ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩
मित्रों हमारे लेख और रचनाओं को पढ़कर कभी सज्जन बहुत भावुक हो जाते हैं या फिर कुछ लोग हमारे जीवन सम्बंधित पहलुयों को जानने के लिए बेचैन हो उठते हैं।
कुछ ऐसे भी हैं मुझे सलाह देने लगते हैं जीना सीखो, खुश रहो, एक बार जिंदगी मिलती है बगैरह--------- मुझे बड़ा मुश्किल लगने लगता है सभी को उत्तर देना क्यों की समयाभाव होता है।
मैं इतना ही कहना चाहूँगी स्वयं को पढ़ना अपने जीवन का सबसे मुश्किल कार्य है और जिसने स्वयं को पढ़ना सीख लिया उसकी बेचैनियां स्वत: ख़त्म हो जाती हैं।
आप लेख और रचनाएँ पढ़कर उसमें अपने लिए शब्द तलाशते हैं कि मेरे लिए या मेरे मन को अच्छा लगने वाला इसमें क्या है और यह मानव स्वभाव भी है परंतु जिस दिन से आप यह सोंचकर पढ़ने लगते हैं कि ये उस लेखक या लेखिका के स्वतंत्र विचार हैं अब आपको यह देखना है कि इसमें जीवन की यथार्थता कितनी है तब आप उस लेखक या लेखिका के बारे में नहीं बल्कि जीवन दर्शन के बारे में सोंचते हैं।
किसी के विचारों से स्वयं को बांधकर आप अपने व्यक्तित्व का का विकास नहीं कर सकते बल्कि विचारों में कितनी सत्यता है और ये विचार पठनीय क्यों हैं इस मुद्दे पर विश्लेषण करके आप अपने मस्तिष्क को स्वयं एक नई दिशा दे सकते हैं और जब ऐसा होगा तो आप अपने मन मस्तिष्क को स्वतंत्र महसूश करेंगे।
कोई भी ऐसा लेखक या लेखिका जो स्वतंत्र रूप से लिखता हो वो सच में इतना भी मूर्ख तो नहीं होगा कि उसकी खुशी किसमें है उसे पता नहीं, वो कितना नादाँ या समझदार है उसे पता नहीं, उसे लिखना चाहिए या नहीं उसे पता नहीं-------- यह उसकी अपनी मन:स्थिति है कब, क्या, क्यों लिखता है----------😊
मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻
दिन शुक्रवार
दिनांक-२८/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩
मित्रों हमारे लेख और रचनाओं को पढ़कर कभी सज्जन बहुत भावुक हो जाते हैं या फिर कुछ लोग हमारे जीवन सम्बंधित पहलुयों को जानने के लिए बेचैन हो उठते हैं।
कुछ ऐसे भी हैं मुझे सलाह देने लगते हैं जीना सीखो, खुश रहो, एक बार जिंदगी मिलती है बगैरह--------- मुझे बड़ा मुश्किल लगने लगता है सभी को उत्तर देना क्यों की समयाभाव होता है।
मैं इतना ही कहना चाहूँगी स्वयं को पढ़ना अपने जीवन का सबसे मुश्किल कार्य है और जिसने स्वयं को पढ़ना सीख लिया उसकी बेचैनियां स्वत: ख़त्म हो जाती हैं।
आप लेख और रचनाएँ पढ़कर उसमें अपने लिए शब्द तलाशते हैं कि मेरे लिए या मेरे मन को अच्छा लगने वाला इसमें क्या है और यह मानव स्वभाव भी है परंतु जिस दिन से आप यह सोंचकर पढ़ने लगते हैं कि ये उस लेखक या लेखिका के स्वतंत्र विचार हैं अब आपको यह देखना है कि इसमें जीवन की यथार्थता कितनी है तब आप उस लेखक या लेखिका के बारे में नहीं बल्कि जीवन दर्शन के बारे में सोंचते हैं।
किसी के विचारों से स्वयं को बांधकर आप अपने व्यक्तित्व का का विकास नहीं कर सकते बल्कि विचारों में कितनी सत्यता है और ये विचार पठनीय क्यों हैं इस मुद्दे पर विश्लेषण करके आप अपने मस्तिष्क को स्वयं एक नई दिशा दे सकते हैं और जब ऐसा होगा तो आप अपने मन मस्तिष्क को स्वतंत्र महसूश करेंगे।
कोई भी ऐसा लेखक या लेखिका जो स्वतंत्र रूप से लिखता हो वो सच में इतना भी मूर्ख तो नहीं होगा कि उसकी खुशी किसमें है उसे पता नहीं, वो कितना नादाँ या समझदार है उसे पता नहीं, उसे लिखना चाहिए या नहीं उसे पता नहीं-------- यह उसकी अपनी मन:स्थिति है कब, क्या, क्यों लिखता है----------😊
मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻
दिन शुक्रवार
दिनांक-२८/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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