र का शिकार बना दिया जाता है।
आज मैं एक मुद्दा और उठाऊंगी जिस तरह योगेश्वर श्री कृष्ण के चरित्र को बदनाम किया गया इसी तरह हमारी विदुषी स्त्रियों को भी बदनाम किया गया कुंती, माद्री और द्रोपदी आदि को-----
जब कोई विधर्मी आपके इन महान पूर्वजों पर अंगुली उठाता है तो आप जवाब नहीं दे पाते क्यों------?
कारन क्या है?
क्यों की आप जादू, टोने और पाखंड की दुनिया में जी रहे हैं------
जब *जय महाकाव्य, से *भारत* और भारत से *महाभारत* हो गया तो फिर यह कैसे मान लिया हमारे महान पूर्वजों का जो चरित्र दिखाया जा रहा वो सच होगा---–----- कोई स्त्री एक साथ पाँच पुरुषों की पत्नी कैसे हो सकती है------ या फिर कुंती जैसी विदुषी कोई व्यभिचारिणी हो सकती है।
मित्रों हमारी संस्कृति के अनुसार स्त्री पुरुष को समागम सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए करना चाहिए और गुनी, बलशाली, विद्वान संतान प्राप्ति के लिए स्त्री-पुरुष ब्रह्मचारी जीवन बिताते हुए शरीर को निरोग और बलिष्ठ बनाते थे।
यज्ञ, हवन करते थे, वेदों का का अध्ययन करते थे---- और फिर इस राष्ट्र के लिए एक सर्वगुनी संतान को उतपन्न करते थे। यह बात मैं श्री कृष्ण, कुंती, माद्री, द्रोपदी जैसे विद्वानों के बारे में ही बोल रही हूँ जिन्हें आज समाज में मजाक का पात्र बना दिया गया है।
स्वयं योगिराज श्री कृष्ण और माता रुक्मणि ने बारह साल ब्रम्हचर्य का पालन करने के बाद अपनी संतान प्रद्युम्न को जन्म दिया था।
अब बात माता कुंती और माद्री की करें। ये स्त्रियाँ अपने युग की निर्माता और आज की भाषा में कहें तो वैज्ञानिक भी थीं। पांडु महाराज जन्म से रोगग्रस्त थे जो योग्य संतान उतपन्न करने में असमर्थ थे।
हमारी संस्कृति में नियोग व्यवस्था बताई गयी है। नियोग व्यवस्था मतलब कोई व्यभिचार नहीं।
परंतु आज का समाज जो पोर्न फिल्मों में लिप्त है, शारीरिक संबंध को दाल रोटी समझकर खा रहा उसे तो नियोग मतलब व्यभिचार ही समझ आएगा।
लेकिन यदि देखें तो आज भी नियोग होता है। जो ज्यादा होशियार लोग हैं अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों के तरक्की की पीपीडी बजाते हैं वो तो समझ ही जायेंगे की आज कुछ चिकित्सीय क्रियाओं द्वारा नियोग कराया जाता है मतलब पुरुष के सुक्राणु स्त्री में प्रतिस्थापित कर संतान उतपन्न की जा रही है स्त्री में ही क्यों कुछ साल पहले तो पुरुष के पेट में बच्चे को विकसित करने का मामला विज्ञानं की दुनिया में खूब छाया था।
तो अब हम अपनी संस्कृति की नियोग व्यवस्था की बात करते है यह नियोग आज की तरह नहीं था जो किसी भी व्यभिचारी या दुर्व्यसन एवं प्रतिदिन सम्भोग करने वाले पुरुष के नियोग द्वारा संतान उतपन्न किया जाये परंतु यह नियोग विज्ञान के साथ-साथ ब्रह्मचर्य, आध्यात्म जैसे विभिन्न बातों पर आधारित था जो हमारी विदुषी स्त्रियों ने धारण कर इस राष्ट्र को पाँच पांडवों जैसे पुत्र दिए जो ऐसी कलाओं में निपुण थे जिनके बारे में आज लोंगो को यकीन नहीं होता और काल्पनिक बातें कहकर मजाक उड़ाते हैं।
साक्ष्यों पर आधारित हमारा हर मुद्दा चाहे वो रामायण काल हो या महाभारत काल यदि आपको कल्पना मात्र लगता है तो आप स्वयं एक मजाक का पात्र हैं और कुछ भी नहीं------ ओउम्
मुझ जैसे अज्ञानी की कलम से इस मुद्दे पर बस इतना ही बाकी आप स्वयं सोंचें हमारी संस्कृति हमारा गौरव है अपमानित होने का विषय नहीं------जिस जर्मनी और अमरीका जैसे देश के गीत गा रहे हो वो तो अभी उस विज्ञान का क ख ग भी न खोज पाए लेकिन अपसोस हम आज अपनी ताकत खो चुके हैं-------
स्वयं को पहचानों, अपने देश से प्रेम करो, अपनी संस्कृति को पहचानों----- जय आर्यवर्त, जय भारत------🚩🚩🚩🚩🚩
मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
*आओ लौट चलें वेदों की ओर--*
दिन-शुक्रवार
दिनांक- २१/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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