Sunday, September 9, 2018

श्री अटल जी की स्मृति में


उत्तर से लेकर दक्षिण तक,
पश्चिम से लेकर पूरब तक-------
निर्जन से लेकर,
जन-जन तक------
और उनसे लेकर,
हम सब तक------

इस देश में भगवा लहराता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता---
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता----

खूब रूह तुम्हारी तड़पी होगी,
तन्हा छाती फटती होगी----
चहुँ ओर देख गद्दारों को,
मन की धुंध न घटती होगी----

इस देश को अपना कहने वाला,
हर हाथ जो तुमको,
मिल जाता------
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता----

वो धरती माँ का लाल था सच्चा,
मैदान ए जंग में!
"ज्वाला था-----"
शब्दों का था जादूगर,
वो कवि बड़ा मतवाला था-----

सुन करके हुंकार तुम्हारी,
हर पापी तरुवर हिल जाता----
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता----

वो निश्छल आँखें कहाँ गयीं,
वो सरल सी चितवन कहाँ गयी---
गुंजायवान है हवा यहाँ,,,,,
कवि! गुंजन तेरी कहाँ गयी----

न जाने कितने दिल टूटे हैं,
खुद में ही खुद से रूठे हैं----
काव्य जगत भी पूछ रहा,,,
वो धड़कन मेरी कहाँ गयी----

धर्म की पावन धरती पर,
धर्म, धर्म ही इठलाता----
गर साथ जो तुमको,
मिल जाता-----
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको
मिल जाता-------


स्वरचित
दिन-शनिवार

दिनांक-०8/०९/२०१८

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

No comments:

Post a Comment