Thursday, September 13, 2018

जब मांझी ही मेरा भंवर बन गया

लाख कोशिश करी,,,,,
लेकिन बच न सके......
जब मांझी ही मेरा,,,,,,
भंवर बन गया.......

वो दरिया भरा,,,,,,
आग से था ओ यारों......
था पानी समझकर,,,,,,,
जिधर मन गया.......

हम तड़पते रहे,,,,,,,
रूह यह जलती रही......
देखो काया यह,,,,,,
उठ उठ सम्भलती रही.......

मेरा दिल, मेरे दिल से......
अलग हो गया......
सपने सोते गये,,,,,,
और मैं जगती रही......

न चाहतें मेरी,,,,,
रास आयीं उन्हें,,,,,,,
वो मेरे...नैंनों का भी,,,,,
लेके दर्पन गया......

वो दरिया भरा.................मन गया..

दिल का मासूम होना,,,,,,
गुनाह हो गया......
सभी फूल जी भरके,,,,,,
कांटे बने......

दिल की रौनक समझ,,,,,,
हम गये थे जहां......
उनकी महफिल में,,,,
हम ही तमाशे बने.......

मेरे खामोशी का आलम,,,,,,
गजब था बड़ा,,,,,,
हम रोते रहे,,,,,,
ओंठ हंसते रहे......

बाग ख्वाबों का था,,,,,,
अब उजड़ सा गया,,,,,,,
बन शबाब हम,,,,,
महफिल में सजते रहे.......

दिल की दुनिया से देखो,,,,,
मैं विधवा हुयी.......
हुश्न के तमाशे में,,,,,,
बदन बन सुहागन गया..........

वो दरिया भरा...................मन गया

स्वरचित_०७/०३/२०१७

नोट_कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति कमल (तनु)

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