Saturday, December 29, 2018

हिंदुओं के भगवान, भूगोल और विज्ञान

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩

आज हमारे आर्टिकल का शीर्षक है-----

*हिंदुओं के भगवान, भूगोल और विज्ञान*

मैं इस लेख में सिर्फ अपने देश और अपने कुछ विद्वान ऋषियों, मनीषियों की बात करुँगी।

मित्रों अंग्रेजों द्वारा चलाई गई मैकाले शिक्षा प्रणाली ने हमारी तर्क शक्ति, विज्ञान शक्ति सब ध्वस्त कर दी। हम अपनी संस्कृति से विमुक्त होते जा रहे अपने बच्चों को सिर्फ एक गुलाम मानसिकता का बनाते जा रहे।
आज विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की करने वाले देश अपनी भाषा बोलते हैं, अपने देश के प्रोडक्ट इस्तेमाल करते हैं लेकिन हम उनके उतरन भी ब्रांडेड समझकर शेखी बघारते हैं क्यों कि हम सदियों तक गुलाम रहे और उस गुलामी से बाहर नहीं निकल पा रहे।
अब मैं बात करुँगी इस गुलामी की मानसिकता से पहले क्या था हमारा देश?
बादशाह था विज्ञान का, तर्क का, आध्यात्म का, आयुर्वेद का और न जाने किस-किस क्षेत्र में------

जब दुनिया को खड़े होना न आता था तब यह भारतवर्ष दौड़ रहा था विज्ञान और भूगोल के क्षेत्र में------ जब दुनिया ने चलना सीखा तो डाका डाल दिया हमारी पवित्र भूमि पर------ कभी इस देश ने, कभी उस देश ने-----
इस कदर डाका डाला कि अब तो हमें आदत हो गयी जब तक डाका न पड़े चैन नहीं आता------

हमारा देश जिस देश में कहा जाता है भगवान के नाम पर पाखंड है। हाँ जी
क्यों की हम उन भगवानों को समझने का प्रयास न तो करते हैं न ही अपने बच्चों को कराते हैं।

हम बच्चों को यह नहीं सिखाते की परमपिता परमात्मा तो सिर्फ एक है जो सर्वशक्तिमान है और जो ये अलग अलग भगवान हैं वो तो दरसल हमारी अज्ञानता है हमने उन भगवानों के कार्यों को ही नही समझा। उनका सम्मान क्यों करना चाहिए क्यों हमारे पूर्वजों ने उन्हें हमारे दैनिक जीवन से जोड़ा होगा?

मैं अपने तर्क द्वारा एक झलक दिखाना चाहूँगी भगवान, भूगोल और विज्ञान की------

आज भी कई मंदिर ऐसे मिल जायेंगे जहां नौ ग्रहों की पूजा होती है------
ये नौ गृह क्या हैं------
हमारे महान वैज्ञानिक ऋषि आर्य भट्ट की खोज जिन्होंने हजारों वर्ष वर्ष पूर्व भूगोल शास्त्र पर विजय पाई थी---- मतलब उन्होंने टेलिस्कोप की खोज भी की होगी-------- उन्होंने सूर्य और पृथ्वी की दूरी हजारों वर्ष पूर्व जो निर्धारित की थी आज भी कोई नहुँ झुठला पाया हम आज भी वही दूरी पढ़ रहे परंतु किसी और के नाम से। हमने अपने पूर्वजों से सुना और कई बार पढ़ा भी की हमारे मनीषियों ने २७ ग्रहों को खोजने में सफलता प्राप्त कर ली थी। आज तक कोई भी देश नौ ग्रह से ज्यादा नही खोज पाया।

आज टी वी धारावाहिकों में हमारी विज्ञान को अजीब सा रूप दे दिया गया------- गुरु, मंगल शुक्र, शनि, यम------------ सभी को जादुई देवताओं के रूप में पेश किया जाता है जो अकल्पनीय लगता है------

महान ब्रह्मचारी, बलशाली, राजनीतिज्ञ, सर्वगुणी महान वैज्ञानिक बजरंग बली को सूर्य को निगलते हुए दिखा दिया सूर्य जो पृथ्वी से कई गुना बड़ा है कोई कैसे निगल सकता है हाँ निगल सकता है एक वैज्ञानिक?
और बजरंगबली एक वैज्ञानिक थे।
आज भी आंचलिक भाषाओँ में कहते हैं वो पढाई में या अमुख विषय में इतना प्रखर है कि उसे निगल गया, गटक गया, घोलकर पी गया------बगैरह----
तो यहाँ पर विषय यह बनता है कि सूर्य का तापमान बहुत ज्यादा होने के कारण उस पर शोध अधूरे रह जाते हैं और हो सकता है हमारे महान वैज्ञानिक ने सूर्य पर कोई अकल्पनीय रिसर्च की हो जिस्की परिवर्तित भाषा सूर्य को निगलना हो गया-------

इस तरह तो बहुत लंबी कतार है हमारे मनीषियों की और हो सकता है बुद्धिजीवी मुझे पागल समझें------

इस लिए मैं अपने आर्यवर्त के कुछ हजार साल पूर्व के राजाओं और उनके ज्ञान विज्ञान का उदाहरण देना चाहूँगी------
उनमें से एक हैं महान वैज्ञानिक महाराजा विक्रमादित्य आज भी उनकी वेदशाला दिल्ली में स्थति है जिसे विष्णुस्थम्ब के नाम से जाना जाता था। जिसे मुगलों ने तोड़ फोड़कर कुतुबमीनार का नाम दे दिया------ महाराज विक्रमादित्य का सिंघासन किस सिस्टम से बना था कि उनके अलावा कोई नहीं बैठ सकता था ३२ बोलने वाले रोबोट जो कोडवर्ड में बात करते थे।
और बाद में वो सिंघासन कोई नही पा सका-------महाराज कितने महान वैज्ञानिक थे हमारे इतिहास से गायब कर दिया गया------ उनके सहकर्मियों को मार दिया गया------

एक और भी वैज्ञानिक हुए महाराज हर्ष वर्धन जिन्होंने दुनिया को सबसे पहले बताया घर पर पानी से बर्फ कैसे जमती है------हाँ जी जिन देशों में कुदरती बर्फ है उंन्हें भी न पता था  बर्फ कैसे जमाते हैं।
न जाने कितने लोहे के औजार हथियारों का निर्माण किया महाराज हर्षवर्धन ने---------लेकिन इतिहास से उनकी विज्ञान भी गायब-------
दुनिया को रौंदने वाला सिकंदर आचार्य चाणक्य के सामने न टिक सका लेकिन वो महान आचार्य आज चुटकुलों का पात्र है------ देश पर मौर्य साम्राज्य स्थापित करने वाला देश की बिगड़ी हुयी अर्थ व्यवस्था को संभाल उसे स्वर्ण युग बनाने वाले आचार्य की नीतियों को आज हेय दृष्टि दे दी गयी।

या तो इतिहास से गायब कर दो या फिर स्वरूप बिगाड़ दो।
यदि कुछ धर्म के नाम पर बचाकर रखा तो उसे ऐसा मोड़ दे दिया की हमारे पूर्वज हँसी का पात्र बन गए--------

मैंने कुछ दिन पहले एक आर्टीकल लिखा था *नियोग कोई व्यभिचार नहीं*

लेकिन नियोग व्यवस्था से पांडव जैसे महान वीरों को पैदा करने वाली महान विदुषी स्त्रियाँ जो अपने युग की वैज्ञानिक थी उन्हें आज मजाक का पात्र बनाया जा रहा लेकिन आज पैदा हुआ अमेरिकन विज्ञान आदमी से भी बच्चा पैदा कर दे तो वाह वाह------

पता नहीं हम कभी आजाद भी होंगे या पूर्णतयः विलुप्त हो जायेंगे-------पता नहीं भटके हुए कभी घर वापस होंन्गे या बचाखुचा भी बेंच देंगे बनावटी आधुनिकता के नाम पर-----

मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
दिन-रविवार
दिनांक- ३०/१२/१८
निर्देश-कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Friday, December 28, 2018

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम 🚩

मित्रों  हमारे लेख और रचनाओं को पढ़कर कभी सज्जन बहुत भावुक हो जाते हैं या फिर कुछ लोग हमारे जीवन सम्बंधित पहलुयों को जानने के लिए बेचैन हो उठते हैं।
कुछ ऐसे भी हैं मुझे सलाह देने लगते हैं जीना सीखो, खुश रहो, एक बार जिंदगी मिलती है बगैरह--------- मुझे बड़ा मुश्किल लगने लगता है सभी को उत्तर देना क्यों की समयाभाव होता है।

मैं इतना ही कहना चाहूँगी स्वयं को पढ़ना अपने जीवन का सबसे मुश्किल कार्य है और जिसने स्वयं को पढ़ना सीख लिया उसकी बेचैनियां स्वत: ख़त्म हो जाती हैं।

आप लेख और रचनाएँ पढ़कर उसमें अपने लिए शब्द तलाशते हैं कि मेरे लिए या मेरे मन को अच्छा लगने वाला इसमें क्या है और यह मानव स्वभाव भी है परंतु जिस दिन से आप यह सोंचकर पढ़ने लगते हैं कि ये उस लेखक या लेखिका के स्वतंत्र विचार हैं अब आपको यह देखना है कि इसमें जीवन की यथार्थता कितनी है तब आप उस लेखक या लेखिका के बारे में नहीं बल्कि जीवन दर्शन के बारे में सोंचते हैं।

किसी के विचारों से स्वयं को बांधकर आप अपने व्यक्तित्व का का विकास नहीं कर सकते बल्कि  विचारों में कितनी सत्यता है और ये विचार पठनीय क्यों हैं इस मुद्दे पर विश्लेषण करके आप अपने मस्तिष्क को स्वयं एक नई दिशा दे सकते हैं और जब ऐसा होगा तो आप अपने मन मस्तिष्क को स्वतंत्र महसूश करेंगे।

कोई भी ऐसा लेखक या लेखिका जो स्वतंत्र रूप से लिखता हो वो सच में इतना भी मूर्ख तो नहीं होगा कि उसकी खुशी किसमें है उसे पता नहीं, वो कितना नादाँ या समझदार है उसे पता नहीं,  उसे लिखना चाहिए या नहीं उसे पता नहीं-------- यह उसकी अपनी मन:स्थिति है कब, क्या, क्यों लिखता है----------😊

मेरे विचार मेरी कलम से---✍🏻
दिन शुक्रवार
दिनांक-२८/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, December 27, 2018

न मांगो हिसाब मेरा,,,,
अब बेहिसाब रहने दो--------
मेरी अदालत में मेरी,
किताब रहने दो-----

अच्छे नहीं लगते अब,
हमें गम के साए----
छाँव में तुम रहो,,,,,,
हमें आफ़ताब रहने दो---✍🏻🔥

२८/१२/१८
आर्या शिवकान्ति--------

Wednesday, December 26, 2018

सभी प्रियजनों को मेरी नमस्ते----
सुप्रभातं
जय श्री राम

आज सभ्य समाज के बारे में प्रस्तुत है मेरे कुछ निजी विचार....

भगवान राम को रामा, भगवान कृ्ष्ण को कृष्णा, स्वामी विवेकानंद को विवेकानंदा, स्वामी दयानंद को  दयानंदा.....इस तरह के  यह सम्बोंधन आजकल का सभ्य समाज करता है जैसे हमारे सभी आराध्य अमेरिका के ह्वाइट हाउस में जन्में थे|और तो और सभ्य समाज हिंदी या अपनी मातृभाषा में बात करने वालों को जाहिल गंवार भी कहते हैं|
इसी तरह के कुछ सभ्य समाजियों की संताने अधर में लटकी हैं बेचारे परीक्षा पत्र पर उल्टी करने के लिये खूब अंग्रेजी ठूंसते हैं परन्तु उल्टी करने से पहले ही सारे जवाब अदृश्य हो जाते हैं इनकी देखा देखा में कुछ अनपढ़ अमीर पहुंचते हैं सर और मैडम के पास मेरे बच्चे को ऐसी अंग्रेजी सिखाओ कि बस तोते की तरह बोलने लगे|
इनसे पूछो मातृभाषा तो आती है ना आपके बेटे को तो कहेंगे अरे मातृभाषा भी कोई सीखता है क्या अपने आप आ जायेगी|आ जायेगी? मतलब अभी तक आयी नहीं!
वो सब छोड़ो आप तो बस अंग्रेजी सिखाओ| इधर अध्यापक अध्यापिकायें भी स्पीकिंग कोर्स करके दौड़े चले आ रहे लेकिन एक वचन बहुवचन का मतलब नहीं बता पा रहे हैं|

हां जी अब हमने भी बच्चे को रटा दिया तोते की तरह...तोते को रटाया मोहन इज आ गुड बॉय....परीक्षा में आ गया मोहन की जगह सोहन..
 बेचारे को कर्ता , क्रिया कुछ पता नहीं सोंच रहा मैंने तो मोहन रटा था सोहन कहां से आ गया?

पिता जी आये भन्नाते हुये यह सब गलत लिखकर आया आपने क्या पढ़ाया?
मैंने कहा जी तोते की तरह रटाया...तोता वही बोलता है जो उसे रटाओ उसमें अपना दिमांग लगाने की क्षमता नहीं होती
.
तो फिर आपके बच्चे हमेशा अच्छा रिजल्ट कैसे लाते हैं...
जी मेरे बच्चे तोता नहीं हैं| इंसान हैं इसलिये हमने अपनी मातृभाषा में समझाया...
मोहन सोहन जो भी लिख देना..बस सारे नियम अपने दिमांग में रखाना..

हमने अपने बच्चों को बताया..
अ...को अंग्रेजी में a लिखते हैं|
a says अ कहेंगे तो परेशानी होगी|
क्यूं...
हिंदी में स्वयं में उच्चारित होने वाले वर्ण १३ हैं जिन्हें स्वर कहते हैं|
एक अनुस्वार
फिर विसर्ग
जिह्वामूलीय
उपध्मानीय
क वर्ग
च वर्ग
ट वर्ग
त वर्ग
प वर्ग............

अब अंग्रेजी में होते हैं २६ अक्षर
जिनके द्वारा हम हिंदी सीख नहीं सकते|
इसलिये हिंदी द्वारा अपने बच्चों को अंग्रेजी सिखा दी बस आराम से होने दो परीक्षा अपने आप लिखते रहेंगे उत्तर |

क्या बताऊँ सज्जनों सभ्य लोग मुझे मानसिक रोगी समझ बैठे|

फिर हिंदुस्तानी अंग्रेजों को उदाहरण जो दिया मैंने..वो तो बोले एकदम पागल हूं मैं..

हुआ यूं कल मेंरे किसी अपने ने कहा था.
अंग्रेजी में बात करने वाले तो रोड पर झाड़ू लगाते भी मिल जायेंगे परन्तु पूरे हिंदस्तान में कोई संस्कृत भाषा बोलने वाला बंदा सब्जी की ठेली लगाये भी मिल जाये तो बता दो...
यह है हमारी दैव वाणी की कीमत हमारे सनातन धर्म की कीमत, हमारे आर्यावर्त की कीमत... जिसे आज भी अंग्रेज चुराने आते हैं और चुरा चुरा कर एक दिन वो चोर सच में विद्वान बन जायेंगे और हम उनकी भाषा के आज भी गुलाम हैं कल भी गुलाम रहेंगे।जो दिखावे में जीने वाले और खुद को माडर्न कहने वालों के समझ नहीं आने वाली........
आज हमारे देश में होने वाले हर खोज को अंग्रेजों ने अपने नाम कर लिया----- चाहे वो आर्यभट्ट द्वारा यूनिवर्स पर आधारित खोंजें हों या फिर महर्षि भरद्वाज द्वारा विमान को बनाने के फार्मूले पढ़कर 18वीं सदी में विमान बनाकर बिना चालक सकुशल विमान उड़ाकर उसकी लैंडिंग कराने वाले हिंदुस्तानी वैज्ञानिक तलपदे साहब हों।
लेकिन हम तो उन चोर गैलीलियो और राइट ब्रॉथेर को ही महान मानेंगे क्यों की हमारे पास अपनी अक्ल तो है लेकिन उसका रिमोट कन्ट्रोल किसी और को दे चुके हैं।

जय आर्यावर्त
जय भारत
ओ३म् परमात्मने नम:

मेरे विचार मेरी कलम से..
२६/१२/१७

आर्या शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Sunday, December 23, 2018

दिल को सच्चा रखने खातिर?

सभी श्रेष्ठजनों को नमन करती हूँ-------

मेरी कविता के साथ मेरी कलम हाजिर है------

कविता का शीर्षक है----

*दिल को सच्चा रखने खातिर?*

छोड़ के सारी दुनियादारी,,,,
मन को कभी संवरने दो----
सुन रिमझिम-रिमझिम बूंदों की,,,
मन इंद्रधनुष तो बनने दो????

*क्यों? कब? कैसे?*
हर जगह न सोंचों----
बेवजह भी तुम, मुस्काओ कभी,
नादानी दिल को करने दो-----

बच्चों में देखो बचपन को,
न अपना बचपन खोजो तुम---
मन मेरा भी है बच्चों सा,,,,,
मन से ऐसा सोंचों तुम-----

दिल जिसका निश्छल होता है,
मुस्कान भी उसकी दासी है----
क्या खोज रहे तुम यहाँ-वहाँ,
तुम में ही मथुरा काशी है-----

न जमीर खुद का ढकने दो,
शान ए शौकत और रुआबों से,,,
इक दुनिया दिल में रहने दो,
बचपन के सच्चे ख्वाबों से-----

नादान न समझो बचपन को,
उसमें ही सच्चा ईश्वर था----
जो चेहरे पर, दिखता था,
वो ही तेरे भीतर था------

तुम चाहो तो अंदर बाहर से,
खुद को अब, गढ़ सकते हो----
तब पढ़ना न आता था,
अब सही-गलत पढ़ सकते हो-----

*लेकिन खुद को पढ़ने खातिर,*
*दिल को सच्चा कर डालो,,,*
*दिल को सच्चा करने खातिर,*
*खुद को बच्चा कर डालो*

कभी तो हर्षित, पुलकित मन को,
पतंग बनकर उड़ने दो----
जब थककर वापस आएगा,,,,
तो खुद में उसे विचरने दो-----

सुन रिमझिम-रिमझिम बूंदों की,
मन इंद्रधनुष तो बनने दो-----
बेवजह भी तुम मुस्काओ कभी,
*नादानी दिल को करने दो------*
💐💐💐💐💐💐💐

दिन-रविवार
दिनाँक-२३/१२/१८
निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

✍🏻
*आर्या शिवकान्ति आर कमल*
(तनु जी)

Thursday, December 20, 2018

नियोग कोई व्यभिचार नहीं

ओउम्
सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन
सुप्रभातं 💐
जय श्री राम 🚩

*नियोग कोई व्यभिचार नहीं*

आज फिर प्रस्तुत हूँ अपने मन के कुछ तर्क और विचार लेकर मेरी कलम के साथ-----
हमारा आज का मुद्दा हमारी संस्कृति और सनातन धर्म से सम्बंधित है-------

मित्रों सनातन धर्म जो अनादिकाल से इस सृष्टि में व्याप्त है जिसका न तो आदि है न ही अंत------इसका अनुसरण करने वाली हमारी संस्कृति विज्ञान, तर्क, आध्यात्म के हर पन्ने पर खरी है लेकिन आज हमारा समाज सच से बहुत दूर पाखंड का शिकार हो चुका है।
आज अपने इस लेख में महाभारत काल की कुछ बातों पर अपने विचार प्रस्तुत करूँगी------

महाभारत काल या फिर ये कहें विश्वगुरु आर्यवर्त का अंतिम काल हाँ जी यदि भारत के ज्ञान, विज्ञान, संस्कृति को  समझना है तो महाभारत काल के पहले जाना होगा क्यों की इसके बाद तो हमारे आर्यवर्त का जो बलात्कार हुआ है उसका अंजाम आज हम सिर्फ गुलाम हैं दूसरों की भाषा के, दूसरों की रहन सहन के---

महर्षि वेदव्यास ने *जय महाकाव्य* की रचना की थी
जो बाद में *भारत* हुआ
उसके बाद *महाभारत*
और यही नहीं जिस तरह *मनुस्मृति* में परिवर्तन कर हमारी आर्यवर्त की संविधान व्यवस्था ख़त्म कर दी गयी,,,,
और आज हम गुलामों के संविधान व्यवस्था पर मर कट रहे हैं इसी तरह महाभारत से लेकर अन्य हर उस विषय में परिवर्तन और मिलावट सामिल की गयी जो देश का सुनहरा भविष्य था।
आज यदि हमारी संस्कृति कुछ विद्वानों के रूप में बची है तो उल्टा उन्हें ही षड्यंत्र का शिकार बना दिया जाता है।

आज मैं एक मुद्दा और उठाऊंगी जिस तरह योगेश्वर श्री कृष्ण के चरित्र को बदनाम किया गया इसी तरह हमारी विदुषी स्त्रियों को भी बदनाम किया गया कुंती, माद्री और द्रोपदी आदि को-----

जब कोई विधर्मी आपके इन महान पूर्वजों पर अंगुली उठाता है तो आप जवाब नहीं दे पाते क्यों------?
कारन क्या है?

क्यों की आप जादू, टोने और पाखंड की दुनिया में जी रहे हैं------

जब *जय महाकाव्य, से *भारत* और भारत से *महाभारत* हो गया तो फिर यह कैसे मान लिया हमारे महान पूर्वजों का जो चरित्र दिखाया जा रहा वो सच होगा---–----- कोई स्त्री एक साथ पाँच पुरुषों की पत्नी कैसे हो सकती है------ या फिर कुंती जैसी विदुषी कोई व्यभिचारिणी हो सकती है।

मित्रों हमारी संस्कृति के अनुसार स्त्री पुरुष को समागम सिर्फ संतान प्राप्ति के लिए करना चाहिए और गुनी, बलशाली, विद्वान संतान प्राप्ति के लिए स्त्री-पुरुष ब्रह्मचारी जीवन बिताते हुए शरीर को निरोग और बलिष्ठ बनाते थे।
यज्ञ, हवन करते थे, वेदों का का अध्ययन करते थे---- और फिर इस राष्ट्र के लिए एक सर्वगुनी संतान को उतपन्न करते थे। यह बात मैं श्री कृष्ण, कुंती, माद्री, द्रोपदी जैसे विद्वानों के बारे में ही बोल रही हूँ जिन्हें आज समाज में मजाक का पात्र बना दिया गया है।
स्वयं योगिराज श्री कृष्ण और माता रुक्मणि ने बारह साल ब्रम्हचर्य का पालन करने के बाद अपनी संतान प्रद्युम्न को जन्म दिया था।

अब बात माता कुंती और  माद्री की करें। ये स्त्रियाँ अपने युग की निर्माता और आज की भाषा में कहें तो वैज्ञानिक भी थीं। पांडु महाराज जन्म से रोगग्रस्त थे जो योग्य संतान उतपन्न करने में असमर्थ थे।

हमारी संस्कृति में नियोग व्यवस्था बताई गयी है। नियोग व्यवस्था मतलब कोई व्यभिचार नहीं।

परंतु आज का समाज जो पोर्न फिल्मों में लिप्त है, शारीरिक संबंध को दाल रोटी समझकर खा रहा उसे तो नियोग मतलब व्यभिचार ही समझ आएगा।
लेकिन यदि देखें तो आज भी नियोग होता है। जो ज्यादा होशियार लोग हैं अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों के तरक्की की पीपीडी बजाते हैं वो तो समझ ही जायेंगे की आज कुछ चिकित्सीय क्रियाओं द्वारा नियोग कराया जाता है मतलब पुरुष के सुक्राणु स्त्री में प्रतिस्थापित कर संतान उतपन्न की जा रही है स्त्री में ही क्यों कुछ साल पहले तो पुरुष के पेट में बच्चे को विकसित करने का मामला विज्ञानं की दुनिया में खूब छाया था।

तो अब हम अपनी संस्कृति की नियोग व्यवस्था की बात करते है यह नियोग आज की तरह नहीं था जो किसी भी व्यभिचारी या दुर्व्यसन एवं प्रतिदिन सम्भोग करने वाले पुरुष के नियोग द्वारा संतान उतपन्न किया जाये परंतु यह नियोग विज्ञान के साथ-साथ ब्रह्मचर्य, आध्यात्म जैसे विभिन्न बातों पर आधारित था जो हमारी विदुषी स्त्रियों ने धारण कर इस राष्ट्र को पाँच पांडवों जैसे पुत्र दिए जो ऐसी कलाओं में निपुण थे जिनके बारे में आज लोंगो को यकीन नहीं होता और काल्पनिक बातें कहकर मजाक उड़ाते हैं।
साक्ष्यों पर आधारित हमारा हर मुद्दा चाहे वो रामायण काल हो या महाभारत काल यदि आपको कल्पना मात्र लगता है तो आप स्वयं एक मजाक का पात्र हैं और कुछ भी नहीं------ ओउम्

मुझ जैसे अज्ञानी की कलम से इस मुद्दे पर बस इतना ही बाकी आप स्वयं सोंचें हमारी संस्कृति हमारा गौरव है अपमानित होने का विषय नहीं------जिस जर्मनी और अमरीका जैसे देश के गीत गा रहे हो वो तो अभी उस विज्ञान का क ख ग भी न खोज पाए लेकिन अपसोस हम आज अपनी ताकत खो चुके हैं-------
स्वयं को पहचानों, अपने देश से प्रेम करो, अपनी संस्कृति को पहचानों----- जय आर्यवर्त, जय भारत------🚩🚩🚩🚩🚩

मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻

*आओ लौट चलें वेदों की ओर--*

दिन-शुक्रवार
दिनांक- २१/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Wednesday, December 19, 2018

आप सभी श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए--------

कुछ विचारों की प्रस्तुति-----

मैं समझती हूं हर व्यक्ति मुझसे किसी न किसी विषय में श्रेष्ठ है इसलिए मैं हर व्यक्ति में छिपी श्रेष्ठता को नमन करती हूँ------

एक शेर अर्ज किया है गौर फरमाएं----

*मेरी जिंदगी में शामिल हर शख्स को सलाम,*
*जो मजबूर है उसे भी,*
*जो मगरूर है उसे भी-------*

और दोनों तरह के ही लोंगो से हमें  स्वयं को समझने का मौका मिलता है। अन्तर्मन को टटोलने का मौका मिलता है कि हम किस श्रेणी में हैं। हमने अपने जीवन में देखा बहुत पढ़े-लिखे और संस्कारी लोंगो को भी झूठी शान-शौकत का असर हो जाता है वो अपने और अपनों से ज्यादा ये सोंचने लगते हैं हमारा समाज में रुतवा है, पैसा है, हमारे ज्ञान का प्रचार प्रसार है। यहां तक की समाज के समझदार लोंगो को दूसरों मजाक उड़ाते तक देखा और जब तक आपके मन में ऐसे विचार आते हैं तो आपको बताने की जरुरत नहीं की आपका अन्तर्मन अभी तक विकसित नहीं हुआ।
अब आप अपने आस-पास देखें क्या आपके आस-पास आपका कोई भी आलोचक नहीं, क्या आपके पास वो जादू है जिससे आप स्वयं से जुड़े हर रिस्ते को खुश कर सकें नहीं ना।
आप ध्यान से सोंचेंगे तो कहीं सफल तो कहीं असफल नजर आएंगे।
आप किसी के लिए जीने की वजह तो किसी के लिए बोझ भी हो सकते हैं। ये सब समझने के बाद हमें अनुभव होता है---

*कि जिंदगी भर हम भरते ही रह गए इस जिंदंगी को सीपी समझकर,,,,,,,*
*लेकिन इस सीपी में भी समन्दर बड़ा गहरा था साहिब----*

 पुस्तकीय ज्ञान तो हमने हासिल कर लिया, हमने  सिर्फ वो पढ़ा जो किसी और ने लिखा था  लेकिन स्वयं को नहीं पढ़ा।

जब हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं, आत्मचिंतन करते हैं तो स्वत: एक विषय तैयार होता है एक प्रभावपूर्ण विषय और आप दिन प्रतिदिन अपने अन्तर्मन में  एक सुखद अनुभूति का अहसास करने लगते हैं------

अंत में मैं फिर कहूँगी मैं कोई ज्ञानी तो नहीं हूँ बस अपने अनुभव, अहसास, स्वध्ययन को कलम से उतारने का प्रयास करती हूँ---🙏🏻
मैं कोई ज्ञानी तो नहीं हूँ इसी शब्द पर दो दिन पहले एक भाई ने मुझे काफी परेशान किया था। मेरा साक्षात्कार ले रहे थे जिसके लिए मेरा मन बिलकुल तैयार नहीं था मेरा कवि मन साक्षात्कार यूं ही क्यों देने लगा-----
हो सकता है वो भाई मेरी पोस्ट पढ़कर समझने का प्रयास करें----

मेरे विचार मेरी कलम से---- ✍🏻

निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
१९/१२/१८

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, December 18, 2018

देश भक्ति खाक करोगे जब जमीर ही तुम्हारा मर चुका

सरकार कोई भी हो मुंह में निवाले डालने नहीं आएगी,,,,
वो तो अपने आप ही खाने पड़ेंगे-----
लेकिन हम जिसे चुन रहे वो देश का स्वाभिमान है या नाशूर------
यह तो सोंचना चाहिये-----

आज दुनिया का सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्व को हमारे देश के ही लोग सम्मान नहीं दे सकते।
शायद इसलिए की उसने अपनी कोई प्रोपर्टी नहीं बनाई, रिश्तेदारियां नहीं निभायीं, देश के राजस्व विभाग को भर दिया, उसके राज में जनता बोम्ब विस्फोटों से तड़प-तड़प कर नहीं मर रही, बंगला देशियों को चुन-चुन खोज लिया, सऊदी अरब में भी गीता को शिरोधार्य करा दिया-------

क्यों की हमारे देश वाशियों को तो पेट्रोल पीना था, अब वो भी पी लो भाई।
गांव के लोग जिन्हें देश दुनियां की खबर नहीं है उंन्हें भड़का लो जब से गायों के कसाई खानों पर पाबंदियां हैं गाय तो लोग पाल रहे लेकिन किसानों की फसल सांड बर्बाद कर रहे फिर उठा लो मौके का फायदा जयचंदों लोंगो को यह न समझाओ की धीरे-धीरे समस्याएं सुलझती जाएँगी और किसानों पर तो हमारा देश बसता है तो उनकी समस्याएं एक देश भक्त लिए कितनी खटकती होंगी।
कोई और ऑप्सन होता तो फायदा उठाते भी अच्छा लगता लेकिन तुम लोंगों ने ठान ली है हम गुलामी करते आये हैं और करते रहेंगे वापस मुड़कर न देखेंगे।
जमीर मर चुका है तो देश भक्ति क्या करोगे------

मेरे विचार मेरी कलम से-----

ओउम्
सभी को मेरी नमस्ते
सुप्रभातं
जय श्री राम

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, December 16, 2018

कहाँ है परमात्मा

ओउम्
नमस्ते जी
जय श्री राम

मित्रो जब लोंगो के मन मुताबिक कार्य नहीं होता तो अक्सर कहते हैं परमात्मा कहाँ हैं या फिर कहते हैं परमात्मा जैसा तो कुछ है नहीं संसार में।
पहले तो बात यह है कि तुम परमात्मा समझ किसे रहे हो और खोज कहाँ रहे हो?
यह समझना होगा------
परमात्मा हमारी आत्मा में ही है बस आत्मा को विकसित करने की जरुरत मात्र है। लेकिन विकसित आत्मा क्या है?
आत्मा को विकसित तो वही कर सकता है जो आत्मा की सुनता हो?
छल कपट रहित मन का स्वामी हो-----
जो सांसारिक क्रियाओं को अपना फर्ज समझ कर निभा रहा हो।
हम इंसान हैं हमारी दैनिक जरूरतें भी  हैं जो कुछ भौतिक हैं और कुछ शारीरिक भी।
इंसानों का मोहपास में फँसना भी स्वाभाविक है।
परंतु इन सबके बावजूद हम अपने अन्तर्मन के स्वामी है।
हम अपना आत्ममंथन जब तक स्वयं न करें तो कोई कुछ नहीं कर सकता।
एक कपटी और धूर्त स्त्री या पुरुष अपने जीवन में कभी सुखी नहीं रह सकता उसके पास चाहे जितने सांसारिक सुख और वैभव हों। क्यों की जब बात स्वयं के मूल्यांकन की आती है तो वह अंदर से कांप जाता है बौखलाता है उसे यही नहीं पता होता की वह चाहता क्या है।
जब की एक छलरहित स्त्री या पुरुष हर हाल में मुस्कुरा ले लेता है और अपने अंतर्मन में प्रसन्नता का अनुभव करता है।
हम चालाकी करके भौतिक चीजें तो हासिल कर सकते हैं परंतु आत्मिक सुख नहीं।

इसलिए जो लोग परमात्मा के अस्तित्व पर ऊँगली उठाते हैं उन्होंने कभी भी अपनी आत्मा की आवाज नहीं सुनी। वो हर सुबह उठते तो हैं लेकिन सिर्फ दिमांग से अन्तर्मन तो उनमें सोया हुआ है।

आप दो घण्टे घर के मंदिर में बैठे हैं परंतु पडोसी का सुख तकलीफ दे रहा,
आप आरती कर रहे लेकिन आवाज जोर से निकाल रहे ताकि पड़ोसियों तक जाये की हम पूजा करते हैं।
आप प्रसाद बाँट रहे परंतु नजर थाली पर है कहीं पूरा ख़त्म न हो जाये।
आप हवन कर रहे लेकिन घी बचाना चाहते हैं।
आप कन्याभोज करा रहे परंतु नौ कन्या से ज्यादा हो गईं तो परेशान हो गए।
आप किसी गरीब से मिलने जा रहे सड़ी-गली मिठाई लेकर यह सोंचते हुए की उंन्हें क्या पता अच्छी मिठाई का स्वाद-----
आप किसी की थोड़ी सी मदद करके बार-बार दिखा रहे की मैं न होता तो क्या होता?
आप अपनों के हिस्से की प्रॉपर्टी अपने नाम कर रहे और फिर अनायास असनीय अंजाम भुगतने पर रोते हुए बोलते हो कहाँ हैं परमात्मा-------

परमात्मा तो यहीं हैं।
हमारे अन्तर्मन में------
परमात्मा तो यही है हमारी विकसित आत्मा के रूप में-----
लेकिन आपने कुकर्म इतने किये कि आपको यही नहीं पता आपकी आत्मा कहाँ हैं------

आसा करती हूँ आप सबको लेख पसंद आएगा मैं कोई ज्ञानी तो नहीं अपने अनुभव लिखने का प्रयास किया है----

ओउम् परमात्मने नम:
--------मेरे विचार मेरी कलम से ✍🏻

निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
१७/१२/१८
आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Friday, December 14, 2018

हैं बंद खिड़कियाँ

सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻
शुभसंध्या💐

आज मेरी कलम से प्रस्तुत है विरह वेदना पर आशु रचना--

*हैं बंद खिड़कियाँ✍🏻*

मिलन अधूरे रह गए साजन,,,,
अँखियाँ काली बिन अंजन की----
व्यथा कहूँ मैं तन की अपने,
या लिखूं मैं पीड़ा अन्तर्मन की----

धरा तड़पकर सूख गयी,
न प्यास बुझाने आये बादल---
पाती लिख-लिख थकी अंकनी,
फिर भी दिल है, कोरा कागद---

निशा डरावे नागिन बनकर,
न मैं दुल्हन, न तुम साजन---
यौवन में यौवन बीत गया,
क्या अभी भी बाकी है स्पंदन,,,

मिल जाता जो आलिंगन तेरा,,,,,
मैं मीठा दरिया बन जाती----
तुम भौंरा बनकर गुनगुन करते,,,,
मैं फूलों सा, मुस्काती----

अक्सर दिल के चौबारे पर,,,,,
यादों की महफ़िल सजती है----
तेरे आने की शहनाई,
मन में अब भी बजती है-----

खोज-खोज कर पता तुम्हारा,,,,
मैं संदेसा लिखती हूँ-----
हवा में खुशबू तुम जैसी है,
यह अंदेशा लिखती हूँ----

नैन हमारे, सूखा सावन,,,
बंद खिड़कियां हैं, धड़कन की----
व्यथा कहूँ मैं तन की अपने,
या लिखूँ मैं पीड़ा अन्तर्मन की----

दिन-गुरुवार
दिनांक-१३/११/२०१८
निर्देश-एडेटिंग, कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, December 13, 2018

मन देखे तुमको दर्पण में

सभी श्रेष्ठजनों को मेरी नमस्ते-----

आज हमारी कलम से एक प्रेमी द्वारा अपनी प्रेयसी से प्रणय निवेदन पर एक रचना प्रस्तुत करने का प्रयाश------ ✍🏻🙏🏻

*मन देखे तुमको दर्पण में*

हे प्रिये तुम्हारे नैनों में,
मैं वजूद अपना तलाश रहा----
तुम वजह बनी हो जीने की,
तेरा साया जबसे साथ रहा----

मन केशरिया रहता हरपल,
प्रिये तुम्हारी यादों में-----
तुम फूल ढाक के लगती हो,
इन वसंत जैसे ख्वाबों में-----

ये हृदय तुम्हारा दास हुआ,
तुम मेरे मन की मधुवन है,,,,,
मैं आसमां सा तड़प रहा,
तुम इन्तजार का सावन हो-----

मन से लेकर धड़कन तक,
अजनबी से लेकर बंधन तक-----
क्या तुम भी मुझे सजाओगी,,,
पायल से लेकर कंगन तक-----

तुम दर्पण मेरे, मेरे मन दर्पण की,
मन तुमको देखे दर्पण में-----
नित सींच रहा हूँ, प्रिये तुम्हें,
अपने दिल के आँगन में----

तुम मेरे मन का मंदिर हो,
मैं प्रेम पुजारी हूँ तेरा-----
चाहूँ मैं बस प्रेम का आँचल,
नहीं शिकारी हूँ तेरा------

था तुम बिन पतझड़,
जीवन अब तक-----
अब तन-मन तुम पर हार रहा----
हे प्रिये तुम्हारे नैनों में,,,
मैं वजूद अपना तलाश रहा---✍🏻

दिन-बुधवार
दिनांक- 12/12/18
 निर्देश-एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

आर्या शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, December 6, 2018

बेचैनी**** स्मृतियों पर आधारित लेख

सभी आदरणीय श्रेष्ठजनों को नमस्ते 🙏🏻
सुप्रभात 💐💐💐
जय श्री राम 🚩

*बेचैनी*
स्मृतियों पर आधारित लेख--✍🏻

मित्रों अक्सर लोग बेचैन रहते हैं और उन्हें यही नहीं पता उनकी बेचैनी का कारण क्या है?

एक व्यक्ति था उसकी बेचैनी का कभी अंत ही न होता था।
क्यों बेचैन पता नहीं।
अच्छे पद पर नौकरी करता था। लेकिन उसकी बेचैनी पद और पैसे के साथ बढती जाती।
अजीब उलझने थीं उसकी यदि पैसा पत्नी और बच्चों के नाम कर दिया तो मेरी इज्जत न करेंगे इस लिए अपनी सारी प्रोपर्टी और पैसे को सिर्फ अपने नाम रखता था।
जब पैसे सुरक्षित हो गए तो सोंचता पत्नी के पास गहने हैं मैं तो पत्नी के साथ बहुत बुरा सुलूक करता हूँ।
गहने लेकर बेंचकर अपनी जिंदगी कहीं और शुरू कर ली तो मेरी हार हो जायेगी और वह गहने भी ले जाकर छुपा दिया। फिर भी उसकी पत्नी और बच्चे अपनी दुनिया में खुश थे। अब महाशय को लगा अरे मेरी पत्नी स्वस्थ्य रहेगी तो मारपीट के बदले मुझपर भी हाथ उठा सकती है तो वे किसी भी तरह पत्नी को स्वस्थ्य न रहने देते अलग-अलग तरीके से मानसिक और शारीरिक कष्ट देते। उनकी दौलत पर तो पत्नी का कोई हक ही न था लेकिन स्वाभिमानी होने के कारण खुद की मेहनत से ही कमाये पैसों के कपड़े पहनती और अपनी जरूरतें पूरी करती क्यों कि पति महोदय हद से ज्यादा नीच थे तो एक स्वाभिमानी स्त्री कब तक बरदास्त करती।

और महोदय को तो बेचैन रहने की आदत थी अब देखिये पत्नी जी अपनी आंतरिक सुख के लिए यदि योग और ध्यान के लिए बैठ जाए तो कुछ समय पश्चात् उसको हिलाना डुलाना चालू कर देते फिर भी काम न बने तो ऊपर पानी भी डाल देते।

लेकिन महोदय की बेचैनी रुकने का नाम ही न लेती और पत्नी जी तो पेड़-पौधे, चिड़िया-गिल्लू और मोहल्ले के छोटे-छोटे बच्चों में भी ख़ुशी खोज लेती अब महोदय जी की पत्नी जब आंगन में बैठती तो कुछ गिलहरियाँ भी उनके इर्द-गिर्द आ जाती शरारती अंदाज में लेकिन महोदय को तो बेचैनी थी रख दिया गिलरियों के खाने में चूहा मारने की दवाई बेचारी कई तो मर गयीं और बाकी डर के मारे वो नीम का पेड़ ही छोड़कर चली गयीं।
बेचैनी कितनी अजीब बात है पेड़-पौधों से भी पत्नी जी बतिया लेती थीं तो फिर उनका सबसे पसंदीदा फूल वाला पेड़ महोदय इतनी होशियारी से जड़ से काटते बेचारा तीन-चार दिन में सूख जाता।

लेकिन महोदय की बेचैनी कम न होती किसी पडोसी-रिस्तेदार से मतलब नहीं रखते परंतु पत्नी की पीठ पीछे बेचारे पति वाला रोना रोते। दुनिया के सबसे दुखी इंसान की पत्नी ने जब बच्चों को ट्यूशन पढ़कर इज्जत कमाई तो पति जी ने बाजार में बेंच दी उनकी पत्नी अक्सर गिनती करते समय भूल जाती की उसका किस-किस से अवैध संबंध है।

साथ ही पति जी ने पत्नी की कमायी हड़पना न भूले।
लेकिन बेचैनी थी की ख़त्म ही नहीं होती।
अब तो उन्होंने अपनी पत्नी से बच्चों को ही छीनने की ठान ली। महोदय बेटियों को लेकर बैडरूम अंदर से बंद करके सो जाते और पत्नी को कभी चादर नहीं देते तो कभी बिस्तर-----लेकिन इनकी बेचैनी कम न होती अगर पत्नी को नींद आ जाये तो ये पूरी रात नाटक करके गुजार देते। इनके ड्रामे के कारण इनके बच्चे इन्हें राक्षस कहकर बुलाते और ये बच्चों की पढाई छुड़ाने और मकान बेंचने की धमकी देते----- इन महाशय की बेचैनियों की कहानी की लिस्ट तो इतनी लंबी है कि बताना मुश्किल परंतु उनकी पत्नी जी श्रीमान जी की बेचैनियों को विराम देने हेतु अपने बच्चों के साथ घर छोड़कर चली गईं एक अनवरत संघर्ष की ओर---- न सर पर छत थी न हाथ में पैसा लेकिन रोज-रोज के तमाशे के एक दिन निकल गए उनके कदम घर से बाहर और फिर महाशय की दरिंदगी और बेचैनियों का आलम और बुलंदियों पर चढ़ा जितनी नीचता दिखा सकते थे दिखायी अपनी ही औलाद को भूखे तड़पने के लिए, पत्नी के मायके वालों को भूखे तड़पाने के लिए लेकिन उनकी पत्नी जी किसी भी कीमत पर न वापस आयीं और न ही हार मानी।

उस बेचैन आदमी के चेहरे अब धृष्ठता का अंबार कई गुना बढ़ गया है उसे अभी भी लगता है पैसे से पत्नी के शरीर पर राज कर सकता है उससे और बच्चों से अपने तलवे चाटवा सकता है।

सुना है उसकी बेचैनियाँ कम होने की बजाय बढ़ गयी हैं और उसकी पत्नी स्वयं को विधवा मान चुकी है।
उसे उस दुष्ट की एक बात जरूर याद आती है मैं तेरे खुश होने की हर वजह छीन लूंगा तू सिर्फ उतना ही पानी पीयेगी जितना मैं चाहूं और उतना ही खाना खायेगी जितना मैं चाहूं। लेकिन उसका दूसरा शब्द भी याद आता है कि मेरे इतने षड्यंत्रों के बाद भी तेरी मुस्कुराहट क्यों न छीन पाया किस मिटटी की बनी है तू------तुझे तो बर्बाद कर दूँगा 😃

उसकी पत्नी समझ चुकी थी जो पहली पत्नी की आत्महत्या कराके न सुधरा इतने कुकर्म करके न सुधरा उसे सुधारने में अपना और वक्त बर्बाद न करके अब आखिरी साँस तक अपना संघर्ष करेगी-------

*लेख द्वारा एक संदेश देना चाहूँगी----*

मित्रों रिस्ते हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। हम इंसान हैं हमें जीवन के हर मोड़ पर किसी न किसी रिस्ते की जरुरत पड़ती है।
रिस्तों का इस्तेमाल न करो उनके साथ छल न करो।
पैसा कमाया जाता है और रिस्ता निभाया जाता है।
आप पैसे से भौतिक सुख खरीद सकते हैं लेकिन आप नहीं खरीद सकते एक सच्चा रिस्ता, सच्चा प्रेम आप नहीं खरीद सकते मरते हुए इंसान की जिंदगी और न ही गया हुआ समय।

प्यार से रहो अपने रिस्तों के साथ दिल खोलकर जिओ कोई धोखा देकर जायेगा जाने दो हमारा नसीब और हमारे हाथ पैर तो नहीं ले जायेगा। हमें सुकून तो रहेगा की हमने दिल से रिस्ता निभाया था----- लेकिन जो इस लायक न था चला गया----✍🏻

ओउम् परमात्मने नम:
६/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Monday, December 3, 2018

गँवार एक व्यंग्य

*गँवार एक व्यंग्य*

हमारे देश में गंवारों को जिंदा रहना उतना ही जरुरी है जितना की हमारे शरीर के लिए भोजन की जररूत है।
जी गँवार मतलब जो अंग्रेजी में बात नहीं करते+गांव के लोग+जिन्हें बनावटीपन नहीं आता।
हाँ जी आजकल के पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियों की भाषा में ऐसे लोंगों को गँवार कहा जाता है।

सोंचों यदि ये गँवार न होंगे तो क्या होगा?
तो कोई नमस्ते नहीं कहेगा, जय श्री राम और जय श्री कृष्णा के स्वर जो हमारे आस-पास गूंजते हैं वो भी बिलुप्त हो जायेंगे------

हर तरफ हाय, हाय और हेलो, हेलो ही सुनने को मिलेगा------
और हमारी आने वाली पीढ़ी राम कृष्ण के बचपन की कहानी न पढ़कर सिर्फ हाय और हेलो शब्द के प्रतिपादन पर ही खोज करेगी।

हाँ जी ये गँवार ही तो हैं जो हमारी भारतीयता को बचाये हुए हैं। जो स्त्रियों को अर्धनग्न अवस्था में सड़क पर घुमते देख खुद शरमा जाते हैं जो हाथ जोड़कर नमस्ते करते हैं, जो दौड़कर अपने से बड़ों के पैरों पर झुक जाते हैं।

ये गँवार ही तो हैं जो हमारे देश की विविध आंचलिक भाषाओँ को बचाये हुए हैं, संस्कृति को बचाये हुए हैं।
दादी, नानी, दादा, नाना जैसे शब्दों का हमारे जीवन में महत्व बनाये हुए हैं।

*वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण देश में गांवों का वजूद है*
*हाँ जी वो गँवार ही तो हैं जिनके कारण अन्य उपजता है और किसानों का वजूद है*

और समझदारों के पेट से होकर गुजरता है।
अगर इन्हें भी समझदारी और होशियारी की शिक्षा मिल गयी तो तो पूरा देश अपने आपको आधुनिक कहता हुआ गले में पट्टा डालकर घूमेगा और उस पट्टे पर संतुलन बनाने वाला होगा तुम्हारा वो मालिक जो सिर्फ गाली देकर ही बात करेगा और तुम दाँत निपोरते हुए हुए झूठी हेकड़ी दिखाकर फेंकी हुयी रोटियाँ खाओगे--------

तो भइया कुछ गाने ऐसे भी बजने दो-----
*इमली का भूटा, बेरी का बेर----
इमली खट्टी मीठे बेर------*

नहीं तो अब वो हाल है साहिब इंग्लिश मीडियम में आठवीं में पढ़ने वाला एक बच्चा पूछ रहा था गुड़ का स्वाद कैसा लगता है।
कहीं ऐसा न हो आने वाली पीढ़ी सच में खेतों में गन्ना उगाने के लिए गुड़ बोन लगे 😃

मेरे विचार मेरी कलम से----✍🏻
०४/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, December 2, 2018

स्वाभिमान का दूसरा नाम--भगवा रंग

*स्वाभिमान का नाम दूसरा--भगवा रंग*

न ज्ञान समन्दर मुझमें है,
जो मैं पंडित कहलाऊँ-----
निज भुजाओं में वो बल नहीं,
कि मैं क्षत्राणी बन पाऊँ-----

न वैश्य मुझे तुम समझो जी,
न ही मैं व्यापार करूँ,,,,
तुम समझ रहे हो शूद्र मुझे?
क्यूँ अछूत मैं कहलाऊँ------?

जब सत्य सनातन अपमानित हो,
तब मैं पंडित बन जाती,,,,
स्वाभिमान पर वार करोगे,
तब मैं ज्वाला बन जाती-----

भूख से अपना तड़पे न कोई,,,,
जल और और अन्न जुटाऊँ मैं,,,,,
निज तन-मन को जब साफ करूँ,
तभी शूद्र कहलाऊँ मैं----🙏🏻😊

@@@@@@@@@@@@

जाति हमारी पूछ-पूछ कर,
तुम जात कहाँ हो,,,,,,
खुद पता करो------
जाति-पांति के चक्कर में,
मर मिटने की न खता करो-----

खूब मुगलों ने उत्पाद किया,,,,
वर्ण मिटाया, जाति किया----
मारा-काटा जनेऊ तोडा,,,,
इस तरह हमें बर्बाद किया-----

न वेदों का ज्ञान धराते हो,
न गीता ही पढ़ पाते हो----
अपवाद बनाकर 'सत्य सनातन'
पाखंड स्वयं फैलाते हो-----

न राम राज में था, पीड़ित कोई,,,,
न श्याम कोई व्यभिचारी थे-----
माता रुक्मणि के पति थे जो,
वो योगेश्वर जनेऊधारी थे-----

सच तुमको है स्वीकार नहीं,
की गयी मिलावट पढ़ते हो-----
अपने ही ऋषि मुनियों पर,,,,
खुद ही कहानी गढ़ते हो------

नशेड़ी कहे ब्राह्मण खुद को,,,,
दलित कहे मैं शोषित हूँ-----
धर्म ग्रंथ सब रोकर कहते,,,,
मैं पाखंड से पोषित हूँ------

सच को न स्वीकारे कोय-----
देख दुर्दशा *तनु* रोये------
हे ईश्वर तुम दया करो,,,,,,
फिर अपनी दुनिया, वैदिक होय----

वैदिक युग था,
जाति नहीं थी----
इस कलयुग में वर्ण नहीं है----
अधर्म को आकर धर्म सिखाये,,,,
ऐसा कोई कर्ण नही है-----

वर्ण व्यवस्था, जाति-पांति में,,
अंतर करना सीखो तुम-----
सिर-पैर बिना की बातें करके,,,,
इधर-उधर मत बिखरो तुम-----

मनन करो कुछ सोंचों मन में,,,
कौन कहाँ से आये थे,,,,,
वेदशाला कुतुबमीनार हो गयी,
नालंदा जलवाए थे-----
तेजो भी जो ताज हो गया,,,,,
वो मुग़ल कला सरताज हो गया-----
अकबर पोथी व्यापक हो गयी,,,,
हमारे प्रताप! दो पन्नों में समाये थे----

झाँसी जब वीरान हुयी,
ग़द्दार एक पिंडारी था????
था जाया उसका चाँद मियाँ,,,
वो बुड़बक देश पे भारी था----

राम, श्याम को भूल गए तुम,,,,
साईं-साईं चिल्लाते हो----
क्यूँ विश्वगुरु था देश हमारा-----
धरातल तक न जाते हो????

आदि न जिसका अंत कोई,,,
वो सत्य सनातन धर्म हमारा-----
स्वभिमान का नाम दूसरा,,,,
हाँ जी भगवा रंग हमारा----

यह पावन धरा हमारी है,,,
इस पर बलि-बलि जाऊँ मैं,,,
नहीं है मुझको खेद कोई,,,,
ब्राह्मण या शूद्र कहाऊँ मैं------

स्वरचित- २८/०४/२०१७

कुछ परिवर्तन के साथ प्रस्तुति
०२/१२/१८

निर्देश-एडेडिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
की कलम से----✍🏻
आजमा कर देख लो---
सच्चाई वो हथियार है साहिब,,,,,

जो बहादुरों से रिस्ते जोड़ता है,
कायरों से नहीं----

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
की कलम से

Friday, November 30, 2018

मैं शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

सभी श्रेष्ठजनों को नमन करते हुए 🙏🏻 मेरी कलम के साथ प्रस्तुत हूँ.....✍🏻


मेरे मन में उठते हुए प्रश्नों के साथ------
हमारा भारत देश अनेकों भाषाओं का देश, अनेक वेश-भूषाओं का देश,--------।
अनेक धर्मो का देश---?

ये अनेक धर्म क्या हैं?
कुछ लोंगो का कहना है मैं अपने लेख के द्वारा राजनीति करती हूँ किन्तु मैं तो किसी भी विषय पर लिखती हूँ। हाँ बात जब हमारी संस्कृति की आती है तो लेखनी विराम कैसे ले हमारी संस्कृति कोई दो कागज के टुकड़े तो हैं नही जो एक आर्टिकल लिख दिया और बात ख़त्म।

हाँ तो बात अनेक धर्म की है।
हमारी पुरातन संस्कृति में दो तरह के लोंगो के बीच ही युद्ध होते थे। एक वो जो धर्म की राह पर होते थे और दुसरे अधर्म की राह पर-----और युद्ध का नाम होता था धर्म युद्ध।

उदहारण देख लो देवासुर संग्राम, रामायण काल में राम रावण का युद्ध, महाभारत युद्ध-------इनके अतिरिक्त और कौन से अनेक धर्म थे हमारे देश में-----?

अनेक धर्म बना दिए गए----चलो यहां तक भी बर्दाश्त करें-----अनेक धर्म बने तो उन धर्मों के लिए लोग भी हमारे ही चुने गए कोई टोकरी में अंडे भरकर तो लाया न था जो यहाँ आकर फ़ैलाने से वो इंसानों में बदल गए और उनका धर्म फूट पड़ा-------यहां तक भी बरदाश्त करें-----

लेकिन बचे- खुचे इंसानों को जातियों में बदल दिया और नाम उस धर्म का नाम सनातन से हिन्दू धर्म हो गया।
अभी भी चैन न मिला तो आपसी बैर का जहर शदियों घोला गया हमारे ही जयचंदों के कारण---- आज तो हिन्दू धर्म में देशभक्तों का टोटा है और जयचंदों की भरमार है।

अब तो हाल ऐसा है कि अपने धर्म और संस्कृति को समझने और पढ़ने की कोई फुर्सत ही नहीं अपना काम निकला चलते बनो।

हमने तो कसम खाई है आपस में तब तक लड़ना न छोड़ेंगे जब बचे-खुचे लोग भी दूसरे धर्म में परिवर्तित न हो जाएं।
हम लड़ेंगे आरक्षण के नाम पर, हम लड़ेंगे जातिवाद के नाम पर, हम लड़ेंगे शोषण के नाम पर-----और ये लड़ाई भी सिर्फ अपनों के बीच मिट जाने की हद तक।

हम शोषित हैं अपनों से ही और हमारी संस्कृति और इतिहास मिट रहे हमारी अज्ञानता के कारण। जब हम अपनी संस्कृति से ही दूर होते जायेंगे तो हमारा लहू पानी बनता जायेगा और कोई भी हमें कुचल कर चला जायेगा।

आज हम बटें हैं एस टी, एस सी, ओ बी सी, जनरल-----
एस टी, एस सी  बनकर आधा हिन्दू निकल गया अपने आपको शोषित बोलकर, ओ बी सी अपनी दुनिया में मस्त, वैश्य समाज किससे क्या कहे?
अब कुछ% रह गए जनरल जो अपनी ही अकड़ में फूले हैं उनमें से कुछ समझदार यदि इन्हें समझाना चाहें तो उनकी कोई सुनता नहीं।

क्या कर रहे हम हमें खुद नहीं पता। एक दूसरे पर लांछन लगाते हैं कि हमारी प्रतिभा कुचली जा रही---- और यह सच भी है कहीं न कहीं क्यों की यदि रात दिन मेहनत करके आया कोई व्यक्ति उस व्यक्ति के कारण अयोग्य बना दिया जाये जिसमें प्रतिभा ही नहीं---तो यह देश का दुर्भाग्य है हाँ ऐसा आरक्षण देश का दुर्भाग्य है परंतु इससे भी बड़ा दुर्भाग्य एक और है।
जब आज के समय में भी जाति-वाद के नाम पर प्रतिभा कुचली जाती है स्कूलों में माशूम बच्चों को जब कुछ स्वार्थी अध्यापक यह कहकर कुंठित करते हैं कि यह तो एस सी है, एस टी आरक्षण के नाम पर नौकरी मिल जायेगी, कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जहां आज भी जाति-पांति के नाम पर प्रतिभाशाली बच्चों को मानसिक तौर पर आघात दिआ जाता है।

प्रतिभा तो हमारी ही कुचली जा रही चाहे वो आरक्षण के नाम पर हो या जाति-पांति के नाम पर।
अरे कुछ कुचलना ही है तो अयोग्यता को कुचलो, बच्चों में स्वाभिमान पैदा करो।
देश के लिए स्वाभिमानी नागरिक तैयार करो।
एक शिक्षक बदलाव ला सकता भावी नागरिकों का निर्माण कर सकता है परंतु इसके लिए पहले एक शिक्षक का इस योग्य होना जरुरी है।
आज के परिवेश में जब ज्यादातर शिक्षक ही अयोग्य हैं तो योग्य पीड़ी कैसे तैयार होगी।

हम उलझे हैं अपना ही पतन करने में।क्या होगा हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य?
और क्या होंन्गे हम उनके लिए आदर्श या कायर?
हम आपस में इतने उलझ चुके हैं कि बाकी कुछ सोंच ही नही सकते। न अपने धर्म के बारे में, न समाज के बारे में, न अपनी संस्कृति के बारे में और न ही अपने राष्ट्र के बारे में।
हम उलझे हैं या फिर हम साजिश का शिकार हैं कभी थोड़ा समय निकाल कर सोंचों।

इन समस्याओं का हल खोजो, अपनी संस्कृति को बचाने का हल खोजो बाकी समस्याएं स्वतः छोटी हो जाएंगी।

हमारे राष्ट्र की शान है हमारा सनातन धर्म। संकीर्ण मानसिकता से बाहर निकलते हुए वैदिक पथ अपनाओ।
आपसी बैर भाव दूर करने का और कोई रास्ता नहीं।
स्वाभिमान और शान से जीने का और कोई रास्ता नहीं।
वीर, स्वाभिमानी और प्रतिभाशाली बनने का यदि कोई मार्ग है तो वो सिर्फ वैदिक मार्ग है जिस मार्ग पर चलने का सन्देश श्री मर्यादापुर्षोत्तम राम और योगीराज श्री कृष्ण ने भी दिया है-----
कम से कम अपने भगवन और आराध्यों के दिखाये मार्ग पर तो चलो-----ओउम्

एक कोशिश------🖋

आओ लौट चलें वेदों की ओर-----

मेरे विचार मेरी कलम से ✍🏻
०१/१२/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, November 27, 2018

*किसी को इतने भी खौफ से न गुजारो  साहिब की वो बेख़ौफ़ हो जाये----*

*क्यों कि फूल भी अगर पक कर फूटे तो हजारों फूल तैयार होते हैं----*
✍🏻🔥
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, November 25, 2018

और न बदनाम करो योगेश्वर को

सभी बुद्दिजीवियों, श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻

प्रस्तुत है मेरी लेखनी मेरे विचारों के साथ 🖋🙏🏻

सज्जनों आज मेरे विचारों की उथल-पुथल महाराज योगेश्वर यानि की श्री कृष्ण पर आधारित है।
हमारे समाज में भगवन श्री कृष्ण का जो चरित्र व्याप्त किया गया है क्या ये सही है।
एक माखन चोर, रात-रात भर स्त्रियों संग रासलीला करने वाले, स्त्रियों के कपड़े चुराकर भागने वाले, अनगिनत शादियां करके बेहिसाब बच्चे पैदा करने वाले?

आप सब इन बातों के बारे में कभी सोंचते की एक महापुरुष पर इस तरह के कलंक लगाना हमारी संस्कृति है?
या फिर इन बातों का अर्थ बिगाड़कर हमारे सामने प्रस्तुत किया गया।
हमने एक भागवता चार्य से सुना की श्री कृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ रानियां थी सबके 10-10 पुत्र थे।
हर पत्नी को श्री कृष्ण पति के रूप में पूरा सुख देते थे।

सोंचने वाली बात है माता रुक्मणि से पैदा हुई संतान प्रदुम्न के अलावा इतिहास में श्री कृष्ण के और किसी पुत्र का वर्णन मिलता है क्या?
सब कहाँ चले गए और वो सब पैदा कहाँ हुए थे मथुरा में, वृन्दवन में या द्वारिका में?
आप सब कहते हैं श्री कृष्ण स्वयं ईश्वर का अवतार हैं तो फिर तुम्हारा ईश्वर स्त्रियों के साथ सम्भोग करने के लिए अवतार लेता है।
मतलब तुम्हारा ईश्वर व्यभिचारी है।
और यदि भगवन श्री कृष्ण व्यभिचारी थे तो उन्हें महान ब्रह्मचारी योगेश्वर क्यों कहा गया।

फिर से मिल गया ना एक सबूत जो सोंचने पर मजबूर कर दे की हम जो पढ़ रहे हमें जो बताया जा रहा है हमें जो टी वी धारावाहिक के जरिये दिखाया जा रहा वो गलत है ठीक उसी तरह जैसे हमें महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, झलकारी बाई------- और न जाने कितनों के इतिहास से वंचित रखा गया ये सब तो अभी पैदा हुए थे।

 महाभारत काल को तो हजारों वर्ष बीत गए। हम वर्ण से जातियों में बंट गये। हिन्दू से मुसलमान बन गए, वेदों की जगह पुराण पढ़ने लगे, स्त्रियां देवी से सम्भोग की वस्तु समझी जाने लगीं, राज-काज सम्हालने वाली, उपनयन संस्कार में शामिल होने वाली, यज्ञ हवन करने वाली, वेदों का अध्ययन और शास्तार्थ करने वाली हमारी विदुषी माताएं बहनें घूँघट में रहने लगीं, हमारे देश के पुरुष जो बलात्कार जैसे शब्द न जानते थे वो बलात्कार करने लगे-------

जब इतना सब परिवर्तन हो गया तो फिर हमारे आदर्श राम-कृष्ण के आदर्श इतिहास को न बदला गया हो ऐसा कैसे हो सकता है?

एक मानसिक रोगी राक्षस के कैद से मुक्त कराने के बाद उन स्त्रियों ने कृष्ण को अपना क्या माना होगा?
आज अगर किसी स्त्री को कोई वैश्यालय में बेंच दे और कोई अपनी जान पर खेलकर उसकी आबरू और जिंदगी बचाये भले ही इंसानियत के नाते या किसी रिस्ते के नाते तो वो स्त्री उसे क्या मानेंगी? शायद ईश्वर या अपना भाग्यविधाता तो अगर उन कन्याओं ने श्री कृष्ण को अपना सबकुछ अपना ईश्वर मानकर उनकी आराधना करने भी लगीं तो इसमें व्यभिचार कहाँ से आ गया------- अगर श्री कृष्ण जी स्त्रियों के साथ लिप्त रहते थे तो फिर धर्म युद्ध के करता-धरता कैसे बने क्यों कि कोई व्यभिचारी तो धर्म युद्ध का मर्म ही नहीं जान सकता।

अब माखन चुराने की बात आती है। प्रजा को सताने वाला दुष्ट के राजय में वो अपने यहाँ का दूध, दही, माखन क्यों जाने देते इस बात को रोकने के लिए उन्हें चोर बना डाला।

इतने में भी जी न भरा तो कहते हैं श्री कृष्ण स्त्री के कपडे चुराकर भाग जाते और वो नग्नावस्था में कई-कई घण्टे उनसे मिन्नतें करतीं अब तो हद हो गयी कुछ तो शर्म करो यदि तुम्हारे पास-पड़ोस की स्त्रियाँ नंग-धड़ंग घूमेगी।
कपड़े उतार कर नदी में कूदकर स्नान करेंगी तो उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए उन्हें कुछ तो सबक सिखाओगे यदि तुम संस्कारी हो तो?

उन्होंने बिगड़ैल स्त्रियों को सुधारने के लिए यदि कोई कठोर दंड दिया तो उसे नाम दे दिया चीर हरण तो क्या तुम्हारा परमात्मा इतना गिरा हुआ है।

मंदिरों में, तश्वीरों में कैसी-कैसी आपत्तिजनक मूर्ति और तश्वीर रखते जा रहे हो। अपने पूर्वजों का स्वयं तमाशा बना रहे हो अपने ईश्वर को स्वयं गाली दे रहे हो।

विधर्मियों को स्वयं मौका दे रहे हो हमारी संस्कृति का मजाक बनाने के लिए।
ये क्यों भूलते वो महान ब्रम्हचारी, महान बलशाली भगवन योगेश्वर थे।
आज गांव-गांव में सिर्फ उनका तमाशा बना दिया गया है।
श्री कृष्ण को कलंकित करने वाले स्वयं उनके भक्त हैं।

हमारा इतिहास, हमारी संस्कृति हमारा गर्व है उसे पहचानों और लोंगो को भी समझाओ।

कथा-भगवत के माध्यम से सही सन्देश पहुँचाओ सिर्फ पैसे कमाने खातिर मत कलंकित करो अपने ही ईश्वर को 🙏🏻

किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरा मकसद नहीं आप में से कुछ लोग भी इस विषय पर सोंचेंगे तो मेरा लिखना सफल हो जायेगा।

*आओ लौट चलें वेदों की ओर-----✍🏻*

२६/११/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Saturday, November 24, 2018

तन्हाई मुझमें काँप रही

*तन्हाई मुझमें कांप रही*

कुछ जहर पिया है शब्दों का,
कुछ तीर चुभे हैं सीने में------
तन्हाई मुझमें काँप रही,,,,,,
हम व्यस्त बहुत हैं जीने में-----

मिला गजब का अपनापन,,,,,,
न जाने किस संग क्या बंधन------
उस अपनेपन ने छल डाला,,,,,,,
था, जिसको कहता अपना मन---

छाले कब तक पड़ते पग में,,,,,,
डर भी कब तक बहता रग में-----
रुकने पर भी दर्द बहुत था,,,,,,,
खून अगर जम जाता नस में----

मौत- मौत हम करते रह गये,,,,
मौत भी एकदिन डर कर भागी--
कदम हमारे कदम से बोले,
जीत मिलेगी डर के आगे-------

मन के अंदर जब मैं झाँकू,,,,,,
अजब सा आलम दिखता है----
चौमासा तो जवां हो गया,
सूखा सावन दिखता है-------

ऐ ठोकर न तू,
हो शर्मिंदा,
हमें मोहब्बत तुझसे है,,,,,,
तू दुल्हन मेरे मन दर्पण की,,,,
मेरी इबादत तुझसे है------

बिन प्यास मिले जो पानी भी,,,,,
तो समझ न आता पीने में----
अब डर से दो-दो करने थे,,,,,,
जख्मों को धरो करीने में-------

कुछ जहर पिया है शब्दों का,
कुछ तीर चुभे हैं सीने में----
तन्हाई मुझमें कांप रही,
हम व्यस्त बहुत हैं जीने में------


समय- रात्रि ११:१० बजे
दिनांक- २४/११/१८
दिन-शनिवार

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, November 22, 2018

हमारे सन्यासियों पर आरोप क्यों

सभी श्रेष्ठजनों को मेरा नमन 🙏🏻

प्रस्तुत हैं मेरे विचार मेरी कलम से ------ 🖋

मेरे मन में अक्सर सवाल उठते हैं कि हिन्दू धर्म प्रचारक ही जेल क्यों जातें हैं और जाते भी हैं तो इस तरह की वापस ही न आएं।
माना कि कुछ पाखंडी हैं जादू, टोना, ज्योतिष आदि का सहारा लेकर पाखंड फैलाते हैं परंतु सोंचने की बात है जो गुरुकुल चलाते हैं, यज्ञ, हवन करते हैं। बालक- बालिकाओं को सनातन संस्कृति की ओर ले जाने का प्रयाश करते हैं, जिनका जादू, टोन, ज्योतिष से कोई सम्बन्ध नहीं उन पर भी संगीन आरोप लगाकर जेल भेज दिया जाता है।
और आरोप तो इतना बड़ा सीधे बलात्कार जो शब्द हमारी संस्कृति का हिस्सा ही नहीं।

हमारी संस्कृति वो है जिसे कुछ दिन समझकर बलात्कारी भी सन्यासी हो जाये परंतु यहाँ तो हमारे सन्यासी ही बलात्कारी हो रहे।

एक और बड़ा अचम्भा बाबा रामदेव को लेकर सबसे पहले तो हिन्दू अंग्रेज बोलतें हैं वो तो बिजनेस मैंन है जनता को उल्लू बनाये है।
अरे हैं बिजनेश मैंन तो तुम्हारे बाप का क्या जाता है। देश का पैसा देश में ही तो है। न जाने कितने बेरोजगारों को रोजगार दिया उस बाबा ने न जाने कितने भंडारे करवाते हैं रोज तो उसका खर्च तुम उठाते हो?
और ये जो दुनिया के प्रोडक्ट तैयार करने में उन पर रिसर्च करने में खर्च आता है वो फ्री होता है क्या? उसमें पैसा न लगता है?

विदेशी कंपनियों की सड़ी-गली चीजे ब्रांडेड समझ कर खरीदोगे परंतु बाबा के प्रोडक्ट में मिलावट है कौन सी मिलावट है भाई?

इनकम टैक्स वालों को तो उनके पीछे ऐसे लगा दिया जाता रहा जैसे वो सन्यासी न कोई लुटेरे हो गए। अमेरिका कह दे गोबर खा लो तो खा लोगे, अमेजन पर जाकर गोबर के उपले ऑर्डर कर दोगे चाहे वो गाय के हों या न हो लेकिन जब हमारे बड़े बुजर्ग और किसान वही बात समझाएँ तो छी---------सच में तुम मानसिक रूप से गुलाम हो चुके हो।

हमने कहीं पढ़ा था एक बार जापान की सरकार को दूसरे देश से संतरे अपने देश में बेचने के लिए व्यापार का समझौता करना पड़ा। तब वहां की सरकार ने संतरे खरीदने या न खरीदने का फैसला वहां की जनता पर छोड़ दिया और परिणाम स्वरूप वहां की जनता ने विदेश से आये एक भी संतरे को हाथ न लगाया यह कहते हुए की हम अपने देश कडुआ संतरा ही खाएंगे लेकिन अपनी पूँजी विदेश न जाने देंगे।

आज हर पढ़ा लिखा आदमी जापान की तरक्की के बारे में बड़े चटकारे से बताता है लेकिन उनकी देशभक्ति के बारे में न बताएँगे।

अरे कुछ तो दिल की आवाज सुनो ये साधू, सन्यासी, स्वदेशी का प्राचार्य करने वाले, वेदों का प्रचार प्रसार करने वाले हमारी मरी हुई संस्कृति के लिए एक आशा की किरण हैं।

इन्हें सम्मान दो, किसी के भी कहने पर तुम भी आरोप लगाने मत लग जाओ, थोड़ा तो सोंचों।
 कुछ ऐसे रत्न आज भी हैं हमारे देश में जो हमारे लिए जी रहे, उनका अपना परिवार नही, घर संसार नहीं रात दिन देश के लिए लड़ रहे फिर भी उन पर आरोप क्यों?

मेरे विचार मेरी कलम से--- 🙏🏻
पसंद आये तो प्रतिक्रिया दें
न पसंद आये तो कुतर्क न करें----

ओउम्
आओ लौट चलें वेदों की ओर----

२३/११/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, November 20, 2018

एक लेख राज माता कैकेयी पर

सभी श्रेष्ठ जनों को नमन 🙏🏻

 रामायण काल की बातें पढ़कर मेरे मन में अक्सर कुछ प्रश्न उठते हैं।इस उथल पुथल को लेकर मेरे कुछ विचार आप सबके समक्ष 🙏🏻


आज मैंने एक पात्र चुना वो है कैकेयी-------

मैंने बचपन से पढ़ा कैकेयी को कुमाता के रूप में यहाँ तक की विधर्मियों को हमारे धार्मिक ग्रंथों में ऐसे पात्रों के बारे में पढ़कर हमारे सनातन धर्म पर ऊँगली उठाने का मौका मिलता है क्यों की हमारे समाज में तर्क और प्रमाणिकता का अभाव हो गया है। हम अपनी संतानों को भी तर्क और प्रमाणिकता के आधार पर शिक्षा न देकर पाखंड का शिकार बना रहे जिस कारण वे दूसरों की बातों का जवाब नहीं दे पाते हार मान जाते हैं।

सज्जनों क्या कैकेयी सच में कुमाता थीं।
महान योद्धा, राजकाज संभालने में निपुण, राजा दशरथ की सबसे प्रिय रानी, अपनी जान की परवाह न करते हुए युद्ध भूमि में राजा की जान बचाने वाली पत्नी।
यदि वो राजा दशरथ से अपने पुत्र के लिए राज माँगती तो क्या वो मना करते?
श्री राम महाराज को वनवास भेजने की जरुरत क्या थी?
क्या उन्हें इसका अंजाम न पता था कि ऐसा करने पर अयोध्या नगरी शोकाकुल हो जायेगी।

क्या कैकेयी को ये भी न पता था कि उनका पुत्र भरत कभी भी भगवन श्री राम का स्थान ग्रहण न करेंगे।
जब राम को वन भेजा गया तब भरत ननिहाल क्यों भेजे गए थे। उनकी अनुपस्थिति में ही यह फैसला क्यों लिया गया?

हम यह क्यों भूल जाते हैं जिन भरत ने राजपाट त्याग सिंघासन पर प्रभु श्री राम की चरण पादुका रखकर तपिस्वी की भांति जीवनयापन करते हुए चौदह वर्ष प्रजा का ध्यान रखा उन भरत में कैकेयी के दिए ही तो संस्कार थे।

हमने हमेशा पढ़ा रावण बलशाली था उसे जीतना आसान न था।
राक्षसों का आतंक बढ़ गया था।
वो ऋषियों मुनियों को यज्ञ, हवन न करने देते थे।
उस रावण से लड़ने के लिए आर्यवर्त को राक्षसों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए श्री राम ने पहले जगह-जगह  ऋषि, मुनियों के आश्रम मुक्त कराये, छोटे-छोटे युद्ध करते हुए आगे बढ़ते रहे परंतु शूर्पणखा और मामा मारीच का किरदार यह कहता है कि रावण ने श्री राम के पीछे अपने जाशूस छोड़ रखे थे और परिणाम स्वरूप माँ सीता का अपहरण हुआ।

यह युद्ध शायद आयोद्धा में रहकर जीतना और लड़ना संभव न था क्यों कि कैकेयी तो महाराजा दशरथ के अपमान का बदला रावण से लेना चाहती थीं।

और श्री रामचंद्र आर्यवर्त की तकलीफें ख़त्म कर एक सुखद राम राज्य लाना चाहते थे जिसके लिए ये सब घटित होना ही था सिवाय माता सीता के अपहरण के।

सोंचने वाली बात है श्री रामचंद्र ने श्री लंका पहुँचने से पहले इतनी विशाल सेना क्यों तैयार की थी एवं युद्ध के पूर्व महान पराक्रमी, एवं सबसे बुद्धिमान योद्धा वीर हनुमान को श्री लंका भेजा और उन्होंने सिर्फ माता सीता के रहने का ठिकाना ही नहीं खोजा बल्कि पूरी लंका का भ्रमण किया और वहां के भेदी विभीषण को भी खोजा-------------



सज्जनों हम बचपन से बुद्धिजीवियों से सुनते आये हैं। हमारे धार्मिक ग्रंथों में मिलावट की गयी। हमें हमारे इतिहास से वंचित किया गया। हमेशा गलत इतिहास पढ़ाया गया। हमें सच्चाई से दूर पाखंड की ओर घसीटा गया और हमारी संस्कृति के टुकड़े -टुकड़े कर दिए गए। किन्तु कुछ तत्व हैं तो अटल सत्य हैं जिन्हें मिटाया न जा सका।
क्या आप आने वाली पीढ़ी को प्रमाणिकता और तर्क के आधार पर सनातन धर्म के प्रति कट्टर बनाना चाहेंगे?

आज के विचार में बस इतना ही मैं ज्ञानी तो नहीं न ही मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है।
आपको विचार अच्छे लगें तो इस विषय पर सोंचें अन्यथा न लें।
बस हमें हमारा सनातन धर्म प्यारा है 🙏🏻

मेरे विचार मेरी कलम से-----🖋
  २०/११/१८

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Wednesday, November 14, 2018

सभी बुद्धिजीवी, श्रेष्ठजनों को मेरा नमन----

आप सबके समक्ष मेरे कुछ विचारों की एक और प्रस्तुति
@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

प्रेम?????
मन से अन्तर्मन तक के लंबे सफर तय करके हृदय पटल पर अपनी छाप छोड़ने वाला प्रेम एक अमित दृश्य होता है जो हृदय रुपी सरिता में निरंतर बहता रहता है। हाँ  एक सरिता की भाँति ही तो होता है ये प्रेम कहाँ आसान हैं इस सरिता की राहें कहीं महफ़िल से गुजरती हैं तो कही निर्जन से,  कहीं पथरीले पथ और कहीं मधुवन--------- लेकिन हृदय पटल का ये कोलाहल कभी खामोशियाँ तो कभी ध्वनि उतपन्न करता हुआ निरंतर बहता है बस बहता है------उसका अंत भी कभी कभी समंदर के आगोश में पहुँचने से पहले भूमिगत हो जाना भी होता है। लेकिन यह धारा एक बार हृदय से निकलने के बाद पुनः हृदय में नहीं समां सकती बहती है या तो खामोशियों से या गुनगुनाहट से------ कभी मंद-मंद बसंती हवा सी और कभी सनसनाहट सी----------
बेहद जरुरी है हाँ जी बेहद जरुरी है सजदा ये मोहब्बत करना यदि करो तो जी भर करो, अंधेपन में करो, खुद से ज्यादा करो,  रिस्ता कोई भी हो प्रेम करो तो छल रहित--------- धोखा मिलेगा तो पीड़ा होगी पीड़ा होगी तो ईश्वर मिलेगा,,,,, पीड़ा होगी तो स्वाभिमान जागेगा-----पीड़ा होगी तो जिंदगी को करीब से समझने का मौका मिलेगा।
यदि धोखा न मिला तो उन रिस्तों से साथ स्वर्ग का अनुभव होगा जिनसे तुमने प्रेम किया और ईश्वर की कृपा मिलेगी। दोनों ही तरह लाभ हमें मिलेगा सुकून हमें मिलेगा------------------इसलिए जीवन में प्रेम बेहद जरुरी है।

एक शेर अर्ज किया है।
गौर फरमाएं---

दिल की महफ़िल में अक्सर,,,,,,,
हम आईने से बात करते हैं---------
तुम क्या दिखाओगे आइना हमें,,,,,
हम तो हर सुबह यहीं से शुरुआत करते हैं------

मेरे विचार मेरी कलम से----
14/11/18

निर्देश- एडेटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Monday, November 12, 2018

ये चाहते भी बड़ी अजीब होती हैं साहिब,,,,,,
न तो टिकती हैं न ही मिटती हैं---------

बस एक दिल ही तो है जो सीपी में समंदर समाए हुए है------------

12/11/18

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)
होंठ अक्सर तब खामोश होते हैं दुनिया की अदालत में साहिब--------

जब जख्म भी अपने हों और जख्म देने वाला भी अपना-------

12/11/18
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी) की कलम से

Thursday, November 1, 2018

फर्ज और जिम्मेदारी समझ कर सींचे गये रिस्ते यदि फलीभूत होने के बाद हमें ठुकरा भी दें तो हमारे अन्तर्मन को तकलीफ नहीं होती------
क्यों की हमने तो सिर्फ वो किया जो करना चाहिए और यदि यह जिम्मेदारी लालचबस निभाओगे तो उचित उम्मीदें पूरी न होने पर तकलीफ जरूर होगी------

हम एक किसान हैं अपने जीवन के। आने वाली ओला वृष्टि या सूखा नहीं रोक सकते परंतु इस डर से हम जीवन रुपी खेत को अपनी जिम्मेदारियों, लगन और निष्ठा से खून पसीना बहाते हुए, धुप, छांव, बारिस में अपने कर्म सम्पूर्ण न करें------यह गलत होगा-----

ओउम्
आप सभी को मेरी नमस्ते

मेरे विचार मेरी कलम से

०२/११/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Friday, October 26, 2018

मोहब्बत का दरिया निरंतर

सभी प्यारी आदरणीया माताओं, बहनों, भाभियों को मेरी तरफ से करवाचौथ पर यह कविता समर्पित----💐💐💐💐💐💐
*मोहब्बत का दरिया निरंतर*

हर तरफ चाँद है,
चांदनी भी है शीतल----
ओस की बूंदों से पलकें सजाकर,,,,

वो चाँद में देखती,
चाँद को आज अपने----

चाँद के जैसी दुल्हन,
यूँ अम्बर से कहती----
छुपाया क्यों है तूने,
आज चाँद अपना-----
मुद्दत है गुजरी बिना चाँद देखे,,,,
 जी भर निहारूँ,,,
चाँद सा अपना सजना------

चाहतों में भी,
कुछ खुमारी भरी है,,,,,
दिलों में अजब,
 बेकरारी बढ़ी है-----

दिल की बेचैनियां,
 न उनकी बढ़ा,,,,
चाँद जिसका है दूर,
सरहद पर खड़ा------

चाँद में अपना चंदा,
 निहारा करें,,,,
 दिलवर को दिल से,
पुकारा करें------

हवा का ये झोंका,
दिल में जो धँसता----
मोहब्बत का प्याला है,
पल-पल छलकता-----

दिल के समंदर का साहिल है अंदर-------
मोहब्बत का दरिया,
 निरन्तर- निरन्तर-----

वो चाँद में देखती,
चाँद को आज अपने------
ओस कि बूंदों से,
पलकें सजाकर------


रचित दिवस- शनिवार

दिनांक-27/10/2018

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, October 23, 2018

तेरी याद में

आशु रचना------


मैं तन्हा पथिक विचलित सी,
मेरे मन की उहा-पोह में,
गरजते हुये काले मेघों के बीच--
पथ को तलाशते हुए-------
निकल गयी फिर बड़ी दूर-----

हौले- हौले मेरे ही कदम चले जा रहे थे,
मेरे ही अंतर्मन के द्वार की ओर-----

हाँ प्रेम हो गया था मुझे उस पथ के हर धुल कण से----
जो जाते हैं मेरे प्रियतम के द्वार तक-------
न जाने कितनी बंदिशें रोकती रह गयी मुझे,
और मेरे हर स्पंदन को,
पहुंचना था अपने पतवार तक-------

न जाने कब टूट गयी,
उस मकान की दीवार,
जो बड़ी ही सख्त थी,,,,,
मैं चुटहिल पथिक------
न लता थी,
न दरख़्त थी-----

जितनी टूटी उतनी मजबूती से जुड़ती गयी-----
निज के अन्तर्मन से------
उसके प्रेम का सैलाब बेताब था,,,,
मुझे लेने को अपने आलिंगन में------

मैं अपलक निहारती रह गयी,,,,
बंद पलकों से------
अपने बागवां की गलियों को------
बन्द होंठ मेरे,,,,
उसका नाम पुकारते हुए न थकते,,,,

न जाने कब कर लिया गठबंधन,
हमारे रोम-रोम ने------
हमारे उस बादशाह से जिसने,,,,
न कोई शर्त रखी और न ही कहीं हस्ताक्षर लिए-----

मैं तन्हा सी पथिक,
तन्हा न थी------
उसने ले लिया मेरा हाथ अपने हाथों में-----
और मैं उसके नाम का श्रृंगार करती रह गयी-----
अनन्त आभूषणों का श्रृंगार-----

वो देखता रह गया मुझे मेरे ही दिल की नगरी में--------


...................✍🏻

२४/१०/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, October 16, 2018

फर्ज निभाओ इस तरह कि,
अपने वजूद का भी ख्याल न रहे----
ऐसा हो नहीं सकता कि,
तुमपर कोई सवाल न रहे-----

चाहा गर किसी को तो फिर,
चाहो इस तरह कि----
धोखे खाने का भी मलाल न रहे----

16/10/18
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

वो अडिग, अचल सी

*वो अडिग, अचल सी*

निज, नित के संघर्षों से,
सिंचता उसका यौवन था----
वो अडिग, अचल सी खड़ी रही----
जब तिल-तिल चुभता****
कंटक वन था-----

इसे पुकारा, उसे पुकारा----
न डूबी कस्ती, न मिला किनारा------
हौले-हौले पलकों पीछे,
कराह रहा था,
दिल बेचारा-----

भीतर से लेकर द्वार तलक,
फिर द्वार से लेकर भीतर तक---
हर कण-कण में वो खोज रही थी---
जीवित साँसों का मंजर""""

काया उसकी शून्य पड़ी थी,
पूछ रहा था मन उसका----
फूलों से तू घायल है,
या फिर लगा तुझे खंजर----

कूप निशाचर अँधियारों में,
बंद राह के गलियारों में----
तन्हा पथिक सी टकराती वो"""""
नित पत्थर की दीवारों से------

वो उपमा थी,
वो रूपक थी----
यमक नहीं थी,
पर श्लेष थी------
धधक रही थी अंदर से वो,
शायद इक चिंगारी,
शेष थी-----

सजती न तो क्या करती,,,,
खूब उफान पर यौवन था----
अलंकार था संघर्षों का----
न चूड़ी, न कंगन था------

वो अडिग, अचल सी खड़ी रही,
जब तिल-तिल चुभता,
कंटक वन था-----
निज, नित के संघर्षों से,
सिंचता उसका यौवन था-----✍🏻


कविता रचित दिनांक 👇🏻
२८/०९/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Monday, October 15, 2018

मेरी बेटी और मैं......

मैं अचेतन से चेतन में आने लगी,
वो माँ करकर मुझको,
बुलाने लगी,,,,
उसके चुम्बन ने ऐसा था जादू किया,,,,
आसाओं का मन में,
जला इक दिया....
मैं हौले से छूकरके बचपन मेरा,
गले से मैं उसको लगाने लगी******
उसकी आँखों में भी,
नमीं थी बहुत....
देखो मुझको ही चुप वो,
कराने लगी,,,,,,,

इक दूजे से गम को,
छुपाते हैं हम,,,,,,
जी भरके फिर मुसकुराते हैं हम.......

दिल भी मासूम है,
मन भी मासूम है.....
वो समझती है सब,
मुझको मालूम है******

देखकर मेरे नैनों की,
मायूसी को.....
पास आकर मुझे बरगलाने लगी""""""
वो माँ कह कह कर मुझको,
बुलाने लगी$$$$$$


शिवकांति आर कमल  ( तनु जी )

Saturday, October 13, 2018

कहानी समझकर पढ़ने की भूल न करो साहिब,,,,
*तनु* खुद की लिखी एक किताब है--------

चालाकियों का दरिया शून्य है-----
खुद्दारियों में बेहिसाब है------ 🙏🏻🙂

13/१०/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, October 7, 2018

दर्द भी कराह उठा साहेब-----
जब खंजर पर निशान उन अँगुलियों के  देखे---

जिनके स्पर्श से रूह को शुकून मिलता था----
०६/१०/१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, October 4, 2018

*शब्दों से मारो या हथियारों से,,,,,*
*अब दर्द हमें कब होता है-----*

*मजबूरी का आलम ऐसा है-------*
*रूह शून्य हुयी,*
*दिल रोता है------*

०४/१०/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Saturday, September 29, 2018

तनु सयानी हो गयी जी




न जाने कब, कैसे----देखो?
मैं खुद ही कहानी हो गयी जी-----
सपनों में जो खोयी थीं,
वो आँखें----पानी हो गयीं जी----

महफ़िल में जो हँसती बातें,
दिल में जैसे धँसती बातें----
काजल का है जिनमें पहरा,
उन आँखों को धुलती रातें 😃

दिल में नयी सी रहती हरदम,
जो बात पुरानी हो गयी जी-----
गिर गिर कर फिर उठते देखो,
चूर जवानी हो गयी जी----

थी दिल में जब भी,
पीर बढ़ी-----
तन्हाई थी,
नजदीक खड़ी----
चारो ओर था रेत का दरिया,,,,
मैं पानी समझकर दौड़ पड़ी----

आँखे बंदकर ख्वाबों से,
इस दिल की शानी हो गयी जी-----
कुछ पल खातिर लगा मुझे,,,,
फिर *तनु*
 दीवानी हो गयी जी---

कुछ आह उठी कुछ हूँक उठी,
-----मेरी इस तन्हाई को-----
कुछ अपनेपन की भूख उठी----
आखिर मैं भी इंशा थी,
कुछ पल खुद से रूठ उठी---

आँखे फिर नादानी कर गयी,
खारा पानी हो गयीं जी-------
सुबह-शाम भी आसां नहीं थी"""""
हर रात रूहानी हो गयी जी------

नादान हमें सब कहते थे,
जब बचपन में, मैं रहते थी-----
अंजान थी जग की राहों से,,,
बन मीठा दरिया बहते थी----

अब दावानल भी मुझमें है,,,,,,
हिमगिरि सा भी है,
धुआँ यहाँ-----
अब संभल-संभल कर तुम चलना जी------
पग-पग पर है,
कुआँ यहाँ--------


भटक-भटक कर,
तड़प-तड़प कर-----
इन राहों की रानी हो गयी जी------
कल तक जो इक अल्हड़ थी---- 😃🔥🌵🌪⛈🌈💫
वो *तनु* सयानी हो गयी जी------
वो *तनु*--------- सयानी हो गयी जी*********


10/09/2018
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Tuesday, September 25, 2018

शायरी


23/09/2018

जले थे हम अकेले,
बुझे थे हम अकेले------
कुछ दूर तो हम पहुंचे हैं,
जहां से चले थे हम अकेले------

जिद कल भी थी, जिद आज भी है------
न कल झुके थे गलत के सामने----
न आज झुके हैं-------
न झुकेंगे ताउम्र------

मेरी तन्हाइयों को आसमां मिल रहा है------
हम जा रहे मंजिल की तरफ-----
रास्ते में कारवाँ मिल रहा है------
रिस्तों की कीमत न लगाओ साहिब-----
जिसके बगीचे का अनमोल फूल हूँ मैं-----
हर कदम पर ऐसा बागवां मिल रहा है-------

Monday, September 24, 2018

एक चिन्तन

सभी आर्यावर्त वाशियों एवं इस देश को जो अपना समझते हैं उन्हें हमारा नमन-------

हम हिंदुओं (आर्यों) की संस्कृति में विराजमान दो महापुरुषों (मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, योगेश्वर श्री कृष्ण) पर अपने कुछ विचार इस लेख में लिख रही हूँ।

सबसे पहले तो उन ज्ञानियों से एक सवाल जो कहते हैं आर्य (हिन्दू) भारत के निवासी नहीं।
तो फिर आप बताएं भारत का मूल निवासी है कौन?

ईस्वी सन 711 में मुग़ल साम्राज्य आया भारत में,
2000 साल पहले ईसाई धर्म आया भारत में तो फिर आप बताएं सनातन धर्म कब कहाँ से आया।

आजकल सोसल मीडिया पर बहुत विद्वान् पैदा हो गए खासकर कुछ बनावटी *सवर्ण और कुछ बनावटी भीमटे*
ये एक दूसरे के खिलाफ खूब जहर लिखते हैं और फिर फॉरवर्ड करने वाले बेवकूफों को तो सौ तोपों की सलामी।

ऐसे तो मैं स्वयं ब्राह्मण नहीं हूँ लेकिन मैं भीमटे रंग में भी नहीं हूँ।
आज की मेरी खास तिलमिलाहट बौद्ध धर्म के नाम पर अराजकता फ़ैलाने वालों पर है।
जहां तक मुझे पता है महात्मा बुद्ध कहते थे
  *अहिंसा परमोधर्म:*
तो फिर आप मांस का भक्षण क्यों करते हो ये कौन सी अहिँसा के अंतर्गत आता है।

अब आगे की बात करते हैं जो बाबा साहेब का नाम लेकर भगवन राम और भगवन कृष्ण के नाम पर उलटी सीधी बातें गढ़ते हो ये आपके बाबा ने कौन से आरक्षण या संविधान में लिखा की महापुरुषों का अपमान करो अरे रामायण काल और महाभारत काल में तो कर्म व्यवस्था के आधार पर वर्ण व्यवस्था थी।
अगर इतने ही विद्वान् हो तो बनावटी बातों से बाहर निकल कर इन महापुरुषों पर गहन अध्ययन करो हजारों उदहारण मिल जायेंगे।

वैसे भी आपके बाबा साहब ने जो किया वो अकेले तो किया नहीं उसमें उनकी राजनीति थी और कुछ इनकी और कुछ बिगड़े हुए हालात।
इसमें राम और कृष्ण का क्या दोष और इन महापुरषों पर न तो महात्मा बुद्ध ने कोई अध्ययन या टिप्पड़ी की न ही बाबा साहब ने।
और आज आपने मान लिया की आप पंगु हो मतलब रस्ते खुद तय नहीं करोगे।

बाबा विदेश में जाकर पढ़े कानून की पढाई पढ़ी उन्होंने यह कब और कहाँ लिखा की उन्होंने वेदों का अध्ययन किया, उपनिषद और स्मृतियों का अध्ययन किया?
या उन्होंने यह कब कहा कि हमने मुस्मृति पर शोध किया और उसमें  की गयी मिलावट को परिवर्तित किया क्यों कि हमारे विद्वानों का मानना है कि हमारी संस्कृति, गुरुकुलों, न्यायव्यवस्था को ध्वस्त किया गया और हमारे धार्मिक ग्रंथ क्यों की विद्वानों को कंठस्थ भी थे तो पूरी तरह ध्वस्त नहीं कर पाए तो उनको विकृत कर दिया गया।
कुछ भ्रमित बातें जोड़ दी गयीं। राम और कृष्ण का चरित्र तक बिगाड़ने का हर संभव प्रयास किया गया।
आज योगेश्वर श्री कृष्ण को तो सिर्फ गोपियों के साथ एक रासलीला करने वाला बनाने में विधर्मियों को कामयाबी मिल रही है।

आपके बाबा साहब के पहले जन्में थे संत रविदास, संत कबीर, संत नानक, दादू------

क्या ये सब ब्राह्मण थे नहीं ना तो फिर इन्होंने तो कभी भी राम, कृष्ण का मजाक नहीं बनाया।

इन सबके बाद और आपके बाबा साहब के पूर्व पैदा हुए थे-- स्वामी दयानन्द सरस्वती ब्राह्मण परिवार में जन्में मूर्ती पूजा के विरोधी थे।
महान विद्वान स्वामी जी ने बरसों तक गहन अध्ययन किया वेद, उपनिषद, स्मृतियां------
दुनियां के कई धर्मों की धार्मिक पुस्तक रीत रिवाजों का अध्ययन किया------

और तब कहीं जाकर उन्होंने महान ग्रन्थ *सत्यार्थ प्रकाश* की रचना की।
स्वामी जी श्री राम और श्री कृष्ण का हमारे समाज में जो चरित्र फैलाया जा रहा उससे व्यथित थे।

लेकिन आप लोग आज कल बड़े ठाठ से जय भीम बोलते हो वो तुम्हारी इच्छा लेकिन हमारे सनातन धर्म का,श्री राम और श्री कृष्ण का तमाशा बनाने का हक़ किसने दिया।

अंत में एक
सन्देश उन लोंगो के नाम जो काम बाद में करते जाति पहले पूछते हैं।
आप लोग भी सुधर जाओ तो अच्छा है ये जो हमारे पूर्वजों का तमाशा बना है उसके पूरे जिम्मेदार हो।
अरे कुछ तो सोंचों इस सबसे मिट कौन रहा है।
टुकड़ों में बिखरकर क्या हासिल कर रहे हो।
भेड़ चाल में स्वार्थी न बनो।

मत भूलो इसी बिखराव के कारण मिट रहे हो जो जनेऊ जलाए गये थे सदियों पहले और उससे पैदा हुई ये जाति-पांति------ कहीं तुम्हारा अस्तित्व् ही न जला दे------

नोट-
किसी की भावनाओं को चोंट पहुँचाना मेरा इरादा नहीं किसी को दुःख पहुंचे तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
मैं एक हिन्दू हूँ मैं एक आर्य हूँ और यह हक़ न मुझसे कोई सवर्ण छीन सकता न दलित।
हमारा धर्म सनातन है जिसका न कोई आदि है न अंत।
इसपर कीचड उछाल कर अपनी महान अज्ञानता का परिचय न दें।

मेरे विचार-----मेरी कलम से----✍🏻

दिन-सोमवार

दिनांक-24/09/2018

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Saturday, September 22, 2018

एक अहसास परमात्मा के नाम

एक अहसास परमात्मा के नाम...

जब जब मैं घायल थी मेरे जख्मों पर सिर्फ तेरी नजर थी|
 कातिल चोंट देता रहा और मैंने उफ तक न की बड़ा बेचैन था वो यह सोंचकर कि मेरा हमसफर कौन है!!!!!
उसे क्या पता था जब भी वो खंजर घोंप रहा था मेरा प्रभु मेरा कवच बनकर खड़ा था|
न जाने कौन सी ताकत थी जो मेरी दुबली पतली काया में जोश भर देती थी|

कातिल देख रहा था कि मैं अभी उसके छल के आगे घुटने टेक दूंगी|
लेकिन मैं हर बार आगे निकल गयी वो जाल बिछाये रास्ते में खड़ा रह गया|

लोगों को लगा कि मैं अभिमानी हूं, मेरा जर्रा जर्रा घायल था परन्तु मेरी राहों में उम्मीद का एक चिराग लिये परमात्मा मेरी हमसफर था... क्यूं कि सिर्फ उसे ही पता था कि मैं अभिमानी नहीं स्वाभिमानी हूं.....

परमात्मा से मैंने पूछा कब तक यूं ही साथ चलोगे....
उसने कहा जब तक तुम्हारे कदम रूक नहीं जाते....
मैंने कहा मेरे कदम कब तक नहीं रुकने चाहिये...
उसने कहा जब तक मंजिल न मिल जाये....

मैं तड़प रही थी दर्द में,
मैं कराह रही थी दर्द से,
चलने की ताकत न थी फिर भी लड़खड़ाते हुये चल रही थी|
कातिल हँसना चाहता था मेरे हालात पर फिर भी हँस नहीं पा रहा था....क्यूं कि उसके लिये यह असनीय था कि मुझमें अब भी जान बाकी है||||||

मैं नजर घुमाकर देखा मेरी जान की हिफाजत में परमात्मा कवच बनकर खड़ा था.......

मैं फटेहाल थी और कातिल बैठा था दौलत के गद्दे पर......
मैंने देखा उसका बौखलाया हुआ चेहरा, तमतमाया हुआ चेहरा...वो चीख पड़ा ओ महारानी मैं तुझसे सबकुछ छीन लूंगा!
मेरे मन में अजीब सा हर्ष हुआ शायद मेरे स्वाभिमान के कारण मैं उसे भिखारी रूप में भी महारानी लग रही थी...

मेरे हमसफर ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा..धीरे धीरे आगे बढ़ो अभी मंजिल तक पहुंचना बाकी है....
मैं धीरे धीरे मन बुदबुदायी....हां मजिल तक पहुंचना बाकी है....... और मैं फिर से चल दी एक अंजान राह पर...तब तक न रूकने की कसम लेकर जब तक कातिल धूमिल न हो जाये..और मुझे पाकर मेरी मंजिल की प्यास न बुझ जाये.......

ओ३म् परमात्मने नम:

मेरे अहसास मेरी कलम से....
०१/०१/२०१८
शिवकान्ति आर कमल ( तनु जी )

Thursday, September 20, 2018

आकर राख बना दो तुम

पढ़िये वियोग श्रृंगार पर मेरी एक रचना.....

दिनांक
२०/०३/२०१८

"आकर राख बना दो तुम"

आखिर बार सजा दो तुम,
या फिर आज "सजा" दो तुम!!!
कब तक धड़कन रोके रखूं,
आकर मुझे बता दो तुम!!!!!

निज हाथों से मुझे सजाओ,
चूड़ी, कंगन लेकर आओ,,,,
ले गये थे जो,
 संग अपने,
वो भी धड़कन लेकर आओ!!!!
दूर रहो ओ सखी तुम हमसे,
दूर देश हैं पिया बुलाओ,,,,,

अंग मिलन की चाहत नाहीं,
रूह से रूह को मिला दो तुम!!!!
…………………………

इक रूह और दो अँखियाँ मेरी,,,,
देख रही हैं राहें तेरी!!!!!
आ भी जाओ अब ओ साजन,
चाहत की है निशा घनेरी!!!!!

इन सूखी सी अँखियन को,
आकर घटा बना दो तुम!!!!
…………………………

दूर करो श्रृंगार सखी,
अंग-अंग मैं,
उनको पहनूं,,,,
खुश्बू अपने प्रियतम की,,,,
अंतिम सांसों में तो,
भर लूं!!!!!

निज नैंनों से इन नैनों का,
चिलमन आज बना दो तुम!!!!
…………………………………

कैसे कहूं मैं,
अपने मन की!!!!!
सुध-बुध नहीं है,
मुझको तन की!!!!!
जल-जल कर मैं खाक हो गयी,
अँखियाँ काली,
बिन अंजन की!!!!!

जली खड़ी हूं,
तरु के जैसी,,,
आकर राख बना दो तुम!!!!!
कब तक धड़कन रोके रखूं,,,,
आकर मुझे बता दो तुम-----

शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Wednesday, September 19, 2018

शायरी

लगा सको तुम बोली इसकी,
ऐसी कोई कीमत नहीं होती------

ये मुहब्बत है दोस्तों------
जो दिल से कभी,
 रुख्शत नहीं होती------

जो खुद को भी देखे आईने में

"""संदेह भरी नजरों से"""

ऐसी नज़रों को कभी किसी से?
मोहब्बत नहीं होती-------

20/09/2018
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

ये कैसी दौलत

ये कैसी दौलत....

एक अमीर आदमी था उसे धन के अलावा किसी से प्रेम नहीं था| आप लोग क्या समझे? धन? मतलब रिस्ते नाते नहीं, उसे सोना, चाँदी, प्रॉपर्टी और रूपये से प्रेम था| हर पल अभिमान के नशे में चूर रहता कि मैं तो बहुत अमीर हूं इसलिये सब मेरे तलवे चाटेंगे|
वो अपना धन घर के सदस्यों से छुपाकर रखता हमेशा रखवाली करता| घर के सदस्यों से बहुत गंदा व्यवहार करता तुम सब मेरे टुकड़ों पर पलते हो जब चाहूं तब घर से निकाल फेकूं| उसकी बदसलूकी से तंग आकर एक दिन सब उसके जीवन से चले गये| वह अकेला इतराता फिरता कुछ ही दिनों में उसके पास कुछ कुत्तों ने ठिकाना बना लिया वो उन्हें रोटी के कुछ टुकड़े डाल देता और खुद को राजा समझता वो भूल गया कि अपने परिवार के साथ वफा न रखने वाले के साथ कुत्ते तक वफादारी नहीं करते|
एक दिन कुत्ते ने उसका तलवा चांटते समय उसे ऐसा काटा कि वो दोबारा कभी नहीं चल पाया|

वो विस्तर पर पड़ा था और कुछ कुत्ते हर दिन उसके कलवे चांट रहे थे क्यूं कि उन्हें पता था जो जहर वो उसके अन्दर डाल चुके हैं उससे अंत निश्चित है तो थोड़े दिन और तलवे चांटने में क्या जाता है......

आज कुछ कुत्ते उसकी मौत पर खुशी से रो रहे थे मालिक कहां चले गये हमें छोड़कर अब आपका क्रियाकर्म कौन करेगा हम तो कुत्ते हैं ना........हम तो अपना भोजन भी किसी के साथ नहीं बांटते फिर जो दौलत अपने परिवार वालों से छुपाकर आपने रखी उसे आपके क्रियाकर्म में कैसे खर्च कर सकते हैं इसी के लिये तो हमने तलवे चांटे थे.....

जो व्यक्ति रिस्तों के साथ गेम खेलता है परमात्मा उसके साथ गेम खेलता है!!!!!
धीरज रख रे बंदे,,,,
तेरे हर गुनाह को वो हरपल,
देखता है.....

ओ३म् परमात्मने नम:

मेरी कलम से...
२६/१२/२०१७
शिवकान्ति आर कमल ( तनु जी )

Monday, September 17, 2018

"हैं जख्म मेरे कातिल''


हैं जख्म मेरे कातिल....

ये कसमकश की घड़ियाँ,
हैं जख्म मेरे कातिल!!!!!
नमकीन है ये दरिया,
उस पार मेरा साहिल!!!!!

छूती हूं जब मैं पानी,
जलते हैं जख्म मेरे!!!!!
सो जाती हैं थक कर आँखें,,,,,
चलते हैं जख्म मेरे!!!!!!

घनघोर है अँधेरा,
साया भी गुम हुआ है!!!
मैं वज्र हो गयी हूं,
कातिल भी दुम हुआ है!!!!!

पक गये मेरे गोखरू,
चलने का शौक पाला,,,,,
बनकरके वैद्य हमने,
खुद को ही चीर डाला!!!!!!

तू खेल खूब खिलाड़ी,
बाजी हमारी होगी,,,,,,,
चाल तू चलेगा,
राजी हमारी होगी!!!!!

नरभक्षी दरख्त है तू,
अमरबेल मैं बनूंगी!!!!
नाक तेरी होगी,
नकेल मैं बनूंगी!!!!!

तुझे सूखना पड़ेगा,
मुझे सूखने से पहले,,,,,
तुझे टूटना पड़ेगा!!!!!
मेरे टूटने से पहले......

मैं हूं अजब कहानी,
जो समझ तू ही न पाया,,,,
मासूम इक कली को,
था शूल खूब बनाया!!!!!

जो समझ न सके ये,,,
लगती मैं उनको जाहिल!!!!!
ये कसमकश की घड़ियाँ,
हैं जख्म मेरे कातिल!!!!!

स्वरचित- ०३/१२/२०१७


शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, September 13, 2018

जब मांझी ही मेरा भंवर बन गया

लाख कोशिश करी,,,,,
लेकिन बच न सके......
जब मांझी ही मेरा,,,,,,
भंवर बन गया.......

वो दरिया भरा,,,,,,
आग से था ओ यारों......
था पानी समझकर,,,,,,,
जिधर मन गया.......

हम तड़पते रहे,,,,,,,
रूह यह जलती रही......
देखो काया यह,,,,,,
उठ उठ सम्भलती रही.......

मेरा दिल, मेरे दिल से......
अलग हो गया......
सपने सोते गये,,,,,,
और मैं जगती रही......

न चाहतें मेरी,,,,,
रास आयीं उन्हें,,,,,,,
वो मेरे...नैंनों का भी,,,,,
लेके दर्पन गया......

वो दरिया भरा.................मन गया..

दिल का मासूम होना,,,,,,
गुनाह हो गया......
सभी फूल जी भरके,,,,,,
कांटे बने......

दिल की रौनक समझ,,,,,,
हम गये थे जहां......
उनकी महफिल में,,,,
हम ही तमाशे बने.......

मेरे खामोशी का आलम,,,,,,
गजब था बड़ा,,,,,,
हम रोते रहे,,,,,,
ओंठ हंसते रहे......

बाग ख्वाबों का था,,,,,,
अब उजड़ सा गया,,,,,,,
बन शबाब हम,,,,,
महफिल में सजते रहे.......

दिल की दुनिया से देखो,,,,,
मैं विधवा हुयी.......
हुश्न के तमाशे में,,,,,,
बदन बन सुहागन गया..........

वो दरिया भरा...................मन गया

स्वरचित_०७/०३/२०१७

नोट_कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति कमल (तनु)

Wednesday, September 12, 2018

महिला के स्वाभाव परिवरतन पर एक लघु लेख

सभी सज्जनों एवं बहनों को शुभसंध्या....

प्रियजनों आज एक स्त्री के कर्कश स्वाभाव पर अपने कुछ विचार लिखने का मन किया.....

हमारे धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि कर्कश स्वभाव वाली स्त्री का घर शांतिविहीन होता है| एक कर्कशा कभी पतिप्रिया नहीं होती|
मैं स्त्री होने के नाते यही कहूं स्त्री का स्वभाव सुशील एवं विनम्र होना अति आवश्यक है क्यूं कि स्त्री से घर का सृजन होता है|
परन्तु आप सबने यदि ध्यान दिया होगा हमारे समाज में हमारे आस पास कोई विधवा या तलाक सुधा स्त्री का स्वाभाव परिवर्तन हो जाता है वह कर्कश हो जाती है लोगों को चुभने लगती है| खुद को सभ्य कहने वाले लोग उसके स्वभाव को पसंद नहीं करते दूर भागते हैं| लेकिन कभी सोंचा है ऐसा क्यूं होता है|
पहली बात तो स्त्री ही स्त्री को नीचा दिखाती है अपमानित करने की कोशिश करती है| एक स्त्री जो विधवा या तलाक सुधा है उससे अपने पति को ऐसे छुपाती घूमेगी जैसे कोई मिठाई का बॉक्स हो| अब पुरुष समाज की बात करो एक अकेली औरत को देखा नहीं कि सौ बहाने लेकर पड़ जाते हैं पीछे| ऐसे में यदि अकेली महिला सभ्यता पूर्वक समझाना चाहे तो मनचले पुरुषों को समझ नहीं आता यहां तक कि ऑफिस, समाज में उसका मजाक बना देते हैं वो मैडम तो फलां आदमी के चक्कर में हैं या फिर देखो वो आज मुझसे बड़े प्रेम से समझा रही थी लगता है जल्दी ही बात बन जायेगी|
एक महिला जो पहले से हालातों की मारी है हर दिन कैसे हालातों से जूझती है उसे बार बार अकेले होने का अहसास दिलाया जाता है| न चाहते हुये भी विक्रत दिमांग लोग उसके आगे पीछे मँडराते हैं| ऐसे में वह स्त्री क्या करे वो भूल जाती है अपनी शालीनता, अपना मूल स्वभाव, भूल जाती है अपनी कोमलता और कमर कस लेती ऐसे लोगों को उनकी भाषा में समझाने के लिये| जब वो खुद को समाज से लड़ने के लिये तैयार कर लेती है तब उसे सनकी, झगड़ालू, बिगड़ैल कहा जाने लगता है|

ओ३म् परमात्मने नम:

मेरे विचार मेरी कलम से....

३१/१२/२०१७

शिवकान्ति आर कमल ( तनु जी )

Tuesday, September 11, 2018

खोया बहुत कुछ मोहब्बत में हमने,
न मोहब्बत मिली,
न वफ़ा ही मिली-----

गले से लगा ले ओ तन्हाई,,,,,
अकेले ही मंजिल को पाना है अब------

११/०९/२०१८
शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, September 9, 2018

श्री अटल जी की स्मृति में


उत्तर से लेकर दक्षिण तक,
पश्चिम से लेकर पूरब तक-------
निर्जन से लेकर,
जन-जन तक------
और उनसे लेकर,
हम सब तक------

इस देश में भगवा लहराता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता---
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता----

खूब रूह तुम्हारी तड़पी होगी,
तन्हा छाती फटती होगी----
चहुँ ओर देख गद्दारों को,
मन की धुंध न घटती होगी----

इस देश को अपना कहने वाला,
हर हाथ जो तुमको,
मिल जाता------
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता----

वो धरती माँ का लाल था सच्चा,
मैदान ए जंग में!
"ज्वाला था-----"
शब्दों का था जादूगर,
वो कवि बड़ा मतवाला था-----

सुन करके हुंकार तुम्हारी,
हर पापी तरुवर हिल जाता----
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको मिल जाता----

वो निश्छल आँखें कहाँ गयीं,
वो सरल सी चितवन कहाँ गयी---
गुंजायवान है हवा यहाँ,,,,,
कवि! गुंजन तेरी कहाँ गयी----

न जाने कितने दिल टूटे हैं,
खुद में ही खुद से रूठे हैं----
काव्य जगत भी पूछ रहा,,,
वो धड़कन मेरी कहाँ गयी----

धर्म की पावन धरती पर,
धर्म, धर्म ही इठलाता----
गर साथ जो तुमको,
मिल जाता-----
अधर्म तुमसे थर्राता,
गर साथ जो तुमको
मिल जाता-------


स्वरचित
दिन-शनिवार

दिनांक-०8/०९/२०१८

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Friday, September 7, 2018

नफ़रत नहीं मेरा किरदार है



*नफरत नहीं मेरा किरदार है*

जमाने से जमकर फँसाने हुये,,,,,
फिर भी हम उनके,
दीवाने हुये!!!!!
पल-पल घरौंदे उजड़ते रहे,,,,
फिर भी इस दिल में,
घराने हुये&&&&&

वज्र पड़ते रहे,
धरा तपती रही||||
उम्मीदों की घड़ियाँ भी,
हँसती रहीं......

कोई था.....मगन....
कोई नम सा हुआ,,,,,
कोई गम में भी होकर,,,,
मरहम सा हुआ||||

हर *ऊषा* किसी की,
*निशा* सी हुयी.....
किसी का सबेरा,
जखम सा हुआ!!!!!!

हर घड़ी जिंदगी है,
चुनौती यहाँ.........
वक्त पर न किसी की,
बपौती यहाँ.......

दर्द की हर घड़ी में,
जो पतवार है.....
मुझमें समाया मेरा,
यार है.......

मुहब्बत में मिट जाऊँ,
मन्जूर मुझको.....
*नफरत नहीं मेरा*
*किरदार है*

दुआओं में वो है,
वफाओं में हम हैं.......
*मेरे दिल में तेरे, कैदखाने हुये*
जमाने से जमकर फँसाने हुये,,,,,,
फिर भी हम उनके,
दीवाने हुये.......

*स्वरचित*
दिन- सोमवार
दिनांक १८/०६/२९१८

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शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Thursday, September 6, 2018

"बड़े अजीब हो तुम"



बड़े अजीब हो तुम

सुनो ना,
बड़े अजीब हो तुम,
फिर भी मेरे दिल के,
करीब हो तुम!!!!!!

जब भी तुम घर से बहार जाते हो,
मैं तुम्हें देखती रहती हूँ,
चुपचाप सी,
खामोश सी!!!!!
आज मन किया था,
रोक लूं तुम्हे,
फिर सोंचा कल बच्चों के लिये,
भोजन कहां से आयेगा,,,,
फिर मैंने रोक लिया,
अपने कदमों को!!!!!!
और देखती रह गयी,
तुम्हें जाते हुये,,,,,,

तुम्हारी आँखें थकी सी थीं,
तुम सो जाते तो,
कल बच्चे भूख से न सो पाते!!!!!
बस इसी लिये खड़ी रह गयी,
चुपचाप सी!

सुनो ना,

माना कि वक्त ने मुझे,
जिद्दी और गुस्सैल बना दिया है,,,,,
लेकिन मेरे दिल में,
हरपल तुम रहते हो,
मेरे ख्वाबों, ख्यालों और
सवालों, जवाबों में,
बस तुम रहते हो!

जब तुम अपना वादा,
पूरा नहीं कर पाते,
मैं सिहर उठती हूं अन्दर से,,,,
फिर सुनाती हूँ तुम्हें,
खरी खोटी!!!!!!
जानती हूं तुम झूठे नहीं,
परिस्थितियाँ है झूठी!!!

तुम चलते हो दिन रात,
दो जून की,
जुटाने को!!!!
कल तुम आये थे सपने में,
अपने जख्म दिखाने को!!!!

नींद टूट गयी,
मन व्यथित हो उठा,
मैं सारी रात तुम्हें,
पुकारती रही!!!!!

सुनो ना,

बहुत कुछ अनकहा,
सा रह जाता है:::::
सारे स्वर एक तरफ,
हमारा जीवन,
अं, अ: सा रह जाता है!
तुम भी मुझे,
जली कटी न सुनाया करो,
दिल का दर्द,
आँखों से समझ,
जाया करो!

दिल ने कहा बड़े,
अजीब हो तुम,
फिर भी दिल के,
करीब हो तुम!!!!!
फिर भी दिल के,
करीब हो तुम.....
फिर भी.......

%%%%%%%%%%%%
स्वरचित-१७/०९/२०१७
नोट-एडटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित
शिवकान्ति आर कमल
(  तनु जी )

Tuesday, September 4, 2018

मन पवित्र तो सब पवित्र

*मन पवित्र तो सब पवित्र*

घर, परिवार में हों,
या हों बाजार में,

दुनिया की भीड़ हो,
या हो निर्जन-------
हृदय के धरातल से पुकारता है जब,
वो माथे का चुंबन और
पवित्र आलिंगन-------

नाम लेते ही उसका,
महसूश होता है,
एक आवरण सा-----
पवित्र मन की गहराई के समंदर में!

प्रेम, स्नेह और भरोसे के अथाह मोती भरकर-------
ईश्वर ने कलम चलायी होगी,
खूब संभल-संभल कर****

पुकारने वाले को जिस शब्द,
में न हो कठिनाई----
उस शब्द को नाम दे दिया *भाई*

रिस्ता खून का था या पराया,
फर्क करना मुश्किल हो गया-----
जब फंसने लगे कसमकश के भंवर में।।।।।
तब वो शाहिल हो गया-----

एक पल में बदल जाता है,
दुनिया के देखने का अंदाज---
मन मंदिर में बजते हैं,
ईश्वर के बनाये कुछ साज-----

इस देश की संस्कृति का इतिहास,
भरा है,,,,
रिस्तों के त्याग और बलिदान से----
लेकिन बदकिस्मती तो देखो जरा,,,,
निज नया इतिहास रच देते हैं।।।।
दिमांग से होशियार और पश्चिमी लोग------

तब ससंकित हो उठती है पवित्रता भी,,,,,
और मेरे हृदय पटल का विशाल समंदर,
शोक में डूब सा जाता है-----

इस बदली हुई सोंच,
और भेड़ चाल में भी-------

अड़ा है वो रिस्ता,
 सर्पों से लिपटे,,,
चन्दन की तरह------
शांत, शीतल, सुखद और अडिग------

दो शब्दों की गहराई,
यदि समझ जाये,,,,
यह बदली हुई संस्कृति-----

तो संस्कार विहीन सडकों पर,
गूंज उठे फिर गाथाएं,
पवित्र बंधन और पवित्र मन की-----

समेटने लगें अपना आवरण,
अर्धनग्न घूमती स्त्रियां----
यदि उन्हें घूरने वाली आँखों का,
अंदाज बदल जाये------

यदि बदलाव इतना ही जरुरी है,,,,,
तो बदल दो यह सोंचना की वह मेरी नही किसी और की बहन है,,,
यह मेरा नही किसी और का भाई है--------


*मन पवित्र तो तन पवित्र*
*तन पवित्र तो सब जन पवित्र*

*देखो तो पवित्र नज़रों से----*
*यहाँ महफ़िल भी पवित्र और,*
*निर्जन भी पवित्र*

स्वलिखित
दिन- बुधवार
दिनांक
05/09/2018

निर्देश- एडेटिंग, कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

"न ज्ञान समंदर मुझमें है"

..

दिन-शनिवार

दिनांक-२८/०४/२०१

न ज्ञान समंदर मुझमें है,
जो मैं पंडित कहलाऊँ!
निज भुजाओं में वो बल नहीं,
कि मैं क्षत्राणी बन जाऊँ!!!

न वैश्य मुझे तुम समझो जी,
न ही मैं व्यापार करूं!!!
तुम समझ रहे हो शूद्र मुझे,,,
क्यूं अछूत मैं कहलाऊँ|||

जब धर्म सनातन अपमानित हो,
तब मैं पंडित बन जाती!!!!

निज स्वाभिमान पर वार न करना,,,,,
फिर मैं ज्वाला बन जाती|||

जब भूख से अपने तड़प रहे हों,
तब जल और अन्न जुटाऊँ मैं|||

फिर तन मन को जब साफ करूं?
तभी शूद्र कहलाऊँ मैं||||

जाति पूछ कर मेरी तुम, जाते कहां हो पता करो!!!
जाँति-पाँति के चक्कर में,
मर मिटने की न खता करो!!!

मुगल आये जब भारत में,,,
तब वर्ण हमारी जाति हुआ,,,,
फिर इसने -उसने हमको चूसा,,,
यह शोषण-शोषण राग हुआ|||

न वेद का ज्ञान धराते हो,
न गीता ही पढ़ पाते हो...
इसकी-उसकी सुन-सुनकर,
गला फाड़ चिल्लाते हो!!!

नशेड़ी कहे ब्राह्मण खुद को,,
महाराजा दलित कहाता है||
सच नहीं करे स्वीकार कोई,
हिंदू मिटता जाता है|||

हम न किसी से डरने वाले,
न परिवर्तन करने वाले|||
छाती ठोंक के कहते हैं,
हम श्रृष्टि संवत, पढ़ने वाले|||

राम राज के शंभुक, धोबी
आकर मुझे गिनाते हो||
वैदिक धर्म में जाति नहीं थी,,,
कभी इसका ध्यान लगाते हो|||

वर्ण व्यवस्था, जाति-पाँति में,,,
अंतर करना सीखो तुम|||
सिर पैर बिना की बातें लेकर,,,
इधर-उधर मत फेंको तुम|||

कभी बैठकर सोंचो तो,
कौन कहाँ से आये थे|||
वेदशाला, कुतुबमीनार हो गयी,,,
नालंदा भी जलवाये थे|||
तेजोमाहल, ताज हो गया,,,,
वो मुगल कला सरताज हो गया,,,,,
अकबर पोथी व्यापक हो गयी,,,,
*हमारे प्रताप*
दो पन्नों में समाये थे||||

झांसी जब वीरान हुयी,
गद्दार एक पिण्डारी था,,,,,
उसका सुपुत्र चाँद मियां,
वो बुड़बक सबपर भारी था||||

उस गद्दार के मन्दिर में,
तुम ओम् साईं चिल्लाते हो|||
चले कहां से, कहां गये हो,
धरातल खोज न पाते हो|||

आदि न जिसका अंत कोई,
वो सनातन धर्म हमारा है|
तुम रंग बदलो हरा औ नीला,,,
इक भगवा रंग हमारा है|||

मेरा ये हक छीनने वाला,,,
हिंदू भी मिल जाये कोई|||
कान के नीचे दो दे दूं,,,
उससे भी टकराऊँ मैं||
फिर नहीं फर्क है पड़ता कोई,,,
ब्राह्मण या दलित कहाऊँ मैं||||



स्वरचित

नोट-एडटिंग कॉपी पेस्ट वर्जित

शिवकान्ति आर कमल
( तनु जी )

Monday, September 3, 2018

"तृष्णा मंजिल पाने की"


यूँ तो हर किसी को लगती थी,
दुल्हन कोई नवेली सी-------
जब करीब से जाना,
तो वो----
अनसुलझी सी पहेली थी-----

उसकी आँखों में देखा,
एक गहन समंदर,
की, थी हमने,
थाह खोजने की कोशिश,,,,,

लेकिन मिली सिर्फ शिथिलता,
और शिथिलता------

वो मौन चित्त साँझ की बेला में,
अथाह कूप लिए,
अपनी आह में,,,,,
देख रही थी सूरज ढलने से पहले,,,,,
रंग बदलती हुयी गोधूल की लालिमा।।।।।
यूँ लग रहा था जैसे कुछ ही पल में,
वो विजय पाना चाहती है,,,,,,
 चलने वाले निरंतर संघर्षों पर-----

हाँ कुछ ही पल तो थे,
सूरज ढलने में जब,
कुरुक्षेत्र में बाजी पलट दी थी योगेश्वर ने------
शायद यही बुदबुदा रही थी वो----


उसकी सरल चितवन में,
जैसे सवालों की झड़ी थी----
लेकिन ओंठ उसके मौन थे।
मैं जाने लगी उसके सवालों का उत्तर देने।

 लेकिन कदम ठिठक गये,,,,,
यह सोंचकर,,,,
खामोश निगाहों के सवाल बहुत ही व्यापक होते हैं।।।।।।

उसके सांसों के आरोह,
अवरोह की ध्वनियां,,,,,,
समेटें थी स्वयं में न जाने कितने,,,,,
काले मेघों की गड़गड़ाहट-----

यूँ लगता था बरस गयीं तो!
बहा ले जाएँगी न जाने कितने,,,
खोखले आदर्शों की बस्तियां---

उसके दिल के रेगिस्तान में,
शायद नदी ने बहने से मना कर दिया----
और उसका कंठ बेहद,
सूखा लग रहा था------

अपने नेत्रपटल बंध करके,
उसमें संचित मेघराज से,
अपनी *तृष्णा* को मिटाने का प्रयास करते हुए,,,,

वो धीरे- धीरे चलने लगी,
किसी अनजाने पथ की ओर----

स्वयं में स्वयं को भीचें हुए-----
तन्हा सी बड़बड़ा रही थी,,,,,,
मंजिल तुझे पाना है,
ऐ मंजिल तुझे पाना है।।।

अपने क़दमों को पूरी ताकत से,
उठाते हुए------
लहूलुहान कदमों से,,,,,
बिना रुके वो फिर चलने लगी-----

आसमां की तरफ देखा और फिर बोली,

!!!!!!!!!!!ऐ मंजिल तू जरूर मिलेगी,
कभी न कभी,
मैं आ रही हूँ खोज में तेरी,

ऐ मंजिल तुझतक आना है,
ऐ मंजिल तुझे पाना है।।।।।।।।

दिन-सोमवार
दिनांक-०३/०९/२०१८

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Sunday, September 2, 2018

मैं तड़पती थी जिस आसमां के लिए---



!!!!!मैं तड़पती थी जिस आसमां के लिये!!!!

घन बरसते रहे,,,,,,
धरा प्यासी रही।।।।।।।
मन काली घटा सी,,,,,,
उदासी रही।।।।।।

मैं तड़पती थी,,,,,
जिस आसमां के लिये।।।।।
उसी की वफा,,,,,,,
बेवफा सी रही।।।।।।।

दिल के दरिया में,,,,,,
ऐसी थी रेती हुयी।।।।।।
मेरी दुनिया एक,
बंजर सी खेती हुयी।।।।।।।

सनम स्वाति हुये,,,,,,,
बूंदें आती नहीं।।।।।
मैं चातक सी,,,,,,
पिय पिय बुलाती रही।।।।।।

जिन्हें चाहा बहुत,,,,,
वो थे छलिया बड़े।।।।।।।।
मैं रोती रही,,,,,
वो थे हँसते खड़े।।।।।।।

मोहब्बत में,,,,,,
अरमां थे धूमिल हुये।।।।।।।
फिर भी यादों की उनकी,,,,,,,,
घटा सी रही।।।।।।।

सांसें कहती हैं, मुझसे,,,,,
क्यूं न आये हैं वो।।।।।।।।
फिर धड़कन में,,,,,
यूं, क्यूं समाये हैं वो।।।।।।।

होश की सारी बातें तो,
छोड़ो सखी।।।।।।।।।
बेशुधी के शिखर तक,,,,,
कराहती रही।।।।।।।।

मैं तड़पती थी,,,,,
जिस आसमां के लिये।।।।।।।
उसी की वफा,,,,,,
बेवफा सी रही।।।।।।।।।

स्वरचित-२८/०७/२०१८


शिवकान्ति आर कमल (तनु जी)

Saturday, September 1, 2018

*हैं अब अजनबी*


वो बागों की कलियाँ,,,,,
और मोहब्बत की गलियां,,,,,,
खुशबू भरा उपवन------
वो झूलों का सावन-------
चाहतों का मंजर,
था मेरे भी अंदर------
वो शर्मीली नजरें,,,
और बालों में गजरे------

तितली का इतराना,,,
फूलों से टकराना-----
हाँ मुझे भी भाते थे कभी,,,,,
मेरे सपने और उनमें,,,
खो जाना------

वो पायल की रुनझुन,
वो चूड़ी की खनखन------
ओंठों में लाली,
और कानों में बाली-----
आइना भी था रूठा,,,
चाहतें थी झूठी-----
न मुझको खबर,,,,
मैं थी कब कैसे टूटी-------

संग मौसम के टकराना,
और उससे बतियाना-----
हाँ मुझे भी भाते थे कभी,,,,,,
मैं सांसों में बसाये थी जो,,,,
एक आशियाना-------

याद आते बहुत हमको,
जख्मों के मंजर,,,,,,
फिर रुलाते बहुत,
हमको धोखे के,
खंजर//////
चाहतें मेरी जब,,,
दफ़न सी हुयीं------
तिल-तिल तड़पे थे हम---
देखकर वो, बवंडर------

मोहब्बत से रहना,
मुहब्बत में बहना-----
गुस्सा भी थोड़ा,
नजाकत से कहना------
हाँ मुझे भी भाते थे कभी---
मैंने दिल में जो,
बनाये थे,
मोहब्बत के अँगना-------


हैं अब अजनबी?
वो सब अजनबी-----?
न जाने कहाँ गये,,?
या हो गए अजनबी------?
जो मुझे भाते थे कभी-----
जो मुझे भाते थे कभी--------


दिन-शनिवार
दिनांक 01/09/2018

शिवकान्ति आर कमल
(तनु जी)

Thursday, August 30, 2018

"वो चंचल बातें, वो अल्हड़पन"


✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻

वो चंचल बातें......
वो अल्हड़पन,,,,,,,,,
रिस्तों में फैली.....
सुबह की सबनम,,,,,,,,,

थी नासमझी......
हर बात में मस्ती......
शाहिल पर थी.......
मेरी कश्ती.......

जीवन का कुछ,,,,,,,
पता नहीं था......
कोई भी तब,,,,,,
खफा नहीं था......

हर सुबह सुहानी होती थी.....
गयी रात पुरानी होती थी....

सपने नैंनों का,,,,,,,
गहना थे......
हर रोज नये,,,,,,,
पहनाते थे......

इतराना गांव की,,,,,,,
गलियों में.......
खो जाना बाग की......
कलियों में,,,,,,,,,,

वो भोर की आँखे,
चमकीली,,,,,
थी दिल की धड़कन,
सपनीली.....

देखो हम जबसे,,,,,,,
बड़े हो गये.....
निज पैरों पर,,,,,,,,
खड़े हो गये........

खूब तलाशा,,,,,
हर पल खोजा......उन सारी,,,
बीती बातों को......
न मिली हमें वो,,,,,,
सुबह सुहानी......
न खोज पाये,,,,,,
उन रातों को.......

पता लगाने,,,,,,
उन गलियों का......
बार बार हम,,,,,,,
उड़े गगन.......
नहीं मिला वो,,,,,,
छुपा खजाना......
न ही वापस आया,,,,,,,
बचपन......

वो चंचल बातें,,,,,,
वो अल्हड़पन,,,,,,,
रिस्तो में फैली......
सुबह की सबनम......

*स्वरचित_३०/०४/२०१७*

*दिन_रविवार*


शिवकान्ति आर कमल
*(तनु जी)*

Wednesday, August 29, 2018

"अश्क मेरा भी अब"


!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂

अश्क मेरा भी अब,,,,,,
अलविदा कह गया........
गैर उसका शहर,,,,,
हर दफा रह गया.......

लेकर आरमां बहुत.......
हम थे आये यहां.....
फिर भी पल पल तड़पकर,,,,
बिताये यहां.......

जिसकी सांसों से,,,,,,
सजती थी धड़कन मेरी......
मुझको वही बेवफा,,,,,,,
कह गया.......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया........

थी हंसने, हंसाने की,,,,,
आदत मेरी......
मुसकुराहटें थीं उनकी,,,,,,
इबादत मेरी.......

***उनके रूह तक उतरने की
चाहत लिये........
दिल्लगी मेरी बस धरी रह गयी****

पास आया भी तो,,,,
 दिल में खंजर लिये......
वो तो नफरत पर ही,,,,,
आमदा रह गया.......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया.....

हमको जीने की आदत है,,,,,,
जी लेंगे हम.....
मुसकुराते हुये,,,,,
जखम सी लेंगें हम.....

सारे कर्जे अब उसके,,,
अदा कर दिये......
देखो हम भी उसे,,,,,,
अलविदा कर दिये......

होकर उसका, बस उसका,,,,
दगा रह गया......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया.......
🌠🌠🌠🌠🌠🌠🌠

*स्वरचित_ २१/०३/२०१७*


शिवकान्ति आर कमल *(तनु जी)*

"अश्क मेरा भी अब"


!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂

अश्क मेरा भी अब,,,,,,
अलविदा कह गया........
गैर उसका शहर,,,,,
हर दफा रह गया.......

लेकर आरमां बहुत.......
हम थे आये यहां.....
फिर भी पल पल तड़पकर,,,,
बिताये यहां.......

जिसकी सांसों से,,,,,,
सजती थी धड़कन मेरी......
मुझको वही बेवफा,,,,,,,
कह गया.......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया........

थी हंसने, हंसाने की,,,,,
आदत मेरी......
मुसकुराहटें थीं उनकी,,,,,,
इबादत मेरी.......

***उनके रूह तक उतरने की
चाहत लिये........
दिल्लगी मेरी बस धरी रह गयी****

पास आया भी तो,,,,
 दिल में खंजर लिये......
वो तो नफरत पर ही,,,,,
आमदा रह गया.......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया.....

हमको जीने की आदत है,,,,,,
जी लेंगे हम.....
मुसकुराते हुये,,,,,
जखम सी लेंगें हम.....

सारे कर्जे अब उसके,,,
अदा कर दिये......
देखो हम भी उसे,,,,,,
अलविदा कर दिये......

होकर उसका, बस उसका,,,,
दगा रह गया......
अश्क मेरा भी अब,,,,,
अलविदा कह गया.......
🌠🌠🌠🌠🌠🌠🌠

*स्वरचित_ २१/०३/२०१७

शिवकान्ति आर कमल *(तनु जी)*

बनकर अपने पिया की जोगन



प्रस्तुत है
*मेरी लेखनी ✍🏻 मेरे श्याम के नाम*

*बनकर अपने पिया की..*

बनकर अपने पिया की जोगन,,,,,
देखो मैं वनवास चली......
दिल पिया का मेरे रंग महल....
मैं महलों के रनवास चली.....

इस रूह को कुमकुम,
कर डाला......
ओठों को गुमशुम,
कर डाला.......
आज पिया को वर लूंगी.....
पहनाकर अपने प्रेम की माला.....

अब जग मोहे बैरी लागे.....
मन लेकर पिया की,,,,,,
प्यास चली......
बनकर अपने पिया की जोगन,,,,,
देखो मैं वनवास चली.......

डूब चली मैं प्रेम का दरिया,,,,,,
न माझी की चाहत है......
नाव मिल गयी.....
श्याम नाम की.....
दिल को दिल से राहत है .... ..

वो लेकर हाथ में हाथ चले......
अब मैं भी उनके साथ चली.....
बनकर अपने पिया की जोगन,,,,
देखो मैं वनवास चली.......

क्यूं दिल की बगिया महक उठी,,,,,,
क्यूं महक उठे हैं चौबारे......
मन के पट अब खोल सखी,,,,
यूं लगा कि आये.....
पिया हमारे........

मन मैल का घूंघट,
उठेगा अब....
मैं लेकर ये अरदास चली.......
बनकर अपने पिया की जोगन......
देखो मैं वनवास चली......

स्वरचित- २८/०६/२०१७

कवियत्री- शिवकान्ति आर कमल *(तनु जी)*