सभी आर्यावर्त वाशियों एवं इस देश को जो अपना समझते हैं उन्हें हमारा नमन-------
हम हिंदुओं (आर्यों) की संस्कृति में विराजमान दो महापुरुषों (मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, योगेश्वर श्री कृष्ण) पर अपने कुछ विचार इस लेख में लिख रही हूँ।
सबसे पहले तो उन ज्ञानियों से एक सवाल जो कहते हैं आर्य (हिन्दू) भारत के निवासी नहीं।
तो फिर आप बताएं भारत का मूल निवासी है कौन?
ईस्वी सन 711 में मुग़ल साम्राज्य आया भारत में,
2000 साल पहले ईसाई धर्म आया भारत में तो फिर आप बताएं सनातन धर्म कब कहाँ से आया।
आजकल सोसल मीडिया पर बहुत विद्वान् पैदा हो गए खासकर कुछ बनावटी *सवर्ण और कुछ बनावटी भीमटे*
ये एक दूसरे के खिलाफ खूब जहर लिखते हैं और फिर फॉरवर्ड करने वाले बेवकूफों को तो सौ तोपों की सलामी।
ऐसे तो मैं स्वयं ब्राह्मण नहीं हूँ लेकिन मैं भीमटे रंग में भी नहीं हूँ।
आज की मेरी खास तिलमिलाहट बौद्ध धर्म के नाम पर अराजकता फ़ैलाने वालों पर है।
जहां तक मुझे पता है महात्मा बुद्ध कहते थे
*अहिंसा परमोधर्म:*
तो फिर आप मांस का भक्षण क्यों करते हो ये कौन सी अहिँसा के अंतर्गत आता है।
अब आगे की बात करते हैं जो बाबा साहेब का नाम लेकर भगवन राम और भगवन कृष्ण के नाम पर उलटी सीधी बातें गढ़ते हो ये आपके बाबा ने कौन से आरक्षण या संविधान में लिखा की महापुरुषों का अपमान करो अरे रामायण काल और महाभारत काल में तो कर्म व्यवस्था के आधार पर वर्ण व्यवस्था थी।
अगर इतने ही विद्वान् हो तो बनावटी बातों से बाहर निकल कर इन महापुरुषों पर गहन अध्ययन करो हजारों उदहारण मिल जायेंगे।
वैसे भी आपके बाबा साहब ने जो किया वो अकेले तो किया नहीं उसमें उनकी राजनीति थी और कुछ इनकी और कुछ बिगड़े हुए हालात।
इसमें राम और कृष्ण का क्या दोष और इन महापुरषों पर न तो महात्मा बुद्ध ने कोई अध्ययन या टिप्पड़ी की न ही बाबा साहब ने।
और आज आपने मान लिया की आप पंगु हो मतलब रस्ते खुद तय नहीं करोगे।
बाबा विदेश में जाकर पढ़े कानून की पढाई पढ़ी उन्होंने यह कब और कहाँ लिखा की उन्होंने वेदों का अध्ययन किया, उपनिषद और स्मृतियों का अध्ययन किया?
या उन्होंने यह कब कहा कि हमने मुस्मृति पर शोध किया और उसमें की गयी मिलावट को परिवर्तित किया क्यों कि हमारे विद्वानों का मानना है कि हमारी संस्कृति, गुरुकुलों, न्यायव्यवस्था को ध्वस्त किया गया और हमारे धार्मिक ग्रंथ क्यों की विद्वानों को कंठस्थ भी थे तो पूरी तरह ध्वस्त नहीं कर पाए तो उनको विकृत कर दिया गया।
कुछ भ्रमित बातें जोड़ दी गयीं। राम और कृष्ण का चरित्र तक बिगाड़ने का हर संभव प्रयास किया गया।
आज योगेश्वर श्री कृष्ण को तो सिर्फ गोपियों के साथ एक रासलीला करने वाला बनाने में विधर्मियों को कामयाबी मिल रही है।
आपके बाबा साहब के पहले जन्में थे संत रविदास, संत कबीर, संत नानक, दादू------
क्या ये सब ब्राह्मण थे नहीं ना तो फिर इन्होंने तो कभी भी राम, कृष्ण का मजाक नहीं बनाया।
इन सबके बाद और आपके बाबा साहब के पूर्व पैदा हुए थे-- स्वामी दयानन्द सरस्वती ब्राह्मण परिवार में जन्में मूर्ती पूजा के विरोधी थे।
महान विद्वान स्वामी जी ने बरसों तक गहन अध्ययन किया वेद, उपनिषद, स्मृतियां------
दुनियां के कई धर्मों की धार्मिक पुस्तक रीत रिवाजों का अध्ययन किया------
और तब कहीं जाकर उन्होंने महान ग्रन्थ *सत्यार्थ प्रकाश* की रचना की।
स्वामी जी श्री राम और श्री कृष्ण का हमारे समाज में जो चरित्र फैलाया जा रहा उससे व्यथित थे।
लेकिन आप लोग आज कल बड़े ठाठ से जय भीम बोलते हो वो तुम्हारी इच्छा लेकिन हमारे सनातन धर्म का,श्री राम और श्री कृष्ण का तमाशा बनाने का हक़ किसने दिया।
अंत में एक
सन्देश उन लोंगो के नाम जो काम बाद में करते जाति पहले पूछते हैं।
आप लोग भी सुधर जाओ तो अच्छा है ये जो हमारे पूर्वजों का तमाशा बना है उसके पूरे जिम्मेदार हो।
अरे कुछ तो सोंचों इस सबसे मिट कौन रहा है।
टुकड़ों में बिखरकर क्या हासिल कर रहे हो।
भेड़ चाल में स्वार्थी न बनो।
मत भूलो इसी बिखराव के कारण मिट रहे हो जो जनेऊ जलाए गये थे सदियों पहले और उससे पैदा हुई ये जाति-पांति------ कहीं तुम्हारा अस्तित्व् ही न जला दे------
नोट-
किसी की भावनाओं को चोंट पहुँचाना मेरा इरादा नहीं किसी को दुःख पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
मैं एक हिन्दू हूँ मैं एक आर्य हूँ और यह हक़ न मुझसे कोई सवर्ण छीन सकता न दलित।
हमारा धर्म सनातन है जिसका न कोई आदि है न अंत।
इसपर कीचड उछाल कर अपनी महान अज्ञानता का परिचय न दें।
मेरे विचार-----मेरी कलम से----✍🏻
दिन-सोमवार
दिनांक-24/09/2018
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
हम हिंदुओं (आर्यों) की संस्कृति में विराजमान दो महापुरुषों (मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, योगेश्वर श्री कृष्ण) पर अपने कुछ विचार इस लेख में लिख रही हूँ।
सबसे पहले तो उन ज्ञानियों से एक सवाल जो कहते हैं आर्य (हिन्दू) भारत के निवासी नहीं।
तो फिर आप बताएं भारत का मूल निवासी है कौन?
ईस्वी सन 711 में मुग़ल साम्राज्य आया भारत में,
2000 साल पहले ईसाई धर्म आया भारत में तो फिर आप बताएं सनातन धर्म कब कहाँ से आया।
आजकल सोसल मीडिया पर बहुत विद्वान् पैदा हो गए खासकर कुछ बनावटी *सवर्ण और कुछ बनावटी भीमटे*
ये एक दूसरे के खिलाफ खूब जहर लिखते हैं और फिर फॉरवर्ड करने वाले बेवकूफों को तो सौ तोपों की सलामी।
ऐसे तो मैं स्वयं ब्राह्मण नहीं हूँ लेकिन मैं भीमटे रंग में भी नहीं हूँ।
आज की मेरी खास तिलमिलाहट बौद्ध धर्म के नाम पर अराजकता फ़ैलाने वालों पर है।
जहां तक मुझे पता है महात्मा बुद्ध कहते थे
*अहिंसा परमोधर्म:*
तो फिर आप मांस का भक्षण क्यों करते हो ये कौन सी अहिँसा के अंतर्गत आता है।
अब आगे की बात करते हैं जो बाबा साहेब का नाम लेकर भगवन राम और भगवन कृष्ण के नाम पर उलटी सीधी बातें गढ़ते हो ये आपके बाबा ने कौन से आरक्षण या संविधान में लिखा की महापुरुषों का अपमान करो अरे रामायण काल और महाभारत काल में तो कर्म व्यवस्था के आधार पर वर्ण व्यवस्था थी।
अगर इतने ही विद्वान् हो तो बनावटी बातों से बाहर निकल कर इन महापुरुषों पर गहन अध्ययन करो हजारों उदहारण मिल जायेंगे।
वैसे भी आपके बाबा साहब ने जो किया वो अकेले तो किया नहीं उसमें उनकी राजनीति थी और कुछ इनकी और कुछ बिगड़े हुए हालात।
इसमें राम और कृष्ण का क्या दोष और इन महापुरषों पर न तो महात्मा बुद्ध ने कोई अध्ययन या टिप्पड़ी की न ही बाबा साहब ने।
और आज आपने मान लिया की आप पंगु हो मतलब रस्ते खुद तय नहीं करोगे।
बाबा विदेश में जाकर पढ़े कानून की पढाई पढ़ी उन्होंने यह कब और कहाँ लिखा की उन्होंने वेदों का अध्ययन किया, उपनिषद और स्मृतियों का अध्ययन किया?
या उन्होंने यह कब कहा कि हमने मुस्मृति पर शोध किया और उसमें की गयी मिलावट को परिवर्तित किया क्यों कि हमारे विद्वानों का मानना है कि हमारी संस्कृति, गुरुकुलों, न्यायव्यवस्था को ध्वस्त किया गया और हमारे धार्मिक ग्रंथ क्यों की विद्वानों को कंठस्थ भी थे तो पूरी तरह ध्वस्त नहीं कर पाए तो उनको विकृत कर दिया गया।
कुछ भ्रमित बातें जोड़ दी गयीं। राम और कृष्ण का चरित्र तक बिगाड़ने का हर संभव प्रयास किया गया।
आज योगेश्वर श्री कृष्ण को तो सिर्फ गोपियों के साथ एक रासलीला करने वाला बनाने में विधर्मियों को कामयाबी मिल रही है।
आपके बाबा साहब के पहले जन्में थे संत रविदास, संत कबीर, संत नानक, दादू------
क्या ये सब ब्राह्मण थे नहीं ना तो फिर इन्होंने तो कभी भी राम, कृष्ण का मजाक नहीं बनाया।
इन सबके बाद और आपके बाबा साहब के पूर्व पैदा हुए थे-- स्वामी दयानन्द सरस्वती ब्राह्मण परिवार में जन्में मूर्ती पूजा के विरोधी थे।
महान विद्वान स्वामी जी ने बरसों तक गहन अध्ययन किया वेद, उपनिषद, स्मृतियां------
दुनियां के कई धर्मों की धार्मिक पुस्तक रीत रिवाजों का अध्ययन किया------
और तब कहीं जाकर उन्होंने महान ग्रन्थ *सत्यार्थ प्रकाश* की रचना की।
स्वामी जी श्री राम और श्री कृष्ण का हमारे समाज में जो चरित्र फैलाया जा रहा उससे व्यथित थे।
लेकिन आप लोग आज कल बड़े ठाठ से जय भीम बोलते हो वो तुम्हारी इच्छा लेकिन हमारे सनातन धर्म का,श्री राम और श्री कृष्ण का तमाशा बनाने का हक़ किसने दिया।
अंत में एक
सन्देश उन लोंगो के नाम जो काम बाद में करते जाति पहले पूछते हैं।
आप लोग भी सुधर जाओ तो अच्छा है ये जो हमारे पूर्वजों का तमाशा बना है उसके पूरे जिम्मेदार हो।
अरे कुछ तो सोंचों इस सबसे मिट कौन रहा है।
टुकड़ों में बिखरकर क्या हासिल कर रहे हो।
भेड़ चाल में स्वार्थी न बनो।
मत भूलो इसी बिखराव के कारण मिट रहे हो जो जनेऊ जलाए गये थे सदियों पहले और उससे पैदा हुई ये जाति-पांति------ कहीं तुम्हारा अस्तित्व् ही न जला दे------
नोट-
किसी की भावनाओं को चोंट पहुँचाना मेरा इरादा नहीं किसी को दुःख पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
मैं एक हिन्दू हूँ मैं एक आर्य हूँ और यह हक़ न मुझसे कोई सवर्ण छीन सकता न दलित।
हमारा धर्म सनातन है जिसका न कोई आदि है न अंत।
इसपर कीचड उछाल कर अपनी महान अज्ञानता का परिचय न दें।
मेरे विचार-----मेरी कलम से----✍🏻
दिन-सोमवार
दिनांक-24/09/2018
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
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