Saturday, September 1, 2018

*हैं अब अजनबी*


वो बागों की कलियाँ,,,,,
और मोहब्बत की गलियां,,,,,,
खुशबू भरा उपवन------
वो झूलों का सावन-------
चाहतों का मंजर,
था मेरे भी अंदर------
वो शर्मीली नजरें,,,
और बालों में गजरे------

तितली का इतराना,,,
फूलों से टकराना-----
हाँ मुझे भी भाते थे कभी,,,,,
मेरे सपने और उनमें,,,
खो जाना------

वो पायल की रुनझुन,
वो चूड़ी की खनखन------
ओंठों में लाली,
और कानों में बाली-----
आइना भी था रूठा,,,
चाहतें थी झूठी-----
न मुझको खबर,,,,
मैं थी कब कैसे टूटी-------

संग मौसम के टकराना,
और उससे बतियाना-----
हाँ मुझे भी भाते थे कभी,,,,,,
मैं सांसों में बसाये थी जो,,,,
एक आशियाना-------

याद आते बहुत हमको,
जख्मों के मंजर,,,,,,
फिर रुलाते बहुत,
हमको धोखे के,
खंजर//////
चाहतें मेरी जब,,,
दफ़न सी हुयीं------
तिल-तिल तड़पे थे हम---
देखकर वो, बवंडर------

मोहब्बत से रहना,
मुहब्बत में बहना-----
गुस्सा भी थोड़ा,
नजाकत से कहना------
हाँ मुझे भी भाते थे कभी---
मैंने दिल में जो,
बनाये थे,
मोहब्बत के अँगना-------


हैं अब अजनबी?
वो सब अजनबी-----?
न जाने कहाँ गये,,?
या हो गए अजनबी------?
जो मुझे भाते थे कभी-----
जो मुझे भाते थे कभी--------


दिन-शनिवार
दिनांक 01/09/2018

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

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