Tuesday, September 25, 2018

शायरी


23/09/2018

जले थे हम अकेले,
बुझे थे हम अकेले------
कुछ दूर तो हम पहुंचे हैं,
जहां से चले थे हम अकेले------

जिद कल भी थी, जिद आज भी है------
न कल झुके थे गलत के सामने----
न आज झुके हैं-------
न झुकेंगे ताउम्र------

मेरी तन्हाइयों को आसमां मिल रहा है------
हम जा रहे मंजिल की तरफ-----
रास्ते में कारवाँ मिल रहा है------
रिस्तों की कीमत न लगाओ साहिब-----
जिसके बगीचे का अनमोल फूल हूँ मैं-----
हर कदम पर ऐसा बागवां मिल रहा है-------

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