23/09/2018
जले थे हम अकेले,
बुझे थे हम अकेले------
कुछ दूर तो हम पहुंचे हैं,
जहां से चले थे हम अकेले------
जिद कल भी थी, जिद आज भी है------
न कल झुके थे गलत के सामने----
न आज झुके हैं-------
न झुकेंगे ताउम्र------
मेरी तन्हाइयों को आसमां मिल रहा है------
हम जा रहे मंजिल की तरफ-----
रास्ते में कारवाँ मिल रहा है------
रिस्तों की कीमत न लगाओ साहिब-----
जिसके बगीचे का अनमोल फूल हूँ मैं-----
हर कदम पर ऐसा बागवां मिल रहा है-------
No comments:
Post a Comment