!!!!!मैं तड़पती थी जिस आसमां के लिये!!!!
घन बरसते रहे,,,,,,
धरा प्यासी रही।।।।।।।
मन काली घटा सी,,,,,,
उदासी रही।।।।।।
मैं तड़पती थी,,,,,
जिस आसमां के लिये।।।।।
उसी की वफा,,,,,,,
बेवफा सी रही।।।।।।।
दिल के दरिया में,,,,,,
ऐसी थी रेती हुयी।।।।।।
मेरी दुनिया एक,
बंजर सी खेती हुयी।।।।।।।
सनम स्वाति हुये,,,,,,,
बूंदें आती नहीं।।।।।
मैं चातक सी,,,,,,
पिय पिय बुलाती रही।।।।।।
जिन्हें चाहा बहुत,,,,,
वो थे छलिया बड़े।।।।।।।।
मैं रोती रही,,,,,
वो थे हँसते खड़े।।।।।।।
मोहब्बत में,,,,,,
अरमां थे धूमिल हुये।।।।।।।
फिर भी यादों की उनकी,,,,,,,,
घटा सी रही।।।।।।।
सांसें कहती हैं, मुझसे,,,,,
क्यूं न आये हैं वो।।।।।।।।
फिर धड़कन में,,,,,
यूं, क्यूं समाये हैं वो।।।।।।।
होश की सारी बातें तो,
छोड़ो सखी।।।।।।।।।
बेशुधी के शिखर तक,,,,,
कराहती रही।।।।।।।।
मैं तड़पती थी,,,,,
जिस आसमां के लिये।।।।।।।
उसी की वफा,,,,,,
बेवफा सी रही।।।।।।।।।
स्वरचित-२८/०७/२०१८
शिवकान्ति आर कमल (तनु जी)
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