एक अहसास परमात्मा के नाम...
जब जब मैं घायल थी मेरे जख्मों पर सिर्फ तेरी नजर थी|
कातिल चोंट देता रहा और मैंने उफ तक न की बड़ा बेचैन था वो यह सोंचकर कि मेरा हमसफर कौन है!!!!!
उसे क्या पता था जब भी वो खंजर घोंप रहा था मेरा प्रभु मेरा कवच बनकर खड़ा था|
न जाने कौन सी ताकत थी जो मेरी दुबली पतली काया में जोश भर देती थी|
कातिल देख रहा था कि मैं अभी उसके छल के आगे घुटने टेक दूंगी|
लेकिन मैं हर बार आगे निकल गयी वो जाल बिछाये रास्ते में खड़ा रह गया|
लोगों को लगा कि मैं अभिमानी हूं, मेरा जर्रा जर्रा घायल था परन्तु मेरी राहों में उम्मीद का एक चिराग लिये परमात्मा मेरी हमसफर था... क्यूं कि सिर्फ उसे ही पता था कि मैं अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूं.....
परमात्मा से मैंने पूछा कब तक यूं ही साथ चलोगे....
उसने कहा जब तक तुम्हारे कदम रूक नहीं जाते....
मैंने कहा मेरे कदम कब तक नहीं रुकने चाहिये...
उसने कहा जब तक मंजिल न मिल जाये....
मैं तड़प रही थी दर्द में,
मैं कराह रही थी दर्द से,
चलने की ताकत न थी फिर भी लड़खड़ाते हुये चल रही थी|
कातिल हँसना चाहता था मेरे हालात पर फिर भी हँस नहीं पा रहा था....क्यूं कि उसके लिये यह असनीय था कि मुझमें अब भी जान बाकी है||||||
मैं नजर घुमाकर देखा मेरी जान की हिफाजत में परमात्मा कवच बनकर खड़ा था.......
मैं फटेहाल थी और कातिल बैठा था दौलत के गद्दे पर......
मैंने देखा उसका बौखलाया हुआ चेहरा, तमतमाया हुआ चेहरा...वो चीख पड़ा ओ महारानी मैं तुझसे सबकुछ छीन लूंगा!
मेरे मन में अजीब सा हर्ष हुआ शायद मेरे स्वाभिमान के कारण मैं उसे भिखारी रूप में भी महारानी लग रही थी...
मेरे हमसफर ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा..धीरे धीरे आगे बढ़ो अभी मंजिल तक पहुंचना बाकी है....
मैं धीरे धीरे मन बुदबुदायी....हां मजिल तक पहुंचना बाकी है....... और मैं फिर से चल दी एक अंजान राह पर...तब तक न रूकने की कसम लेकर जब तक कातिल धूमिल न हो जाये..और मुझे पाकर मेरी मंजिल की प्यास न बुझ जाये.......
ओ३म् परमात्मने नम:
मेरे अहसास मेरी कलम से....
०१/०१/२०१८
शिवकान्ति आर कमल ( तनु जी )
जब जब मैं घायल थी मेरे जख्मों पर सिर्फ तेरी नजर थी|
कातिल चोंट देता रहा और मैंने उफ तक न की बड़ा बेचैन था वो यह सोंचकर कि मेरा हमसफर कौन है!!!!!
उसे क्या पता था जब भी वो खंजर घोंप रहा था मेरा प्रभु मेरा कवच बनकर खड़ा था|
न जाने कौन सी ताकत थी जो मेरी दुबली पतली काया में जोश भर देती थी|
कातिल देख रहा था कि मैं अभी उसके छल के आगे घुटने टेक दूंगी|
लेकिन मैं हर बार आगे निकल गयी वो जाल बिछाये रास्ते में खड़ा रह गया|
लोगों को लगा कि मैं अभिमानी हूं, मेरा जर्रा जर्रा घायल था परन्तु मेरी राहों में उम्मीद का एक चिराग लिये परमात्मा मेरी हमसफर था... क्यूं कि सिर्फ उसे ही पता था कि मैं अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूं.....
परमात्मा से मैंने पूछा कब तक यूं ही साथ चलोगे....
उसने कहा जब तक तुम्हारे कदम रूक नहीं जाते....
मैंने कहा मेरे कदम कब तक नहीं रुकने चाहिये...
उसने कहा जब तक मंजिल न मिल जाये....
मैं तड़प रही थी दर्द में,
मैं कराह रही थी दर्द से,
चलने की ताकत न थी फिर भी लड़खड़ाते हुये चल रही थी|
कातिल हँसना चाहता था मेरे हालात पर फिर भी हँस नहीं पा रहा था....क्यूं कि उसके लिये यह असनीय था कि मुझमें अब भी जान बाकी है||||||
मैं नजर घुमाकर देखा मेरी जान की हिफाजत में परमात्मा कवच बनकर खड़ा था.......
मैं फटेहाल थी और कातिल बैठा था दौलत के गद्दे पर......
मैंने देखा उसका बौखलाया हुआ चेहरा, तमतमाया हुआ चेहरा...वो चीख पड़ा ओ महारानी मैं तुझसे सबकुछ छीन लूंगा!
मेरे मन में अजीब सा हर्ष हुआ शायद मेरे स्वाभिमान के कारण मैं उसे भिखारी रूप में भी महारानी लग रही थी...
मेरे हमसफर ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा..धीरे धीरे आगे बढ़ो अभी मंजिल तक पहुंचना बाकी है....
मैं धीरे धीरे मन बुदबुदायी....हां मजिल तक पहुंचना बाकी है....... और मैं फिर से चल दी एक अंजान राह पर...तब तक न रूकने की कसम लेकर जब तक कातिल धूमिल न हो जाये..और मुझे पाकर मेरी मंजिल की प्यास न बुझ जाये.......
ओ३म् परमात्मने नम:
मेरे अहसास मेरी कलम से....
०१/०१/२०१८
शिवकान्ति आर कमल ( तनु जी )
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