Thursday, September 20, 2018

आकर राख बना दो तुम

पढ़िये वियोग श्रृंगार पर मेरी एक रचना.....

दिनांक
२०/०३/२०१८

"आकर राख बना दो तुम"

आखिर बार सजा दो तुम,
या फिर आज "सजा" दो तुम!!!
कब तक धड़कन रोके रखूं,
आकर मुझे बता दो तुम!!!!!

निज हाथों से मुझे सजाओ,
चूड़ी, कंगन लेकर आओ,,,,
ले गये थे जो,
 संग अपने,
वो भी धड़कन लेकर आओ!!!!
दूर रहो ओ सखी तुम हमसे,
दूर देश हैं पिया बुलाओ,,,,,

अंग मिलन की चाहत नाहीं,
रूह से रूह को मिला दो तुम!!!!
…………………………

इक रूह और दो अँखियाँ मेरी,,,,
देख रही हैं राहें तेरी!!!!!
आ भी जाओ अब ओ साजन,
चाहत की है निशा घनेरी!!!!!

इन सूखी सी अँखियन को,
आकर घटा बना दो तुम!!!!
…………………………

दूर करो श्रृंगार सखी,
अंग-अंग मैं,
उनको पहनूं,,,,
खुश्बू अपने प्रियतम की,,,,
अंतिम सांसों में तो,
भर लूं!!!!!

निज नैंनों से इन नैनों का,
चिलमन आज बना दो तुम!!!!
…………………………………

कैसे कहूं मैं,
अपने मन की!!!!!
सुध-बुध नहीं है,
मुझको तन की!!!!!
जल-जल कर मैं खाक हो गयी,
अँखियाँ काली,
बिन अंजन की!!!!!

जली खड़ी हूं,
तरु के जैसी,,,
आकर राख बना दो तुम!!!!!
कब तक धड़कन रोके रखूं,,,,
आकर मुझे बता दो तुम-----

शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

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