Monday, September 17, 2018

"हैं जख्म मेरे कातिल''


हैं जख्म मेरे कातिल....

ये कसमकश की घड़ियाँ,
हैं जख्म मेरे कातिल!!!!!
नमकीन है ये दरिया,
उस पार मेरा साहिल!!!!!

छूती हूं जब मैं पानी,
जलते हैं जख्म मेरे!!!!!
सो जाती हैं थक कर आँखें,,,,,
चलते हैं जख्म मेरे!!!!!!

घनघोर है अँधेरा,
साया भी गुम हुआ है!!!
मैं वज्र हो गयी हूं,
कातिल भी दुम हुआ है!!!!!

पक गये मेरे गोखरू,
चलने का शौक पाला,,,,,
बनकरके वैद्य हमने,
खुद को ही चीर डाला!!!!!!

तू खेल खूब खिलाड़ी,
बाजी हमारी होगी,,,,,,,
चाल तू चलेगा,
राजी हमारी होगी!!!!!

नरभक्षी दरख्त है तू,
अमरबेल मैं बनूंगी!!!!
नाक तेरी होगी,
नकेल मैं बनूंगी!!!!!

तुझे सूखना पड़ेगा,
मुझे सूखने से पहले,,,,,
तुझे टूटना पड़ेगा!!!!!
मेरे टूटने से पहले......

मैं हूं अजब कहानी,
जो समझ तू ही न पाया,,,,
मासूम इक कली को,
था शूल खूब बनाया!!!!!

जो समझ न सके ये,,,
लगती मैं उनको जाहिल!!!!!
ये कसमकश की घड़ियाँ,
हैं जख्म मेरे कातिल!!!!!

स्वरचित- ०३/१२/२०१७


शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

No comments:

Post a Comment